NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
कला
भारत
"ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है…"
‘वीरेनियत-3’ की शाम एक उपलब्धि की तरह थी जब एक साथ एक से बढ़कर एक कवि-शायर गौहर रज़ा, असद ज़ैदी, देवी प्रसाद मिश्र, प्रभात, पंकज चतुर्वेदी, आर चेतन क्रांति, अनुराधा सिंह और फ़रीद खान फ़रीद सुनने को मिले।
मुकुल सरल
29 Sep 2018
वीरेनियत-3

“मुझ को क्यों था यक़ीं

के मेरे देस में

ज़र्द पत्तों के गिरने का मौसम नहीं

मुझ को क्यों था यक़ीं

के मेरे देस तक

पतझड़ों की कोई रहगुज़र ही नहीं…”

ये अकेले गौहर रज़ा का यक़ीं नहीं था, हम सब शायद 130 करोड़ लोगों का यही यकीं था, यही उम्मीद थी, कि “इसके दामन पे जितने भी धब्बे लगें, अगली बरसात आने पे धुल जाएँगे” लेकिन आज ये यक़ीं या कहिए भरम टूट रहा है। यही मुख्य स्वर था ‘वीरेनियत-3’ का। इसमें शामिल हुए कवि-शायरों का। हर कविता हमारे समय-समाज का आईना थी। एक सवाल थी। जब असद ज़ैदी कहते हैं कि “वीडियो गेम से उकताते हैं तो मुसलमानों को मारने के लिए निकल पड़ते हैं” तो हमारे इस खूंखार समय की सच्चाई पूरी तरह बेपरदा होकर हमारे सामने खड़ी हो जाती है। लेकिन इन कविताओं में सिर्फ सवाल या चिंता नहीं थी बल्कि इस स्थिति को बदलने की जद्दोजहद भी थी। ये सच्चे प्रतिरोध की कविताएं थीं।

सुबह की तलाश में ‘वीरेनियत-3’ के नाम से कविता की ये शाम सजाई गई थी प्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल की याद में। जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से दिल्ली के हैबिटेट सेंटर के गुलमोहर हॉल में। जसम की ओर से वीरेनियत नाम से कविता का ये आयोजन पिछले तीन साल से किया जा रहा है। वीरेन डंगवाल का साल 2015 में 28 सितंबर के दिन निधन हो गया था। उसके बाद से उनकी याद में यह कविता कार्यक्रम शुरू हुआ। पहला कार्यक्रम 2016 में उनके जन्मदिन 5 अगस्त को हुआ था तो ये तीसरा आयोजन उनकी पुण्यतिथि पर हुआ।

शुक्रवार की गोष्ठी कविता प्रेमियों के लिए एक उपलब्धि थी क्योंकि इसमें हिन्दी-उर्दू के दिग्गज कवि-शायर गौहर रज़ा, असद ज़ैदी, देवी प्रसाद मिश्र, प्रभात, पंकज चतुर्वेदी, आर चेतन क्रांति, अनुराधा सिंह और फ़रीद खान फ़रीद जैसे नाम मौजूद थे। इनमें से एक-एक को सुनना एक शानदार अनुभव था। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक आशुतोष कुमार ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत वरिष्ठ कवि विष्णु खरे को श्रद्धांजलि और दो मिनट के मौन से हुई। विष्णु खरे का अभी 19 सितंबर को 78 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था। कार्यक्रम में शहीदे-आज़म भगत सिंह को भी उनकी जयंती पर याद किया गया।

इसके बाद नवारुण प्रकाशन की ओर से प्रकाशित वीरेन डंगवाल की समग्र कविताओं के विशेष संकलन “कविता वीरेन” का लोकार्पण किया गया। लोकार्पण वरिष्ठ लेखक और पत्रकार और वीरेन डंगवाल के मित्र रहे आनंद स्वरूप वर्मा ने किया। इस मौके पर उन्होंने उन्हें याद करते हुए कहा कि आज के समय में वीरेन जैसे कवियों की बेहद ज़रूरत है। उन्होंने उनकी कुछ कविताओं का जिक्र करते हुए कहा कि वीरेन की खासियत ये थी कि वे छोटी-छोटी चीजों पर भी कविताएं लिख लेते थे और हमें उसके एक ऐसे पक्ष से परिचित कराते थे जिसके बारे में हमने नहीं सोचा होता था। वीरेन डंगवाल की यादों में डूबते-उतरते वर्मा जी काफी भावुक भी हो गए।

