NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
घटना-दुर्घटना
नज़रिया
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
जलते मज़दूर, सोती सरकार
“हम किसी तरह बाहर निकले, संगीता बाहर नहीं आ पाई। इस हादसे में संगीता, मंजू और सुहेल की दम घुटने से जान चली गई। कुसुम अभी सदमे में है...” दिल्ली के फ्रेंडस कॉलोनी गली नं. 4 में कॉरस बाथ फैक्ट्री में लगी आग की कहानी-मज़दूरों की ज़ुबानी।
सुनील कुमार
21 Jul 2019
गलियों में फैक्ट्रियां
गलियों में फैक्ट्रियां। फ्रेंड्स कॉलोनी, दिल्ली

शनिवार को सुबह रोज की तरह फ्रेंड्स कॉलोनी गली नं. 4 में चहल-पहल थी। इसी गली में कॉरस बाथ नामक फैक्ट्री है, जो कि पीतल और प्लास्टिक की टूटी बनाने का काम करती है। फैक्ट्री के गेट पर न तो नम्बर लिखा है और न ही कोई नाम, यानी कोई अनजान व्यक्ति वहां नहीं पहुंच सकता। यही हाल उसी गली के सभी फैक्ट्रियों का है, या यों कहा जाये कि यह सूरते हाल पूरी दिल्ली का है-जहां पर मजदूर को पता नहीं होता कि वह किस कम्पनी में काम करता है और कम्पनी का नम्बर क्या है। वह पहचान के लिए लाल, काला या पीला गेट बताता है। मजदूरों को यह भी जानने का हक नहीं होता है कि वे किस कम्पनी के लिए माल तैयार करते हैं। इसकी चिंता न तो श्रम मंत्री को है और न ही श्रम अधिकारियों को, जिसके लिए उन्हें हर महीने मोटी रकम मिलती है।

कॉरस फैक्ट्री में रोजना की तरह 13 जुलाई, 2019 (शनिवार) को भी मजदूर भागते हुए फैक्ट्री पहुंच रहे थे। कुछ मजदूर पहुंच चुके थे और अपना काम करने की तैयारी में थे। इन्हीं मजदूरों में संगीता, मंजू और सुहेल भी थे, जो रोज की तरह अपने घरों से निकले थे कि शाम को वे फिर वापस घर आ जाएंगे। मंजू, लोनी (एकता विहार) में रहती है और ट्रेन से ड्यूटी पर आती थी। लेकिन उस दिन ट्रेन देर होने के कारण वह बेटे के साथ बाइक से आ गई। उनको मालूम था कि आधे घंटे की देर भी महीने में मिलने वाली पगार में कमी ला सकता है, जिससे परिवार चलाने में मुश्किल हो सकती है।

संगीता बिहार के नालन्दा जिले से हैं और अपने पति के साथ वह कृष्णा विहार (जिला गाजियाबाद) में किराये के मकान में रहती थी। संगीता के तीन बच्चे हैं, जिनको वह गांव पर ही रख कर पढ़ाती थी। वह 9-10 साल से कॉरस फैक्ट्री में काम करती थी। संगीता रोजाना दो टैम्पू बदल कर फैक्ट्री पहुंचती थीं, जिसके बदले उन्हें 8,500 रुपये महीने की पगार मिलती थी। संगीता टाइफाइड बुखार से पीड़ित थीं तो कुछ दिन तक वह 1 घंटा देर से फैक्ट्री पहुंच रही थीं, लेकिन उस दिन बच्चों को पैसा भेजने के लिए जल्दी ही फैक्ट्री पहुंच गईं थी।

संगीता के साथ 10 साल से काम करने वाली कुसुम पटना जिले से हैं और कृष्णा विहार में ही रहती हैं। वह बताती हैं कि सन् 2010 से वह इस कम्पनी में 2,400 रुपये पर काम पर लगी थीं जो अभी जून 2019 में 6,100 से बढ़कर 8500 रुपये हो गई थी। इसी फैक्ट्री में संगीता, कुसुम से एक माह पहले से इस फैक्ट्री में काम करती थी। ये लोग पहले कृष्णा विहार के गली नं. 12 में ही काम करते थे जहां पर कॉरस फैक्ट्री की एक और यूनिट चलती है। 2015 से यहां से कुछ लोगों को झिलमिल की फ्रेंडस कॉलोनी गली नं. 4 की दूसरी यूनिट में शिफ्ट कर दिया गया, जहां पर भट्ठी से लेकर माल तैयार करने और पैकिंग तक का काम होता है। कृष्णा विहार से झिलमिल पहुंचने में करीब इनको एक घंटा लग जाता था और 40 रुपये रोज का खर्च होता था। कुसुम बताती हैं कि इस फैक्ट्री में करीब 300 मजदूर काम करते थे, जिनमें से 50-60 महिला मजदूर थीं। इनमें से 3-4 महिलाओं के पास ही ईएसआई कार्ड और पीएफ कार्ड हैं और पैकिंग डिर्पाटमेंट में एक ही महिला का ईएसआई कार्ड था, जो कि 2003 से काम करती हैं। फैक्ट्री में साप्ताहिक छुट्टी और कुछ सरकारी छुट्टी ही मिलती थीं। इसके अलावा कोई भी छुट्टी करने से पैसा कट जाता था। फैक्ट्री का समय सुबह 9 से शाम 5.30 बजे तक है। सुबह 9.15 से लेट होने पर पैसे कटते थे। कुसुम बताती हैं कि मालिक अच्छा था और वह 10 तारीख को तनख्वाह और 25 को एडवांस दे देता था। महिलाएं अगर खड़ी होती थीं तो उनको पहले पैसा देता था। संगीता, कुसुम जैसे दिल्ली के लाखों मजदूरों के लिए अच्छा मालिक होने का मतलब है कि समय से पैसा दे देना, यानी दिल्ली में मजदूरों को अपना पैसा भी समय से नहीं मिलता है।

