NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
झारखंड : मुआवज़े की मांग कर रहे किसानों पर एनटीपीसी ने किया लाठीचार्ज
अपने खेतों के बदले उचित मुआवज़े की मांग कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों पर हुए लाठीचार्ज से किसान आक्रोशित हो गए और जवाब में अधिकारियों पर पथराव किया।
अनिल अंशुमन
10 Mar 2022
झारखंड : मुआवज़े की मांग कर रहे किसानों पर एनटीपीसी ने किया लाठीचार्ज

देश में बड़े बड़े उद्योग और परियोजनाओं के धनी झारखण्ड प्रदेश में विकास की चकाचौंध को तो खूब दिखाया-बताया जाता है लेकिन जिनकी ज़मीनों पर विकास की चकाचौंध का विशाल साम्रज्य खड़ा होता है उन आदिवासी-मूलवासी रैयत किसानों व ग्रामीणों की चर्चा भी बेमानी रहती है। विकास के नाम पर उद्योग, खनन और पावर परियोजनायें स्थापित करने का राजनितिक श्रेय लेने की होड़ में कोई भी सरकार, राजनितिक दल अथवा नेता पीछे नहीं रहता है।

लेकिन इन परियोजनाओं में जिन रैयतों की ज़मीनें जैसे तैसे / औने पौने ले ली जाती हैं और जो हमेशा के लिए विस्थापन का शिकार होकर अपनी ज़मीनों से उजाड़ दिए जाते हैं, उन आदिवासी-मूलवासी रैयत किसानों की जायज़ मांगों को लेकर किसी को चिंता नहीं रहती है। जिसका परिणाम होता है कि वर्षों तक परियोजना प्रबंधक और ज़मीन दाता रैयत किसानों के बीच तनाव कायम रहता है। जो कई बार हिंसक टकराव का रूप ले लिया करता है। जिसमें सबसे बड़ी विडंबना है कि अक्सर इन परियोजनाओं के प्रबंधक पुलिस का सहारा लेकर रैयत किसानों के साथ सिर्फ लाठी-गोली की भाषा में ही बात कर किसानों को ही ‘विकास विरोधी’ करार देते हैं।

झारखण्ड के हजारीबाग-चतरा जिलों के बड़कागाँव-टंडवा क्षेत्र में प्रस्तावित एनटीपीसी प्लांट परियोजना और स्थानीय रैयत किसानों का वर्षों से जारी विवाद प्रकरण को इसी के ताज़ा उदहारण के तौर पर देखा जा सकता है। जहाँ इस पावर परियोजना के लिए कभी कोयला खनन मामले को लेकर विस्थापित किसानों का विरोध आन्दोलन परियोजना-प्रबंधकों और प्रशासन के साथ टकराव का रूप ले लेता तो कभी प्लांट परिसर हेतु ली गयी ज़मीन मामले को लेकर।

 

झारखण्ड विधान सभा में  2022 के जारी बजट सत्र 7 मार्च को उस समय सरगर्म हो उठा जब दोपहर के भोजन के उपरांत सदन राज्य में कृषि क्षेत्र की स्थितियों पर चर्चा होनी थी। भाकपा माले विधायक विनोद सिंह ने काफी क्षोभ भरे शब्दों में सदन के माननीय सदस्यों तथा विधान सभा अध्यक्ष को टंडवा में ज़मीन अधिग्रहण का समुचित मुआवज़ा मांग रहे रैयत किसानों पर एनटीपीसी प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन द्वारा पुलिस द्वारा लाठी चार्ज-अश्रु गैस चलवाये जाने की सूचना दी।                                                                                                              

सदन को बताते हुए कहा कि- “दुखद है कि आज इस समय सदन में राज्य की कृषि पर चर्चा हो रही है और यहाँ से महज 70 किलोमीटर की दूरी पर टंडवा के रैयत किसानों पर एनटीपीसी द्वारा पुलिस से लाठियां चलवाई जा रही है। जो विगत 14 महीनों से अपनी तीन सूत्री मांगों को लेकर टंडवा स्थित एनटीपीसी के थर्मल पावर परिसर के गेट के समीप शांतिपूर्ण धरना दे रहें हैं। एसडीओ के नेतृत्व में पुलिस ने धरना पर बैठी महिलाओं समेत कई किसानों पर बुरी तरह से लाठियां भांजकर जब कुछ आन्दोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया तो धरना पर बैठे व आस पास से पहुंचे सभी लोग आक्रोशित होकर प्रतिकार करने लगे। तो जवाब में एसडीओ के आदेश पर पुलिस ने अश्रु गैस के गोले दागते हुए हवाई फायरिंग भी की। लाठी चार्ज में बुरी तरह से घायल तीन महिलाओं तो जानवरों की तरह पुलिस गाड़ी में ठूँसकर इलाज के लिए ले जाया गया। धरना पर शांतिपूर्वक बैठे कई किसानों को मार पीट कर गिरफ्तार कर लिया गया है। इतना ही नहीं आनन् फानन में किसानों के धरना स्थल पर बुलडोज़र चलवाकर सबकुछ तहस नहस कर दिया गया है। अतः सदन और सरकार से अनुरोध है कि वह तत्काल हस्तक्षेप करते हुए एनटीपीसी प्रबंधन और  एसडीओ को आदेश दे कि वे किसानों का दमन बंद करे।”

