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भारत
राजनीति
कामकाजी महिलाओं ने जारी किया अपना घोषणापत्र
दंगे, नफ़रत, युद्धोन्माद की गंदी राजनीति छोड़कर, सभी महिलाओं को रोजी-रोटी, मान-सम्मान, बराबरी की गारंटी करने की मांग।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
08 Mar 2019
जंतर-मंतर पर जनसुनवाई

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर 7 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक्टू (AICCTU) और महिला संगठन ऐपवा (AIPWA) की ओर से कामकाजी महिलाओं की जनसुनवाई हुई और  लोकसभा चुनाव के लिए एक मांगपत्र/घोषणापत्र जारी किया गया।

कार्यक्रम में सफाई कर्मी, घरेलू कामगार, बिल्डिंग वर्कर्स, आशा वर्कर्स, फैक्ट्री वर्कर्स, सेक्योरिटी , हेल्थ , ऑफिस, विश्वविद्यालय और अन्य विभिन्न सेक्टर्स की कामकाजी महिलाओं ने भागीदारी की और अपनी बात रखी।

ज्यूरी पैनल के तौर पर इतिहासकार तनिका सरकार और उमा चक्रवर्ती, दलित लेखक संघ की सचिव पूनम तुसामड़, वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट भाषा सिंह और अनुमेहा यादव मौजूद रहे।

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जनसुनवाई में महिलाओं की ओर से कहा गया, “बिना हमारे श्रम के इस दुनिया में कुछ भी संभव नहीं। हमारे दिन-रात घर के अन्दर और बाहर मेहनत करने के बावजूद भी मौलिक अधिकारों से वंचित रखा जाता है। मजदूर का दर्जा तक नहीं दिया जाता।”

जनसुनवाई में कहा गया कि पिछले पांच सालों के दौरान देश ने भयंकर अंधकार का दौर देखा है। लोगों को उनके खान-पान के लिए सड़कों पर दिन-दहाड़े मार दिया गया है। वक्ताओं ने सीधे आरोप लगाया कि पूरा सरकारी तंत्र दंगाइयों-नफरतगर्दों की सुरक्षा में तैनात है। बलात्कार की घटनाएं दिनोदिन बढती जा रही हैं। उन्नाव और कठुआ जैसी वीभत्स घटनाओं और सत्तारूढ़ दल की कार्रवाइयों ने पूरी मानवता को शर्मसार कर दिया है। बलात्कारी नेताओं के बचाव में ‘बेटी-बचाओ’ का ढोंग करनेवाली मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जातिगत हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। दलितों-पिछड़ों-आदिवासियों को बेदखल करने के लिए सरकार संविधान को ताक पर रख, दमन को बढ़ावा देने का काम कर रही है। ‘देशद्रोह-देशभक्ति’ की आड़ लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, राजनीतिक प्रतिद्वंदियों, छात्रों, मजदूरों पर झूठे केस लादे जा रहे हैं।

महिलाओं ने कहा कि घरों के अन्दर महिलाओं द्वारा होनेवाले श्रम को आज भी समाज और सरकार ‘सेवा’ या ‘धर्म’ से ज्यादा कुछ नहीं मानते, आशा-आंगनवाडी-रसोइया इत्यादि स्कीम वर्कर्स को ‘वेतन’ की जगह ‘मानदेय/ प्रोत्साहन राशि’ के नाम पर कुछ-सौ रुपये पकड़ा दिए जाते हैं। हाल फिलहाल में बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात समेत सारे देश के अंदर चले स्कीम वर्कर्स के बहादुराना संघर्ष के बावजूद सरकार ‘45वें भारतीय श्रम सम्मेलन’ में पारित बिन्दुओं को लागू नहीं कर रही।

