NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
राजनीति
झारखंड रिपोर्ट : ‘संविधान बचाओ’ नारे के साथ मनाया गया सरहुल
सरहुल परब (पर्व) आदिवासियों की राजनीतिक दावेदारी के सामाजिक उद्घोष का प्रतीक अवसर होता है।
अनिल अंशुमन
10 Apr 2019
सरहुल परब के अवसर पर निकाली गई यात्रा
तस्वीर : सोशल मीडिया से साभार

हमारे बहुरंगी संस्कृतियों वाले देश में प्रायः हर प्रदेश व समुदायों की अपनी सांस्कृतिक पहचान उनके लोक त्योहारों से ही होती है। झारखंड प्रदेश में सरहुल परब को झारखंडी अस्मिता का प्रतीक देशज त्योहार माना जाता है। हर वर्ष वसंत ऋतु के आगमन पश्चात मनाये जानेवाले प्रकृति आधारित इस त्योहार को राज्य के सबसे लोकप्रिय महापरब के रूप में मनाया जाता है। पूरे प्रदेश के सभी मूल निवासियों और विशेषकर समस्त आदिवासी समुदाय के लोग बड़े ही उत्साह-उमंग के साथ इसे मनाते हुए अपनी संस्कृति, अस्मिता व परंपरा की रक्षा का संकल्प लेते हैं। इस अवसर पर पूरे प्रदेश के साथ साथ राजधानी रांची में निकाली जाने वाली भव्य शोभा–यात्रा का अपना विशेष महत्व होता है। जिसमें शामिल होने वाले और इसे देखने वालों की तादाद हजारों हज़ार की होती है। यह प्रदेश का एकमात्र ऐसा राजकीय त्योहार है जिसमें आदिवासी समाज की देशज अस्मिता राजनीति का विविध रंगी स्वरूप मुखरित होता है, जो इसबार कुछ नए अंदाज़ में अभिव्यक्त हुआ।

sarhul3.jpg

8 अप्रैल को मनाए गए इस त्योहार का संभवतः संयोग ही था कि इसबार ‘सरहुल महापरब’ ठीक उसी समय आया जब समूचे देश और इस प्रदेश में भी ‘लोकतंत्र का महापर्व’ छाया है। जिससे इस बार यह परब आदिवासी समुदाय और विशेषकर इनके युवाओं में वर्तमान के केंद्र व राज्य शासन में काबिज राजनीतिक पार्टी के खिलाफ घुमड़ रहे विक्षोभ की अभिव्यक्ति का भी माध्यम बन गया। जो ‘आदर्श आचार संहिता’ लागू रहने के बावजूद सरहुल की शोभा-यात्रा की आकर्षक झांकियों में स्पष्ट रूप से दिखा। इनमें - संविधान बचाओ! के नारे से लेकर आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर हो रहे हमलों को चित्रित किया गया था– इतने कानून के रहते सरकार उदासीन क्यों? इसके अलावा ‘वनाधिकार कानून’ लागू करने जैसे कई ज्वलंत मुद्दों समेत आदिवासियों के जंगल-ज़मीन की संस्थाबद्ध स्थितियों को प्रदर्शित किया गया।

sarhul2.jpg

सरहुल परब आदिवासियों की राजनीतिक दावेदारी के सामाजिक उद्घोष का प्रतीक अवसर होता है। जिसके माध्यम से वे अपने आदि–पुरखों की सामाजिक–सांस्कृतिक के साथ साथ प्रकृति व जंगल–ज़मीन की संरक्षा परंपरा के बनाए रखने की संकल्पना प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए इस महापर्व में प्रकृति ही इनकी ‘केंद्रीय अराध्य’ होती है। जिसमें जंगल से लाये गए सरजोम (सखुवा/साल) वृक्ष के नए पुष्पगुच्छों व कोंपलों और प्रकृति के आदिजीव प्रतीक ‘केंकड़ा व मछली’ से परब का विधि-विधान सम्पन्न किया जाता है। ततपश्चात समुदाय के सभी लोग एक-दूसरे के कानों में सखुवा के नए फूलों को खोंसकर आनेवाले समय की मंगल शुभकामना देते हैं। नगाड़ा–माँदर के जोशीले तालों पर समूहबद्ध होकर नाचते–गाते हुए भव्य शोभा–यात्रा में शामिल होकर व्यापक सामाजिक एकजुटता का भी इजहार करते हैं। इस बार भी राज्य के सभी आदिवासी इलाकों और राजधानी रांची में हजारों हज़ार आदिवासी अपने पूरे परिवार व समुदाय के साथ पारंपरिक परिधानों में सजधजकर नगाड़ा- ढोल– माँदर के जोशभरे तालों पर नाचते–गाते हुए राजपथ पर उतरे। चकित करनेवाला है कि इतनी विशाल शोभा यात्रा के दौरान जब सभी ‘सरना समितियों’ की रंगबिरंगी झांकियां व गीत-नृत्य की बड़ी बड़ी टोलियों और सैकड़ों की तादाद में समुदाय के लोगों के एकसाथ सड़कों पर उतरने के बावजूद पूरा माहौल आत्म अनुशासित और सद्भावपूर्ण होता है। जिसे देखने और इसमें शामिल होने में कोई रोक–टोक नहीं रहती है। हजारों हज़ार लोगों की भागीदारी में देर रात तक चले इस महापर्व की शोभायात्रा कार्यक्रम में कहीं भी कोई तनाव या आपाधापी का माहौल नहीं होता है। जबकि इसी राजधानी में जब भी सभ्य कहे जाने वाले समाजों के रामनवमी व मुहर्रम जैसे बड़े जुलूसों में पूरा इलाका पुलिस छावनी में तब्दील हो जाता है। वहीं, इसबार भी सरहुल में पुलिस–प्रशासन की भूमिका सिर्फ निगरानी मात्र की रही।