इस पर सदन में काफी हो हल्ला होने लगा और विपक्षी विधायकों समेत सत्ता पक्ष के भी कई विधायकों ने टंडवा में किसानों पर पुलिस दमन की कड़ी निंदा करते हुए सरकार से अविलम्ब कारवाई करने की मांग करने लगे। जवाब में सरकार की ओर से सदन को आश्वस्त किया गया कि- 24 घंटे के अन्दर मामले की त्वरित जांच कर उचित कारवाई की जायेगी। 

सनद हो कि विगत 14 महीनों से एनटीपीसी के टंडवा थर्मल पावर प्लांट मुख्यालय परिसर निर्माण के लिए अधिगृहित की गयी ज़मीनों का सही मुआवज़ा समेत कई अन्य मांगों को लेकर 6 गांवों के स्थानीय रैयत किसान अनिश्चितकालीन धरना दे रहें हैं। जिन्हें लेकर एनटीपीसी प्रबंधन के अड़ियल रवैये से क्षुब्ध होकर आन्दोलनकारी किसानों ने 23 फरवरी से पवार प्लांट परिसर के मुख्य द्वार जाम कर प्लांट के अन्दर का कामकाज बाधित कर दिया। 7 मार्च को २ बजे दिन जब केमिकल से भरा एक टैंकर प्लांट के अन्दर ले जाने की कोशिश की गयी तो धरना दे रहे किसानों ने टैंकर को अन्दर जाने से रोक दिया। प्लांट प्रबंधन के आदेश से वहाँ पहुंचे सीआईएसएफ़ के रायफलधारी जवानों और स्थानीय एसडीओ व थाना प्रभारी के नेतृत्व में भारी संख्या में पहुंचे पुलिस बल से आन्दोलनकारी किसानों की बकझक होने पर कुछ लोगों को हिरासत में ले लिया गया। जिससे स्थिति काफी तनावपूर्ण होने लगी और किसानों की गिरफ्तारी की खबर सुनकर आस पास के ग्रामीण भी वहाँ जुटने लगे। बातचीत का कोई रास्ता निकालने की बजाय पुलिस लाठी चार्ज कर दिया गया। एसडीओ व थाना प्रभारी खुद डंडे लेकर धरना दे रहे निहत्थे किसानों पर पिल पड़े। जिससे वहां भगदड़ की स्थिति हो गयी। पुलिस लाठीचार्ज में बुरी तरह से घायल तीन महिलाओं को जैसे तैसे पुलिस की गाड़ी में ठूँसकर अस्पताल भेज दिया गया।

प्लांट गेट पर धरना में बैठे किसानों पर पुलिस द्वारा लाठी चार्ज के खिलाफ वहाँ मौजूद सैकड़ों ग्रामीणों ने जब इसपर विरोध जताया तो पुलिस ने फिर से लाठियां भांजते हुए लोगों को दौड़ा दौड़ा कर पीटना शुरू कर दिया। जिसकी प्रतिक्रिया में आक्रोशित ग्रामीणों ने भी पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। स्थिति बेकाबू होता देख एसडीओ ने अश्रु गैस और हवाई फायरिंग भी करवा दी। प्लांट के गेट पर लगे किसानों के धरना स्थल को बुलडोज़र चलवाकर उसे नष्ट कर दिया गया। पूरा इलका पुलिस छावनी में तब्दील कर पास के सभी 6 गांवों में भी धारा 144 लगा दी गयी। 7 लोगों को गिरफ्तार कर 100 लोगों पर नामज़द और शेष 700 अज्ञात लोगों के खिलाफ तीन तीन मुक़दमे दर्ज़ कर दिए गए हैं।  

इस घटना में घायल किसान चोरी छिपे इलाज तो करवा रहें हैं लेकिन पुलिस द्वारा मुकदमा किये जाने से सभी गांवों में पुलिस द्वारा फिर से दमन ढाए जाने की आशंका से कईयों ने घर छोड़ दिया है। वहीँ जिस पावर प्लांट को इसी मार्च माह में अपना प्रोडक्शन शुरू कर देना था फिलहाल वहाँ काम बंद हो है और पुरे इलाके में तनाव बना हुआ है।

प्रदेश की राजधानी में भी इस घटना को लेकर सियासी सरगर्मी शुरू हो चुकी है। सरकार के घटक दलों ने अपनी अपनी टीमें गठित कर घटना स्थल पर भेजने की घोषणा की है। लेकिन इस प्रस्तावित पावर प्लांट निर्माण के लिए हर चुनाव में अपने दल एवं अपने नेता पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा उक्त परियोजना शुरू किये जाने का प्रचार कर राजनितिक श्रेय लेने वाली भाजपा और उसके नेताओं ने घटना और विस्थापित किसानों की मांगों को लेकर चुप्पी साध रखी है। वहीं एनटीपीसी प्रबंधन अभी भी विस्थापित किसानों की मांगों के प्रति अपने अड़ियल रुख पर ही क़ायम है। हमेशा की भांति गोदी मिडिया किसानों को ही कसूरवार ठहराकर ‘विकास विरोधी’ करार दे रही है।


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License