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8 जनवरी हड़ताल : भयंकर महंगाई के ख़िलाफ़ लड़ते मज़दूर
बेरोज़गारी और वेतन में ठहराव के अलावा, मोदी सरकार की नीतियों के कारण अनियंत्रित महंगाई, विशेषकर महंगी भोजन की सामग्री के कारण मज़दूरों का जीवन नष्ट हो रहा है।
सुबोध वर्मा
06 Jan 2020
Translated by महेश कुमार
9th jan strike

ये चौंकाने वाला तथ्य है: कि गेहूं (गेहूं  के आटा) और चावल की खुदरा क़ीमतों में पिछले एक साल में 56 प्रतिशत और 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि मोदी सरकार दिसंबर 2018 तक के खाद्यान्न के रिकॉर्ड स्टॉक 567 लाख टन को दबाए बैठी है, जो पिछले साल की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक है, यानी 214 लाख टन के दोगुना से अधिक खाद्यान्न का भंडार हुआ है।

एक ही झटके में इस तरह का गंभीर विरोधाभास मोदी सरकार की दो मुख्य विफलताओं को उजागर करता है। एक, उनके पास आवश्यक खाद्य पदार्थों की क़ीमतों को नियंत्रित करने के लिए कोई नीति नहीं है जो पिछले एक साल में लगातार बढ़ी है। दूसरी ओर, वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से अधिक खाद्यान्न बांटने की अनुमति देने से इनकार कर रहे हैं, जो खाद्य क़ीमतों को कम कर सकता था और लाखों भूखे लोगों के पेटों को भर सकता था।

ये दोनों मुद्दे मज़दूरों की उन मांगों का हिस्सा हैं, जिन पर मज़दूर 8 जनवरी, 2020 को एक ऐतिहासिक हड़ताल करने जा रहे हैं। इस हड़ताल का आह्वान 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और कर्मचारियों के कई स्वतंत्र महासंघों ने किया है और इनकी तैयारियों की रिपोर्ट से अभूतपूर्व समर्थन दिखाई दे रहा है। 100 से अधिक किसान संगठनों ने भी एक साथ ग्रामीण बंद (ग्रामीण हड़ताल) का आह्वान किया है, जबकि कई छात्र संगठन उसी दिन शैक्षणिक संस्थानों में हड़ताल की अपील कर शामिल हो गए हैं।

खाद्य वस्तुओं की बढ़ती क़ीमतें 

सबसे पहले, नीचे दिए गए चार्ट पर एक नज़र डालें और देखें कि कैसे आम खाद्य पदार्थों की क़ीमतें महज़ एक साल में जनवरी 2019 और जनवरी 2020 के बीच कितनी बढ़ गई हैं। यह आंकड़े उपभोक्ता मामलों के विभाग की वेबसाइट से लिए गए हैं, जो क़ीमतों की जानकारी देते हैं। देश भर के 114 शहरों और कस्बों से रोज़ाना 22 खाद्य पदार्थ की क़ीमतों के आंकड़े यहाँ एकत्र किए जाते हैं।

table 1_5.JPG

यहाँ यह भी याद रखें कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित आधिकारिक मुद्रास्फ़ीति दर सभी वस्तुओं का एक औसत मूल्य बताती है और इसलिए किसी भी मामले यह वास्तव में  प्रतिबिंबित नहीं करता है कि आम आदमी राशन की निजी दुकानों या सब्ज़ी विक्रेता को कितना भुगतान करता है। स्पष्ट रूप से, मूल्य वृद्धि लगभग 6 प्रतिशत की आधिकारिक दर से अधिक है।

अनाज, दालें, खाना पकाने का तेल और तीन बड़ी सब्ज़ियाँ (आलू, प्याज़ और टमाटर) जो पूरे भारत में मुख्य खाद्य पदार्थ हैं। इनमें से अधिकांश वस्तुओं की महंगाई आग की तरह से फैल गई है, साथ ही गेहूं की क़ीमत में 56 प्रतिशत, आटे की क़ीमत में 26 प्रतिशत, तीन सामान्य दालों की कीमत में 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी है (उड़द दाल में यह 57 प्रतिशत से अधिक है), दो सामान्य तेलों में 10-15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि आलू की क़ीमतों में 67 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और प्याज़ की क़ीमतों में पाँच गुना की वृद्धि है। मोदी सरकार जिसे हालत का अभी तक कोई इल्म नहीं है और बावजूद कुछ प्याज़ आयात करने के – ज़मीन पर कुछ भी नहीं बदल रहा है।

सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि नवंबर 2019 में 5.54 प्रतिशत के सामान्य मुद्रास्फीति स्तर की तुलना में खाद्य मुद्रास्फीति 8.66 प्रतिशत पर थी। एक साल पहले, खाद्य मुद्रास्फीति (-) 2.2 प्रतिशत (यानी क़ीमतों में गिरावट) दर्ज की गई थी और सामान्य मुद्रास्फीति 1.97 प्रतिशत पर थी। यह ज़ाहिर करता है कि पिछले एक साल में, मोदी सरकार ने मूल्य पर नियंत्रण पूरी तरह से खो दिया है। साथ ही बढ़ती बेरोज़गारी के रिकॉर्ड स्तर और मज़दूरी में ठहराव के चलते इस कमर तोड़ महंगाई ने मज़दूरों, कर्मचारियों और आम लोगों के जीवन को नष्ट कर दिया है।

बढ़ता खाद्य पदार्थों का भंडार 

इस बीच, सरकारी गोदामों में खाद्यान्न की भरमार है, क्योंकि देश में खाद्यान्न का काफी अधिक उत्पादन हो रहा है और सरकार की बढ़ती ख़रीद से फसल का एक हिस्सा भंडार में स्थानांतरित होता है। इस पूरे वर्ष के दौरान, वास्तविक स्टॉक यानी भंडारण (जिनमें चावल, गेहूं और कुछ मोटे अनाज शामिल हैं के) स्टॉक के मानदंडों से कहीं हैं, जिसमें 30 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन चावल का रणनीतिक भंडार शामिल हैं। [नीचे दिए गए चार्ट देखें] सीज़न के अनुसार सामान्य संकेत भिन्न होते हैं।

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होना यह चाहिए कि देश भर में राशन की दुकानों के जरिए इस भंडारण के अनाज को जल्दी से बाँट दिया जाए और उसे कुपोषण और भूख से पीड़ित लोगों के घरों तक पहुंचा दिया जाए। यह न केवल मज़दूरों और काम करने वाले लोगों के परिवारों के लिए अत्यंत आवश्यक जीविका प्रदान करेगा, बल्कि खुले बाज़ार में क़ीमतों को कम भी कर देगा। यह सामान्य रूप से मांग को भी बढ़ाएगा क्योंकि लोगों को आवश्यक भोजन पर उतना ख़र्च नहीं करना पड़ेगा। लेकिन राज्य सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों को दरकिनार करने और सब्सिडी में कटौती करने की मोदी सरकार की हठधर्मी उसे इस सबसे उचित और ज़रूरी कार्रवाई को करने से रोकती है।

ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों की मांग है कि पीडीएस को मज़बूत किया जाए, इसका विस्तार कर इसे सार्वभौमिक बनाया जाए। इसमें अधिक खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाए, कवरेज को सभी परिवारों तक बढ़ाया जाना चाहिए और जहां तक संभव हो क़ीमतों को कम रखा जाना चाहिए।

आगामी 8 जनवरी की अखिल भारतीय हड़ताल, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने, रोज़गार के अवसर बढ़ाने, श्रम क़ानूनों में बदलाव को रोकने, ठेकेदारी प्रथा के अंत आदि की सभी मांगों के साथ साथ महंगाई पर नियंत्रण करने और राशन प्रणाली का विस्तार करने की भी है, जो न केवल मज़दूरों बल्कि समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करता है।

लेकिन मोदीजी और श्री अमित शाह (गृह मंत्री) लोगों की दुर्दशा से बेख़बर होकर, नागरिक क़ानून लागू करने और संविधान के साथ छेड़छाड़ करने में व्यस्त हैं। हड़ताल मज़दूरों की यह हड़ताल उन्हें हिला देने का एक और प्रयास है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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