NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
इंजीनियरिंग शिक्षा पर संकटः डेढ़ लाख शिक्षकों को हटाया जाएगा
देश भर के कई इंजीनियरिंग कॉलेज से अब तक 765 शिक्षकों को हटा दिया गया।
तारिक़ अनवर
14 May 2018
college Teacher

देश के विभिन्न राज्यों के अधिकांश स्व-वित्त पोषित तथा निजी शिक्षण संस्थानों के क़रीब डेढ़ लाख शिक्षित तथा अनुभवी शिक्षकों को हटा दिया जाएगा या उन्हें जबरन इस्तीफ़ा देने के लिए कहा जाएगा। ये अनुमान ऑल इंडिया प्राइवेट कॉलेज एम्प्लाई यूनियन (एआईपीसीईयू) का है जो सभी राज्यों के 10,000 इंजीनियरिंग के प्रोफेसर का एक संगठन है। इस अकादमिक वर्ष के अंत में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कई इंजीनियरिंग कॉलेजों ने शिक्षकों को हटाना शुरू कर दिया है।

शैक्षिक वर्ष 2018-19 के लिए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा नए स्टूडेंट-फैकल्टी अनुपात (एसएफआर) के कार्यान्वयन का यह परिणाम है। फैक्ल्टी- स्टूडेंट अनुपात अभी 1:20 है। निजी तथा स्व-वित्त पोषित इंजीनियरिंग कॉलेजों में बीई, बीटेक, बी आर्क, एमबीए, एमसीए और होटल प्रबंधन के लिए अनुपात पहले 1:15 था। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में डिप्लोमा के लिए यह 1:20 था। हालांकि, इंजीनियरिंग तथा तकनीक के लिए एसएफआर 1:15 और एमबीए, एमसीए, एचएमसीटी तथा एम फार्मा जैसे अन्य पाठ्यक्रमों के लिए अतार्किक रूप से कम कर 1:20 तक कर दिया गया है। डिप्लोमा के लिए पहले के 1:20 अनुपात को 1:25 तक घटा दिया गया है।

नीचे दिए गए टेबल में शिक्षकों की संख्या दी गई है जो देश भर के विभिन्न तकनीकी संस्थानों से पहले ही हटा दिए गए हैं:

teacher

teacher

एआईपीसीईयू के संस्थापक केएम कार्तिक ने कहा, "यह छात्रों के दिमाग पर नकारात्मक मनोवैज्ञानिक असर डालेगा जो अभी अपनी छुट्टी मनाने गए थे। जब वे लौटेंगे तो उन्हेंशिक्षकों की कमी का सामना करना पड़ेगा। चूंकि कुछ कॉलेज आवश्यक से अधिक कर्मचारियों को हटा देते हैं और कम अनुभव वाले नए शिक्षकों के साथ प्रतिस्थापित करते हैं या प्रतिस्थापित करने की योजना बनाते हैं जिन्हें कम वेतन का भुगतान किया जा सके। इस तरह छात्रों को कई परस्पर-विरोधी मामलों का सामना करना पड़ेगा और इससे उनकामनोबल टूटेगा।”

कुछ कॉलेज एड-हॉक शिक्षकों को हटाएंगे जबकि कुछ वरिष्ठ शिक्षकों को निशाना बनाएंगे। उन्होंने कहा, "शिक्षक के रूप में सेवा देने के लिए ये सभी शिक्षक (एड-हॉक या वरिष्ठ)अच्छी तरह अनुभवी हैं। वे सभी इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल किए हुए हैं और यह नहीं कहा जा सकता है कि वे अकुशल या कम प्रतिभाशाली हैं।"

