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राजनीति
जेएनयूएसयू 2019 : यूनिवर्सिटी पर हमले  के साथ ही अनुच्छेद 370 तक सभी चुनावी बहस का हिस्सा 
इस बार भी लेफ्ट गठबंधन ज़्यादा मज़बूत दिख रहा है।   हालांकि ABVP भी दावा कर रहा है  कि वो कैंपस में पिछली बार से ज़्यादा मज़बूत हुई है। इसबार वो इस चुनाव में परिणाम भी दिखेगा।  छात्र संगठन BAPSA इस बार पहले के मुक़ाबले कमज़ोर नज़र आ रहा है। इसबार इसने सभी पदों पर उम्मीदवार भी नहीं दिए है। 
मुकुंद झा
04 Sep 2019
jnusu

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्रसंघ चुनाव के लिए 6 सितंबर को मतदान होना है। बुधवार को नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो गई।अध्यक्ष पद के लिए कुल 6 उम्मीदवार चुनाव में लड़ रहे हैं, जबकि सेंट्रल पैनल के महासचिव,उपाध्यक्ष व उपसचिव पद के लिए कुल 8 उम्मीदवार मैदान में हैं। इसबार भी लेफ्ट यूनाटेड होकर यानी एकजुट होकर लड़ रहा है। फिर भी यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद या बिरसा अम्बेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (BAPSA इनको टक्कर दे पाएगा? आइए जानते हैं, जेएनयू का राजनीतिक समीकरण और उसके मुद्दे। 

एक दलित छात्र जो अपनी कहानी साझा करता है कि कैसे उसने उच्च जाति के जमींदारों के खेतों में काम किया, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत सड़कें खोदीं और अब देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थान में छात्रों के संघ का नेतृत्व करने की इच्छा रखता है। जितेंद्र सुना  जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (JNUSU) 2019 चुनावों के लिए बिरसा अम्बेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन (BAPSA) से अध्यक्ष  पद के उम्मीदवार हैं।

अपने संगठन के अन्य समर्थकों से घिरे सुना का तर्क है कि वह प्रशासन को छात्र हितो में नीतियों को लागू करने के लिए मजबूर करने का इरादा रखता है जिसके परिणामस्वरूप परिसर में हाशिए के समुदायों से छात्रों की संख्या बढ़ जाएगी। संगठन के एजेंडे के बारे में पूछे जाने पर, BAPSA के एक अन्य सदस्य, प्रवीण ने कहा,“कई मुद्दे हैं जो दलित बहुजन छात्रों को प्रभावित करते हैं लेकिन हम विश्वविद्यालय वॉयस (साक्षात्कार) के अंकों में तत्काल कमी चाहते हैं क्योंकि इसका उपयोग हम छात्रों को बाहर करने के लिए करते हैं।

इसी तरह, हम कंप्यूटर आधारित ऑनलाइन परीक्षा के बजाय लिखित परीक्षाओं को फिर से शुरू करना चाहते हैं। विश्वविद्यालय में आवेदन करने वाले अधिकांश छात्र ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं और उनके पास कंप्यूटर तक पहुंच नहीं है। आप कैसे उम्मीद करते हैं कि वे इस बाधा से परीक्षा पास कर सकते हैं?”हालांकि वहां की राजनीतिक हवा में उनके लिए असहमति अधिक दिख रही हैं। 

यूनाइटेड लेफ्ट, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन, डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स फेडरेशन और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के बीच चुनावी गठबंधन ने इस बार चुनाव में विश्वविद्यालय के अस्तित्व से जुड़े बड़े सवालों पर बहस छेड़ दी है।वर्तमान छात्र संघ के अध्यक्ष और एआईएसए के एक पदाधिकारी एन.साई बालाजी बताते हैं कि विश्वविद्यालय के विनाश के मकसद से लगातार हमले हो रहे हैं। न्यूज़क्लिक से बात करते हुए उन्होंने कहा, "जेएनयू ने उच्च शिक्षा वित्त एजेंसी से 515 करोड़ रुपये का ऋण लिया है।

नए शासन के तहत, इस विशाल राशि को ऋण के रूप में लिया गया है,न कि अनुदान के रूप में। ऋण का भुगतान करना विश्वविद्यालय का दायित्व है। इसका कैसे भुगतान होगा? जाहिर है, इसका  एक बड़ा हिस्सा छात्रों को भुगतान करना पड़ेगा। ऋण लेने के बाद भी,इसकी प्रतिबद्धताएं क्या हैं? यह बुनियादी ढांचे के विस्तार या बेहतर सुविधाओं के लिए नहीं है। वास्तव इसके उलट  एक सिक्योरिटी फर्म को 24 करोड़ रुपये दिए जा रहे है। इस पैसे का इस्तेमाल छात्रों को दूसरी जरूरतों के लिए किया जा सकता था।”

