NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड मॉब लिंचिंग मामलाः अलीमुद्दीन को वकीलों ने इस तरह दिलवाया न्याय
'आईपीसी में लिंचिंग की व्याख्या न होने पर न्यायिक प्रक्रिया में परेशानी होती है'
तारिक़ अनवर
29 Mar 2018
lynching

झारखंड में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 16 मार्च को मॉब लिंचिंग मामले में अपना फैसला सुना दिया और 12 आरोपियों में से 11 को अदालत ने दोषी क़रार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। ज्ञात हो कि जून 2017 को रामगढ़ के बाज़ारटांड में स्व-घोषित गौरक्षकों द्वारा मांस के व्यापारी अलीमुद्दीन अंसारी की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। एक आरोपी नाबालिग था जिसके चलते उसका मामला जुवेनाइल बोर्ड को भेज दिया गया।

सुनवाई के दौरान 19 गवाहों से पूछताछ की गई क़रीब 44 सबूतों की जांच की गई।

यह मामला पिछले आठ वर्षों अर्थात 2010 से 2017 के बीच गाय से संबंधित हिंसा की 60 घटनाओं में अलग है। आठ वर्ष की इन घटनाओं में 25 लोग मारे गए। मई 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने बाद इन हमलों के 97% मामले दर्ज किए गए। सभी मामले अदालत में हैं जिसमें अभी पीड़ितों को न्याय मिलने का इंतज़ार है। अलीमुद्दीन का मामला देश में ऐसा पहला मामला है जिसमें आरोपियों को दोषी ठहराया गया है।

इस घटना को मीडिया में जगह मिली। सिर्फ इतना ही नहीं इस घटना को लेकर संसद भी बाधित हुआ। कई विपक्षी नेताओं इस मामले में मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की गंभीरता पर सवाल खड़े किए। चारों तरफ से इस घटना को लेकर निंदा का सामना कर रही राज्य सरकार ने बाद में सभी पुलिस अधिकारियों को चेतावनी दी कि जिनके इलाके में मॉब लिंचिंग की घटना होगी उन्हें ही इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा।

राज्य सरकार ने झारखंड उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह रामगढ़ में हुए मॉब लिंचिंग मामले में सुनवाई के लिए एक फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करे। पुलिस ने सितंबर 2017 में चार्जशीट दायर किया था और इस मामले में अभियोजन पक्ष के क़रीब 19 गवाहों के बयान लिए गए।

अलीमुद्दीन के मामले ने एक उदाहरण पेश किया है जिसे पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए इस तरह के सभी मामलों में अपनाया जा सकता है।

अन्य मामलों में सुनवाई इतनी तेज़ी से क्यों नहीं होती और इस मामले की सुनवाई के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए न्यूज़क्लिक ने वकील राजू हेमब्रम से बात की जो इस मामले में अभियोजन पक्ष की मदद कर रहे थे।

उन्होंने कहा, "सबसे पहली चुनौती नफ़रत वाले ऐसे अपराध के मामलों में यह होती है कि कोई कारणों से अच्छे वकील इस मामले को लेना नहीं चाहते है। इन मामलों में वकील को जान का ख़तरा, मामले की सांप्रदायिक प्रवृत्ति और वकील बिरादरी के बीच न दिखाई देने वाला बहिष्कार होता है। यहां तक कि अगर कोई इसे ले भी लेते हैं तो वे इस पर गंभीरता से काम करना नहीं चाहते हैं।"

उन्होंने कहा, "दूसरी चुनौती यह है कि ऐसे मामलों के गवाह आम तौर पर इस तरह के मामलों में सामने आने से बचते हैं और अगर वे साहस कर के आगे आते हैंं और उनके बयान दर्ज होते हैं तो वे डर और राजनीतिक दबाव के कारण पलट जाते हैं।"

तीसरी चुनौती राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप और जांच में पुलिस की उदासीनता है।

