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बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता 'लेनिन ज़िंदाबाद'
लेनिन की 152वीं जयंती के महीने में पढ़िए बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता।
न्यूज़क्लिक डेस्क
24 Apr 2022
Lenin

लेनिन की 152वीं जयंती के महीने में पढ़िए बर्तोल्त ब्रेख्त की कविता।


पहली जंग के दौरान
इटली की सानकार्लोर जेल की अन्धी कोठरी में
ठूँस दिया गया एक मुक्ति योद्धा को भी
शराबियों, चोरों और उच्चकों के साथ।
ख़ाली वक़्त में वह दीवार पर पेन्सिल घिसता रहा
लिखता रहा हर्फ़-ब-हर्फ़ –
लेनिन ज़िन्दाबाद!
ऊपरी हिस्से में दीवार के
अँधेरा होने की वजह से
नामुमकिन था कुछ भी देख पाना
तब भी चमक रहे थे वे अक्षर – बड़े-बड़े और सुडौल।
जेल के अफ़सरान ने देखा
तो फौरन एक पुताई वाले को बुलवा
बाल्टी-भर क़लई से पुतवा दी वह ख़तरनाक इबारत।
मगर सफ़ेदी चूँकि अक्षरों के ऊपर ही पोती गयी थी
इस बार दीवार पर चमक उठे सफ़ेद अक्षर:
लेनिन ज़िन्दाबाद!

तब एक और पुताई वाला लाया गया।
बहुत मोटे ब्रश से, पूरी दीवार को
इस बार सुर्ख़ी से वह पोतता रहा बार-बार
जब तक कि नीचे के अक्षर पूरी तरह छिप नहीं गये।

मगर अगली सुबह
दीवार के सूखते ही, नीचे से फूट पड़े सुर्ख़ अक्षर –
लेनिन ज़िन्दाबाद!
lenin art
तब जेल के अफ़सरान ने भेजा एक राजमिस्त्री।
घण्टे-भर वह उस पूरी इबारत को
करनी से खुरचता रहा सधे हाथों।
लेकिन काम के पूरा होते ही
कोठरी की दीवार के ऊपरी हिस्से पर
और भी साफ़ नज़र आने लगी
बेदार बेनज़ीर इबारत –
लेनिन ज़िन्दाबाद!

तब उस मुक्तियोद्धा ने कहा,
अब तुम पूरी दीवार ही उड़ा दो!

lenin
Communism
itwaar ki kavita
october revolution
Russia
Russian Revolution
poetry on lenin

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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License