NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
इस ‘खोटे’ समय में एक ‘खरे’ कवि का जाना...
“किसी चीज़ को शब्दों में जि़न्दा कर देना एक कवि की सिफत है और विष्णु खरे के पास वह जादू है (था)।”
न्यूजक्लिक रिपोर्ट
19 Sep 2018
विष्णु खरे।
फोटो : साभार

“एक दिन ऐसे जाऊंगा कि कोई मुझे देख नहीं पाएगा

और बिना पुकारे पता नहीं कहाँ से

वह झपटता हुआ तीर की तरह आएगा

पहचानता हुआ मुझे अपने साथ ले जाने के लिए”   - विष्णु खरे

और विष्णु खरे चले गए।

“एक ऐसा कवि जो गद्य को कविता की ऊँचाई तक ले जाता है और हम पाते हैं कि अरे, यह तो कविता है ! ऐसा वे जान-बूझकर करते हैं, कुछ इस तरह कि कविता बनती जाती है कि गद्य छूटता जाता है। पर शायद वह छूटता नहीं कविता में समा जाता है। ...वे लम्बी कविताओं के कवि हैं जैसे मुक्तिबोध लम्बी कविताओं के कवि हैं पर दोनों में अन्तर है। मुक्तिबोध की लम्बाई लय के आधार को छोड़ती नहीं, धीरे-धीरे वह कम ज़रूर होती है। विष्णु खरे गद्य की पूरी ताकत को लिए-दिए चलते हैं, उसे तोड़ते-बिखेरते हुए, बीच-बीच में संवाद का सहारा लेते और जहाँ-तहाँ उसे डालते हुए चलते हैं और लय को न आने देते हुए। किसी चीज़ को शब्दों में जि़न्दा कर देना एक कवि की सिफत है और विष्णु खरे के पास वह जादू है ।” विष्णु खरे के लिए ये कथन एक दूसरे बड़े कवि केदारनाथ सिंह का है, जो इसी साल मार्च में हमारा साथ छोड़ गए। कवि-लेखक सुशील पुरी ने उनका ये कथन फेसबुक पर साझा किया।

विष्णु जी के जाने से पूरे हिन्दी जगत में शोक की लहर है। वे सिर्फ एक खरे कवि ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन अनुवादक, पत्रकार और शिक्षक भी रहे। जाना तो उनका सप्ताह भर पहले उसी दिन तय हो गया था जिस दिन उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था। फिर भी उनके चाहने वाले उनके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। लेकिन ऐसा हो न सका। आज दोपहर बाद उनके निधन की खबर आई तो सोशल मीडिया पर उन्हें याद करने वाले, श्रद्धांजलि देने वालों का सैलाब सा आ गया। हर कोई उन्हें याद करते हुए उनकी कविताएं साझा कर रहा है। जन संस्कृति मंच, जनवादी लेखक संघ समेत सभी साहित्यिक-सांस्कृतिक संगठनों ने भी अपने शोक संदेश जारी किए हैं।

जनवादी लेखक संघ ने उनके निधन पर जारी अपने शोक संदेश में कहा है कि विष्णु खरे जी का जाना हिन्दी की साहित्यिक-बौद्धिक दुनिया के लिए बहुत गहरा आघात है। कई दिनों से दिल्ली के जीबी पन्त अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में उनके भर्ती होने के कारण उनका निधन उनके सभी चाहनेवालों के लिए बहुत अप्रत्याशित तो न था, पर लगभग आठ दिन पहले उनकी भर्ती अवश्य अप्रत्याशित थी।

11 सितम्बर की देर रात किसी वक्त उन्हें ब्रेन-हेमरेज हुआ और दिल्ली में अकेले रहने की वजह से तत्काल कोई मदद नहीं मिल पायी। 12 सितम्बर को, हैमरेज के कई घंटों बाद, उन्हें अस्पताल में दाख़िल कराया गया जहां दिन बीतने के साथ उनकी हालत और गंभीर होती गयी। उनका मस्तिष्क अस्सी प्रतिशत नाकाम हो गया था और शरीर का बायाँ हिस्सा लकवाग्रस्त था। आज दिन के साढ़े तीन बजे उन्होंने पन्त अस्पताल में ही आख़िरी साँसें लीं।

9 फरवरी 1940 को छिन्दवाड़ा में जन्मे खरे जी हिन्दी के अप्रतिम कवि, अनुवादक और आलोचक थे। ‘एक ग़ैर-ज़रूरी रूमानी समय में’, ‘खुद अपनी आँख से’, ‘सबकी आवाज़ के परदे में’, 'पिछ्ला बाक़ी’, ‘काल और अवधि के दरम्यान’, ‘लालटेन जलाना’ उनके प्रमुख कविता-संग्रह हैं। उनकी आलोचना-पुस्तक, ‘आलोचना की पहली किताब’, काफी चर्चित रही। लम्बे समय वे ‘पायनियर’ अखबार में अंग्रेज़ी में सिनेमा पर भी लिखते रहे जिन्हें एक बड़ा पाठक-वर्ग बहुत चाव से पढ़ता था। अनुवाद के क्षेत्र में उनका काम बहुत सराहनीय है। मात्र बीस वर्ष की उम्र में, 1960 में उन्होंने टी एस इलियट की कविताओं का अनुवाद किया जो ‘मरुप्रदेश और अन्य कविताएँ’ शीर्षक से प्रकाशित है। फ़िनलैंड का राष्ट्रीय काव्य ‘कालेवाला’, चेस्वाव मिवोश और शिम्बोर्स्का की कविताएँ, अत्तिला योज़ेफ़ की कविताएँ (‘यह चाकू समय’) और विश्व साहित्य की अन्य अनेक महत्वपूर्ण कृतियाँ विष्णु खरे के अनुवाद के माध्यम से हिन्दी में उपलब्ध हो पायीं। अखबार और वेबसाइट्स पर लिखी जानेवाली अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए भी वे खूब जाने जाते थे। उनकी अविचल सामाजिक प्रतिबद्धता, धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील विश्व-दृष्टि, और जनविरोधी राजनीति के ख़िलाफ़ उनका ग़ुस्सा उनके हर तरह के लेखन में बहुत मुखर है। 

खरे जी ने अभी-अभी हिन्दी अकादमी, दिल्ली के उपाध्यक्ष का पदभार सम्भाला था. उनके नेतृत्व में हिन्दी अकादमी को एक नया जीवन मिलने की उम्मीद हिन्दी के सभी गंभीर साहित्यकर्मियों को थी। ऐसे में उनका असमय निधन निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी क्षति है।

"मुझे क्षमा करो

लेकिन आख़िर क्या मैं थोड़े से चैन किंचित शान्ति का भी हक़दार नहीं" -विष्णु खरे

विष्णु खरे को विनम्र श्रद्धांजलि।

vishnu khare
poet
writer

Related Stories

स्मृति शेष: वह हारनेवाले कवि नहीं थे

मंगलेश डबराल नहीं रहे

सरकारी कार्यक्रम में सीएए विरोधी कविता पढ़ने के मामले में कवि और पत्रकार गिरफ़्तार

विशेष : पाब्लो नेरुदा को फिर से पढ़ते हुए

“तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले, अब तक कहाँ छिपे थे भाई...”

फ़हमीदा की ‘वसीयत’- “मुझे कोई सनद न देना दीनदारी की…”


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License