NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
जनादेश 2019 : क्यों पश्चिमी यूपी में काम नहीं आया बालाकोट?
मुरादाबाद मंडल की तो 6 में 6 सीटों गठबंधन के पक्ष में गई हैं। मुज़फ़्फ़रनगर में गठबंधन के सहयोगी अजित सिंह बेहद मामूली अंतर से हारे हैं, यही मेरठ में बीएसपी प्रत्याशी के साथ हुआ है। फिरोजाबाद सीट चाचा-भतीजे की लड़ाई में बीजेपी के पास चली गई।
मुकुल सरल
24 May 2019
UP CHUNAV

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की ‘प्रचंड’ जीत के पीछे पुलवामा और बालाकोट और उसके नाम पर जगाए गए उग्र राष्ट्रवाद को एक बड़ी वजह माना जा रहा है। ये सच भी है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश जिसे गन्ना बेल्ट या जाट बेल्ट भी कहा जाता है वहां इस उग्र राष्ट्रवाद का उस तरह असर नहीं हुआ जिस तरह बाकी उत्तर प्रदेश या देश पर हुआ है। जबकि यहां चुनाव के पहले (11 अप्रैल), दूसरे (18 अप्रैल) और कुछ में तीसरे (23 अप्रैल) दौर में मतदान हो गया था, यानी उस समय जिस वक़्त पुलवामा और बालाकोट की याद सबसे ज़्यादा ताज़ा थी। बाद के दौर में तो चुनाव दूसरे मुद्दों ‘आम खाने’ (मोदी-अक्षय अ-पोलिटकल इंटरव्यू) से लेकर ‘हुआ तो हुआ’ (सैम पित्रोदा) और गोडसे की जय से लेकर अमरनाथ-बद्रीनाथ की यात्रा और गुफा में ध्यान तक चला गया। लेकिन जिन शुरुआती दो दौर में इसका सबसे ज़्यादा असर होना चाहिए था, वहां ये कम देखने को मिला। हालांकि इन इलाकों में मुस्लिम आबादी बड़ी तादाद में है और हार-जीत में बड़ी भूमिका अदा करती है लेकिन उसी तादाद में बीजेपी का मुस्लिम विरोध यानी ‘हिन्दु-मुस्लिम’ मुद्दा भी यहां काम करता है। 2014 में बीएसपी का इस इलाके में खाता भी नहीं खुला था।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले मुरादाबाद मंडल की तो 6 में 6 सीटों गठबंधन (एसपी-बीएसपी) के पक्ष में गई हैं। मुज़फ़्फ़रनगर में गठबंधन के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के अध्यक्ष अजित सिंह तो बेहद कम अंतर से हारे हैं, यही मेरठ में बीएसपी प्रत्याशी के साथ हुआ है। फिरोजाबाद सीट चाचा-भतीजे की लड़ाई में बीजेपी के पास चली गई। कांग्रेस कुछ ख़ास प्रभावी नहीं रही तो कुछ जगह नोटा से भी कम का अंतर हार-जीत का कारण बना।

आइए इसे ज़रा विस्तार से समझते हैं :-

पश्चिमी उत्तर प्रदेश जिसमें रुहेलखंड का हिस्सा शामिल किया जाता है, में आमतौर पर 25 लोकसभा सीट आती हैं। हालांकि अलग-अलग मैपिंग (नक्शे) के मुताबिक कुछ सीटें घटा-बढ़ा भी ली जाती हैं।

मुख्य तौर पर ये 25 लोकसभा सीटे हैं-

1.  बरेली, 2. रामपुर, 3. मुरादाबाद, 4. संभल, 5. अमरोहा, 6. बिजनौर, 7. नगीना, 8. गौतमबुद्ध नगर, 9. ग़ाज़ियाबाद, 10. मेरठ, 11. बागपत, 12. बुलंदशहर, 13. आगरा, 14. मथुरा, 15. मैनपुरी, 16. फिरोज़ाबाद, 17. बदायूं, 18. अलीगढ़, 19. हाथरस, 20. शाहजहांपुर, 21. आंवला, 22. सहारनपुर, 23. एटा

24. इटावा, 25. फर्रुख़ाबाद।

इनमें से सात सीटों पर गठबंधन विजयी हुआ है। और तीन पर बहुत कम अंतर से हार-जीत हुई है।

मुरादाबाद मंडल की 6 सीटों- मुरादाबाद, रामपुर, संभल, अमरोहा, बिजनौर और नगीना में गठबंधन को जीत मिली है। इनमें तीन सीट बीएसपी और तीन सीट एसपी के खाते में गई हैं। इसके अलावा मैनपुरी में एसपी के संरक्षक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव विजयी हुए हैं। ये उनका आख़िरी चुनाव था।

मुशायरों की तरह मुरादाबाद नहीं ‘लूट’ सके इमरान प्रतापगढ़ी!

मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी के एसटी हसन के सामने बीजेपी के कुंवर सर्वेश कुमार के अलावा कांग्रेस से मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी थे। लेकिन दो मुस्लिम होने पर भी इस फैक्टर ने काम नहीं किया और उस तरह वोट कटिंग नहीं हो पाई। इमरान प्रतापगढ़ी ने हालांकि करीब 60 हज़ार (59,198) वोट हासिल किए लेकिन तब भी एसपी के एसटी हसन ने बीजेपी के सर्वेश कुमार को करीब एक लाख वोट से हराया। एसटी हसन को कुल 6,49,416 वोट मिले, जबकि बीजेपी के सर्वेश को 5,51,538 वोट मिले।

दूसरे इमरान भी नहीं रोक पाए गठबंधन की राह

इसी तरह कांग्रेस के दूसरे इमरान, इमरान मसूद सहारनपुर सीट पर दो लाख से भी ज़्यादा वोट हासिल कर गठबंधन प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान की राह नहीं रोक पाए। यहां बीएसपी (गठबंधन) प्रत्याशी फजलुर्रहमान को 5,14,139 वोट मिले और बीजेपी के राघव लखनपाल को 4,91,722 वोट मिले। जबकि इमरान मसूद को 207068 वोट हासिल हुए। यहां तो सिर्फ यही कह सकते हैं कि इमरान न होते तो गठबंधन की जीत और बड़ी होती।

नसीमुद्दीन नहीं डाल पाए असर

बिजनौर सीट पर बीएसपी ने गुर्जर मलूक नागर को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने यहां से बीएसपी के बाग़ी और एक ज़माने में मायावती के दाएं हाथ कहे जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को अपने टिकट से उतारा। इन दोनों के सामने थे बीजेपी के राजा भारतेंद्र सिंह जो पहले भी यहां से सांसद थे। लेकिन यहां भी बीजेपी विरोधी वोटों में कोई भ्रम नहीं देखने को मिला और बीएसपी के मलूक नागर ने भारतेंद्र सिंह को करीब 70 हज़ार वोटों से हराया। नसीमुद्दीन सिद्दीकी सिर्फ़ 25,833 वोट हासिल कर पाए।

अजित को नोटा ने हराया!

पश्चिमी यूपी के महत्वपूर्ण शहर मुज़फ़्फ़रनगर में बहुत दिलचस्प और कांटे की लड़ाई रही यहां आरएलडी के अध्यक्ष अजित सिंह जितने वोट से हारे उससे ज़्यादा तो नोटा को मिल गए। यहां बीजेपी से थे पूर्व मंत्री संजीव बालियान। दोनों के बीच बहुत कड़ा मुकाबला था यहां तक कि मतदान के समय बालियान काफी परेशान नज़र आए थे और मतदान में धांधली तक का आरोप लगाया था जो बहुत अटपटा था क्योंकि केंद्र और यूपी दोनों जगह उनकी ही सरकार थी। उन्होंने कहा कि बुर्के की आड़ में फर्जी वोटिंग हो रही है और इस माध्यम से उन्होंने चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम बनाने की पूरी कोशिश की। आपको मालूम है कि 2013 में मुज़फ़्फ़रनगर कितना बड़ा दंगा झेल चुका है। बालियान की तमाम कोशिशों के बाद भी छोटे चौधरी यानी अजित सिंह ने उनके सामने बेहतरीन चुनाव लड़ा।

यहां संजीव बालियान को कुल 5, 69, 535 वोट मिले, जबकि अजित सिंह को अजित 5, 65, 753 वोट मिले। यहां उनकी हार के कारण कांग्रेस में नहीं तलाशे जा सकते क्योंकि यहां कांग्रेस ने कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था लेकिन यहां नोटा काम कर गया। अजित सिंह, संजीव बालियान से महज़ 3,782 वोटों से हारे, जबकि नोटा के हिस्से में आए 5,110 वोट। यानी कहा जा सकता है कि मुज़फ़्फ़रनगर में नोटा ने अजित सिंह को हरा दिया।

मेरठ में किसने किसे हराया, किसे जिताया?

