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जेएनयूएसयू चुनाव : विवि प्रशासन पर खास विचारधारा के पक्ष में काम करने का आरोप
जेएनयूएसयू चुनाव  में छात्र संगठनों ने प्रशासन के दखल देने का आरोप लगाया है, जो चुनाव से जुड़े निष्पक्ष प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर रहा है। छात्रों ने कहा कि प्रशासन विशेष विचारधारा के लोगो को जिताने के लिए काम कर रहा है।
मुकुंद झा
07 Sep 2019
JNU

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव का मतदान शुक्रवार को हुआ था। 67.9 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ। इसे बीते कुछ सालों में सबसे अधिक माना जा रहा है। इसके परिणाम रविवार को घोषित किए जाने थे।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को जेएनयू को 17 सितंबर तक चुनाव परिणामों को अधिसूचित करने से रोक दिया था। इसके बाद छात्रसंघ चुनाव समिति (ईसी) और सभी दलों के बीच 10 बजे के आसपास एक बैठक में मतगणना को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया। जेएनयू ईसी के अध्यक्ष शशांक पटेल ने बताया मतगणना प्रक्रिया 11:55 बजे शुरू होगी लेकिन गिनती इसके कुछ घंटे बाद शुरू हो सकी।

आपको बात दें जेएनयूएसयू चुनाव अपनी निष्पक्षता के लिए जान जाता है।अब तक के सभी चुनावों में प्रशासन किसी भी तरह का दखल नहीं देती थी। छात्रसंघ का चुनाव छात्रों द्वारा चुनी हुई एक कमेटी करती है। यह एक दिलचस्प बात है कि जहाँ पूरे देश में छात्र संघ चुनाव लिंगदोह कमेटी के तहत  होते हैं,लेकिन जेएनयू उसमें अपवाद है। इसका अपना एक संविधान है। इसमें 2011 में माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कुछ बदलाव हुए हैं। लेकिन इसने छात्रों को लेकर अपनी निष्पक्षता को बरकरा रखा है। लेकिन इसबार चुनाव प्रक्रिया में प्रशासन द्वारा  गैर जरूरी हस्तक्षेप ने इसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए है।

जेएनयू के छात्र संघ का चुनाव अन्य छात्र संघो से कैसे भिन्न है ?

वर्तमान की जेएनयू छात्र संघ चुनाव प्रणाली साल 2011 की विधान के तहत चल रही है। साल 2008 से पहले,इसका चुनाव छात्रसंघ के संविधान से होता था,जिसके कुछ प्रावधानों को लेकर तत्कालीन सरकार ने आपत्ति दर्जा कराई और मामला कोर्ट गया। क्योंकि 2005 में लिंगदोह कमेटी की सिफरिश लागू हो गई थी। जेएनयू उसे नहीं मान रहा था। इसके बाद कोर्ट ने 2008 में चुनाव पर रोक लगा दी थी।

ये मामला 3 साल चला। सरकार कहती रही कि लिंगदोह कमेटी की सिफारिश माननी पड़ेगी लेकिन अंततः साल 2011  में बीच का रस्ता निकला। उस दौरान छात्र संघठनों ने कोर्ट को बताया  कि इस कमिटी के कई प्रवधान है,जो जेएनयू के लिए उचित नहीं है। जैसे चुनाव लड़ने के लिए 75% उपस्थिति।  विश्वविद्यालय प्रशासन ने  कोशिश की कि वह इसे लागू कराए लेकिन अभी तक जेएनयू में यह नहीं लागू नहीं हुआ  है।

लिंगदोह कमेटी के मुताबिक उपस्थिति अनिवार्य थी लेकिन कोर्ट ने इसमें छूट दी। इसके अलावा इस कमेटी के अमुसार आप 28 साल तक ही चुनाव लड़ सकते हैं  लेकिन जेएनयू में यह उम्र 30 साल तक है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर छात्र उच्च शिक्षा यानी एमफिल या पीएचडी के लिए आते हैं और उनकी भागीदारी के  लिए यह जरूरी था।

