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राजनीति
JKCCS द्वारा प्रस्तुत 'वार्षिक मानव अधिकार समीक्षा 2017' का एक अवलोकन
जम्मू-कश्मीर में एक मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में प्रताड़ना जारी है।
विवान एबन
03 Jan 2018
kashmir

कश्मीर में मानवाधिकार पर द जम्मू एंड कश्मीर कॉलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी ने वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। इस रिपोर्ट के 23 भाग है, जिनमें पहले भाग में रिपोर्ट का अवलोकन है, और अंतिम अध्याय सशस्त्र बलों के भीतर आत्महत्याओं और परस्पर घटनाओं पर है।

वर्ष 2017 में कश्मीर में 450 हत्याएं हुईं। इन हत्याओं में 124 सशस्त्र बलों के, 217 आतंकवादी, 108 नागरिक, और एक इखवानी (सरकार-समर्थक उग्रवादी) मारे गए। मारे गए 217 आतंकियों में से 84 स्थानीय, 28 विदेशी थे जबकि इनमें से 104 की पहचान नहीं हो पाई है। इन हत्याओं में लगभग आधा घटनाएं मई और अगस्त के बीच यानी चार महीनों के भीतर हुईं। वे ज़िले जिनमें सबसे ज़्यादा नागरिकों की हत्याएं हुईं वे पुलवामा और गंदरबल थे। बांदीपोरा में ये घटनाएं कम हुईं।

महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के मामले में इस रिपोर्ट को दो भागों में बांटा गया, एक हत्या की घटनाओं पर है वहीं दूसरा चोटी काटने की घटनाओं पर। वर्ष 2017 में20 महिला नागरिकों की हत्या की गई जिनमें से आठ महिलाएं उस वक्त मारी गई जब संदिग्ध आतंकियों ने एक बस पर हमला किया जिसमें अमरनाथ यात्री सवार थें। पांच महिलाओं की हत्या मुठभेड़ स्थल पर कर दी गईं, वहीं चार की मौत एलओसी पार से गोलीबारी में हुई, जबकि एक लड़की की मौत त्राल शहर में ग्रेनेड विस्फोट से हुई, और एक महिला को पुलवामा के त्राल में सीअर गांव में अज्ञात बंदूकधारियों ने मार गिराया। सितंबर और अक्टूबर के बीच चोटी काटने की150 घटनाएं हुईं। चोटी काटने की घटना के परिणामस्वरूप कई महिलाओं ने बाहर जाने से इनकार कर दिया। इस घटना के डर से महिलाएं परिवार के पुरूष सदस्य के बिना बाहर नहीं जाती थीं। इसका छात्राओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा, वे अपनी चोटी काटे जाने को लेकर जोखिम उठाने के बजाय घर में रहना ज़्यादा पसंद करती थीं।

राज्य की एजेंसियां अब भी 8,000 से अधिक 'लापता' व्यक्तियों का पता लगाने या स्पष्ट करने में सक्षम नहीं हैं। इस साल सात लोग लापता हुए, जिनमें से पांच का शव मिला। इन शवों पर गोली और प्रताड़ना के निशान थे। बाकी दो लोग अभी भी लापता हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) ने पुंछ और राजौरी ज़िले में 2,080 बिना निशान वाले और सामूहिक कब्रों की जांच करने के लिए सरकार से आग्रह किया है। प्रतिक्रिया अभी भी पूरी तरह से निराशाजनक रही है।

विभिन्न मानवाधिकारों के दुरुपयोग को लेकर सरकार द्वारा दिए गए जांच के आदेश विषय में, सरकार द्वारा विरोध प्रदर्शन के दौरान 2016 के हत्याओं के बारे में दिए गए जांच के चार आदेश शामिल हैं। ये रिपोर्ट इस तरह की जांच को नियंत्रण  से बाहर 'प्रबंधन' स्थितियों के केवल एक साधन के रूप में मानता है।

वर्ष 2017 ने जम्मू-कश्मीर में 'मानव ढाल' के रूप में नागरिकों के इस्तेमाल को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के संज्ञान में लाया। फारूख अहमद डार को एक जीप में बांधकर ले जाने वाली घटना के वायरल हुए एक वीडियो के चलते अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्यापक निंदा हुई। इस घटना की आलोचना के बावजूद मेजर लीटूल गोगोई ने सेना प्रमुख के चीफ से एक प्रशस्ति पत्र प्राप्त किया। अन्य घटनाएं भी हुईं जब सेना ने अपने कर्मियों को ले जाने के लिए अलग-अलग घटनाओं में दो सूमो चालकों को मजबूर किया। एक चालक की हत्या उस वक्त कर दी गई जब आतंकियों ने वाहन पर गोलीबारी की।

जम्मू-कश्मीर में एक मनोवैज्ञानिक हथियार के रूप में प्रताड़ना जारी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ज़्यादातर लोग अपने ऊपर हुई प्रताड़नाओं के बारे में बताना नहीं चाहते हैं, फिर भी इस रिपोर्ट में पांच घटनाओं का उल्लेख किया गया है। प्रताड़नाओं से होने वाली गुर्दे की विफलता जैसी जटिलताओं के कारण कुछ पीड़ितों की मृत्यु हो गई है। प्रताड़नाओं की घटनाओं में एक तिहाड़ जेल में हुई जब तमिलनाडु स्पेशल फोर्स द्वारा 18 क़ैदियों को प्रताड़ित किया गया था।