इसी तरह मेरठ में हुआ। संवेदनशील मेरठ में भी बीजेपी और बीएसपी के बीच कड़ी टक्कर हुई। यहां बीजेपी से राजेंद्र अग्रवाल मैदान में थे जबकि बीएसपी से हाजी याकूब कुरैशी। राजेंद्र अग्रवाल को कुल 5,86,184 वोट मिले और हाजी याकूब कुरैशी को 5,81,455 वोट। हार-जीत का अंतर रहा महज़ 4,729। यहां भी नोटा को वोट मिले 6,316। लेकिन यहां कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल 34,479 वोट ले गए। अब हरेंद्र अग्रवाल को किसके हिस्से के वोट मिले और उन्होंने किसके हिस्से के वोट काटे ये अध्ययन का विषय है।

फिरोज़ाबाद : चाचा ने भतीजे को हराया!

फिरोज़ाबाद में तो बेहद दिलचस्प मुकाबला रहा। यह सीट चाचा-भतीजे की लड़ाई में बीजेपी के पास चली गई। इस सीट पर समाजवादी पार्टी से उम्मीदवार थे रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव। वे यहां 2014 की मोदी लहर में भी सांसद बने थे। लेकिन इस बार उनके सामने मुकाबले में थे उनके ही चाचा शिवपाल सिंह यादव जो अपनी नई पार्टी से चुनाव मैदान में उतरे थे और बीजेपी से थे चंद्रसेन यादव। अब यहां चाचा-भतीजे के अलावा तीन यादवों की भी लड़ाई थी।

और अक्षय यादव ने ये सीट चंद्रसेन यादव के हाथों गंवा दी। बीजेपी के चंद्रसेन यादव को 4,94,050 वोट मिले, जबकि अक्षय यादव को 4,65,686 वोट। हार-जीत का अंतर रहा- 28,364, और चाचा शिवपाल सिंह यादव को वोट मिले 91,651.

अब इसे क्या कहा जाए, यही कि चाचा-भतीजे की लड़ाई में बीजेपी ने बाज़ी मार ली।

ख़ास बातें

इस तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विश्लेषण में कई दिलचस्प बातें निकल कर आती हैं कि मुरादाबाद और सहारनपुर में बीजेपी के मुकाबले गठबंधन और कांग्रेस से दो-दो मशहूर मुस्लिम होने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा और गठबंधन बड़े अंतर से जीत गया। मुरादाबाद में मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी और सहारनपुर से मजबूत नेता इमरान मसूद थे लेकिन वे निर्णायक वोट नहीं काट पाए।

बिजनौर में बीएसपी (गठबंधन) से हिन्दू गुर्जर प्रत्याशी होने और कांग्रेस से बीएसपी के बागी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के होने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा और बीएसपी ने जीत दर्ज की। 

मेरठ में बीजेपी और कांग्रेस से दो अग्रवाल प्रत्याशी होने के बाद भी गठबंधन के हाजी याकूब हार गए। यहां हार-जीत का अंतर नोटा से भी कम रहा। इसी तरह मुज़फ़्फ़रनगर में कांग्रेस प्रत्याशी न होने के बाद भी अजित सिंह जीत नहीं पाए। यहां भी हार-जीत का अंतर नोटा से कम रहा।

ये हार-जीत और बारीक विश्लेषण और अध्ययन का विषय हैं कि क्या किसान और आवारा पशुओं का मुद्दा यहां चला। क्या दलित-मुस्लिम वोट यहां लगभग एकजुट रहा, क्या हिन्दुओं ने उग्र राष्ट्रवाद के मुद्दे को उस तरह तवज्जों नहीं दी, जिस तरह बाकी यूपी और देश में दी। क्या यहां के लोगों ने “मोदी नहीं तो कौन?” जैसे प्रायोजित सवाल को हल करते हुए दूसरे नेताओं में भी अपना और देश का भविष्य देखने की कोशिश की!

UP Government
UP
Western UP
west up
General elections2019
Result
BSP
SP-BSP-RLD
SP-BSP Alliance
BJP
MAYAWATI
akhilesh
Balakot Air Strike
balakot
pulwama attack
pulwama revenge
RSS
Narendra Modi Government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License