NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
झारखंड चुनाव : दूसरे चरण के मतदान में निर्णायक रहेंगे आदिवासियों के सवाल
आदिवासियों मन ये डर बैठा हुआ है कि यह सरकार निजी–कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए पुलिस के बल पर उनकी ज़मीनें छीन लेगी।
अनिल अंशुमन
05 Dec 2019
jharkhand election

झारखंड विधान सभा चुनाव के दूसरे चरण में 7 दिसंबर को होने वाले मतदान का चुनाव प्रचार 5 दिसम्बर को समाप्त हो जाएगा। इस चरण के लिए भी सभी दलों व प्रत्याशियों ने अपनी पूरी ताक़त झोंक रखी है। इस चरण की 20 विधान सभा सीटों में अधिकांश कोल्हान क्षेत्र के आदिवासी बाहुल्य इलाक़ों से हैं। कुल 260 प्रत्याशियों में से 67 दाग़ी और कई करोड़पति हैं। जिनमें सत्ताधारी भाजपा के 20 उम्मीदवारों में 8 पर संगीन मुक़दमे हैं तथा 10 के करोड़पति होने की सूचना है। जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के 14 में 7 पर आपराधिक मुक़दमे हैं व 7 करोड़पति हैं तथा कांग्रेस के 6 में से 4 उम्मीदवारों पर मुक़दमे हैं व 2 करोड़पति हैं।

दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के दौरान पहली बार खूंटी पहुंचे प्रधानमंत्री जी का भाषण सुनने पहुंचे झारखंड मज़दूर किसान समिति के आदिवासी सामाजिक कार्यकर्त्ता गौतम सिंह मुंडा ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "मोदी जी मंच से जितना भी चीख़ चीख़ कर कहें कि उनकी पार्टी का आदिवासियों के हितों की रक्षा का ट्रैक रिकार्ड रहा है; इस क्षेत्र के व्यापक आदिवासी इसे कभी नहीं मानेंगे। क्योंकि ज़मीनी सच्चाई ये है कि सिर्फ़ संविधान की पाँचवी अनुसूची के प्रावधानों के तहत जब हमने अपने आदिवासी गांवों में पत्थलगड़ी की तो उन्हीं की पार्टी की सरकार ने हज़ारों भोले-भाले आदिवासियों पर देशद्रोह का झूठा मुक़दमा थोपकर देश विरोधी होने का ऐसा कलंक लगा दिया है जिसे हम न तो कभी भूल सकते हैं और न कभी माफ़ करेंगे।

चुनाव 2.PNG

संविधान से लेकर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों को धता बताकर वर्तमान सरकार वैध–अवैध खनन करवाकर पूरे इलाक़े के प्राकृतिक–खनिज संसाधनों के दोहन पर आमादा है। विरोध करने वाले आदिवासियों को विकास विरोधी क़रार देकर दमन का निशाना बनाए हुए है। माओवाद–नक्सलवाद सफाया के नाम पर पूरे आदिवासी इलाक़ों में हर पाँच किलोमीटर पर सीआरपीएफ़ कैंप बिठाकर कर लोगों को डराना–धमकाना आम घटना हो गयी है। किसी भी समय पुलिस-सीआरपीएफ़ के जवान तलाशी के नाम पर गावों में घुसकर निरीह लोगों को आतंकित–प्रताड़ित कर रहें हैं। वर्तमान मोदी–रघुवर शासन से झारखंड का हर आदिवासी अपनी ज़मीनें छीने जाने के डर से भयग्रस्त होकर जी रहा है। सरना–ईसाई विवाद का ज़हर फैलाकर हमारे वर्षों के साझापन को नष्ट–भ्रष्ट किया जा रहा है। इसलिए मंच से आदिवासी हितों की रक्षा के लिए जितनी भी चिकनी चुपड़ी बातें कहीं जाएँ, आदिवासी उसके झांसे में नहीं आने वाले।"

मोदी जी के इसी कार्यक्रम को देखने सुनने आई पूर्व मुखिया लखिमुनी मुंडा ने सभा में आई भीड़ के बारे में साफ़ कहा कि यह भीड़ आयी नहीं बल्कि डरा–धमकाकर और प्रलोभन देकर लायी गयी है। जिन्हें गावों में सक्रिय सरकारी विकास योजनाओं की लेनदेन करने वाले बिचौलिये व तथाकथित कार्यकर्त्ताओं ने सभा में नहीं जाने पर सरकारी पैसा–आवास-राशन नहीं मिलने की धमकी दी है। यह सारा खेल खेलनेवाली वही ताक़तें हैं जिनके पूर्वजों के ख़िलाफ़ कभी बिरसा मुंडा ने सूदखोर–महाजन कहकर संघर्ष किया था।