कुसुम बताती हैं कि वह चौथी मंजिल पर काम करती थी और संगीता तीसरी मंजिल पर। सुबह हमलोग अपने काम पर लगे ही थे कि धुआं ऊपर आने लगा। संगीता मेरे पास आई और कहा कि पता नहीं धुआं कहां से आ रहा है और हमें लेकर वह नीचे वाली फ्लोर पर आ गई। हम चार महिलाएं दूसरी मंजिल के फ्लोर पर आकर ऑफिस वाले केबिन में चले गये कि यहां ए.सी. चलता है तो धुआं नहीं लगेगा। लेकिन ए.सी भी बंद था और दफ्तर में धुआं भरने लगा।

Friends Colony, Delhi2 (1) (1).jpg

कुसुम चिल्लाने लगी - ‘‘हमारा प्राण चला जायेगा, मेरा बच्चा का क्या होगा?” संगीता, कुसुम को हिम्मत दे रही थी और अपनी भाषा में बोल रही थी कि ‘‘बहिनी का करीयो, जो लिखल होई वही होई, निकल जाओ’’ (बहन क्या कर सकती हो जो लिखा होगा वो होगा, हम लोग निकलते हैं)। चार महिलाएं नीचे आ रही थीं, एक दूसरे को पकड़े हुए। उसमें संगीता की बहन की बेटी भी थी। कुसुम बताती है कि संगीता को कुछ याद आया और वह ऊपर चली गई। हम किसी तरह बाहर निकले, संगीता बाहर नहीं आ पाई। इस हादसे में संगीता, मंजू और सुहेल की दम घुटने से जान चली गई। कुसुम अभी सदमे में है और वह संगीता की लाश को भी नहीं देखना चाहती। बस वह याद कर रही है कि किस तरह संगीता उसको हिम्मत देते हुए बाहर निकलने के लिए कह रही थी।

संगीता के रिश्तेदार बताते हैं कि संगीता का पति शराबी था और वह अपनी कमाई पूरा खर्च कर जाता था। संगीता ही बच्चों की देख-भाल के लिए पैसा जुटा कर गांव भेजती थी और वह बहुत ही मिलनसार स्वभाव की थी। पोस्टमार्टम होने के बाद लाश जब एम्बुलेन्स में रखी गई तो मालिक की तरफ से संगीता के परिवार को 10 हजार, मंजू के परिवार को 7 हजार और सुहेल के परिवार को 5 हजार रुपये अंतिम संस्कार के लिये दिये गये और किसी तरह का आश्वासन नहीं दिया गया। कुसुम कहती हैं कि मालिक पैसा नहीं देगा, वह छुट्टी का भी पैसा नहीं देगा। कुसुम कहती हैं -‘‘उस फैक्ट्री में दुबारा जाने का दिल नहीं करता है, लेकिन बच्चे पालने हैं -जब मालिक बुलायेगा तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि दूसरी जगह काम करने पर 4-5 हजार रुपये ही मिलेंगे। मेरा हाथ एक्सीडेंट में कमजोर हो गया है तो दूसरे जगह काम मिलने में भी मुश्किल होगी। वहां पुरानी थी तो हमें काम का आइडिया है तो मैं काम कर लेती हूं।”

