NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
समाज
भारत
राजनीति
झारखंड : जश्ने-जीत का उपहार, टूटेंगे पहाड़!
झारखंड सरकार ने 6 पहाड़ों को पत्थर निकालने के नाम पर लीज़ पर देने की घोषणा की।
अनिल अंशुमन
04 Jun 2019
Mountain

प्रत्येक 11 दिसंबर को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय पहाड़ दिवस ( माउंटेन डे ) मनाया जाता है । पहाड़ों की संरक्षा और सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए 2003 से संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस दिवस को मनाने की औपचारिक घोषणा के बाद से यह दिवस मनाया जाता है । जिसके माध्यम से दुनिया में बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग और प्रयावरण प्रदूषण के बढ़ते भयावह संकटों से निजात पाने की दिशा में ‘पहाड़ों की संरक्षा' को एक ज़रूरी कार्यभार समझने का संदेश दिया । हमारे देश की सरकारें इसे महज एक रस्मअदायगी के दिवस के रूप में ही लेतीं रहीं हैं। लेकिन वर्तमान सरकार तो उससे भी अधिक नकारात्मक भूमिका अपनाकर तथाकथित नए विकास के विनाशकरी करतूतों से पहाड़ों को हमेशा के लिए खत्म करने की ही कवायद कर रही है। जिसका ताज़ा उदाहरण है झारखंड सरकार द्वारा 6 पहाड़ों को पत्थर निकालने के नाम पर लीज़ पर बेचने की घोषणा करना। 

खबर मीडिया में उसी दिन प्रकाशित हुई जब 30 मई को राष्ट्रपति भवन परिसर में “चमत्कारिक जीत" से दुबारा सत्तासीन हुई उनकी पार्टी – गठबंधन के सर्वप्रमुख नेता का पुनः सत्ताभिषेक और सरकार गठन का भव्य जश्न – समारोह हो रहा था। खबर में झारखंड सरकार के माइंस एंड जियोलॉजी विभाग निर्देशक के हस्ताक्षर से राज्य के 6 पहाड़ों को तोड़ने की लीज़ का ई– टेंडर के जारी होने की सूचना थी। जिसमें विशेष तौर से यह बताया गया कि पिछली केंद्र सरकार की अनुमति से ही राज्य की सरकार ने यह निर्णय लिया है। जिसे लोकसभा चुनाव के कारण सार्वजनिक नहीं किया गया था। फिलहाल केंद्र में वही सरकार दुबारा काबिज हो चुकी है तो इसे नयी सरकार के जश्ने–जीत का उपहार कहना गलत नहीं होगा।   

जिन 6 पहाड़ों को तोड़ने का ई - टेंडर जारी हुआ है वे सभी पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला – खरसांवाँ जिलों के आदिवासी इलाकों में अवस्थित हैं । खबर में यह भी बताया गया है कि सरकार के जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया कि रिपोर्ट के आधार पर इन पहाड़ों को पत्थर डिपोजीट करनेवाले पहाड़ घोषित किया गया है । 20 जून को इन सभी पहाड़ों को तोड़ने की लीज़ का ई – टेंडर खुलेगा और पहाड़ तोड़ने का ठेका दिया जाएगा। 2.07 एकड़ से लेकर 12.80 एकड़ की परिधि में फैले इन सभी पहाड़ों को तोड़कर यहाँ से सारा पत्थर निकाल लिया जाएगा। जानकारों के अनुसार ये सभी जीवित पत्थरों वाले पहाड़ हैं और पर्यावरण सुरक्षा और खनन क़ानूनों के मुताबिक ऐसे जीवित पत्थरों वाले पहाड़ों को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचाना वर्जित है। लेकिन ऐसे नियम – क़ायदों को धता बताकर काम करने को अपनी स्थायी आदत बना लेने वाली इस सरकार के लिए सब मुमकिन है ..... ! 
 
हजारों छोटे बड़े पहाड़ों और कई पर्वतमालाओं से रचे बसे झारखंड प्रदेश के सैकड़ों पहाड़ आज दबंग पत्थर माफियाओं द्वारा गायब किए जा चुके हैं । क्योंकि पत्थर खनन की अवैध - काली कमाई यहाँ का सबसे चर्चित और संस्थाबद्ध सफल कारोबार बना दिया गया है। जिसमें सरकार से जुड़े रशूखदार नौकरशाहों और पर्यावरण व खनन विभाग के लोगों तथा स्थानीय पुलिस की मिलीभगत होने की बात किसी से छुपी नहीं है । सत्ता से जुड़े कई मंत्री व विधायक - नेताओं के पत्थर खनन कारोबार में वैध–अवैध रूप से लिप्त रहने का मामला भी इस प्रदेश में सामान्य घटना है। हालांकि बीच बीच में पहाड़ों – जंगलों में होने वाले अवैध पत्थर खनन पर सरकार द्वारा लगाम लगाने की कुछेक कार्यवाहियाँ भी होतीं रहीं हैं । लेकिन अब जबकि खुद सरकार ही पत्थर निकालने के नाम पर साबुत पहाड़ों को ध्वस्त करने पर आमादा हो जाए तो स्थिति वाकई चिंताजंक है।  
 
दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है कि सरायकेला - खरसांवाँ का यह पूरा इलाका आदिवासी बाहुल्य है जो संविधान की पाँचवी अनुसूची घोषित क्षेत्र के अंतर्गत आता है. जिसके तहत यह स्पष्ट प्रावधान है कि इन इलाकों में किसी भी प्रकार के खनन कार्यों के लिए 'ग्राम सभा' की सहमति / अनुमोदन का होना अनिवार्य है । लेकिन तथाकथित विकास के नाम पर वर्तमान सरकार ने जिस तरह से सारे नियम–क़ायदों को धता बता कर यहाँ के जंगल – ज़मीन व प्रकृतिक संसाधनों को निजी – कॉर्पोरेट कंपनियों के हवाले करती रही है । इन पहाड़ों को भी तोड़ने के मामले में स्थानीय ग्राम सभाओं की अनुमति लेने की प्रक्रिया पालन की सूचना नहीं है । जिसका साफ मतलब यही है कि राज्य की सरकार फिर पाँचवी अनुसूची के प्रावधानों का उल्लंघन कर अपनी मनमानी करेगी और इसका विरोध करनेवाले आदिवासी हमेशा की भांति  विकास विरोधी  करार दिये जाएँगे। सरकार के पहाड़ तोड़ने का आदिवासी समाज इसलिए विरोध करेगा क्योंकि सदियों से उसने प्रकृति की गोद में अवस्थित जंगल और पहाड़ों को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाकर संरक्षित किए हुए हैं । राज्य की पहाड़िया समेत कई आदिम जनजातियों की बड़ी आबादी आज भी पहाड़ों व आस पास के इलाकों में ही निवास करती है। 

आज पूरी दुनिया में ग्लोबल–वार्मिंग के बढ़ते भयावह खतरों से बचने और बिगड़ते पर्यावरण संतुलन को ठीक करने के लिए जंगल–पहाड़ों के संरक्षण के नए नए उपाय ढूँढे जा रहें हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर यूआईएए व माउंटेन प्रोटेक्शन कमीशन जैसी वैश्विक संस्थाओं तथा कई देश और सामाजिक संगठन – कार्यकर्त्ता पहाड़ों के संरक्षण–सुरक्षा के लिए दुनिया के लोगों को जागरूक और सक्रिय बनाने में जुटे हुए हैं।  हमारे देश की सरकारों के लिए निजी व कॉर्पोरेट कंपनियों के मुनाफा करार को हर कीमत पर लागू करवाना ही ‘राष्ट्रहित' और जगत कल्याण है। जिसके लिए जंगल–पहाड़ों का नष्ट हो जाना कोई मायने नहीं रखता ....... !

Jharkhand
Jharkhand government
village in mountains
mountain day
protection of mountain

Related Stories

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन सत्याग्रह जारी, संकल्प दिवस में शामिल हुए राकेश टिकैत

झारखंड: केंद्रीय उद्योग मंत्री ने एचईसी को बचाने की जवाबदेही से किया इंकार, मज़दूरों ने किया आरपार लड़ाई का ऐलान

बाघमारा कोल साइडिंग में छंटनी का विरोध कर रहे मज़दूरों पर प्रबंधन ने कराया लाठीचार्ज

भारत बंद अपडेट: झारखंड में भी सफल रहा बंद, जगह-जगह हुए प्रदर्शन

झारखण्ड: आदिवासियों का कहना है कि सरना की पूजा वाली भूमि पर पुलिस थाने के लिए अतिक्रमण किया गया

नेपाल में झारखंड के 26 मजदूर कोरोना जैसी बीमारी से ग्रस्त, वापस लाने के लिए बस की व्यवस्था की गई

झारखण्ड में सब इंस्पेक्टर रूपा तिर्की की मौत की सीबीआई जांच के लिए आदिवासी समुदाय का विरोध प्रदर्शन   

झारखंड: निजीकरण के ख़िलाफ़ असरदार रही बैंक हड़ताल, समर्थन में केंद्रीय ट्रेड यूनियनें भी उतरीं!

झारखंड, बिहार: ज़ोरदार रहा देशव्यापी रेल चक्का जाम


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License