कोर्ट के इस गाइडलाइन के बाद सवाल था कि चुनाव कैसे हो ? क्योंकि लिंगदोह कमिटी कहीं भी यह नहीं बताता कि चुनाव कमेटी कैसी बनेगी। लेकिन जेएनयूएसयू के संविधान में था कि  कैसे चुनाव कमेटी का  गठन होगा।

जेएनयू का चुनाव प्रक्रिया

इसके बाद जेएनयू के विश्वविद्यालय के सभी छात्र मिलकर एक कमेटी का चुनाव करती है। यही नियम बनती है, इसे ही पूरा चुनाव निष्पक्ष कराने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। इसके बाद से जेएनयूएसयू चुनाव में तीन भागीदार होते है। पहला लिंगदोह कमेटी और इससे मिली जेएनयू को छूट ,दूसरा चुनाव कमेटी और तीसरी छात्र समुदाय।इस तरह से यह कई मायनो में अन्य विश्वविद्यालय से भिन्न है।

जेएनयूएसयू की जबाबदेही तय है !

शायद जेएनयू ही एक मात्र संस्थन है जहाँ चुनाव जितने के बाद साल के अंत में छात्र के बीच जाकर छात्र संघ के नेताओ को अपनी रिपोर्ट छात्रों के बीच पेश करनी होती है ,जिससे कन्वीनर(संयोजक ) रिपोर्ट कहते है। इसे हर स्कूल का कन्वीनर पेश करता है। इस दौरन इस पर चर्चा होती है।  फिर इसे छात्रों द्वार पास किया जाता है।

इसी दौरान छात्र अगले चुनाव के लिए चुनव कमेटी के सदस्यों का चुनाव करती है। इसके बाद सभी स्कूलों से चुने गए चुनाव समिति के लोग ही आगे जाकर पूरा चुनाव कारते हैं। इस कमेटी की पहली मीटिंग छात्रसंघ के पदाधिकारी से होती है, इसी दौरन यह कमेटी अपने मुख्य अधिकारी सीईसी को चुनते हैं । इसके बाद निवर्तमान छात्र संघ के लोग यूनियन रूम की चाभी भी इस कमेटी को सौंपते है।यह कमेटी सबसे शक्तिशाली होती है पूरे चुनाव प्रक्रिया में इसका  अंतिम फैसला होता है।

लेकिन इस बार जेएनयूएसयू चुनाव  में छात्र संगठनों ने प्रशासन के दखल देने का आरोप लगाया है, जो चुनाव से जुड़े  पूरे निष्पक्ष प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर रहा है। छात्रों ने कहा प्रशासन विशेष विचारधारा के लोगो को जिताने के लिए काम कर रहा है।

लिंगदोह कमेटी के अनुसार शिकायत निवारण प्रकोष्ठ (जीआरसी) चुनाव में कोई दिक्क्त न हो इसके लिए काम करती है। इसके अध्यक्ष स्टूडेंट ऑफ़ डीन होते है,जो अभी उमेश कदम है। वाम गठबंधन ने आरोप लगाया कि उमेश कदम ने इस चुनाव को प्रभावित करने की मंशा से कल मतदान के दौरान मतदान रूम में जाकर मतदान प्रक्रिया को बधित करने का प्रयास किया। मतदान रूम का निरिक्षण आम तौर पर सीआईसी करता है। कभी भी विश्वविद्यालय प्रशासन  से जुड़े व्यक्ति ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया है। वाम गठबंधन के सहयोगी संगठन एसएफआई के नेता और पीएचडी के छात्र मनीष जिन्होंने जेएनयूएसयू को करीब से देखा है। वो कहते हैं कि जीआरसी का काम चुनाव के दौरन आने वाली दिक्क्तों को दूर करना है लेकिन यह तो जीआरसी ही चुनाव को बाधित करने में लगी है।

इसको लेकर छात्रों ने नाराजगी दिखाई  कि जब यह चुनाव छात्रों का है, इसे सही ढंग से कराने की जिम्मेदारी चुनाव कमेटी की है, तो फिर यह जीआरसी क्यों  में बीच आ रही है?  