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कामगार महिलाओं ने बताया कि श्रम कानूनों को ‘रिफार्म’ के नाम पर तेजी से ख़त्म किया जा रहा है। ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’, ‘नीम और नेताप (NEEM - National Employability Enhancement Mission & NETAP - National Employment Through Apprenticeship Programme)’ जैसी स्कीमों को लाकर पक्के रोज़गार को ख़त्म किया जा रहा है। 44 श्रम कानूनों को ख़त्म कर 4 लेबर कोड लाने का फैसला सरकार ने कर लिया है - जिसका पिछले पांच सालों में ज़बरदस्त विरोध हुआ है. ये सारे बदलाव, पहले से ही रोज़गार में महिलाओं की खराब स्थिति को और बदतर बना देंगे। ठेकेदारी, अस्थायी रोज़गार, स्कीम इत्यादि में काम कर रही महिला साथियों को इन बदलावों के चलते और ज्यादा दमन-परेशानी का सामना करना पड़ेगा।

जनसुनवाई में कहा गया कि महिला और पुरुष के वेतन में भारी असमानता को ठीक करने के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही, फैक्ट्रियों व अन्य कार्यस्थलों में काम कर रही महिलाओं को लैंगिक भेदभाव और यौनिक शोषण का हर दिन सामना करना पड़ता है, ‘विशाखा दिशानिर्देश’ कहीं भी लागू होते दिखाई नहीं दे रहे। कार्यस्थल पर हुए यौनिक शोषण की शिकायत करनेवाली महिलाओं को अक्सर नौकरी से बेदखल कर दिया जाता है। महिला-शौचालय, कपड़े बदलने और आराम करने के लिए बुनियादी सुविधाओं से लैस कमरे (Changing and Rest Rooms), मातृत्व अवकाश लाभ, क्रेश इत्यादि आज भी आज़ाद देश में गगनचुम्बी सपनों के जैसे हैं!

कार्यक्रम में कहा गया कि महिलाओं के ऊपर लगातार हो रहे पितृसत्ता-पूँजीवाद-ब्राह्मणवाद के अत्याचारों का जवाब, हम सब ने मिल जुलकर पहले भी दिया है। संयुक्त ट्रेड यूनियनों के द्वारा बुलाई गई देशव्यापी हडतालों की बात हो, मुन्नार और बंगलोर की महिला श्रमिकों का संघर्ष हो, लगातार विधानसभा और संसद घेरती स्कीम वर्कर्स की बात हो, अस्पताल में काम करनेवाली नर्सों की लड़ाई हो या अन्य कई विभिन्न आंदोलनों में अगुआ भूमिका निभाने की ज़रुरत- इस देश की मेहनतकश मजदूर महिलाओं ने संघर्ष के झंडे को सबसे ज़ोरदार तरीके से थामा हुआ है। आज जब हम सब एक और लोकसभा चुनाव को सामने देख रहे हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि हमारे एजेंडे को ‘युद्धोन्माद के शोर’ और ‘पितृसत्ता-पूँजीवाद-ब्राह्मणवाद’ की हिमायती सरकार के तलवे चाटनेवाली मीडिया के बावजूद, व्यापक जनता में ले जाने की ज़रुरत है।

जनसुनवाई में घोषणा की गई, “हम महिला मज़दूर युद्ध और साम्प्रदायिक उन्माद का पुरज़ोर विरोध करते हैं। हम घोषणा करते हैं की चुनाव, सरकार से सवाल पूछने और हिसाब माँगने का समय है - युद्धोन्माद के नाम पर सवाल पूछने और हिसाब माँगने वालों को देशद्रोही क़रार कर चुप करने की हर कोशिश का हम विरोध करेंगे!”

“हम घोषणा करते हैं कि चुनाव पूरा होने तक हम उन्मादी टीवी 'न्यूज़' चैनलों का बहिष्कार करेंगे जो चुनावी माहौल में विष घोलने की और चुनाव में मजदूरों और आम लोगों के मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं। हम सांप्रदायिक ज़हर फैलाने और धर्म के आधार पर देश की जानता को बाँटने की हर कोशिश का विरोध करेंगे।”