दिल्ली में आग लगने और मजदूरों की जान जाने की न तो यह पहली घटना है और न ही आखिरी। इससे पहले कुछ ही सालों में आग लगने के कई बड़े-बड़े हादसे हो चुके हैं, जिसमें सैकड़ों मजदूरों की जान जा चुकी है। बवाना, नरेला, पीरागढ़ी, शादीपुर, सुल्तानपुरी, मुंडका आदि जगहों पर आग लगने से मजदूरों की जानें जा चुकी हैं और प्रशासन लाशें गिनने और अवैध वसूली करने में लगा हुआ है। फ्रेंड्स कॉलोनी गली नं. 1 में 14 जुलाई को आग लगने की घटना हुई थी। इससे दो माह पहले इसी गली में आग लगी थी। दिल्ली के आधुनिक कहे जाने वाले इंडिस्ट्रयल एरिया बवाना, नरेला और भोरगढ़ में औसतन प्रतिदिन एक से दो फैक्ट्री में आग लगती है, जैसे कि बवाना में 2017 अप्रैल से 2018 मार्च तक 465 फैक्ट्रियों में आग लगी, उसी तरह नरेला में यह संख्या 600 से अधिक है। बवाना में अक्टूबर, 2017 में लगी आग में 17 मजदूरों की जानें चली गईं थी, उसके बाद भी दर्जनों मजदूर आग लगने से मर चुके हैं।

Last residence (1).jpg

मंडोली के उस श्मशान घाट, जहां पर संगीता का पार्थिव शरीर को लिटाया गया था, एक श्लोक लिखा हुआ था -

‘‘मानुष तन दुर्लभ है, होय ना दूजी बार।।

पक्का फल जो गिर पड़े, बहूरी ना लगे डार।।’’

यह श्लोक जहां इंगित करता है कि मनुष्य का शरीर दुबारा नहीं मिलता है, वहीं पर मुनाफाखोरों के लिए इस शरीर की कोई कीमत नहीं है। एक शरीर खत्म होते ही दूसरा शरीर के शोषण के लिए मुनाफाखोर तैयार रहता है। जहां इस अमानवीय बर्ताव के लिए मुनाफाखोर पूंजीपतियों पर कड़े कानून लाकर शिकंजा कसने की जरूरत थी वहीं पर सरकार श्रम कानूनों में बदलाव कर और भी अमानवीय तरीके से मजदूरों के शोषण की  छूट दे रही है। शासन-प्रशासन मजदूरों की लाशों पर पैसा उगाही का काम करते हैं। अगर हम देखें तो हालिया घटना में किसी भी मालिक को कोई सजा नहीं हुई है। एक दिखावटी कानूनी खाना-पूर्ति करने के बाद उनको छोड़ दिया जाता है और वे दुबारा से मजदूरों के खून पीने के लिए तैयार रहते हैं। उनकी लूट का एक हिस्सा शासन-प्रशासन और सरकार में बैठे लोगों तक पहुंचता है। आखिर हम कब तक इस तरह के अमानवीय शोषण को बर्दाश्त करते रहेंगे? क्या हमारे पास इससे छुटकारा पाने के लिए कोई हथियार नहीं हैं? कब तक सरकार सोती रहेगी और मजदूरों को लूटने वालों को संरक्षण देती रहेगी? मंजू, संगीता और सुहेल की मौत की जिम्मेवारी किसकी है, इसके लिए किसको सजा मिलेगी?

(लेखक Center for Policy Research (CPR) से जुड़े हैं।)

Delhi
Delhi factory
Informal sector workers
Delhi’s factory Fire

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

मुंडका अग्निकांड के लिए क्या भाजपा और आप दोनों ज़िम्मेदार नहीं?

मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर

मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?

दिल्ली में गिरी इमारत के मलबे में फंसे पांच मज़दूरों को बचाया गया

दिल्ली में एक फैक्टरी में लगी आग, नौ लोग झुलसे

गाजीपुर अग्निकांडः राय ने ईडीएमसी पर 50 लाख का जुर्माना लगाने का निर्देश दिया

फैक्टरी की छत गिरने से मजदूर की मौत, जिम्मेदारी से भागते नगर निगम और दिल्ली सरकार  

दिल्ली : दो फैक्ट्रियों में लगी आग, बार-बार की घटनाओं पर उठे सवाल


बाकी खबरें

  • पुलकित कुमार शर्मा
    आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?
    30 May 2022
    मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को…
  • भाषा
    रालोद के सम्मेलन में जाति जनगणना कराने, सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग
    30 May 2022
    रालोद की ओर से रविवार को दिल्ली में ‘सामाजिक न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसमें राजद, जद (यू) और तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में देश में जाति आधारित जनगणना…
  • सुबोध वर्मा
    मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात
    30 May 2022
    बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई से पैदा हुए असंतोष से निपटने में सरकार की विफलता का मुकाबला करने के लिए भाजपा यह बातें कर रही है।
  • भाषा
    नेपाल विमान हादसे में कोई व्यक्ति जीवित नहीं मिला
    30 May 2022
    नेपाल की सेना ने सोमवार को बताया कि रविवार की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का मलबा नेपाल के मुस्तांग जिले में मिला है। यह विमान करीब 20 घंटे से लापता था।
  • भाषा
    मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया
    30 May 2022
    पंजाब के मानसा जिले में रविवार को अज्ञात हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला (28) की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राज्य सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लिए जाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी। मूसेवाला के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License