NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
ईरान के ख़िलाफ़ हाइब्रिड वार
ईरान को हमेशा आक्रामक बताया जाता है लेकिन वह ख़ुद ही अमेरिकी आक्रामकता से पीड़ित है।
विजय प्रसाद
28 Jun 2019
ईरान के ख़िलाफ़ हाइब्रिड वार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में बैठकर ईरान के ख़िलाफ़ हमला करने का विचार किया। उनकी सेना ईरानी राडार के साथ छेड़छाड़ करते हुए ईरान के समुद्र तट पर सर्विलांस विमान भेजती रही। ईरान के रडार ने इन मानवयुक्त और मानव रहित विमानों को ट्रैक किया क्योंकि ये ईरान की संप्रभुता सीमा के 12 नॉटिकल मील भीतर प्रवेश कर गया था। पिछले सप्ताह ईरान तट के पास संयुक्त राज्य अमेरिका के दो विमान थे जिनमें एक मानव रहित ग्लोबल हॉक ड्रोन और दूसरा मानव रहित पी-8 जासूसी विमान।

ईरानी वायु कमान अमेरिकी सेना को संदेश भेजा कि ड्रोन और जासूसी विमान दोनों ईरानी क्षेत्र के अंदर आए थे। पी-8 ने ईरानी हवाई क्षेत्र से हटने के लिए रास्ता बदल दिया जबकि ग्लोबल हॉक अपने रास्ता पर चलता रहा। ईरानी अधिकारियों का कहना है कि चूंकि ग्लोबल हॉक ईरानी हवाई क्षेत्र में था इसलिए इसे पिछले गुरुवार सुबह 4 बजे गिरा दिया गया था।

ट्रम्प और उनकी टीम ने इसको लेकर जवाबी कार्रवाई की धमकी दी। वे ईरानी रडार और विमान-रोधी तंत्रों को निशाना बनाना चाहते थे। ग्यारह घंटे के बाद ट्रम्प ने कहा कि उन्होंने ईरानी लक्ष्यों पर निशाना नहीं लगाने का फ़ैसला किया। पेंटागन ने उन्हें चेताया था कि इससे इस क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों को ख़तरा होगा। यह इन सैनिकों की रक्षा में उठाया गया क़दम था जो ट्रम्प ने हमला नहीं किया।

प्रतिबंध

पिछले सप्ताह ईरान पर हमले के लिए ट्रम्प ने मिसाइलों का ढेर नहीं भेजा होगा लेकिन बेशक संयुक्त राज्य अमेरिका ने निश्चित रूप से ही ईरान के ख़िलाफ़ एक विशेष प्रकार का युद्ध छेड़ दिया है। ड्रोन को मार गिराने के कुछ दिन पहले ईरान के सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रमुख अली शमखानी ने सुरक्षा मामलों को लेकर रूस के उफा में बातचीत की। अपनी बातचीत में शमखानी ने कहा कि संयुक्त राज्य ने कई देशों की संप्रभुता को कुचल दिया था। उन्होंने कहा यूएस ट्रेज़री डिपार्टमेंट एक प्रकार का फ़ाइनेंशियल सेंटकॉम (सेंटकॉम-सेंट्रल कमांड, केंद्रीय कमान) बन गया था। शमखानी ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपनाई गई नीतियों को "आर्थिक आतंकवाद" माना जाना चाहिए।

अमेरिका का एकतरफ़ा प्रतिबंध इस आर्थिक आतंकवाद के केंद्र में है। संयुक्त राज्य अमेरिका प्रतिबंधों को अन्य देशों के ख़िलाफ़ एक प्रभावी साधन के रूप में इस्तेमाल करने में सक्षम है क्योंकि उसके पास विश्व के वित्तीय तथा मौद्रिक प्रणाली पर इस तरह की असाधारण शक्ति है। अमेरिकी डॉलर विशेष आरक्षित मुद्रा तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की मुख्य मुद्रा है। अमेरिकी डॉलर तथा अमेरिकी वित्तीय प्रणालियों पर निर्भरता का मतलब है कि ज़्यादातर देश अमेरिकी दबाव के ख़िलाफ़ खड़े होने को तैयार नहीं हैं।

