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ईरानः अधर में आबे की मध्यस्थता !
तेहरान को उम्मीद है कि जापान के पीएम आबे ईरान से तेल खरीदने के लिए अमेरिका से छूट हासिल कर सकते हैं।
एम. के. भद्रकुमार
11 Jun 2019
Tehran
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई तेहरान में 29 मई, 2019 को शिक्षाविदों, विद्वानों, बुद्धिजीवियों और विशिष्ट वर्ग के ईद सभा को संबोधित करते हुए।

अमेरिका-ईरान वार्ता को बढ़ावा देने के लिए शांति मिशन पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को तेहरान आने में बस एक दिन रह गया है । 12 जून को वह ईरान की यात्रा करेंगे। इसको लेकर मीडिया में काफी चर्चा है। इस प्रकार पश्चिमी मीडिया ने यूएस के लिंकन स्ट्राइक समूह के कमांडर रियर एड्मिरल जॉन एफ. जी. वाडे को जुझारू और उत्तेजक बताने की उनके टिप्पणी की सराहना की।

हालांकि, तेहरान उस जाल में नहीं फंसा। इस मामले की सच्चाई यह है कि अमेरिकी और ईरानी सेना को एक दूसरे के इरादों को गहराई से समझने और फारस की खाड़ी में साथ-साथ काम कारने का अच्छा अनुभव है। इस व्यवस्था ने पिछले चार दशकों से बेहतर काम किया है और जाहिर है इस क्षेत्र में हाल ही में एक अमेरिकी न्यूक्लियर स्ट्राइक ग्रुप की तैनाती के साथ एक नई स्थिति पैदा हो गई है।

दि तेहरान टाइम्स ने रियर एडमिरल वाडे के बयान को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया है जो वाडे संदेश देना चाहते थें (और ईरान ने इसकी सराहना की)। इस  प्रभावशाली दैनिक ने वाडे की टिप्पणी पर प्रकाश डाला है कि “चूंकि हम इस क्षेत्र में परिचालन करते आ रहे हैं ऐसे में ईरानियों के साथ हमारी कई बार बातचीत हुई है। अभी तक सभी सुरक्षित और पेशेवर रहे हैं - इसका अर्थ यह है कि ईरानियों ने हमारी गतिविधियों को बाधित करने के लिए कुछ नहीं किया है या इस तरह से काम किया है जिससे हमें रक्षात्मक उपाय करने की आवश्यकता है।"

यह फ़ारस की खाड़ी में परिचालन की स्थिति को लेकर है। ये तथ्य महत्वपूर्ण हैं। दि तेहरान टाइम्स ने प्रकाशित किया: "इस क्षेत्र में आने के एक महीने बाद लिंकन ने फारस की खाड़ी में प्रवेश नहीं किया है और यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा होगा। एक विध्वंसक यूएसएस गोंजालेज जो लिंकन स्ट्राइक समूह का हिस्सा है वह फारस की खाड़ी में सक्रिय है।"

“पिछले सप्ताह अरब सागर में ओमान के पूर्वी तट से लिंकन लगभग 320 किलोमीटर (200 मील) दूर था। फ़ारस की खाड़ी तक पहुंचने से पहले इसे अब भी ओमान की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य से गुज़रना होगा।” स्पष्ट रूप से नई स्थिति उतनी अस्थिर नहीं है जितना कि कुछ मीडिया रिपोर्टों द्वारा उछाला गया है। निश्चित रूप से बहुत सारी तैयारी चल रही है लेकिन, युद्ध? कोई समाधान नहीं है।

इस बीच अमेरिका ने अपने सबसे बड़े पेट्रोकेमिकल समूह का विस्तार करने के लिए ईरान के तेल उद्योग पर अपने प्रतिबंधों को बढ़ा दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि पाइपलाइन को लेकर यह निर्णय है लेकिन घोषणा का समय (शुक्रवार के दिन) पेचीदा है। हालांकि यह अपरिपक्व प्रशासन का अब तक का परिचित तरीका है जो विभिन्न दिशाओं में खींच रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि तेहरान ने ऐसे समय में इस कदम को लेकर अमेरिका के सच्चे इरादों पर सवाल उठाया है जबकि बातचीत को लेकर चर्चा तेज़ है।

ट्रम्प प्रशासन ने आबे के मिशन से पहले एक दुस्साहसी कदम उठाया है जिससे बचा जा सकता था। यह एक विवादास्पद स्थिति है कि क्या ट्रम्प खुद इसके बारे में जानते थे या नहीं। इन सबके बावजूद तेहरान शांति और उद्देश्यपूर्ण तरीके से आबे के साथ वार्ता करना चाह रहा है।