इसके बाद शुरू हुआ कविताओं का सिलसिला। सबसे पहले मुंबई से आए और पटना के रहने वाले कवि फ़रीद खान फ़रीद को आवाज़ दी गई। उन्होंने आसिफा की याद में लिखी अपनी प्रसिद्ध कविता ‘मैं माफ़ी मांगता हूं’ के साथ ‘दादा जी साइकिल वाले’, ‘लकड़सुंघवा’, ‘गंगा मस्जिद’ भी सुनाईं।

42707300_482252942258095_5168993827930767360_n.jpg

इसके बाद सुनने का मौका मिला अनुराधा सिंह को जिन्होंने ‘ब्रह्म सत्य’, ‘ईश्वर नहीं नींद चाहिए’ और ‘लिखने से क्या होगा’ जैसी महत्वपूर्ण कविताएं सुनाईं। ‘ईश्वर नहीं नींद चाहिए’ कविता में वह कहती हैं:-

“औरतों को ईश्वर नहीं

आशिक नहीं

रूखे-फीके लोग चाहिए आस-पास

जो लेटते ही बत्ती बुझा दें अनायास

चादर ओढ़ लें सिर तक

नाक बजाने लगें तुरंत

 

नजदीक मत जाना

बसों, ट्रामों और कुर्सियों में बैठी औरतों के

उन्हें तुम्हारी नहीं

नींद की जरूरत है

 

उनकी नींद टूट गई है सृष्टि के आरंभ से

कंदराओं और अट्टालिकाओं में जाग रही हैं वे

कि उनकी आंख लगते ही

पुरुष शिकार न हो जाएं

बनैले पशुओं

इंसानी घातों के

 

वे जूझती रही यौवन में नींद

बुढ़ापे में अनिद्रा से

नींद ही वह कीमत है

जो उन्होंने प्रेम, परिणय, संतति

कुछ भी पाने के एवज में चुकाई

 

सोने दो उन्हें पीठ फेर आज की रात

आज साथ भर दुलार से पहले

आंख भर नींद चाहिए उन्हें”

अनुराधा के बाद बारी थी आर चेतन क्रांति की। उन्होंने अपनी हर कविता से सत्ता को आईना दिखाया। “पावर को चाहिए और थोड़ी सी पावर” इस एक पंक्ति के माध्यम से आप जान सकते हैं कि उनके क्या तेवर रहे।

कवि पंकज चतुर्वेदी ने हाल की घटनाओं पर लिखी गईं छोटी-छोटी कविताएं- ‘नया राजपत्र’, ‘काजू की रोटी’, ‘संघ की शरण में जाता हूं’, ‘ऑक्सीजन के अभाव में’, जेएनयू के गायब छात्र नजीब पर आधारित ‘सिर्फ मां है’, ‘हवन के लिए’, ‘मलबे का मालिक’, ‘फिटनेस चैलेंज’, जज लोया पर आधारित ‘मैं एक जज था’ और ‘देश काफी बदल गया है’, ‘जब राजा ही सुरक्षित नहीं’ जैसी कविताएं सुनाईं।

कवि प्रभात ने लोक गायिकाएं, ‘एक सुख था’, ‘काम’ जैसी उल्लेखनीय कविताएं सुनाईं। वे कहते हैं कि “चींटी की सेनाओं से ज़्यादा उम्मीद है पृथ्वी को, राष्ट्रपति की सेनाओं से....”

देवी प्रसाद मिश्र ने एक लंबी कविता ‘वेटिंग रूम’ सुनाईं। जिसके जरिये उन्होंने आज की राजनीति पर बड़ा सवाल खड़ा किया- कविता के अंत में वे कहते हैं कि “मैं प्रतीक्षालय में अचनाक खड़ा हो गया, तो मेरी बगल की लड़की ने कहा कि आपकी रेलगाड़ी अभी नहीं आई है, मैंने कहा कि मुझे लगा कि समकालीन भारतीय राज्य और समाज के पराभव की कथा फिल्म और मॉकेमेंट्री खत्म हो गई और जन-गण-मन शुरू हो गया, तो मैं लिंच होने से बचने के लिए खड़ा हूं।”

इसके बाद असद ज़ैदी ने अपनी कविताओं से सबको झकझोर दिया। उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियों से ही आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वे आज हमारे समय को किस तरह दर्ज कर रहे हैं। “ऐसा नहीं है” नाम की कविता में असद कहते हैं कि

“हमारे ज़माने में विमर्श है अमर्ष भी ख़ूब है किसी का लेकिन पक्ष पता नहीं चलता…

हिन्दुस्तान भी बस एक चमत्कार ही है दलालों ने हर चीज़ को खेल में बदल दिया हैं

वीडियो गेम से उकताते हैं तो मुसलमानों को मारने के लिए निकल पड़ते हैं

और जो रास्ते में आता है कहते हैं हम आपको देख लेंगे नम्बर आपका भी आएगा जी...