उन्होंने कहा, "लाइब्रेरी फंड्स में कटौती के बाद, हमने छात्रों को किताबों के लिए दिनभर कतार में खड़ा देखा है। सभी स्कूलों में एक समान स्थिति भी है जहां शोधकर्ता बुनियादी उपकरणों से वंचित थे। इसलिए हम प्रत्येक केंद्र में नए पुस्तकालयों की मांग कर रहे हैं और विज्ञान विद्यालयों के लिए अधिक धनराशि की मांग कर कर रहे हैं। 

लेकिन एसएफआई महासचिव और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम से पीएचडीकी छात्र दीपाली के लिए चुनाव में लैंगिक न्याय मुख्य मुद्दा है। जेएनयू पिछले साल कई छात्राओं द्वारा प्रोफेसर अतुल जौहरी द्वारा यौन दुराचार का आरोप लगाने के बाद खबरों में था। छात्रों ने आरोप लगाया था कि आंतरिक शिकायत समिति ने मामले की गहनता से जांच नहीं की। उन्होंने कहा, "कैंपस में लैंगिक न्याय लाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है और हम सुनिश्चित करेंगे कि  यही हो।

राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "क्या आप राष्ट्रीय बहस के बिना जेएनयू की कल्पना कर सकते हैं। जाहिर है, अनुच्छेद 370 का हनन और संवैधानिक लोकतंत्र के लिए खतरा बहस पर हावी होगा।"

जेएनयू का राजनीतिक समीकरण  

इसबार भी  जेएनयू का चुनाव मुख्यतः लेफ्ट यूनाइटेड पैनल और अन्य के बिच ही दिख रहा है।आइए देखते है कौन सा संगठन और गठबंधन किस पद पर लड़ रहा है।  

लेफ्ट यूआइटेड पैनल 

इसमें अध्यक्ष पद पर स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) आईसी घोष अध्यक्ष पद पर हैं। जबकि आइसा के सतीस चंद्र यादव महासचिव, डीएसफ के साकेत मून उपाध्यक्ष व एआईएसएफ के मोहम्मद दानिश  सचिव पद से मैदान में हैं।

इसबार इस गठंबधन में भी बदलाब है।  9 फरवरी 2016 को हुई घटना के बाद से सभी लेफ्ट छात्रदल एक गठबंधन के बैनर तले चुनावी मैदानी में उतरे हैं। इसके तहत तब से संपन्न तीन चुनाव आइसा के नेतृत्व में लड़े । लेकिन इसबार इस गठबंधन का नेतृत्व एसएफआई करेगा। और अगर यह गठबंधन जीतता है तो  यह 13 साल बाद होगा की कोई एसएफआई से अध्यक्ष बनेगा। 
 
एबीवीपी के उम्मीद्वार   

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी ने मनीष जागिंड को अपना अध्य्क्ष पद का उम्मीदवार बनाया है। जबकि श्रृति अग्निहोत्री उपाध्यक्ष, महासचिव पद के लिए सबरीश पीए और सहसचिव पद के लिए सुमंत साहू को उम्मीदवार बनाया गया है। छात्र राजद दल ने अध्यक्ष पद पर प्रिंयका भारती और उपाध्यक्ष पद पर ऋषिराज यादव को उम्मीदवार बनाया है। 

एनएसयूआई और एमएसएफ गठबंधन हुआ है।इसके प्रशांत कुमार अध्यक्ष पद से चुनावी मैदान में हैं।
इस चुनाव में लेफ्ट यूनाइटेड और एबीवीपी ने ही  पूरा पैनल उतारा है। छात्रसंघ के इस चुनाव में इसके आलावा, बाप्सा,  छात्र राजद, एनएसयूआई ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं। 

इस बार भी लेफ्ट गठबंधन ज़्यादा मज़बूत दिख रहा है।   हालांकि ABVP भी दावा कर रहा है  कि वो कैंपस में पिछली बार से ज़्यादा मज़बूत हुई है। इसबार वो इस चुनाव में परिणाम भी दिखेगा।  छात्र संगठन BAPSA इस बार पहले के मुक़ाबले कमज़ोर नज़र आ रहा है। इसबार इसने सभी पदों पर उम्मीदवार भी नहीं दिए है। 

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left united and bapsa
privatisation of university

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