NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड : ये कैसे रोजगार के मौके हज़ार, सस्ता मजदूर सप्लायर बनी सरकार!
“रोजगार के मौके हज़ार, ये है... रघुवर सरकार” की बहुप्रचारित ग्लोबल स्किल समिट–2019 के आयोजन ने ‘दर्द इतना बढ़ाओ कि दर्द ही दवा हो जाए’ को चरितार्थ किया है।
अनिल अंशुमन
15 Jan 2019
global skill summit 2019
झारखंड में ग्लोबल स्किल समिट–2019 का दृश्य। फोटो साभार

झारखंड इन दिनों मानव–तस्करी का एक संगठित हब बनता जा रहा है। जहां के ग्रामीण गरीबों के नाबालिग बच्चे – बच्चियों से लेकर हर उम्र की महिला-पुरुषों को बाहर काम दिलाने के नाम पर धड़ल्ले से बेच दिया जाता है। तथाकथित प्लेसमेंट कंपनियों के बिचौलिये–दलाल राज्य में पसरी भूख, गरीबी और बेकारी से त्रस्त इन गरीबों की मजबूरी का फायदा बड़ी आसानी से उठा लेते हैं। अच्छा काम और पगार मिलने के झांसे में फंसाए गए ये कामगार महानगरों के लिए सहज सस्ता मजदूर बनने को अभिशप्त कर दिये जाते हैं। अनेकानेक यातनाओं के शिकार बनते रहते हैं। ये कोई खबर मात्र नहीं है बल्कि वर्तमान विकास की एक कड़वी सच्चाई है, जिसकी पुष्टि स्थानीय अखबारों में आए दिन प्रकाशित समाचारों से कभी भी की जा सकती है। संभवतः प्रदेश की सरकार और उसके लोग इसे ख़ारिज कर निंदा–भर्तस्ना कर सकते हैं। लेकिन आज हर झारखंडी की ये गहरी पीड़ा है कि अलग राज्य बनने के बावजूद उन्हें अपने ही राज्य में सम्मानजनक रोजगार का उचित अवसर नहीं मिल रहा है। सरकार की गलत स्थानीयता नीति के कारण प्रायः सभी सरकारी नौकरियों में दूसरे राज्यों के लोग ही भरते जा रहें हैं। अपने राज्य में रोज़ी–रोटी के गहराते संकट से हर दिन बाहर पलायन के लिए विवश हो गए हैं।

ऐसे में 10 जनवरी को “रोजगार के मौके हज़ार, ये है... रघुवर सरकार” की बहुप्रचारित ग्लोबल स्किल समिट–2019 के आयोजन ने ‘दर्द इतना बढ़ाओ कि दर्द ही दवा हो जाए’ को चरितार्थ किया है। ‘झारखंड फिर रच रहा है ... इतिहास’  के विज्ञापनी प्रचार में एक लाख से भी अधिक युवाओं को रोज़गार देने के कीर्तिमान रचने का ढिंढोरा पीटा गया। मानो सरकार ने राज्य की हज़ारों रिक्त पड़ी सरकारी नौकरियों में यहाँ के लोगों का समायोजन कर लिया है। लेकिन हक़ीक़त में राज्य की सरकार ने वही काम किया है जो अबतक तथाकथित प्लेसमेंट एजेंसियां और दलाल–बिचौलिये करते हैं। तथाकथित कौशल विकास मिशन योजना में चंद दिनी प्रशिक्षण प्राप्त युवाओं के रोजगार भविष्य के नाम पर उनकी चुनी हुई सरकार ने ही उनके भविष्य की चाबी निजी देसी–विदेशी कंपनियों के हाथों में सौंप दी है।  

झारखंड के युवाओं को आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने के नाम पर ग्लोबल स्किल समिट के आयोजन में एकबार फिर राज्य का खजाना लुटया गया। इसमें 17 देशों के राजदूत, उच्चायुक्त व काउंसलरों के अलावे कई देशी–विदशी निजी कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। स्किल विकसित करने के नाम पर राज्य सरकार ने 8 निजी कंपनियों से एमओयू भी किए। दुबई में जाकर चंद महीने ड्राइवरी करने से लेकर निजी कंपनियों में कई असंगठित दर्जे का रोज़गार पाने वाले अधिकांश युवाओं का वेतन मात्र दस से बीस हज़ार ही होगा। लेकिन प्रचारित किया गया कि लाखों का सालाना पैकेज मिलेगा। ये रोजगार और वेतन भी कितना स्थायी और सम्मानजनक होगा इसकी कोई गारंटी नहीं की गयी। आशंकावश राज्यपाल महोदया को निजी कंपनियों से सम्मानजनक वेतन देने का अनुरोध करना पड़ा ताकि कम वेतन से इन युवाओं को तीन–चार माह में ही नौकरी न छोड़नी पड़े। क्योंकि इनके परिजन अपने बच्चों को लोन लेकर पढ़ाते हैं और बेंगलुरु, मुंबई, चेन्नई जैसे महानगरों और विदेशों की निजी कंपनियाँ कैंपस सलेक्शन से नौकरी तो देतीं हैं। लेकिन कम वेतन मिलने के कारण वे वापस लौटने को मजबूर हो जाते हैं। इस ग्लोबल समिट में फिल्मी एक्टरों और पूर्व क्रिकेटरों का तड़का भी दिया गया। हमेशा की भांति मुख्यमंत्री ने विपक्षी दलों को कोसते हुए कहा कि सबों ने युवाओं का इस्तेमाल सिर्फ पार्टी का झंडा ढोने के लिए किया है। पहलीबार उनकी पार्टी के प्रधानमंत्री ने युवाओं को हुनरमंद बनाकर रोज़गार देने का इतिहास रचा है।

