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जेवर हवाई अड्डा : भूमि अधिग्रहण का विरोध करने पर 35 किसानों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज
प्लॉट देने के अधूरे वादे, अपर्याप्त मुआवज़े और पहचान खोने का डर से किसान भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे।
अब्दुल अलीम जाफ़री
26 Feb 2020
Translated by महेश कुमार
जेवर हवाई अड्डा

जेवर (उत्तर प्रदेश): राष्ट्रीय राजधानी से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित दयानतपुर और रोही गाँवों में डर का वातावरण है। अब वहाँ केवल बुजुर्ग लोग है, वे भी मुख्यत: महिलाएं, क्योंकि जब से उत्तर प्रदेश पुलिस ने हाल ही में जेवर हवाई अड्डे के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में अपर्याप्त मुआवज़े के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई की तो गाँव के युवा भय के कारण नदारद हो गए है।  

पिछले दो सालों से जेवर एयरपोर्ट किसान संघर्ष समिति के बैनर तले ग्रामीण अपना विरोध जता रहे हैं।

इस बार की कार्यवाई में यूपी पुलिस ने 35 किसानों के खिलाफ नाम दर्ज़ और 25 "अनाम" लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 149, 323, 332, 338, 353, 386, 427 504, 506 और सार्वजनिक संपत्ति क्षति अधिनियम के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) दर्ज की है। दयानतपुर निवासी रवि शर्मा (उम्र-30) नामक एक व्यक्ति को 27 जनवरी को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया था।

जब न्यूजक्लिक ने रवि की पत्नी, देवेश से मुलाकात की, तो उन्होंने बताया: “रोही गांव में पुलिस और किसानों के बीच मामूली झड़प हुई थी, तब जब प्रशासन के लोग ज़मीन अधिग्रहण के लिए वहां गए थे। पुलिस ने बाद में दयानतपुर के उस मंदिर में प्रवेश किया जहां प्रदर्शनकारियों ने शरण ले रखी थी। मेरे पति तो विरोध स्थल पर भी नहीं थे। फिर भी, पुलिस ने उन्हे गिरफ़्तार कर लिया, केवल इसलिए कि हम सरकार का विरोध कर रहे हैं क्योंकि दिया गया मुआवजा हमारे लिए बहुत ही कम है।''

देवेश ने कहा: "हम अपनी ज़मीन के बदले हमारा जो हक़ है उसे चाहते हैं। सरकार हमें सिर्फ 50 वर्ग मीटर का भूखंड दे रही है, जहां हम अपने पशुओं को नहीं रख सकते हैं। हमें निवास के लिए कम से कम 150 वर्ग मीटर का भूखंड होना चाहिए।"

जेवर हवाई अड्डा – एक अनसुनी कहानी

दयानतपुर, रोही, परोही, किशोरपुर, रणहेरा और किशोरपुर के किसान उत्तर प्रदेश में जेवर में प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उनकी अपनी ज़मीन का अधिग्रहण करने के यूपी सरकार के फैंसले का विरोध कर रहे हैं।

बदले में प्लॉट देने के अधूरे वादे, अपर्याप्त मुआवज़े और अपनी पहचान खोने के प्रमुख डर के कारण किसानों विरोध कर रहे हैं।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कुछ किसानों ने कहा कि वे 2017 से अधिक मुआवज़े की मांग कर रहे हैं। एक अन्य किसान जिनका नाम रवि शर्मा है, ने कहा, "2016 में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान भूमि का अधिग्रहण किया गया था। मुआवज़े की राशि उनके द्वारा तय की गई थी। हमारी मांग हैं कि हमें सर्किल रेट के दो गुना मुआवज़े के बजाय चार गुना दिया जाय, लेकिन सरकार अपनी ज़िद पर अडिग है।”

इस विवाद के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली योगी आदित्यनाथ सरकार को दोषी ठहराते हुए, शर्मा ने कहा: “जब 2017 में योगी आदित्यनाथ सत्ता में आए थे, तो उन्होंने एक एड़वाइजरी जारी की और इन सभी गांवों को शहरी क्षेत्रों में बदल दिया, ताकि हमें सर्कल रेट का दो गुना ही मिल सकें। अगर हमारे गाँव, शहरी क्षेत्र में आते हैं, तो फिर हमें कोई अन्य सुविधा क्यों नहीं मिल रही है, यहाँ क्यों कोई अस्पताल, स्कूल, कॉलेज और साफ-सफाई नहीं है?  केवल एक बेहतर मुआवज़े का सौदा ही अब हमारी मदद कर सकता है।”

किसान उनके क्षेत्र को "शहरी" वर्गीकरण करने से नाराज़ है, जो उन्हें सर्कल  रेट के चार गुना के बजाय केवल दो गुना का ही हकदार बनाता है, जो भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 के तहत कृषि भूमि पर लागू होता है।