शुल्क अपरिवर्तित

यहां उल्लेखनीय है कि वे छात्र जिन्होंने अपने पाठ्यक्रम का पहला वर्ष अभी पास किया है उन्हें अब शिक्षकों की कमी के साथ उसी शुल्क के अनुसार अगले तीन वर्षों तक पढ़ाईकरना होगा। कॉलेजों में शुल्क का निर्धारण प्रत्येक राज्य के उच्च शिक्षा विभाग (या तकनीकी शिक्षा निदेशालय) के तहत एक शुल्क निर्धारण समिति द्वारा तय किया जाता है। कार्तिक नेआरोप लगाया कि "एआईसीटीई के नए एसएफआर अनुपात के अनुसार शिक्षकों की क्षमता कम करने से पहले किसी राज्य सरकार ने छात्रों के लिए इस शुल्क संरचना में संशोधन नहीं किया है। इस अनुपात में बदलाव (1:15 से 1:20 तक) से इन संस्थानों के 25 प्रतिशत कर्मचारियों को हटाया जा रहा है।

एक्रेडिटेशन / एनआईआरएफ रैंकिंग निरर्थक?

नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रेडिटेशन (एनबीए), नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (एनएएसी) तथा नेशनल इंस्टिच्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) द्वारा मान्यता नई एसएफआर नीति के कार्यान्वयन के कारण अब कथित रूप से रद्द कर दी गई है। कार्तिक ने आगे कहा, "बहुत कम टॉप-रैंकिंग, स्व-वित्त पोषित संस्थानें अभी भी अपने पुराने शिक्षकों की क्षमता को बरकरार रखे हुए हैं। एआईसीटीई के फैसले के अनुसार अन्य संस्थानों के लिए शिक्षकों की क्षमता को कम करना खुशी मनाने जैसा है। इसलिए, जो एक्रेडिटेशन हुए है वे नए नियम के अनुसार लागू नहीं होते है।"

एआईसीटीई और ट्रस्ट संबंध?

एआईसीटीई कॉलेजों और सीटों की संख्या में कमी या बंद होने को निरंतर दर्शाता है जो जानबूझकर शिक्षा की सकारात्मक धारणा को कम करता है। कार्तिक ने कहा, "दुर्भाग्यवश एआईसीटीई नियामक निकाय होने के बावजूद इस तरह के क़दम का समर्थन करता है।" उन्होंने आगे कहा. जबकि सुधार के बहुत सारे क्षेत्र मौजूद हैं तो एआईसीटीई पिछले महीने सीटों के समापन को केवल प्रस्तुत करता है जो कॉलेज के मालिकों के हाथों में होने का संकेत देता है जो अपने शिक्षा-व्यवसाय को मदद करने के लिए तथ्यों को तोड़-मोड़ सकते हैं।"

लगता है कि एआईसीटीई ने संस्थानों के वित्तीय बोझ की भरपाई में मदद करने के लिए शिक्षकों को कम करने का फैसला किया। यह एक बड़ा सवाल खड़ा करता है कि क्या एआईसीटीई ने शिक्षकों के वेतन विवरणों के साथ संस्थानों के बैंक विवरणों की जांच किया है या क्रॉस-वेरिफाई किया है। इसाक जवाब नकारात्मक है। कार्तिक ने कहा, "यह साफ है कि नोटबंदी और डिजिटल अर्थव्यवस्था पहल के बाद भी एआईसीटीई संस्थानों में छात्रों की फीस और कर्मचारियों के वेतन को डिजिटाइज करने को लेकर परेशान नहीं है। एआईसीटीई द्वारा उठाए जाने वाले मुद्दे बहुत कम महत्वपूर्ण वाले हैं जबकि महत्वपूर्ण मुद्दों को सरसरी तौर पर नज़रअंदाज़ कर दिया जा रहा है।"

