NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
ईरान : क्या ज़रीफ़ ने ट्रम्प को परेशानी में डाल दिया है ?
ज़रीफ़ ने अपने काम को गंभीरता से लिया और अच्छी अंग्रेजी बोलने के चलते वे किसी भी अमेरिकी के साथ ट्वीट कर बहस आसानी से कर सके। इस तरह ज़रीफ़ ने औसत अमेरिकी विदेशी और सुरक्षा नीति टीम को पछाड़ दिया।
एम.के. भद्रकुमार
02 Aug 2019
Iran and trump

ऐसे समय में जब ट्रम्प प्रशासन को रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव के साथ बातचीत करने में कोई समस्या नहीं है जिन पर तकनीकी रूप से अप्रैल 2018 से ही अमेरिकी प्रतिबंध है। ऐसे में ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़़रीफ़़ पर प्रतिबंध लगाने के वाशिंगटन के कदम को ठीक से समझने की आवश्यकता है।

ज़रीफ़ को लेकर सख्त कार्रवाई का कारण अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने बताया, विदेश मंत्री ज़रीफ़और उनका विदेश मंत्रालय सर्वोच्च नेता और उनके कार्यालय से निर्देश लेता है। विदेश मंत्री ज़रीफ़ पूरे क्षेत्र और दुनिया भर मेंआयतुल्ला खामेनेई की नीतियों के प्रमुख प्रवर्तक हैं। जवाद ज़रीफ़ का ओहदा आज इस वास्तविकता को दर्शाता है।' उन्होंनेकहा,'विदेश मंत्री ज़रीफ़ इन हानिकारक गतिविधियों में कई वर्षों से शामिल हैं।

मूल रूप से पोम्पिओ की शिकायत इन चीजों को कम कर देता: ज़रीफ़ एक अनुशासित कर्तव्यनिष्ठ, वफादार ईरानी लोक सेवक है जो कि विलायत-ए-फकीह (इस्लामिक न्यायविद की संरक्षकता) की अवधारणा के तहत स्थापित सरकार की ईरानी सिस्टम का पालन करते हैं।

क्या यह पाप हो जाता है? 

किसी भी विदेश मंत्री को अपने काम को पूरा करना होता है - यहां तक कि खुद पोम्पिओ को भी। पोम्पिओ को कोई बहाना नहीं है कि वह अपने सर्वोच्च नेता राष्ट्रपति ट्रम्प की खुशी और विवेक पर पूरी तरह से काम कर रहे हैं।

अमेरिका की व्यवस्था यह अच्छी तरह से जानती है कि विलायत-ए फ़कीह की अवधारणा कैसे संचालित होती है, ईरान में राजनीतिक शक्ति की धुरी कैसे बनती है और निर्णय लेने की प्रक्रिया तक कैसे पहुंचा जाता है। यहां तक कि ट्रम्प भी इसे जानते होंगे। यही कारण है कि उन्होंने सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के माध्यम से प्राप्त करने की भी कोशिश की। तो, शिकायत कहां है?

सीधे शब्दों में कहें, ज़रीफ़ खुद ही समस्या हैं। ट्रम्प प्रशासन सख्त तरीके से अमेरिकी कुलीन वर्ग के साथ ज़रीफ़ के संपर्कों को समाप्त करना चाहती हैं। ज़रीफ़ 17 साल की उम्र से अमेरिका में रहे और कई वर्षों तक वहां काम किया। वे हाई स्कूल के छात्र से लेकर विश्वविद्यालय के छात्र रहे और पेशेवर राजनयिक के रूप में 2002 से 2007 तक संयुक्त राष्ट्र में ईरान के प्रतिनिधि के रूप में काम किया। तेहरान में एक प्रोफेसर और निरस्त्रीकरण, मानव अधिकारों, अंतर्राष्ट्रीय कानून और क्षेत्रीय संघर्षों पर लिखने वाली पत्रिका के संपादक के रूप में उन्होंने अमेरिका के अकादमिक और बुद्धिजीवियों के साथ भी संपर्क बनाए रखा।

