NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
ईवीएम में डाले गए वोट कितने गुप्त हैं?
वोटों की गिनती के लिए टोटलाइज़र (गणक) मशीनों का इस्तेमाल शुरू करने से उसी स्तर की गोपनीयता रहेगी जो बैलट पेपर के मिलाए जाने पर होती थी।
विवान एबन
27 Apr 2019
ईवीएम में डाले गए वोट कितने गुप्त हैं?

2019 का आम चुनाव लगभग आधा समाप्त हो चुका है। चुनाव ख़त्म होने के बाद अब इंतज़ार की अगली घड़ी वोटों की गिनती होगी। हालांकि जिस रीति से वोटों की गिनती की जानी चाहिए उसे लेकर एक जनहित याचिका (पीआईएल) 2014 में दायर की गई थी।

पेपर बैलेट के विपरीत वर्तमान क़ानून गणना से पहले मतों को मिलाने की व्यवस्था का प्रावधान नहीं देता है। लंबित जनहित याचिका में याचिकाकर्ता ने आग्रह किया है कि वोटिंग पैटर्न को गुप्त रखने के लिए मतगणना के लिए गणक (टोटलाइज़र) मशीन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

वहीं दूसरी तरफ़ सरकार ने पिछले साल जनवरी में कहा कि मंत्रियों के एक समूह ने सितंबर 2016 में अन्य सभी राष्ट्रीय नेताओं और चुनाव आयोग से परामर्श करने के बाद इस पहलू पर विचार किया था। वर्तमान प्रणाली में टोटलाइज़र मशीनों को लागू करने के लिए ये निर्णय नहीं लिया गया था।

टोटलाइज़र (गणक मशीन) क्या है?

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड तथा इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड ने टोटलाइज़र को एक मशीन के रूप में विकसित किया ताकि वह प्रत्येक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में प्रत्येक उम्मीदवार को मिले वोट की जानकारी का खुलासा किए बिना वोट की गिनती कर सके। ये सिद्धांत सरल है क्योंकि 14 ईवीएम को एक टोटलाइज़र से जोड़ा जा सकता है और ये प्रत्येक मशीन के बजाय प्रत्येक उम्मीदवार को मिले कुल मतों को दिखाएगा। चुनाव आयोग तथा विधि आयोग दोनों ने मतों की गोपनीयता की रक्षा के लिए एक व्यवस्था के रूप में इसके इस्तेमाल की सिफ़ारिश की है।

मतों को गुप्त रखने का प्राथमिक कारण यह है कि उन लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा जिन्होंने जीतने वाले उम्मीदवार के पक्ष में मतदान नहीं किया था। मतगणना की वर्तमान प्रणाली में उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि पूरी मतगणना प्रक्रिया में मौजूद होते हैं। इसलिए प्रत्येक बूथ पर डाले गए मतों की संख्या का अनुमान लगाना आसान होता है।

चुनाव नियमों का निर्वाहन

अपने वर्तमान स्वरूप में नियम 59ए चुनाव आयोग को निर्वाचन क्षेत्रों को निर्दिष्ट करते हुए अधिसूचना जारी करने की शक्ति प्रदान करता है जहाँ मतगणना से पहले मतपत्र मिलाए जाने होते थे। यह प्रावधान पहली बार 1968 में शुरू किया गया था और बाद में 1993 में इसमें संशोधन किया गया।

जनवरी 2018 में उक्त जनहित याचिका के संबंध में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नियम 59ए के लागू होने से पहले ये परंपरा थी कि मतगणना से पहले मतपत्र मिलाए जाते थे। हालांकि 1968 से पहले प्रत्येक उम्मीदवार के लिए अलग-अलग बैलेट बॉक्स होते थे। इसे बाद में एक सिंगल बैलेट बॉक्स में बदल दिया गया और प्रत्येक उम्मीदवार का नाम और पार्टी का चिन्ह एक सामान्य बैलेट पेपर पर छपा होता था। इस तरह नियम 59A मतपत्रों द्वारा डाले गए मतों की गोपनीयता की सुविधा देता है। हालांकि पेपर बैलट के इर्द-गिर्द के मुद्दे जैसे कि बैलेट स्टफ़िंग (एक व्यक्ति द्वारा कई वोट डालना) के चलते ईवीएम की तरफ़ रुख करना इस बात को सुनिश्चित करता है कि ऐसे कार्य को दोहराना काफ़ी मुश्किल था।