जम्मू-कश्मीर में 'पेलेट' शॉटगन का इस्तेमाल दंगा नियंत्रण के लिए एक उपाय के रूप में अभी भी कम नहीं हुआ है। जैसा कि कहा जाता है, ये 'पेलेट' शॉटगन वास्तव में 12-गेज पंप-एक्शन शॉटगन है जो पक्षियों पर निशाना बनाने तक सीमित है (इस पेलेट का इस्तेमाल पक्षियों के शिकार के लिए किया जाता है)। पक्षियों पर निशाना लगाने की प्रभावी सीमा 40 गज या 36.576 मीटर के आसपास है, इस सीमा में किसी पक्षी या छोटे जानवर को मारा जा सकेगा। 2017 में 41 लोगों को 'पेलेट' गन की वजह से आँखों को नुकसान पहुंचा है। 6 लोगों को दोनों आँखों में नुकसान पहुंची जबकि 35 लोगों को एक आँख में नुकसान पहुंचा। दो अलग-अलग घटनाओं में इन बंदूकों से हुई गोलीबारी के बाद दो छात्रों की हालत गंभीर है। 'पेलेट' गन के इस्तेमाल के चलते चार लोग मारे गए।

गिरफ्तारी और हिरासत के विषय को दो शीर्षकों के तहत कवर किया गया; प्रशासनिक हिरासत के तहत गिरफ्तारियां और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तारियां। प्रशासनिक हिरासत के शीर्षक के अधीन रिपोर्ट में पाया गया कि लोगों को सर्कुलेश से बाहर रखने के लिए पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट (पीएसए) का इस्तेमाल किया गया है। इस रिपोर्ट में मुख्यमंत्री के वक्तव्यों को भी शामिल किया गया है जो कि पिछले तीन सालों में पुलिस द्वारा 1,059 दस्तावेजों को तैयार किया गया। कुछ हिरासतियों में वे लोग हैं जो व्हीलचेयर पर हैं जिसमें बुजुर्ग व्यक्तियों, साथ ही साथ पत्रकारों और राजनीतिक नेताओं को शामिल किया गया। एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों में हुर्रियत नेताओं,व्यापारिक संगठनों के नेता, कश्मीर बार एसोसिएशन के प्रमुख, कश्मीर विश्वविद्यालय के एक स्कॉलर और एक फोटो जर्नलिस्ट शामिल हैं।

वर्ष 2017 में एक दोषी ठहराए जाने का मामला सहित 18 घटनाएं हुई हैं जिनमें कश्मीरियों को उक्त राज्य के बाहर निशाना बनाया गया। इनमें छात्रों पर हमले समेत धमकियां और कश्मीरी लोगों को इलाका छोड़ने की चेतावनियां शामिल हैं। इनमें एक ऐसी घटना भी शामिल है जहां एक अस्पताल ने तंत्रिका संबंधी रोग से ग्रस्त एक महिला को इलाज से इनकार कर दिया।

आठ घटनाएं हुईं जिनमें पत्रकारों और मीडिया को राज्य के अधिकारियों से धमकी, भय और हिंसा का सामना करना पड़ा था। इस साल एक फ्रांसीसी पत्रकार के संकटग्रस्त कश्मीरी पत्रकारों की मैत्री में शामिल होने के बाद कथित रूप से वीजा का उल्लंघन करने के लिए पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया गया। उसके बाद से उन्हें जमानत पर रिहा किया गया है। राज्य सरकार ने 34 टीवी चैनलों पर भी प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने कश्मीर में समाचार और धार्मिक चैनलों के अलावा,एक स्पोर्ट्स चैनल, दो रसोई चैनल और एक संगीत चैनल पर प्रतिबंध लगा दिया।

2017 में जब भी नागरिकों की मृत्यु, पुलिस के साथ मुठभेड़ और हिंसा की अन्य घटनाएं हुईं तब इंटरनेट सेवा पर रोक लगा दी गई। वर्ष 2017 में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी को 37 बार बाधित किया गया।

राज्य सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को 2017 में मुहर्रम मनाने पर रोक लगा दिया था। 20 राज्यव्यापी तथा 40 आंशिक या ज़िलाव्यापी कर्फ्यू जैसे प्रतिबंध लगाए गए। करीब 22 पूर्ण बंदी और 100 आंशिक या ज़िलाव्यापी बंदी हुई।

12 घटनाओं में सुरक्षा बलों द्वारा नागरिकों की संपत्ति को क्षति पहुंचाई गई। इसमें घरों की खिड़कियों के पल्ले को टुकड़े टुकड़े करना और विघटित करना शामिल है, साथ ही साथ निजी वाहनों को भी नुकसान पहुंचाया गया। भारत समर्थक नौ राजनीतिक कार्यकर्ताओं और एक्टिविस्टों को संदेह में वर्ष 2017 में उग्रवादियों ने हत्या कर दी। इनमें तीन पीडीपी से जुड़े थे, पूर्व पीडीपी के दो, नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो, बीजेपी के एक और जनता दल युनाइटेड के एक सदस्य थे। उग्रवादियों और पुलिसकर्मियों के परिवारों को बारी बारी से सशस्त्र बलों और उग्रवादियों के हमले और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।

वर्ष 2017 में हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं की संख्या को देखते हुए इस रिपोर्ट ने एसएचआरसी को एक 'टूथलेस टाइगर' के रूप में निर्दिष्ट किया। एक संस्था के रूप में इसकी शक्तिहीनता बिल्कुल स्पष्ट है कि मानव अधिकारों के दुरुपयोग के शिकार लोगों को मुआवज़े की सिफारिश के लिए कई अवसरों पर पूरी तरह से राज्य सरकार द्वारा नजरअंदाज किया गया है। वर्ष 2017 में जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बलों में नौ आत्महत्याएं और एक परस्पर विध्वंसी हत्या हुई।

 

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