NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
जीडीपी में हेरफेर : देश को धोखे में रखकर क्या हासिल होगा?
गलत विकास की दर दिखाकर सरकार की छवि चमकायी जा सकती है लेकिन अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचता है। 4.5 फीसदी विकास दर होने पर राजकोषीय खर्चे को नियंत्रित करने के जो उपाय सोचे जाएंगे वह 7 फीसदी विकास दर होने पर नहीं सोचे जा सकते हैं।
अजय कुमार
11 Jun 2019
gdp

प्रशासनिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की एक बात कभी नहीं समझ में आएगी कि वह अपने दौर की सरकारी कमियों को तब क्यों उजागर करते हैं, जब वह अपने पद से इस्तीफ़ा दे चुके होते हैं या सेवानिवृत्त हो चुके होते हैं। हो सकता है कि इसके पीछे कोई डर हो या उनका कोड ऑफ़ कंडक्ट उनके आड़े आता हो लेकिन अगर कोड ऑफ़ कंडक्ट जैसी कोई बात होती है तो  प्रशासनिक सत्यनिष्ठता या एडमिनिस्ट्रेटिव इंटिग्रिटी जैसे मूल्य भी होते है, जिसके तहत अगर प्रशासनिक व्यक्ति की जानकारी में अगर कुछ गलत हो रहा है तो उसे देखकर आंख मूंद लेना या झुकना एडमिनिस्ट्रेटिव इंटीग्रिटी के खिलाफ होता है। हालांकि नौकरी में रहते सत्ता से टकराना हर किसी के लिए आसान नहीं होता।

इन सारी बातों के साथ चलते हुए मोदी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम  के ताजा विश्लेषण पर बात करते हैं। अरविन्द सुब्रमण्यम के नाम से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में India’s GDP Mis-estimation: Likelihood,Magnitudes, Mechanisms, and Implications  नाम से एक शोध पत्र छपा है। इसमें उन्होंने साबित किया है कि साल 2011 से 2017 के बीच जीडीपी मापने के पैमाने को बदलकर सलाना जीडीपी7 फीसदी दिखाई गई लेकिन ऐसा नहीं था, हर साल जीडीपी को 2.5 फीसदी अधिक करके दिखाया गया। यानी वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 4.5 फीसदी थी, जिसे 7 फीसदी के तौर पर दिखाया जा रहा था।

आगे बढ़ने से पहले से यह समझना जरूरी है कि सुब्रमण्यम साल 2011 से लेकर साल 2017 तक की बात कर रहे हैं और इस दौरान केवल भाजपा की सरकार नहीं थी, कांग्रेस की भी सरकार थी।  

इंडियन एक्सप्रेस में सुब्रमण्यम लिखते हैं कि यह बात सही है कि पैमाने बदलकर आंकड़े जारी करने जैसी बहुत सारी बातों पर राजनीतिक शोरगुल साल 2014 के बाद शुरू हुआ। लेकिन इस काम की शुरुआत यूपीए के दूसरे कार्यकाल में हो चुकी थी। और यहाँ समझने वाली बात है कि आंकड़ें मापने के पैमाने बदलने की पहल राजनेताओं द्वारा नहीं होती बल्कि उन टेकनोक्रैट द्वारा होती है, जो इन कामों में लगे होते हैं। इसी वजह से यूपीए के दूसरे कार्यकाल के अंतिम साल में जीडीपी दर में अचानक से बहुत अधिक बढ़ोतरी दर्ज की गयी।  
अपने रिसर्च पेपर में अरविंद सुब्रमण्यम ने बहुत सारे साक्ष्यों से यह साबित किया है कि कैसे जीडीपी मापने के मेथड (तरीका) बदलने से दरों में बढ़ोतरी हुई है। इंडियन एक्सप्रेस में दो साक्ष्यों का उल्लेख किया है। इसके तहत उन्होंने जीडीपी मापने के 17 प्रमुख संकेतक (key indicators ) लिए है। गणना का काल 2002-17है। बिजली का उपभोग, दुपहिया वाहनों की बिक्री, व्यावसायिक वाहनों की बिक्री, हवाई यात्रा का किराया,औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (IIP) उपभोक्ता वस्तुओं का सूचकांक, पेट्रोलियम, सीमेंट, स्टील, और सेवाओं और वस्तुओं का आयात-निर्यात। इन सेक्टरों के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का मूल्यांकन होता है। 2011 तक तो इन संकेतकों के जरिये मिली बढ़ोतरी और जीडीपी बढ़ोतरी में तो समानता रही लेकिन उसके बाद अचनाक से वृद्धि हुई, जो इन संकेतकों से मिली वृद्धि दर से अधिक थी। बिना रिसर्च पढ़े,  किसी बाहरी के लिए ऐसा कैसे हुआ समझना मुश्किल है? इसपर अरविन्द सुब्रमण्यमम कहते हैं कि साल 2011 के बाद फॉर्मल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से मिले आंकड़ों के साथ बहुत अधिक छेड़छाड़ की गई।    