ईवीएम का इस्तेमाल शुरू होने के बाद डाले गए मतों की डिजिटल रूप से गिनती के लिए नियम 66ए जोड़ा गया। हालांकि ईवीएम का इस्तेमाल शुरू होने के बाद ये नियम जोड़ा गया जो मिलाए जाने की व्यवस्था प्रदान नहीं करता है। हालांकि यह देखते हुए कि चुनाव प्रक्रिया कितना डेटा संचालित हो गया है ऐसे में इस तरह के किसी प्रावधान का अभाव दूरदर्शिता की कमी को उजागर करता है। नियम 66A के तहत केवल कुछ मूल प्रक्रिया ही मुहैया करवाई जाती है उदाहरणत: सभी उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों द्वारा जांच किया जाना कि कहीं ईवीएम की सील के साथ छेड़छाड़ तो नहीं की गई है और साथ ही उनकी मौजूदगी अनिवार्य होती है।

टोटलाइज़र मशीनों के इस्तेमाल के लिए सरकार के विरोधियों का तर्क इस पर आधारित है कि ये डेटा विशिष्ट वार्डों और निर्वाचन क्षेत्रों की नीतियों को तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण है। जनहित याचिका दाख़िल किए जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार को जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को एक अंग के रूप में बताया गाय है ऐसे में गणक मशीनों के लिए ये तर्क एक अलग मोड़ ले लेता है। यह फिर मतदाताओं की निजता के अधिकार की रक्षा का प्रश्न हो जाता है। चूंकि किसी मतदाता का नाम डाले गए उसके वोट के समक्ष नहीं दिखाई देता है, ऐसे में निजता का मुद्दा यह सवाल खड़ा करता है कि क्या व्यक्तिगत अधिकार के बजाय निजता का सामूहिक अधिकार हो सकता है!

Totaliser Machine
election commission of India
Supreme Court of India
Right to privacy
Electronic Voting Machine
EVM
Paper Ballot
Counting of Votes.

Related Stories

सात बिंदुओं से जानिए ‘द क्रिमिनल प्रोसीजर आइडेंटिफिकेशन बिल’ का क्यों हो रहा है विरोध?

2 सालों में 19 लाख ईवीएम गायब! कब जवाब देगा चुनाव आयोग?

दिल्ली नगर निगम चुनाव टाले जाने पर विपक्ष ने बीजेपी और चुनाव आयोग से किया सवाल

यूपी चुनाव: रुझानों में कौन कितना आगे?

जनादेश-2022:  इस बार कहीं नहीं दिखा चुनाव आयोग, लगा कि सरकार ही करा रही है चुनाव!

क्या पेगासस जासूसी सॉफ्टवेयर के लिए भारत की संप्रभुता को गिरवी रख दिया गया है?

विधानसभा चुनाव: वीडियो वैन के इस्तेमाल पर निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देश जारी

चुनाव आयोग की विश्वसनीयता ख़त्म होती जा रही है

पंजाब विधानसभा चुनाव की नई तारीख़, अब 20 फरवरी को पड़ेंगे वोट

यूपी; नोट करें: आपके आस-पड़ोस में कब पड़ेंगे वोट, किस दिन आएगी आपकी बारी


बाकी खबरें

  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    'राम का नाम बदनाम ना करो'
    17 Apr 2022
    यह आराधना करने का नया तरीका है जो भक्तों ने, राम भक्तों ने नहीं, सरकार जी के भक्तों ने, योगी जी के भक्तों ने, बीजेपी के भक्तों ने ईजाद किया है।
  • फ़ाइल फ़ोटो- PTI
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?
    17 Apr 2022
    हर हफ़्ते की कुछ ज़रूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन..
  • hate
    न्यूज़क्लिक टीम
    नफ़रत देश, संविधान सब ख़त्म कर देगी- बोला नागरिक समाज
    16 Apr 2022
    देश भर में राम नवमी के मौक़े पर हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद जगह जगह प्रदर्शन हुए. इसी कड़ी में दिल्ली में जंतर मंतर पर नागरिक समाज के कई लोग इकट्ठा हुए. प्रदर्शनकारियों की माँग थी कि सरकार हिंसा और…
  • hafte ki baaat
    न्यूज़क्लिक टीम
    अखिलेश भाजपा से क्यों नहीं लड़ सकते और उप-चुनाव के नतीजे
    16 Apr 2022
    भाजपा उत्तर प्रदेश को लेकर क्यों इस कदर आश्वस्त है? क्या अखिलेश यादव भी मायावती जी की तरह अब भाजपा से निकट भविष्य में कभी लड़ नहींं सकते? किस बात से वह भाजपा से खुलकर भिडना नहीं चाहते?
  • EVM
    रवि शंकर दुबे
    लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा
    16 Apr 2022
    देश में एक लोकसभा और चार विधानसभा चुनावों के नतीजे नए संकेत दे रहे हैं। चार अलग-अलग राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुई है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License