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भारत
राजनीति
जेएनयू वीसी का “ज्ञान पर हमला”!, छात्रों और शिक्षकों ने इस्तीफ़ा मांगा
कक्षा में अनिवार्य उपस्थिति, शैक्षणिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक "अनियमितताओं" के मुद्दों पर तेज़ हुई लड़ाई।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
08 Jan 2019
Translated by महेश कुमार
JNU (FILE PHOTO)
Image Courtesy: Indian Cultural Forum

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के कुलपति एम जगदीश कुमार ने हाल ही में जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) पर जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) बिल जमा नहीं करने का आरोप लगाया था। जेएनयूएसयू ने इन आरोपों से इनकार किया है, और वीसी को अपने आरोपों को साबित करने के लिए दो दिन का समय दिया है। जेएनयूएसयू ने यह भी मांग की है कि कुलपति को लोकतांत्रिक रूप से चुने गए छात्र संघ के खिलाफ "झूठ बोलने और परेशान करने" के लिए इस्तीफा देना चाहिए।

यह केवल जेएनयू में तल्खी पैदा करने वाला मुद्दा नहीं है। हाल ही के दिनों में, कुलपति और जेएनयूएसयू के बीच टकराव के साथ-साथ विश्वविद्यालय में जेएनयू शिक्षक संघ (जनुटा) के साथ भी तनाव बढ़ गया है, जो हाल ही में हुई घटना के बाद उस वक्त ज्यादा भड़क गया था जब कविता सिंह, जो कि स्कूल ऑफ आर्ट्स और एस्थेटिक्स की डीन हैं और जिन्होंने इन्फोसिस पुरस्कार जीता था, उन्हें शनिवार, 5 जनवरी की शाम को इसे प्राप्त करने के लिए बेंगलुरु के एक कार्यक्रम में जाना था, जिसकी छुट्टी से इनकार कर दिया गया था। ‘इन्फोसिस साइंस फाउंडेशन’ वार्षिक पुरस्कार का आयोजन करता है जिसमें एक स्वर्ण पदक, एक प्रशस्ति पत्र और एक लाख डॉलर (या इसके समकक्ष भारतीय रुपये) का पुरस्कार शामिल है। अपने स्वीकृति भाषण में, प्रो. सिंह, जिन्हें मानविकी श्रेणी में मुगल, राजपूत और डेक्कन कला पर उनके काम के लिए सम्मानित किया गया था, ने जेएनयू के भीतर मौजूदा मुद्दों और अस्थिरता के माहौल को छुआ था। उन्होंने कहा कि, "मुझे जेएनयू, एक ऐसी संस्था है जिसका धन्यवाद देना चाहती हूं जो कुछ साल पहले तक शोधकर्ताओं के लिए अपने काम को बेरोक-टोक और मुक्त रूप से अंज़ाम देने के लिए एक महान जगह थी। लेकिन अभी हालात काफी खराब हैं। कितना बुरा लगा? जब मैंने आज सुबह अपना ईमेल चेक किया, तो मैंने पाया कि इस अवार्ड को प्राप्त करने के लिए मैंने जो छुट्टी ली थी, उसे कुलपति ने अस्वीकार कर दिया था। वी.सी. के मुताबिक यहाँ मेरी उपस्थिति नाजायज है।”

अनिवार्य उपस्थिति एक अन्य ऐसा मुद्दा है जो शिक्षकों और प्रशासन के बीच संघर्ष का विषय बन गया है। शनिवार को, जनुटा (JNUTA) ने 21 देशों के 75 विश्वविद्यालयों में दैनिक उपस्थिति की प्रथाओं पर किए गए एक सर्वेक्षण पर रिपोर्ट जारी की और इस पूरे के पूरे अभ्यास के बाद केवल एक विश्वविद्यालय कुआलालंपुर में पाया गया।

जनुटा ने कहा कि इसने इस तरह के अभ्यास को अच्छे शिक्षण और अनुसंधान को बढ़ावा देने वाले विश्वविद्यालय के विचार का विरोधाभासी पाया। कई लोगों ने तर्क दिया कि इस तरह की नीति केवल एक ऐसे विश्वविद्यालय में निगरानी के शासन को स्थापित करने के लिए है जिसे अपनी अकादमिक उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है।

कई संसद सदस्यों (सांसदों) ने भी विश्वविद्यालय में जारी अशांति पर चिंता व्यक्त की है। जेएनयू प्रशासन की "अनियमितताओं और कुशासन" को उजागर करने के लिए, शुक्रवार को पांच राज्यसभा सांसद एक साथ आए और "ज्ञान पर हमले" के खिलाफ चिंता व्यक्त की। जेएनयू के कुलपति के खिलाफ जांच की मांग करते हुए, राष्ट्रीय जनता दल के सांसद मनोज झा ने कहा- “हम तत्काल जांच की मांग करते हैं, और जब तक यह जांच होती है तब तक [जेएनयू वी-सी] हटा दिया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हम इस बाबत  मानव संसाधन विकास मंत्री को भी लिखेंगे। यह जेएनयू के साथ एकजुटता और इसके माध्यम से उच्च शिक्षा की रक्षा का कार्य है। आप [जेएनयू के शिक्षक और छात्र] अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि एक बेहतर विचार’ के लिए संघर्ष कर रहे हैं और हम आपके साथ हैं।”

वरिष्ठ पत्रकार कुमार केतकर, जो पांच राज्यसभा सांसदों में से एक थे, ने यहां की शोध करने की संस्कृति पर हमला करके जेएनयू को नष्ट करने की बड़ी साजिश की ओर इशारा किया। उन्होंने कहा: "फासीवादी और सत्तावादी लोग अनुसंधान, विद्वता और प्रगतिशील सोच से घृणा करते हैं। वे स्वतंत्र मन वाले किसी भी संस्थान को दफनाने, नियंत्रित करने और नष्ट करने की कोशिश करते हैं। वर्तमान सरकार विश्वविद्यालयों को नष्ट करना चाहती है और जेएनयू को उसका प्रतीक बनाया जा रहा है।”

JNU
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