यह एक चौथाई सदी खड़ी है तीन सदियों के मलबे पर...”

अंत में उर्दू शायर और वैज्ञानिक गौहर रज़ा को आवाज़ दी गई और उन्होंने अपने ख़ास आवाज़ और अंदाज़ में सबसे पहले यही ‘दुआ’ कि कि “काश ये बेटियां बिगड़ जाएं…”

मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म ‘इंतसाब’ को याद करते हुए लिखी गई नज़्म के जरिये गौहर ने आज की हकीकत से रूबरू कराया। आइए पढ़ते हैं उनकी ये पूरी नज़्म :-

‘ज़र्द पत्तों का बन’

ज़र्द पत्तों का बन जो मेरा देस है

दर्द की अंजुमन जो मेरा देस है

जब पढ़े थे ये मिसरे तो क्यों था गुमाँ

ज़र्द पत्तों का बन, फ़ैज़ का देस है

दर्द की अंजुमन, फ़ैज़ का देस है

बस वही देस है,

जो कि तारीक है

बस उसी देस तक है

खिज़ाँ की डगर

बस वही देस है ज़र्द पत्तों का बन

बस वही देस है दर्द की अंजुमन

 

मुझ को क्यों था यक़ीं

के मेरे देस में

ज़र्द पत्तों के गिरने का मौसम नहीं

मुझ को क्यों था यक़ीं

के मेरे देस तक

पतझड़ों की कोई रहगुज़र ही नहीं

इस के दामन पे जितने भी धब्बे लगे

अगली बरसात आने पे धुल जाएँगे

 

अब जो आया है पतझड़

मेरे देस में

धड़कने ज़िंदगी की हैं

रुक सी गयीं

ख़ंजरों की ज़बान रक़्स करने लगी

फूल खिलने पे पाबंदियाँ लग गयीं

क़त्लगाहें सजाई गईं जा-ब-जा

और इंसाफ़ सूली चढ़ाया गया

ख़ून की प्यास इतनी बढ़ी, आख़िरश

जाम-ओ-मीना लहू से छलकने लगे

 

नाम किसके करूँ

इन ख़िज़ाओं को मैं

किस से पूछूँ

बहारें किधर खो गयीं

किस से जाकर कहूँ

ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है

दर्द की अंजुमन, अब मेरा देस है

 

ऐ मेरे हमनशीं

ज़र्द पत्तों का बन, दर्द की अंज़ुमन

आने वाले सफ़ीरों की क़िस्मत नहीं

ये भी सच है के उस

फ़ैज़ के देस में

चाँद ज़ुल्मत के घेरे में कितना भी हो

नूर उसका बिखरता था हर शब वहाँ

पा-बा-जोलाँ सही, फिर भी सच है यही

ज़िंदिगी अब भी रक़साँ है उस देस में

क़त्लगाहें सजी हैं अगर जा-ब-जा

ग़ाज़ीयों की भी कोई, कमीं तो नहीं

 

और मेरे देस में

रात लम्बी सही,

चाँद मद्धम सही

मुझ को है ये यक़ीं

ख़लक़ उट्ठेगी हाथों में परचम लिए

सुबह पाज़ेब पहने हुए आएगी

रन पड़ेगा बहारों-ख़िज़ाओं का जब

रंग बिखरेंगे, और रात ढल जाएगी

 

ज़र्द पत्तों का बन भी सिमट जाएगा

दर्द की अंजुमन भी सिमट जाएगी.

hindi poetry
poem
jsm
Viren Dangwal
कविता
वीरेनियत

Related Stories

चलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए...

विशेष : पाब्लो नेरुदा को फिर से पढ़ते हुए

गोरख पाण्डेय : रौशनी के औजारों के जीवंत शिल्पी

आनंद तेलतुंबड़े के साथ आए लेखक और अन्य संगठन, संभावित गिरफ्तारी के खिलाफ एकजुटता का आह्वान

“सच जानने के लिए हमें अपना मीडिया खुद बनाना होगा”

“तुम बिल्‍कुल हम जैसे निकले, अब तक कहाँ छिपे थे भाई...”

मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम!!

‘वीरेनियत-3’ में कवि देवी प्रसाद मिश्र


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License