पांच गांवों - रोही, परोही, दयानतपुर, किशोरपुर और रनेरा के कई किसानों ने कहा कि वे 2,300 रुपये प्रति वर्ग मीटर के प्रशासन के प्रस्ताव के अनुसार भूमि अधिग्रहण देने को तैयार है, जबकि कुछ अन्य ने कहा कि वे 3,600 रुपये प्रति वर्ग रुपये की मांग कर रहे हैं जो सर्कल रेट का चार गुना है।

एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, जो एशिया का सबसे बड़ा अड्डा बनाने जा रहा है, उसे गौतम बौद्ध नगर के जेवर में प्रस्तावित किया गया है, जिसके लिए लगभग 5,000 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। 2022-23 तक ऑपरेशन शुरू करने के लिए निर्धारित हवाई अड्डे की लागत 15,000-20,000 करोड़ रुपये आँकी गई है।

सरकार, पहले चरण में, पांच गांवों से करीब 1,300 हेक्टेयर से अधिक की भूमि का अधिग्रहण करना चाहती है, जो 2,250 परिवारों को प्रभावित करेगा।

जेवर किसान संघर्ष समिति के नेता अजय प्रताप सिंह ने दावा किया कि यमुना एक्सप्रेसवे के लिए अधिग्रहित की गई भूमि के एवज में किसानों को अभी तक प्रशासन से केवल आश्वासन मिला है जबकि वादा किया भूखंड अभी तक नहीं मिला है।

उन्होंने कहा, "मैंने सभी सरकारों को देखा है। मेरे पास यमुना एक्सप्रेसवे के आसपास भूमि थी। मुझे मेरी अधिग्रहीत ज़मीन के आकार का 7 प्रतिशत बड़ा प्लॉट देने का वादा किया गया था, जो मुझे आज तक नहीं मिला है।"

उन्होंने कहा, "मेरी ज़मीन का 8,700 वर्ग मीटर का अधिग्रहण किया गया था, कुछ अधिकारियों ने शुरू में मुझे रजिस्ट्री के साथ कुछ दस्तावेज दिए। वे अधिग्रहण के बाद वापस आए और वे सभी कागजज़ात वापस छीन कर ले गए।"

सिंह ने दावा किया कि उनके जैसे कई लोग उस वादे किए गए भूखंड का इंतजार कर रहे हैं जो कि जिले के यमुना प्राधिकरण-विकसित क्षेत्र में होना चाहिए था।

एक और किसान, जिसने अपना नाम छिपाने पर न्यूज़क्लिक को बताया कि कोई भी किसान विकास या हवाई अड्डे का विरोध नहीं कर रहा है। वे सभी भूमि के मुआवज़े की दर में असमानता से चिंतित थे।

"इन गांवों को ग्रामीण से शहरी के रूप में रातोंरात वर्गीकृत किया जाना, जबकि यहां एक माचिस की तिल्ली भी नहीं बनाई जाती है। सरकारी अधिकारियों को उनके शहरी समकक्षों के बराबर किराया भत्ता  नहीं दिया जाता है। वे इन सभी गांवों को सिर्फ इसलिए शहरी बना रहे हैं क्योंकि वे हमें कम मुआवजा देना चाहते हैं,” सिंह ने कहा।

किसानों ने कहा कि वे अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए भी विरोध कर रहे हैं। न्यूजक्लिक को  एक अन्य महिला रितु ने बताया, कि "हमें खुशी होगी कि जब भी जेवर एयरपोर्ट बनकर तैयार होग, हमारे गांवों को सरकार की तरफ से कई सुविधाएं मिलेंगी लेकिन हम अपनी ज़मीन दान में नहीं दे सकते हैं।" उन्होंने कहा कि किसान उनकी योग्यता के अनुसार अपने बच्चों के लिए सरकारी नौकरी चाहते हैं।

ग्रामीणों ने 'शहरी' क्षेत्र के टैग को भी खारिज कर दिया है, और कहा कि उन्हें केवल 10-12 घंटे बिजली की आपूर्ति मिल रही है।

हालांकि, ऐसे कई किसान हैं जो प्रशासन के वर्तमान प्रस्ताव के मुताबिक अपनी ज़मीन को अधिग्रहण करवाने को तैयार हैं।

कुछ किसानों ने बताया कि ग्रेटर नोएडा में परी चौक भी शहरी क्षेत्र में आता था, लेकिन वहां के सर्किल रेट बहुत अधिक हैं और किसानों को वहाँ बेहतर मुआवजा मिला है।

"परी चौक का सर्किल रेट 1,897 रुपये है, लेकिन हमारे यहाँ केवल 903 रुपये है। भूमि अधिग्रहण विधेयक 2013 के अनुसार, राशि दोगुनी होनी चाहिए, लेकिन सरकार हमारी ज़मीन को हड़पना चाहती है। एक किसान ने न्यूज़क्लिक को बताया।

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