NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
इस आम चुनाव से मुसलमानों को क्या हासिल हुआ?
2014 की तुलना में इस बार लोकसभा जाने वाले मुसलमान सांसदों की संख्या बढ़ गई है। इस बार कुल 26 मुस्लिम सांसद लोकसभा जा रहे हैं, 2014 में कुल 23 मुस्लिम सांसद बने थे। लेकिन सत्तारूढ़ बीजेपी से कोई मुस्लिम, संसद में नहीं पहुंचा है।
अमित सिंह
24 May 2019
फाइल फोटो
(फोटो साभार: द वीक)

नरेंद्र मोदी के अगुआई वाले एनडीए ने 2019 के लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की है। इस पूरे चुनाव में विपक्ष ने ऐसा माहौल बनाया था कि मुसलमान बीजेपी के खिलाफ वोट कर रहे हैं। हालांकि पूरे आम चुनाव के दौरान मुसलमान बहुत ही शांत नजर आए। कहा जाए तो इस बार वो सबसे साइलेंट वोटर थे। 

फिलहाल 2014 की तुलना में इस बार लोकसभा जाने वाले मुसलमान सांसदो की संख्या बढ़ गई है। इस बार कुल 26 मुस्लिम सांसद लोकसभा जा रहे हैं, 2014 में कुल 23 मुस्लिम सांसद बने थे। 

हालांकि निचले सदन में भले ही मुसलमानों की संख्या में थोड़ा इजाफा हुआ है लेकिन आबादी के हिसाब से हम देंखे तो यह बहुत कम है। देश की लोकसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 5 प्रतिशत से कम है जबकि देश की आबादी में उनकी कुल हिस्सेदारी 14 फीसदी के करीब है। 

कितना है निचले सदन में प्रतिनिधित्व?

आपको बता दें कि बीजेपी से किसी भी मुस्लिम सांसद ने जीत नहीं दर्ज की है, जबकि उसे 303 सीटों पर जीत मिली है। हालांकि उसके सहयोगी एलजेपी से एक मुस्लिम सांसद ने जीत दर्ज की है। 

बीजेपी ने इस चुनाव में छह मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था। इसमें दो मुस्लिम कैंडिडेट पश्चिम बंगाल, एक लक्षद्वीप और तीन मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में थे। लेकिन किसी को जीत नहीं मिली यानी मुस्लिम प्रत्याशी बीजेपी के लिए जिताऊ उम्मीदवार साबित नहीं हुए हैं।

एनडीए से सिर्फ एक मुसलमान सांसद ने जीत दर्ज की है। वो है बिहार के खगड़िया से महमूद अली कैसर, जिन्हें एलजेपी ने टिकट दिया था। 

उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का गठबंधन भले ही सफल न रहा हो लेकिन ये गठबंधन उत्तर प्रदेश से 6 मुस्लिम सांसदों को जिताने में कामयाब रहा है। पिछली लोकसभा में यूपी से कोई भी मुस्लिम सांसद नहीं था।

बीएसपी के कुंवर दानिश अली ने अमरोहा से, अफजल अंसारी ने गाजीपुर, हाजी फजलुर्रहमान ने सहारनपुर से जीत हासिल की। वहीं, सपा के एसटी हसन ने मुरादाबाद, शफीक रहमान बर्क ने संभल और आजम खान ने रामपुर से जीत हासिल की है। 

इसके अलावा जम्मू कश्मीर से फारूख अब्दुल्ला ने श्रीनगर से जीत दर्ज की है। उनके अलावा उनकी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के मुहम्मद अकबर लोन और हनानी मसूदी ने घाटी की दो सीटों पर जीत हासिल की है। 

एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी हैदराबाद से चुने गए हैं। उनकी पार्टी से महाराष्ट्र के औरंगाबाद से इम्तियाज जलील ने जीत दर्ज की है। लक्षद्वीप से नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के मोहम्मद फैजल ने जीत हासिल की है। 

केरल से अलाप्पुझा से सीपीएम के एएम आरिफ ने जीत दर्ज की है। केरल से ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ईटी मोहम्मद बशीर ने पोन्नानी और पीके कुहालिकुट्टी ने मालापुरम से जीत दर्ज की है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग पार्टी से के. नवासकानी ने तमिलनाडु के रामनाथपुरम सीट से जीत हासिल की है। 

कांग्रेस से चार मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की हैं। इसमें असम के बारपेटा से अब्दुल खलीक, बिहार के किशनगंज से मोहम्मद जावेद, पश्चिम बंगाल के मालदा दक्षिण से अबु हसन खान चौधरी और पंजाब के फरीदकोट से मोहम्मद शादिक शामिल हैं। 

असम से एआईयूडीएफ के प्रमुख बदरूद्दीन अजमल अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे हैं। वहीं, तृणमूल के टिकट पर पश्चिम बंगाल के बशीरघाट से नुसरत जहान रुही, जंगीपुर से खलीलुर्रहमान, मुर्शिदाबाद से आबू ताहेर खान, उलबेरिया से सजदा अहमद ने जीत हासिल की है। 

वैसे अगर पिछले चार लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 2004 में 34, 2009 में 30 और 2014 में 23 मुस्लिम लोकसभा पहुंचे थे। भारतीय चुनावी इतिहास में सबसे ज्यादा 49 मुस्लिम सांसद 1980 में संसद पहुंचे थे।

मुस्लिम बहुल्य सीटों पर क्या रहा?