याचिकाकर्ता के मुताबिक़ नए फैकल्टी-स्टूडेंट अनुपात को लागू करने में एआईसीटीई ने इन सभी वर्षों में अपनाए गए पारदर्शिता को समाप्त कर दिया है। फैसले से पहले इस मामले को सार्वजनिक नहीं किया गया था। उन्होंने कहा, "एआईसीटीई ने कॉलेजों के प्रबंधन ट्रस्ट के एसोसिएशन की सलाह पर काम किया था। हर एक ट्रस्ट गैर-लाभकारी सेवा संगठन नहीं है, और बड़े पैमाने पर पैसा बनाने वाले, पारिवारिक स्वामित्व वाले संगठन हैं। कुछ एआईसीटीई अधिकारियों ने इन ट्रस्टों के साथ गठजोड़ किया है, एक गुप्त समाज बना दिया है, और नया फैकल्टी- स्टूडेंट अनुपात इन गुप्त समाज की बैठकों का नतीजा है।"

अकादमिक वर्ष 2015-16 के दौरान एआईसीटीई के सभी मान्यता प्राप्त संस्थानों में कर्मचारियों की कुल संख्या क़रीब 7,00,000 थी (एआईसीटीई के रिकॉर्ड के अनुसार)। आगे कहा गया है कि अकेले इंजीनियरिंग और तकनीक कॉलेजों में यह संख्या 5,78,000 है। याचिकाकर्ता ने कहा कि अगर ये संख्या क़रीब 5,00,000 ली जाती है तो इन निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में रोज़गार से 5,00,000 परिवारों को लाभ मिलता है।

College Teacher
AICTE
AIPCEU
NAAC

Related Stories

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में तकरीबन 33% शिक्षण पद खाली 

कार्टून क्लिक: मैनेजमेंट सबसे बढ़िया!

फीस वृद्धि और ड्रेस कोड के विरोध में छात्रों ने किया जेएनयू के बाहर प्रदर्शन

इंजीनियरिंग की डिग्री और नौकरी का संकट 

मुख्यमंत्री जी, स्कूल-कॉलेजों में ‘शौर्य दीवार’ की नहीं रीडिंग रूम की ज़रूरत है

वीडियो : सामाजिक न्याय पर हमले के खिलाफ हज़ारों शिक्षक सड़क पर उतरे

अब दयाल सिंह कॉलेज को बर्बाद करने की साज़िश?


बाकी खबरें

  • मुकुल सरल
    मदर्स डे: प्यार का इज़हार भी ज़रूरी है
    08 May 2022
    कभी-कभी प्यार और सद्भावना को जताना भी चाहिए। अच्छा लगता है। जैसे मां-बाप हमें जीने की दुआ हर दिन हर पल देते हैं, लेकिन हमारे जन्मदिन पर अतिरिक्त प्यार और दुआएं मिलती हैं। तो यह प्रदर्शन भी बुरा नहीं।
  • Aap
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक
    08 May 2022
    हर हफ़्ते की ज़रूरी ख़बरों को लेकर एक बार फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: हम सहनशील तो हैं, पर इतने भी नहीं
    08 May 2022
    हम ग़रीबी, बेरोज़गारी को लेकर भी सहनशील हैं। महंगाई को लेकर सहनशील हो गए हैं...लेकिन दलित-बहुजन को लेकर....अज़ान को लेकर...न भई न...
  • बोअवेंटुरा डे सौसा सैंटोस
    यूक्रेन-रूस युद्ध के ख़ात्मे के लिए, क्यों आह्वान नहीं करता यूरोप?
    08 May 2022
    रूस जो कि यूरोप का हिस्सा है, यूरोप के लिए तब तक खतरा नहीं बन सकता है जब तक कि यूरोप खुद को विशाल अमेरिकी सैन्य अड्डे के तौर पर तब्दील न कर ले। इसलिए, नाटो का विस्तार असल में यूरोप के सामने एक…
  • जितेन्द्र कुमार
    सवर्णों के साथ मिलकर मलाई खाने की चाहत बहुजनों की राजनीति को खत्म कर देगी
    08 May 2022
    सामाजिक न्याय चाहने वाली ताक़तों की समस्या यह भी है कि वे अपना सारा काम उन्हीं यथास्थितिवादियों के सहारे करना चाहती हैं जो उन्हें नेस्तनाबूद कर देना चाहते हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License