व्यापक झारखंड वासियों का लगातार ये सवाल बना हुआ है कि जब इस राज्य में कृषि और वन आधारित रोजगार के अवसर विकसित करने की अपार संभावनाएं और विभिन्न सरकारी विभागों में हज़ारों रिक्तियाँ पड़ी हुई हैं, यहाँ के युवाओं का उसमें समायोजन क्यों नहीं हो रहा? सनद हो कि देश के हर राज्य की अपनी विशेष नियोजन नीति है जिससे वहां के रोजगार में स्थानीय युवाओं को अधिक प्राथमिकता दी जा रही है। लेकिन झारखंड ऐसा ही इकलौता प्रदेश है जिसे चौराहा बना दिया गया है। राज्य की गलत नियोजन नीति होने के कारण प्रदेश की सभी नौकरियों में दूसरे प्रदेशों के ही युवाओं की भरमार है। निरंतर जारी इस अन्याय के खिलाफ बढ़ता विक्षोभ जो आज अंदर ही अंदर सुलग रहा है, कहा नहीं जा सकता है कि कब और किस रूप में फूट पड़ेगा। फिर भी इस संवेदनशील सवाल को ठंडे बस्ते में डालकर वर्तमान सरकार द्वारा युवाओं को रोज़गार देने न के नाम पर झांसा ही दिया जा रहा है। जैसे जनधन योजना को विश्व की सबसे बड़ी योजना दिखाकर गिनीज़ बुक में दर्ज़ कराया गया और फिर उसे बंद कर दिया गया। हद तो आयोजन के मुख्य अतिथि केंदीय कौशल विकास मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने यह कहकर कर दी कि “जो लोग पूछते हैं कि नौकरी कहाँ है, झारखंड आकर देखे। यहाँ सरकार और उद्योग जगत के प्रयास से एक लाख से अधिक को रोज़गार देने का इतिहास रचा गया है।”

सरकार जब भी युवाओं को रोज़गार देने की घोषणा करती है तो अमूमन यही समझा जाता है कि सबको सरकारी नौकरी मिलेगी। लेकिन इसे करने की बजाय जब सरकार की भूमिका निजी कंपनियों में रोज़गार दिलाने वाली एक प्लेसमेंट एजेंसी जैसी हो जाये तो बाकी क्या कहा जायगा? क्या प्रचंड जनादेश और स्थिर सरकार का नारा ‘सबका साथ और निजी कंपनियों का विकास’ का राष्ट्रधर्म निभाने के लिए ही है?

Employment
unemployment
Jharkhand government
Global Skill Summit
BJP Govt
Raghubar Das

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

ज्ञानव्यापी- क़ुतुब में उलझा भारत कब राह पर आएगा ?

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी


बाकी खबरें

  • भाषा
    बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की
    28 May 2022
    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में भारत में 59,262 बच्चे लापता हुए थे, जबकि पिछले वर्षों में खोए 48,972 बच्चों का पता नहीं लगाया जा सका था, जिससे देश…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: मैंने कोई (ऐसा) काम नहीं किया जिससे...
    28 May 2022
    नोटबंदी, जीएसटी, कोविड, लॉकडाउन से लेकर अब तक महंगाई, बेरोज़गारी, सांप्रदायिकता की मार झेल रहे देश के प्रधानमंत्री का दावा है कि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे सिर झुक जाए...तो इसे ऐसा पढ़ा…
  • सौरभ कुमार
    छत्तीसगढ़ के ज़िला अस्पताल में बेड, स्टाफ और पीने के पानी तक की किल्लत
    28 May 2022
    कांकेर अस्पताल का ओपीडी भारी तादाद में आने वाले मरीजों को संभालने में असमर्थ है, उनमें से अनेक तो बरामदे-गलियारों में ही लेट कर इलाज कराने पर मजबूर होना पड़ता है।
  • सतीश भारतीय
    कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  
    28 May 2022
    मध्यप्रदेश में मजदूर वर्ग का "तेंदूपत्ता" एक मौसमी रोजगार है। जिसमें मजदूर दिन-रात कड़ी मेहनत करके दो वक्त पेट तो भर सकते हैं लेकिन मुनाफ़ा नहीं कमा सकते। क्योंकि सरकार की जिन तेंदुपत्ता रोजगार संबंधी…
  • अजय कुमार, रवि कौशल
    'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग
    28 May 2022
    नई शिक्षा नीति के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन करने की रणनीति पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सैकड़ों विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने 27 मई को बैठक की।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License