सरहुल परब को झारखंड के आदिवासी अपने ‘नए साल’ के रूप में भी मनाते हैं। इस दिन आदिवासी ‘पाहन’ (पर्व के विधि विधान का संचालक) कृषिकर्म और उससे जुड़े सारे आर्थिक कार्य–व्यापार के आनेवाले मौसम की भविष्यवाणी करते हैं। ऐसे में जब चुनाव का विशेष वातावरण उपस्थित हो और शासन–सत्ता की गलत नीतियों से समस्त आदिवासी समाज संकटपूर्ण स्थितियों में घिरकर अपने जंगल–ज़मीन व प्राकृतिक–खनिज संसाधनों के परंपरागत अधिकारों से वंचित किया जा रहा हो... तो इसके भी प्रतीकार की भविष्यवाणियाँ होंगी ही। सनद रहे कि देश व प्रदेश के वार्तमान शासक दल आदिवासी समाज से काफी अलगाव में पड़कर उनके जबर्दस्त विरोध आंदोलनों का निशाना बना हुआ है। हाल के दिनों में अपने संवैधानिक प्रावधानों के तहत “पत्थलगड़ी अभियान” चलानेवालों पर राज्य-दमन चलाकर पूरे ग्रामीण इलाके को पुलिस छवानी में तब्दील करने, अभियान से जुड़े दर्जनों गावों के सैकड़ों निर्दोष आदिवासियों को देशविरोधी घोषित कर उनपर ‘राजद्रोह’ जैसे संगीन आरोप मढ़ देने, गोड्डा व अन्य कई स्थानों पर अडानी जैसी निजी कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए ‘लाठी–गोली’ से जबरन ज़मीन अधिग्रहण किए जाने और सीएनटी/एसपीटी एक्टों में संशोधन कर संविधान की पाँचवी अनुसूची का खुला उल्लंघन किए जाने जैसे अनगिनत ज्वलंत सवालों पर आदिवासी आक्रोशित हैं। हाल ही में जब सरकार की साजिशपूर्ण भूमिका के कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदिवासियों को उनकी परंपरागत वन-भूमि से बेदखल करने का फरमान दिया गया तो आदिवासियों की विरोध ज्वाला और भी भड़क उठी है। इसी तरह से चुनाव पूर्व सरकार द्वारा वन विभाग की ओर से जारी नए अध्यादेशी प्रस्ताव में जो जंगल क्षेत्र के आदिवासियों के तीर–धनुष पर प्रतिबंध लगाने तथा वन अधिकारियों के दमन व मनमानी पर सरकार की अनुमति से ही कोई कार्रवाई करने के फैसले के खिलाफ बढ़ता आक्रोश... निस्संदेह चुनाव में निर्णायक बनेगा। इन्हीं संदर्भों में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सरहुल इस बार, चुनावी मौसम में बहा गया आदिवासी मुद्दों की बयार!

sarhul
Jharkhand
tribal communities
save constitution
2019 आम चुनाव
General elections2019

Related Stories

झारखंड : ‘भाषाई अतिक्रमण’ के खिलाफ सड़कों पर उतरा जनसैलाब, मगही-भोजपुरी-अंगिका को स्थानीय भाषा का दर्जा देने का किया विरोध

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा वर्ष: हर दो हफ़्ते में एक भाषा पृथ्वी से हो रही है लुप्त

झारखंड : अपने देस में ही परदेसी बन गईं झारखंडी भाषाएं


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप
    21 May 2022
    पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद और उनके परिवार के दर्जन भर से अधिक ठिकानों पर सीबीआई छापेमारी का राजनीतिक निहितार्थ क्य है? दिल्ली के दो लोगों ने अपनी धार्मिक भावना को ठेस लगने की शिकायत की और दिल्ली…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    ज्ञानवापी पर फेसबुक पर टिप्पणी के मामले में डीयू के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को ज़मानत मिली
    21 May 2022
    अदालत ने लाल को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही जमानत राशि जमा करने पर राहत दी।
  • सोनिया यादव
    यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?
    21 May 2022
    प्रदेश के उप मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक खुद औचक निरीक्षण कर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। हाल ही में मंत्री जी एक सरकारी दवा गोदाम पहुंचें, जहां उन्होंने 16.40 करोड़…
  • असद रिज़वी
    उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव का समीकरण
    21 May 2022
    भारत निर्वाचन आयोग राज्यसभा सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा  करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश समेत 15 राज्यों की 57 राज्यसभा सीटों के लिए 10 जून को मतदान होना है। मतदान 10 जून को…
  • सुभाष गाताडे
    अलविदा शहीद ए आज़म भगतसिंह! स्वागत डॉ हेडगेवार !
    21 May 2022
    ‘धार्मिक अंधविश्वास और कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं। वे हमारे रास्ते के रोड़े साबित हुए हैं। और उनसे हमें हर हाल में छुटकारा पा लेना चाहिए। जो चीज़ आजाद विचारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License