अब बात मुस्लिम उम्मीदवारों से अलग मुस्लिम बहुल सीटों की। ऐसी सीटों पर बीजेपी को खास नुकसान नहीं नजर आता है। 40 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों वाली 29 सीटों में भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश का गठबंधन और कांग्रेस 5-5 सीटें जीतने में सफल हुई हैं।

वहीं, जिन सीटों पर 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं, उन 96 सीटों में से बीजेपी को इस बार 46 सीटें मिली हैं। यह आंकड़ा 2014 के लोकसभा चुनाव से सिर्फ दो कम है। कांग्रेस को 11 सीटों पर जीत मिली है। 

सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर्स वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटरों वाली 28 सीटें हैं इनमें भाजपा को 21 सीटें मिली हैं। यह 2014 से 7 कम हैं। 

जबकि पश्चिम बंगाल में भाजपा को इस बार फायदा मिला है। जहां उन्हें 2014 में मुस्लिम आबादी वाली सीटों में एक पर भी कामयाबी नहीं मिली थीं वहीं इस बार उन्हें ऐसी 20 सीटों में से 4 पर जीत मिली है। 

मुस्लिम बहुल सीटों में इस बार सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने का रिकॉर्ड केंद्रीय मंत्री वीके सिंह के नाम है। गौरतलब है कि गाजियाबाद में 25% मुस्लिम आबादी है और उन्होंने पांच लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की है। 

इस परिणाम का क्या मतलब?

अगर हम इस परिणाम पर विचार करें तो यह एक बार फिर से साबित हुआ है कि मुस्लिम राजनीति के केंद्र रहे यूपी, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, केरल और महाराष्ट्र में यह फैक्टर एक तरह से खत्म हुआ है। दूसरी बात सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी मुसलमानों को टिकट ही नहीं दे रही है, जिसका कारण है उनका प्रतिनिधित्व तेजी से गिर रहा है।

जानकार इसे कई तरीके से देख रहे हैं। कुछ का मानना है कि मुसलमानों की राजनीतिक नुमाइंदगी घटने का मतलब है कि हालात और खराब होंगे। समुदाय को पूर्ण रूप से हाशिये पर रहने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही आप देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय को यह महसूस करवा दे रहे हैं कि उसकी लोकतंत्र में कोई भूमिका नहीं है।

उनका मानना है कि मुसलमानों का घटते राजनीतिक प्रतिनिधित्व का असर हमें तत्काल तो नहीं दिखाई दे रहा है लेकिन लंबे समय में इसका बहुत नुकसान होगा। इसका असर यह होगा कि एक वर्ग हमारी व्यवस्था में पूरी तरह से सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ जाएगा।

वहीं, एक धड़े का कहना है कि क्या मुसलमान हितों की रक्षा के लिए उनका ही प्रतिनिधि विधायिका में होना जरूरी है? क्या सरकार में शामिल लोग उनके हितों की रक्षा नहीं कर रहे हैं? फिलहाल हमारे चुनावी सिस्टम में इसका जिक्र नहीं है। लेकिन अगर सरकार में सभी वर्गों और समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व रहेगा तो हम कह सकेंगे कि सर्वांगीण सरकार है।

 


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड के खिलाफ मुख्यमंत्री के समक्ष ऐक्टू का विरोध प्रदर्शन
    20 May 2022
    मुंडका, नरेला, झिलमिल, करोल बाग से लेकर बवाना तक हो रहे मज़दूरों के नरसंहार पर रोक लगाओ
  • रवि कौशल
    छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस
    20 May 2022
    प्रचंड गर्मी के कारण पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गेहूं उत्पादक राज्यों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
  • Worship Places Act 1991
    न्यूज़क्लिक टीम
    'उपासना स्थल क़ानून 1991' के प्रावधान
    20 May 2022
    ज्ञानवापी मस्जिद से जुड़ा विवाद इस समय सुर्खियों में है। यह उछाला गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर क्या है? अगर मस्जिद के भीतर हिंदू धार्मिक…
  • सोनिया यादव
    भारत में असमानता की स्थिति लोगों को अधिक संवेदनशील और ग़रीब बनाती है : रिपोर्ट
    20 May 2022
    प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में परिवारों की आय बढ़ाने के लिए एक ऐसी योजना की शुरूआत का सुझाव दिया गया है जिससे उनकी आमदनी बढ़ सके। यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, पारिवारिक विशेषताओं…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना
    20 May 2022
    हिसार के तीन तहसील बालसमंद, आदमपुर तथा खेरी के किसान गत 11 मई से धरना दिए हुए हैं। उनका कहना है कि इन तीन तहसीलों को छोड़कर सरकार ने सभी तहसीलों को मुआवजे का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License