प्रतिबंध का अर्थ है कि तेल तथा प्राकृतिक गैस के निर्यात पर निर्भर ईरान ने अपने बाहरी राजस्व पर भारी असर पड़ते देखा है। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक) सहित विश्व वित्तीय प्रणाली पर संयुक्त राज्य अमेरिका का वर्चस्व का मतलब है कि ईरान अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में क्रेडिट जुटा पाने में सक्षम नहीं है। दवाओं तथा खाद्य पदार्थ के आयात में होने वाली कठिनाई ने ईरान के लोगों के सामने गंभीर चुनौतियां पैदा कर दी हैं।

हाइब्रिड वार

चूंकि पश्चिमी मीडिया अंतरराष्ट्रीय विचारों को निर्धारित करने का काम जारी रखे हुए है ऐसे में ईरान के इर्द गिर्द की घटनाओं की व्याख्या प्रमुख हो जाती है। ईरान ने कभी भी अमेरिका पर हमला नहीं किया है लेकिन अमेरिका ने ईरान के मामले में कई बार हस्तक्षेप किया है। वर्ष 1953 में यूके के साथ अमेरिका ने मोहम्मद मोसादिक की लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका था और अगले दो दशकों में ईरान के शाह की अलोकप्रिय सरकार को पूरा समर्थन दिया था। जब खाड़ी अरब ने वर्ष1980 में ईरान पर हमला करने के लिए सद्दाम हुसैन को आगे बढ़ाया था तो यह अमेरिका और पश्चिमी यूरोप ही था जिसने आठ वर्षीय ख़ूनी युद्ध के लिए इराक को हथियार तथा धन मुहैया कराया था। ये सारा मामला पश्चिमी मीडिया के लिए कहीं खो गया है जो वेनेज़ुएला में हिजबुल्लाह या हाउथिस पर ईरानी नियंत्रण जैसी काल्पनिक कहानियों को लेकर उत्साहित है। ईरान को हमेशा आक्रामक बताया जाता है लेकिन यह ईरान ही है जो अमेरिकी आक्रमकता से पीड़ित रहा है।

ईरान को समस्या की वजह के तौर पर देखा जाता है; यह विचार कि ईरान एक दुष्ट या आतंकवादी देश है जिससे किनारा करना मुश्किल है। यह संचार युद्ध का एक हिस्सा है जिसका सामना ईरान कर रहा है, यहां तक कि विवेकी विदेश मंत्री (जवाद ज़रीफ़) के साथ भी अपने मामले में तर्क देने के लिए असमर्थता जताता है कि वह युद्धरत नहीं है, लेकिन यह वाशिंगटन से ख़तरों और प्रतिबंधों से पीड़ित रहा है।

वर्ष 2010 से 2012 के बीच चार ईरानी परमाणु वैज्ञानिक मारे गए। ये वैज्ञानिक थें मसऊद अलिमोहम्मादी, दाैरियश रज़ाएनेजाद, मुस्तफ़ा अहमदी रोशन और माजिद शाहरारी। ये वैज्ञानिक या तो इज़रायली ख़ुफ़िया मोजाहिदीन-ए ख़लक (एमईके) या अमेरिकी ख़ुफ़िया या इन सभी के सहयोग से मारे गए। इन वैज्ञानिकों को दिन दहाड़े ईरान के अंदर मार दिया गया था। इन घटनाओं ने वैज्ञानिक समुदाय में खौफ पैदा कर दिया। एक अमेरिकी और इज़रायली ने वर्ष 2010 में ईरान के कंप्यूटर सिस्टम को प्रभावित करने वाले कंप्यूटर वर्म स्टक्सनेट बनाया जिससे ईरान के उन कंप्यूटरों को नुकसान पहुंचा जो उसके परमाणु कार्य का हिस्सा थे। यह घोषणा की गई थी कि ऐसे और हमले होने की संभावना है। वर्ष 2015 में परमाणु समझौते पर सहमति बनने से पहले ये घटना हुई थी। लेकिन इस तरह के हमलों की आशंका बनी हुई है।

ईरान के सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी मंत्री मोहम्मद जावेद अज़ारी जहरोमी ने कहा कि ईरान ने एक फ़ायरवॉल बनाया है जो अमेरिका और इज़राइल द्वारा उस पर निशाना लगाए गए किसी भी साइबर उपकरण से उसकी तंत्रों की रक्षा करता है। ये फ़ायरवॉल ईरान के कंप्यूटर वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया है।