इस मौके पर महिला मजदूरों का एक मांगपत्र जारी किया गया। इसमें कहा गया :-

1.    सरकारी संरक्षण और बढ़ावे से चल रहे युद्धोन्माद व धर्म-जाति-लिंग आधारित हिंसा और नफ़रत पर तुरंत रोक लगाओ। सांप्रदायिक सौहार्द भंग करनेवाले नेताओं को जेल भेजो।

2.      सरकारी फैसलों-नीतियों-योजनाओं में महिलाओं-मजदूरों-दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों-अख्लियतों को नज़रंदाज़ करना व अडानी-अम्बानी जैसे पूंजीपतियों की दलाली करना बंद करो।

3.      दिनोदिन बढ़ रही बेरोज़गारी, असमानता, महंगाई पर रोक लगाओ। खाद्य पदार्थों, एलपीजी, पेट्रोल इत्यादि के बढ़ते दामों को कम करो। सभी बेरोजगारों को बेरोज़गारी भत्ते की गारंटी करो।

4.      सभी नौकरियों-कार्यस्थलों में महिला मजदूरों की भागीदारी बढ़ाने एवं पुरुष व महिला कामगारों के बीच असमानता को दूर करने के लिए, बराबरी के अधिकार के लिए ठोस कदम तुरंत उठाए जाने चाहिए।

5.      सभी कार्यस्थलों पर लैंगिक भेदभाव व यौनिक हिंसा मुक्त वातावरण, विशाखा दिशानिर्देश लागू करने के लिए ‘सेल’ इत्यादि का गठन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

6.      26,000 रुपये न्यूनतम मासिक वेतन अविलम्ब लागू कर, न्यूनतम वेतन न देने वालों के ऊपर सख्त कार्यवाही का प्रावधान बनाया जाए।

7.      आशा-आंगनवाड़ी-रसोइया इत्यादि स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाए। पक्के कर्मचारी का दर्जा मिलने तक 26,000 रुपये मासिक वेतन व रोज़गार की गारंटी की जाए।

8.      ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमला बंद किया जाए। मालिकों द्वारा यूनियनों को अनिवार्य रूप से मान्यता देने के लिए कानून बनाया जाए। 45 दिनों के अन्दर यूनियन के पंजीकरण को सुनिश्चित किया जाए।

9.      ठेकेदारी प्रथा ख़त्म की जाए। महिला ठेका-श्रमिकों के कल्याण व पक्के रोज़गार के लिए अलग से कानून बनाया जाए।

10. श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव, ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’, ‘नीम और नेताप (NEEM - National Employability Enhancement Mission & NETAP - National Employment Through Apprenticeship Programme)’ जैसी स्कीमों को तुरंत वापस लिया जाए।

11. मैला उठाने की प्रथा को ख़त्म करने के लिए बने कानून को सख्ती से लागू किया जाए। सफाई कर्मचारियों, विशेषकर महिला सफाई कर्मचारियों के हो रहे आर्थिक-लैंगिक-जातिगत शोषण पर तुरंत रोक लगाई जाए।

12. महिला कामगारों पर लगाए गए सभी लैंगिक भेदभावपूर्ण नियमों व व्यवहार को समाप्त किया जाए (जैसे मोबाइल फ़ोन रखने पर प्रतिबंध या कारखानों और हॉस्टलों के बाहर आने-जाने पर प्रतिबंध).

ऐक्टू और ऐपवा ने घोषणा कि पारित किए गए ‘मांगपत्र/ मेनिफेस्टो’ को दिल्ली व देश की मेहनतकश जनता के बीच ले जाने के लिए वे प्रतिबद्ध हैं। कहा गया, “हम ऊपर दिए गए मांगपत्र के अलावा संयुक्त ट्रेड यूनियनों द्वारा 5 मार्च 2019 को आयोजित ‘श्रमिकों के राष्ट्रीय कन्वेंशन’ में  पारित ‘मजदूर मांग पत्र’ का समर्थन करते हैं। हम अन्य सामाजिक संगठनों द्वारा उठाए जा रहे जनहित के मांगों का भी समर्थन करते हैं।”

AICCTU
AIPWA
Women Rights
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WOMEN'S WORKERS
General elections2019
2019 आम चुनाव

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