मनीष ने कहा कई सालों से चुनाव समिति चुनाव करवाता है। इस पर सभी का भरोसा है। उसके बाद इस तरह का हस्तक्षेप दर्भाग्यपूर्ण है।

क्या प्रशासन के इशारे पर चुनाव प्रक्रिया को बाधित किया जा रहा है ?

मनीष कहते हैं कि इसबार के चुनाव में जीआरसी की वजह से ही रिजल्ट को लेकर पशोपेश  है। वो बेवजह हर चीज में कूद रहा है। किस स्कूल में कितने प्रतिनिधि होंगे यह लिंगदोह कमेटी या जीआरसी तय नहीं करती, छात्र तय करते हैं। इसबार भी प्रतिनिधियों के नंबर को लेकर आम सभा जिसमे  सभी छात्र हिस्सा लेते हैं, उसने तय किया है कि किस स्कूल को कितना प्रतिनिधि दिया जाएगा। इसके बाद भी जीसीआर अपनी एक लिस्ट लेकर आता है। इससे ही  कन्फ्यूजन बना है।

आगे उन्होंने बताया की जो लोगो कोर्ट गए हैं वो भी एक खास विचारधारा के लोगो हैं और वो जानते हैं कि इस चुनाव में उनकी विचारधारा के लोग हार रहे हैं। इसलिए वो इस तरह का काम कर हैं।  मनीष कहते है  कि  जीआरसी कौन होता है यह तय करने वाल कि किस स्कूल  में कितने काउंसलर होंगे क्योंकि न कोर्ट न लिंगदोह कमेटी उसे प्रतिनधि तय करने का अधिकार देती लेकिन वो कर रही है। क्यों ?और जो उसका काम है वो नहीं कर रही है ,जैसे अभी तक सभी चुनावो में चुनाव खर्च चुनाव कमेटी को प्रशसन देता है लेकिन इसबार यह पैसा छात्रसंघ के बजट से लिया जा रहा है। जब छात्रों को ही सबकुछ करना है तो आप कौन होते है इसमें बाधा डालने वाले। यह एक तरह से चुनाव कमेटी को कमजोर करता है।

इसके बाद मतगणना के दौरान चुनाव लड़ रहे छात्रों के प्रतिनिधि मौजूद रहते है लेकिन इसबार जीआरसी के सदस्यों को ऑब्जर्बर के तौर पर शामिल किया जा रहा है। एबीवीपी को छोड़ सभी ने इस कदम की आलोचना की  है और कहा कि  यह निष्पक्ष चुनाव के लिए खतरनाक है क्योंकि  लोगो को ऑब्जर्बर बनाया गया है वो सभी विशेष विचरधार के है।

गतिरोध के बाद गिनती शुरू

छात्रों ने यह भी कहा कि कोर्ट ने केवल फाइनल रिजल्ट जो अधिसूचना  के लिए वीसी के पास जाती है ,उस पर रोक लगाई है। न की मतगणना पर इसलिए सभी का मानना है की गिनिती होनी चाहिए।

मतगणना एजेंटों से लिखवाया गया  कि वे परिणामों का खुलासा नहीं करेंगे।

पटेल ने कहा, "चुनाव आयोग ने छात्र समुदाय की मांगों के आधार पर अपना रुख बदलने के लिए जीआरसी को समझाने की पूरी कोशिश की," पटेल ने कहा कि गतिरोध के कारण मतगणना प्रक्रिया में 11 घंटे की देरी हुई।

चुनाव आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि जब इतने घंटे बाद भी आम सहमति नहीं बन सकी, तो चुनाव आयोग ने वोटों की गिनती फिर से शुरू करने का फैसला किया।

हालांकि परिणाम को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा ।

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