वास्तव में ट्रम्प प्रशासन की परेशानी यह है कि ज़़रीफ़ ने बड़े पैमाने पर अमेरिकी बुद्धिजीवियों, राजनेताओं, नीति निर्माताओं और मीडिया के लोगों जैसे जोसेफ बिडेन, जॉन केरी, नैन्सी पेलोसी,चक हैगल, निकोलस क्रिस्टोफ़, थॉमस पिकरिंग, जेम्स डोबिन्स और क्रिश्चियन अमनपोर के साथ बेहतर नेटवर्क बनाया है।

ज़रीफ़ ने अपने काम को गंभीरता से किया और अच्छी अंग्रेजी बोलने के चलते वह किसी भी अमेरिकी के साथ ट्वीट कर आसानी से बहस कर सके। इस तरह ज़रीफ़ ने औसत अमेरिकी विदेश और सुरक्षा नीति टीम को पछाड़ दिया।

ज़रीफ़ की समय-समय पर न्यूयॉर्क की यात्रा (संयुक्त राष्ट्र के आयोजनों में शामिल होने की संभावना) तेजी से ट्रम्प प्रशासन के लिए खतरा बन गई क्योंकि उन्होंने अपना दायरा बढाया  और ईरान की स्थिति को सामने रखा। ट्रम्प ने केरी के साथ बैठक के लिए ज़रीफ़ का कई बार चयन किया। केरी पूर्व स्टेट सेक्रेट्री थे जिन्होंने 2015 के ईरान समझौते पर बातचीत की थी।

यही इस मामले कि जड़ है। ज़रीफ़ पर प्रतिबंध लगाने से अमेरिका उन्हें वीज़ा देने से इंकार कर सकता है, साथ ही उनके और किसी भी अमेरिकी नागरिक के बीच किसी भी संपर्क को ग़ैरक़ानूनी(कानून के तहत मुकदमा चलाने योग्य) घोषित कर सकता है। असल में ट्रम्प ने पोम्पिओ को यह निर्देश दिया कि ज़रीफ़ अब से 2020 के नवंबर तक यानी चुनाव के बीच न्यूयॉर्क न आएं जिससे कि उनकी निंदा करने वाले और आलोचक उनसे ईरान की स्थिति को नहीं सुन सकें।

ट्रम्प ने चौंकते हुए कहते हैं कि, ईरान सूचना युद्ध (इनफॉर्मेशन वार) जीत रहा है। और वह चिंतित हैं कि अब और नवंबर 2020 के बीच होने वाले उनके चुनाव प्रचार पर बड़ा असर पड़ सकता है। यूएस-ईरान गतिरोध पर लंबे समय से नजर रखने वाले पर्यवेक्षक के लिए यह स्पष्ट है कि ईरान को लेकर अमेरिकी बातचीत में बड़ा परिवर्तन दिखाई दिया है। आज अमेरिका में विचारों का एक प्रभावशाली और निरंतर बढ़ता समूह है जो ट्रम्प की अधिकतम दबाव की रणनीति से असहमत है। यह क्षेत्र तर्कसंगत रूप से दलील देता है कि ट्रम्प को 2015 समझौता को उलटना नहीं चाहिए।

समान रूप से इस्लामियत के मुखौटे के भीतर परशियन राष्ट्रवाद से निपटने के तरीके और ईरान और उसकी नीतियों के बारे में जानकार अमेरिकी की राय में आज बेहतर समझ है।

क्या ट्रम्प का जोड़-तोड़ काम करेगा? 

ये असंभव है। बात ये है कि ज़रीफ़ दबने वाले नही हैं। वह ट्रम्प की ईरान नीतियों को लेकर परेशान करना, निंदा करना, अपमानित करना और उन्हें बेनकाब करना जारी रखेंगे। इससे भी ख़तरनाक बात ये है कि ज़रीफ़ ने वर्तमान में अमेरिकी प्रशासन की ईरान नीतियों को निंयत्रित करने वाली 'बी टीम' को बड़ा नुकसान पहुंचाया है।

ज़रीफ़ के ख़िलाफ़ ट्रम्प का प्रतिबंध किसी भी अन्य देश के लिए उदाहरण स्थापित नहीं करेगा जिनके ईरान के साथ राजनयिक संबंध हैं। अंतिम विश्लेषण में ट्रम्प को ज़रीफ़ से समझौता करना होगा चाहे वह उन्हें पसंद करे या नहीं।