यह प्रतिबंध, सूचना युद्ध, अंतर्ध्वंस जैसे हमलों का संयोग है जिसमें ईरान के ख़िलाफ़ "हाइब्रिड वार" शामिल है ("हाइब्रिड वार की अवधारणा" पर अधिक जानकारी के लिए द डोज़ियर ऑन वेनेज़ुएला फ्रॉम ट्राईकॉन्टिनेंटलः इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च देखें)। ईरान के ख़िलाफ़ वाशिंगटन द्वारा हथियार के इस्तेमाल के भाग के रूप में युद्ध के ख़तरे के साथ ये हाइब्रिड वार जारी है। यहां तक कि ट्रम्प का यह कथन कि उन्होंने हमले शुरू होने से कुछ मिनट पहले ईरान पर बमबारी करने का आदेश वापस ले लिया था यह सूचना युद्ध का हिस्सा था, यह ईरानियों को डराने की कोशिश थी कि अमेरिका किसी भी समय बम गिराने में सक्षम है। ईरान के इर्द गिर्द इस हाइब्रिड युद्ध ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है।

प्रतिबंध के ख़िलाफ़ देश

अमेरिकी डॉलर और अमेरिकी वित्तीय प्रणालियों के प्रति विश्व अर्थव्यवस्था की निर्भरता को अलग करना आसान नहीं है। यहां तक कि बहुपक्षवाद की बात भी अपरिपक्व है। इसकी मांग करना एक अलग बात है और मान्यता देना दूसरी बात है क्योंकि बहुपक्षवाद के लिए संस्थानों और उपकरणों को बनाने में कम से कम दशक भर ज़रूर लगेगा। उदाहरण के लिए चीनी युआन में विश्वास पैदा करने की ज़रूरत होगी। तब पैसे ट्रांसफ़र करने और व्यापार में सामंजस्य स्थापित करने के लिए वैकल्पिक प्रणालियों में विश्वास पैदा होगा। यूरोपीय संघ ने खुले तौर पर कहा कि वह ईरान को तेल का भुगतान करने के लिए एक वैकल्पिक तंत्र चाहता था जो अमेरिकी प्रतिबंध से प्रभावित नहीं होगा। लेकिन ऐसा कोई उपकरण नहीं बनाया जा सका। इसमें समय लगेगा।

इस बीच राजनीतिक स्तर पर लगभग 25 देश इन प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ एक मंच बनाने के लिए साथ आए हैं। ईरान के वरिष्ठ सांसद मोहम्मद अली पोउरमोख्तार कहते हैं, ये देश "अमानवीय" अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ एक साथ खड़े होंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि ये समूह क्या कर पाएगा लेकिन निश्चित रूप से यह मुद्दा है कि वे इस तरह के कठोर प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ एक राजनीतिक अभियान चलाएंगे जो वर्तमान में वेनेज़ुएला, क्यूबा और ईरान के ख़िलाफ़ है।

यह महत्वपूर्ण है कि चीन और रूस इस समूह के साथ शामिल होंगे। तेहरान में रूस के राजदूत लेवन जागैरियन ने कहा कि ईरान पर अमेरिका के एकतरफ़ा युद्ध के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए चीन, ईरान और रूस एक त्रिपक्षीय समूह बनाएंगे।

25 देशों का ये समूह प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ संघर्ष करेगा और तीन देशों का समूह अमेरिकी युद्ध को रोकने की कोशिश करेगा लेकिन क्या वे इसे रोक सकते हैं यह एक गंभीर सवाल है। ट्रम्प के अधीन संयुक्त राज्य अमेरिका पूरी तरह से अविश्वसनीय है, इसके सैन्य हथियार निशाना लगाने को तैयार हैं, इसका हाइब्रिड वार पहले से ही शुरू है। ये ख़तरनाक समय है।

विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वे इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूट के प्रोजेक्ट Globetrotter के मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ़्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं।

ये लेख Globetrotter द्वारा प्रकाशित किया गया जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टिट्यूट का प्रोजेक्ट है।

IRAN
US sanctions on Iran
Ali Shamkhani
Donald Trump
Information War
Hybrid War
Unilateral Sanction by US
China
Russia

Related Stories

डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ

यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 

पश्चिम बैन हटाए तो रूस वैश्विक खाद्य संकट कम करने में मदद करेगा: पुतिन

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License