NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जाम में फँस गयी मोदी की राजमार्ग निर्माण योजना
बहु-प्रचारित राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण योजना न चुकाए जा सकने वाले ऋण और बैंक के कर्ज़ में गिरावट की वजह से रुक सा गया हैI
सुबोध वर्मा
26 Jul 2018
Translated by महेश कुमार
national highway project

मोदी सरकार ने घोषणा की है कि 2022 के अंत तक यानि पाँच साल में वे 83,000 किलोमीटर से अधिक राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण कर लेंगे। इस निर्माण की लागत का अनुमान 7 लाख करोड़ रुपये था। इसमें भारत माला परियोजना शामिल थी जिसमें 34,000 कि.मी. सड़कों का समावेश शामिल था जो प्रमुख बुनियादी ढाँचे के अंतराल को भरेंगे। यह भी दावा किया गया था कि इस बड़े पैमाने पर निर्माण से बड़े स्तर नौकरियाँ पैदा होंगी और ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत ज़रूरी धन को निवेश/पंप करेगा।

लेकिन राजमार्ग निर्माण डेटा पर एक नज़र से पता चलता है कि यह महत्वाकांक्षी कार्यक्रम काफी परेशानी में पड़ गया है। निर्माण कार्य धीमा हो गया है, हासिल सड़क पूरा होने वाली गति 2017-18 में लक्ष्य का 51 प्रतिशत थी और इस क्षेत्र में क्रेडिट (कर्ज़) प्रवाह में कमी आई है और जिन कंपनियों को आकर्षक अनुबंध दिए गए हैं वे पहले से ही गहरे कर्ज में हैं।

national highway project haulted 1.png

हालांकि, सदस्यों द्वारा प्रश्नों के जवाब में राज्यसभा में दिये गये जवाब के मुताबिक, पहले साल में अपेक्षाकृत मामूली लक्ष्य सेट किया और 70 प्रतिशत उपलब्धि दिखायी, लेकिन अगले दो वर्षों में यह नाटकीय रूप से लगभग 55 प्रतिशत और फिर पिछले वर्ष 51 प्रतिशत पर आ गयी।

जबकि आधिकारिक वक्तव्य यह कहकर समझाते हैं कि भूमि विवाद, पर्यावरण मंजूरी इत्यादि परियोजना को ओवर-रन और लागत वृद्धि (जो सभी सच है) का कारण बन रही है, लेकिन वास्तविक कारण यह है कि सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) मॉडल सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा समर्थित, फिर भी एक यह अफसल रहा है।

एक नया वित्त पोषण मॉडल अपनाया गया था जो माना जाता है कि निजी निवेशकों को बुनियादी ढांचे परियोजनाओं में सामना करना पड़ता है उससे उन्हे बचाता है। यह हाइब्रिड एन्युइटी मॉडल या एचएएम था जिसके तहत सरकार प्रोजेक्ट लागत का 40 प्रतिशत फंड मुहैया करती है, जबकि अनुबंध जीतने वाली कंपनी इक्विटी और ऋण के संयोजन के माध्यम से बाकी का धन देती है। कंपनी लागत का सिर्फ 12 प्रतिशत डालती है और बैंकों से बाकी 48 प्रतिशत उधार लेती है। एक बार परियोजना खत्म हो जाने के बाद, सरकार 10 प्रतिशत ब्याज के साथ, टोल एकत्र करके कंपनी को 6-महीने की वार्षिकी में 60 प्रतिशत शेष राशि का भुगतान करती है। निजी निवेशकों के लिए यह किसी भी उपाय से एक सुपर मीठा सौदा था।

क्या हुआ था कि प्रस्ताव ने उन कंपनियों को आकर्षित किया जो कि पह्ले से ही उनके द्वारा उठाए गए भारी कर्ज से डूबे थे। पिछले साल के अंत में अपूर्ण परियोजनाओं के 55 अरब रुपये के ब्लूमबर्ग अनुमान के अनुसार, लगभग चौथी-पांचवीं को "वित्तीय रूप से कमजोर कंपनियों" द्वारा समर्थित किया गया था। नोमुरा होल्डिंग्स इंक के विश्लेषकों के मुताबिक, एचएएम के तहत सम्मानित 104 परियोजनाओं में से 56 को बैंकों से वित्तीय बंद करने के मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है।

इसलिए, मोदी-गडकरी द्वारा स्वीकृत सभी सौदो के साथ, हम वापस वहीं पर आ गए हैं: खराब ऋण की वजह से बुनियादी ढांचा परियोजनाएं पड़ी हुई हैं। यही वह परिदृश्य है जिसे टालने की मांग की गई थी,लेकिन एचएएम परिणामस्वरूप उसी गड़बड़ी मैं फंस गयी, मुख्य रूप से क्योंकि यह खराब योजना  थी और सरकार की अंध सोच के आधार पर थी कि यह निवेश को निजी निवेश द्वारा प्रतिस्थापित करेगा।

लेकिन इससे ज्याद कुछ और भी है। बड़ी ऋण से दबी कंपनियों को गड़बड़ी से बाहर निकलने के लिए और अधिक ऋण की जरूरत है। इस बीच भारतीय बैंकिंग क्षेत्र एनपीए या बुरे ऋणों के खतरनाक उच्च स्तर (और बढ़ते) से पीड़ित है। इसलिए, वे देनदार कंपनियों को पहले से ही क्रैक करने के लिए और अधिक उधार देने में अनिच्छुक हैं। यह उछाल और बस्ट (नीचे चार्ट देखें) एक परिचित कहानी है। मोदी-गडकरी देश को इस जाल में वापस ले आये है।

national highway project haulted 2.png

यह नहीं है कि सरकार इससे अनजान है। 2016 तक, परिवहन पर संसद की स्थायी समिति ने देखा कि सड़क क्षेत्र के लिए वितरित दीर्घकालिक ऋण गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) में बदल रहे हैं और परियोजना बोलियां अक्सर उचित अध्ययन के बिना बनाई जाती हैं, और परियोजनाएं जल्दी में सम्मानित भी की जा रही  है। मार्च 2018 में प्रस्तुत स्थायी समिति की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि यह "निराशा के साथ नोट करता है कि सरकार द्वारा विभिन्न प्रयासों के बाद भी, बड़ी संख्या में परियोजनाओं में देरी हो रही है"।

लेकिन मोदी, गडकरी और उनके सहयोगी अपनी दॄष्टिहीन नीतियों के कारण अराजकता के प्रति उदासीन रूप से उदासीन हैं।

national highway project
modi sarkar
bad loans
national highways
BJP
Nitin Gadkari

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
    27 May 2022
    सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब अजमेर शरीफ निशाने पर! खुदाई कब तक मोदी जी?
    27 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना के दावे की जिसमे उन्होंने कहा है कि अजमेर शरीफ भगवान शिव को समर्पित मंदिर…
  • पीपल्स डिस्पैच
    जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?
    27 May 2022
    ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में प्राप्त हुई, फिर गवाईं गईं चीज़ें बताती हैं कि पूंजीवाद और अमेरिकी समाज के ताने-बाने में कितनी गहराई से नस्लभेद घुसा हुआ है।
  • सौम्यदीप चटर्जी
    भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन
    27 May 2022
    चूंकि भारत ‘अमृत महोत्सव' के साथ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, ऐसे में एक निष्क्रिय संसद की स्पष्ट विडंबना को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा
    27 May 2022
    ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License