ज़रीफ़ का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि एक बौद्धिक, गतिशील स्टेट सेक्रेट्री का चयन करना होगा। ज़रीफ़ के सामने पोम्पिओ कभी सफल नहीं होंगे। यह बेकार की बात है जो ट्रम्प ने की है। उन्हें बेहतर पता होना चाहिए था।

वर्ष 2001 में बोन कॉन्फ्रेंस में ज़रीफ़ ईरान के मुख्य प्रतिनिधि थे। इस कॉन्फ्रेंस ने अफगानिस्तान पर अमेरिकी चढ़ाई और तालिबान के बाहर करने के बाद क्षेत्रीय राष्ट्रों को एक साथ लाया। इस समारोह में उनके अमेरिकी समकक्ष जेम्स डोबिन्स जिन्हें बाद में अफगानिस्तान में ओबामा प्रशासन के विशेष दूत के रूप में नामित किया गया था उन्होंने ज़रीफ़ की विद्वता, बुद्धि और आकर्षण और उनके व्यावहारिकता के बारे में वाशिंगटन क्वार्टर्ली में नेगोशिएटिंग विथ ईरानाः रिफ्लेक्शन फ्रॉम पर्सनल एक्सपेरिएंस शीर्षक का एक यादगार लेख लिखा जो दोनों प्रतिभाशील राजनयिकों को नॉर्दर्न अलाइंस गवर्नमेंट को प्रतिस्थापित करके हामिद करजई के नेतृत्व में यूएस समर्थित अंतरिम सरकार बनाने में मदद की। (बुरहानुद्दीन रब्बानी ने उस समय सख़्त टिप्पणी की, उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह आखिरी बार होगा जब कोई विदेशी सत्ता अफ़गानों के लिए तानाशाही करेगी।)

वॉशिंगटन ने अब उस व्यक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया है जिसने हिंदू कुश में अमेरिकी अधिपत्य की स्थापना के लिए काबुल में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

US
IRAN
US-Iran Tension
Donald Trump
Mohammad Javad Zarif
twitter
US Secretary
Mike Pompeo

Related Stories

ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि

90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा

यूक्रेन युद्ध से पैदा हुई खाद्य असुरक्षा से बढ़ रही वार्ता की ज़रूरत

यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 

असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की

छात्रों के ऋण को रद्द करना नस्लीय न्याय की दरकार है

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

खबरों के आगे-पीछे: अंदरुनी कलह तो भाजपा में भी कम नहीं

मस्क की बोली पर ट्विटर के सहमत होने के बाद अब आगे क्या होगा?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?
    25 May 2022
    मृत सिंगर के परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्होंने शुरुआत में जब पुलिस से मदद मांगी थी तो पुलिस ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया। परिवार का ये भी कहना है कि देश की राजधानी में उनकी…
  • sibal
    रवि शंकर दुबे
    ‘साइकिल’ पर सवार होकर राज्यसभा जाएंगे कपिल सिब्बल
    25 May 2022
    वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है और अब सपा के समर्थन से राज्यसभा के लिए नामांकन भी दाखिल कर दिया है।
  • varanasi
    विजय विनीत
    बनारस : गंगा में डूबती ज़िंदगियों का गुनहगार कौन, सिस्टम की नाकामी या डबल इंजन की सरकार?
    25 May 2022
    पिछले दो महीनों में गंगा में डूबने वाले 55 से अधिक लोगों के शव निकाले गए। सिर्फ़ एनडीआरएफ़ की टीम ने 60 दिनों में 35 शवों को गंगा से निकाला है।
  • Coal
    असद रिज़वी
    कोल संकट: राज्यों के बिजली घरों पर ‘कोयला आयात’ का दबाव डालती केंद्र सरकार
    25 May 2022
    विद्युत अभियंताओं का कहना है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 11 के अनुसार भारत सरकार राज्यों को निर्देश नहीं दे सकती है।
  • kapil sibal
    भाषा
    कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन
    25 May 2022
    कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल ने बुधवार को समाजवादी पार्टी (सपा) के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल किया। सिब्बल ने यह भी बताया कि वह पिछले 16 मई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License