इसमें चौंकाने वाली बात नहीं कि ईरान आगामी वार्ता को ज़्यादा महत्व नहीं देता है। पिछले सप्ताह तेहरान टाइम्स की एक टिप्पणी में शुक्रवार को वाशिंगटन के पेट्रोकेमिकल क्षेत्र में प्रतिबंधों को बढ़ाने के कदमों का हवाला देते हुए उद्धृत किया गया कि व्हाइट हाउस का अपनी अधिकतम दबाव की रणनीति से पीछे हटने का कोई इरादा नहीं है। इस टिप्पणी में ट्रम्प पर दोगुना दबाव होने का पता चलता है। पहला अमेरिकी जनता की राय में युद्ध का विरोध और सहयोगियों से समर्थन की कमी उनकी ईरान नीतियों के समायोचित है।

दिलचस्प बात यह है कि आबे के मिशन पर ये टिप्पणी प्रभाव डालता है। इसका आकलन दो कारकों पर निर्भर करता है। "पहला मौजूदा समस्याओं को हल करने के लिए यूएस और ईरान का दृढ़ संकल्प तथा वास्तविक इच्छा विशेष रुप से यूएस की वास्तविक इच्छा" और दूसरा अमेरिकी निर्णयों को प्रभावित करने की जापान की क्षमता।

विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने आबे की यात्रा का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि "हम आबे के विचारों को ध्यान से सुनेंगे और फिर विस्तार से अपनी बातों को व्यक्त करेंगे।" लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि अमेरिका को अपने 'आर्थिक युद्ध' को रोकना होगा। उन्होंने खुलासा किया कि तेहरान ने पहले ही इस मामले में आबे को सचेत कर दिया है।

मुख्य रूप से ईरान के सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता ने उल्लेख किया है कि आबे की यात्रा की सफलता की गारंटी तभी दी जा सकती है जब जापान "अमेरिका को जेसीओपीए (2015 परमाणु समझौते) में वापसी करने की कोशिश करे और ईरान (प्रतिबंध के कारण) को हुए नुकसान की भरपाई का प्रयास करे" और साथ ही अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने का प्रयास करे।

आबे की तेहरान यात्रा जापान-ईरान द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक मील का पत्थर है क्योंकि यह 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद पहली ऐसी घटना है। हालांकि दोनों देशों ने दोस्ताना संबंध बनाए रखा है। तेहरान को उम्मीद है कि आबे ईरान से तेल खरीदने में सक्षम होने के लिए अमेरिका से छूट हासिल कर सकते हैं।

जाहिर है ईरानी वार्ताकारों के लिए मानदंड सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई द्वारा 29 मई को तेहरान में ईरान के शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विशिष्ट वर्ग की एक सभा को संबोधित करने के दौरान की गई टिप्पणी होगी। खामेनेई ने कहा कि महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि “हम क्रांति के मुख्य मुद्दों पर बातचीत नहीं करेंगे। इस मुद्दे पर बातचीत से व्यापार प्रभावित होती है; इसका मतलब है कि हम अपनी रक्षात्मक क्षमताओं को छोड़ देते हैं। हम अपनी सैन्य क्षमता पर बातचीत नहीं करेंगे।”

सामान्य तौर पर खामेनेई ने कहा कि दबाव डालकर किसी देश की संपत्ति को निशाना बनाने का अमेरिका का इतिहास है। इसमें बातचीत अपनी राष्ट्रीय संपत्ति का व्यापार करने के लिए वार्ताकार को मजबूर करने के लिए एक रणनीति बन जाती है। "वे (अमेरिका) दबाव तब तक बनाते हैं जब तक विरोधी मजबूर नहीं हो जाते और फिर बातचीत करने का प्रस्ताव देते हैं। यह समझौता दबाव का पूरक है और इसका उद्देश्य दबावों को भुनाना है। वे दबाव डालते हैं और फिर बातचीत का प्रस्ताव देते हैं। यही उनके लिए बातचीत का मतलब है। उनकी रणनीति बातचीत नहीं है। यह दबाव है। बातचीत दबाव की रणनीति का हिस्सा है।”

यही कारण है कि खामेनेई ने जोर दिया कि ईरान को प्रतिवाद के रूप में प्रतिरोध का सहारा लेना पड़ा है। उन्होंने कहा, "उनके (अमेरिका के) दबाव का सामना करने के लिए हमारे (ईरान) के लिए प्रतिवाद अपने स्वयं के दबावों का उपयोग करना है। हालांकि अगर हम बातचीत के लिए उनके आह्वान से धोखा खा जाते हैं और दबाव के हमारे साधनों पर अनावश्यक विचार करते हैं तो हम चूक जाएंगे और इसका मतलब होगा पूरी तरह हारना।" (खामेनेई के संबोधन के अंश यहां दिए गए हैं।)

साभार: इन्डियन पंचलाइन 

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