यही नहीं अरविंद सुब्रमण्यम  ने भारत की तुलना 71 उच्च और मध्यम अर्थव्यवस्था वाले देशों से की है। इसके लिए अलग से पैमाने लिए हैं। कर्ज़, निर्यात, आयात और बिजली। क्रॉस कंट्री तुलना करने के बाद सुब्रमण्यम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि साल 2011 तक तो भारत के साथ दूसरे अन्य देशों की जीडीपी विकास दर सामान्य चल रही थी लेकिन उसके बाद भारत की जीडीपी में दूसरे देशो की तुलना में बड़ा इजाफा हुआ और यह इजाफा 2.5 फीसदी के करीब था। इसी तरह सारे तरीकों के जरिये सुब्रमण्यम ने यह साबित  किया है कि जीडीपी को बढ़ा चढ़ा कर दिखया गया था। अरविन्द सुब्रमण्यम यह भी कहते हैं कि जीडीपी आकलन के सारे तरीके पूरी तरह से सार्वजनिक होने चाहिए ताकि देश और दुनिया के विशेषज्ञ उस पर अपनी राय रख सकें।  

आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना एक दिखावटी किस्म का चलन है। यह चलन सरकारों में लग जाए तो नीति निर्माण की पूरी प्रक्रिया गड़बड़ा सकती है। शायद यही हो भी रहा है। बेरोजगारी से लेकर कृषि संकट से सही तरह से लड़ने के लिए जीडीपी विकास की सही स्थिति का पता होना ज़रूरी है। गलत विकास की दर दिखाकर सरकार की छवि चमकायी जा सकती है लेकिन अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचता है। 4.5 फीसदी विकास दर होने पर राजकोषीय खर्चे को नियंत्रित करने के जो उपाय सोचे जाएंगे वह 7 फीसदी विकास दर होने पर नहीं सोचे जा सकते हैं। हमने जॉबलेस ग्रोथ जैसी शब्दावलियाँ सुनी है, जिससे ऐसा लगता है कि विकास तो हो रहा है लेकिन रोजगार पैदा क्यों नहीं हो रहा है? जीडीपी के सही आंकड़ें से यह पता चलता है कि न विकास हो रहा है और न ही रोजगार पैदा हो रहा है। इस तरह से यह केवल सरकारी छवि की बात नहीं है कि सही आंकड़ें जारी किये जाए बल्कि यह किसी भी देश की जरूरत है कि सही आकंड़े मिले ताकि वह सही तरह से नीति निर्माण का काम कर सके।

GDP growth
GDP
chief economic advisor of modi government
arvind subramniam
GDP growth-rate

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

जब तक भारत समावेशी रास्ता नहीं अपनाएगा तब तक आर्थिक रिकवरी एक मिथक बनी रहेगी

देश पर लगातार बढ़ रहा कर्ज का बोझ, मोदी राज में कर्जे में 123 फ़ीसदी की बढ़ोतरी 

अंतर्राष्ट्रीय वित्त और 2022-23 के केंद्रीय बजट का संकुचनकारी समष्टि अर्थशास्त्र

इस बजट की चुप्पियां और भी डरावनी हैं

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: क्या महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था के संकटों पर नज़र डालता है  

जलवायु परिवर्तन के कारण भारत ने गंवाए 259 अरब श्रम घंटे- स्टडी

2021-22 में आर्थिक बहाली सुस्त रही, आने वाले केंद्रीय बजट से क्या उम्मीदें रखें?


बाकी खबरें

  • श्याम मीरा सिंह
    यूक्रेन में फंसे बच्चों के नाम पर PM कर रहे चुनावी प्रचार, वरुण गांधी बोले- हर आपदा में ‘अवसर’ नहीं खोजना चाहिए
    28 Feb 2022
    एक तरफ़ प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में यूक्रेन में फंसे कुछ सौ बच्चों को रेस्क्यू करने के नाम पर वोट मांग रहे हैं। दूसरी तरफ़ यूक्रेन में अभी हज़ारों बच्चे फंसे हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे…
  • karnataka
    शुभम शर्मा
    हिजाब को गलत क्यों मानते हैं हिंदुत्व और पितृसत्ता? 
    28 Feb 2022
    यह विडम्बना ही है कि हिजाब का विरोध हिंदुत्ववादी ताकतों की ओर से होता है, जो खुद हर तरह की सामाजिक रूढ़ियों और संकीर्णता से चिपकी रहती हैं।
  • Chiraigaon
    विजय विनीत
    बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!
    28 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश के बनारस में चिरईगांव के बाग़बानों का जो रंज पांच दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम-अमरूद से लकदक बगीचों में फल खाने। आमदनी दोगुना…
  • pop and putin
    एम. के. भद्रकुमार
    पोप, पुतिन और संकटग्रस्त यूक्रेन
    28 Feb 2022
    भू-राजनीति को लेकर फ़्रांसिस की दिलचस्पी, रूसी विदेश नीति के प्रति उनकी सहानुभूति और पश्चिम की उनकी आलोचना को देखते हुए रूसी दूतावास का उनका यह दौरा एक ग़ैरमामूली प्रतीक बन जाता है।
  • MANIPUR
    शशि शेखर
    मुद्दा: महिला सशक्तिकरण मॉडल की पोल खोलता मणिपुर विधानसभा चुनाव
    28 Feb 2022
    मणिपुर की महिलाएं अपने परिवार के सामाजिक-आर्थिक शक्ति की धुरी रही हैं। खेती-किसानी से ले कर अन्य आर्थिक गतिविधियों तक में वे अपने परिवार के पुरुष सदस्य से कहीं आगे नज़र आती हैं, लेकिन राजनीति में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License