जमशेदपुर में हुई प्रधानमंत्री की सभा को लेकर भी चर्चा है कि पूर्व भाजपा के कद्दावर नेता सरयू राय की दमदार सक्रियता से ख़ुद सीएम घबराए हुए हैं। पार्टी के अंदर के विरोधी खेमा को कंट्रोल करने व जनाधार के वोटरों को सहेजने के लिए ही विशेष तौर से प्रधानमंत्री जी को बुलाया गया। चर्चा यह भी वायरल है कि जमशेदपुर और खूंटी की सभाओं से मुख्यमंत्री जी को इसीलिए हटाए रखा गया कि व्यापक आदिवासी उनसे खार खाये हुए हैं। वहीं, इनके गठबंधन के प्रमुख घटक दल आजसू सुप्रीमो ने तो मीडिया के द्वारा यहाँ तक कह दिया है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष को बचाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को बचाने के लिए प्रधानमंत्री तक को आना पड़ गया।

लखिमुनी और गौतम मुंडा समेत व्यापक आदिवायों का वर्तमान भाजपा सरकार से अपनी ज़मीनें छिने जाने का डर कहीं से भी काल्पनिक नहीं कहा जा सकता है। सबके मन ये डर बैठा हुआ है कि यह सरकार निजी–कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए पुलिस के बल पर उनकी ज़मीनें छीन लेगी। यही वजह है कि पिछले दिनों आदिवासियों के जंगल–ज़मीन के अधिकारों की विशेष संरक्षा के लिए अतीत में किए गए बहादुराना विद्रोहों से हासिल छोटानागपुर टेनेन्सी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना एक्ट (एसपीटी) में संशोधन कर उसे कमज़ोर किए जाने की ख़िलाफ़ महीनों विरोध आंदोलन सड़कों पर हुए।

जिसमें खूंटी के साइको में हुए पुलिस गोली कांड में एक आदिवासी को तो अपनी जान से ही हाथ धोना पड़ गया था। अंततोगत्वा सरकार को यह संशोधन वापस लेना पड़ा था। आदिवासियों के प्रचंड विरोध को देखकर ही केंद्र की वर्तमान सरकार को प्रस्तावित वन विधेयक को भी झारखंड चुनाव से पूर्व वापस लेने कि घोषणा करनी पड़ी। खूंटी की जिस सभा में मोदी जी ने जिन पूर्व राज्यसभा उपसभापति व सांसद कड़िया मुंडा की अंगुली पकड़कर संगठन शास्त्र सीखने को अपना सौभाग्य बताया। आज उनका बेटा भाजपा को आदिवासी विरोधी कहकर झारखंड मुक्ति मोर्चा शामिल हो चुका है।

मीडिया में एक ग़ौरतलब ख़बर यह भी आयी है कि कई विदेशी दूतावासों की विशेष नज़र झारखंड चुनाव पर लगी हुई है। क्योंकि राज्य में विकास के नाम पर सड़क निर्माण और स्टील के साथ-साथ कई खनन क्षेत्रों में अमेरिका, जापान, चीन और इंडोनेशिया इत्यादि कई देशों की कंपनियाँ इन इलाक़ों में सक्रिय हैं। इन दूतावासों की नज़र सीएनटी–एसपीटी को भी लेकर लगी हुई है। विख्यात सारंडा जंगल क्षेत्र इसी चरण के चुनाव में शामिल है।

patthalgadi 3.PNG

उक्त संदर्भों के अलावा झारखंड प्रदेश की राजनीति में कोल्हान क्षेत्र की हमेशा से एक निर्णायक भूमिका रही है। सनद यह भी रहे कि झारखंड में भूख से हुई मौत की सबसे पहली घटना इसी क्षेत्र में हुई थी जो राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी थी। विगत सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के समय इस क्षेत्र में भाजपा को विपक्ष के रूप में यहाँ के आदिवासियों से कड़ी टक्कर मिली थी। जिसमें चाईबासा सीट पर तो भारी मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा और खूंटी सीट पर मिली जीत का अंतर काफ़ी कम रहा। इस लिहाज़ से यह देखने की बात है कि अबकी बार यहाँ के आदिवासी समाज का वोट क्या जनादेश देता है।

Jharkhand Elections 2019
second phase elections
aadiwasi
Private corporate
Narendra Modi Rally in Jharkhand
BJP
Gautam Singh Munda
SC/ST

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License