उन्होंने कहा कि जहां तक अलीमुद्दीन का मामला है शुरू में कोई वकील आगे नहीं आया। हेमब्रम ने कहा, "मैंने अपने दम पर इस मामले को लिया और यह फैसला आग से खेलने जैसा था क्योंकि राज्य की स्थिति असामान्य थी जहां अतिवादी तत्वों को संरक्षण प्राप्त था। मैंने एक भी सुनवाई भी नहीं की। मैंने सभी गवाहों से मुलाकात की ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। मैंने इसे मज़बूत मामला बनाने के लिए सबूतों को इकट्ठा किया।"

उन्होंने आगे कहा कि मैंने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी आरोपी को ज़मानत नहीं मिली। उन्होंने कहा कि "हमने ज़मानत याचिका का पूरज़ोर तरीके से विरोध किया और अदालत को यह आश्वस्त करने में हम कामयाब रहे कि अगर आरोपियों को ज़मानत मिल जाती है तो वे गवाहों को प्रभावित करेंगे। यही मेरी पहली सफलता थी।"

उन्होंने यह भी कहा कि जांच एजेंसी ने समय पर जांच पूरी करने में एक अद्भुत काम किया। एजेंसी ने अपराधियों को पकड़ा और सबूत इकट्ठा किया।
लेकिन यह सब कैसे संभव हो पाया? उनका मानना है कि "ऐसा इसलिए हो पाया है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौरक्षकों को क़ानून अपने हाथों में लेने के लेकर सख्त चेतावनी दी थी और गौवंश जो कि हिंदू समाज के लिए पवित्र माना जाता है, इसकी रक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा की निंदा की थी।"

यह पूछने पर कि क्या उन्हें किसी तरह की कोई धमकी दी गई है तो उन्होंने कहा, "सीधे तौर पर नहीं, लेकिन कई लोगों ने मुझे आगे बढ़ने से हतोत्साहित किया था। लेकिन मैंने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया और न्याय के लिए लड़ाई की।"

यह पूछे जाने पर कि क्यों ऐसे अन्य मामले अदालत में लंबित हैं और निकट भविष्य में इस तरह के त्वरित फैसले की संभावना नहीं है तो हेमब्रम ने कहा कि"ऐसा पुलिस और अभियोजन पक्ष के सुस्त रवैये के कारण है।"

उन्होंने आगे कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) लिंचिंग को लेकर दंड का उल्लेख नहीं है। ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए कोई विशेष कानून नहीं बनाया गया है। भीड़ की हिंसा या हत्या जैसी घटनाओं से निपटने के लिए संहिताबद्ध कानून की अनुपस्थिति है जिसके चलते सांप्रदायिक दंगों और गाय के नाम पर हमले के मामलों में न्याय देना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि "हालांकि (सीआरपीसी), 1973 की धारा 223 (ए) के अनुसार कोई व्यक्ति या भीड़ किसी एक जैसे अपराध में शामिल पाया जाता है तो इसकी सुनावाई एक साथ की जा सकती है। लेकिन यह न्यायिक प्रणाली को पर्याप्त क़ानूनी अधिकार देने जैसा साबित नहीं हुआ है।"

झारखंड की इस अदालत ने अलीमुद्दीन मामले में बीजेपी के एक नेता सहित सभी 11 अभियुक्तों को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत दोषी ठहराया। इनमें से तीन को भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी ठहराया गया जिसका ज़ाहिर तौर पर मतलब है कि हमला पूर्व योजनाबद्ध था।

झारखण्ड
झारखण्ड लिंचिंग
गौ रक्षक
बीजेपी
RSS

Related Stories

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !

कांग्रेस का संकट लोगों से जुड़ाव का नुक़सान भर नहीं, संगठनात्मक भी है

कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...

पीएम मोदी को नेहरू से इतनी दिक़्क़त क्यों है?

कर्नाटक: स्कूली किताबों में जोड़ा गया हेडगेवार का भाषण, भाजपा पर लगा शिक्षा के भगवाकरण का आरोप

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद : सुप्रीम कोर्ट ने कथित शिवलिंग के क्षेत्र को सुरक्षित रखने को कहा, नई याचिकाओं से गहराया विवाद


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License