NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
कार्ल मार्क्स, 200 नॉट आउट
इतिहास में ऐसे कम ही लोग होते हैं, जो 200 वीं सालगिरह पर भी उतने जीवन्त और प्रासंगिक बने रहें जितने कार्ल मार्क्स हैं।
बादल सरोज
04 May 2018
karl marx

इतिहास में ऐसे कम ही लोग होते हैं  जो 200 वीं सालगिरह पर भी उतने जीवन्त और प्रासंगिक बने रहें जितने कार्ल मार्क्स हैं । 1818 की 5 मई को जन्मे मार्क्स की 5 मई 2018 दो सौं 200वीं हैप्पी बर्थ डे है और बजाय पुराना पड़ने के उनकी प्रासंगिकता नित नयी प्रामाणिकता के साथ उभर रही है। अभी हाल ही में बैंक ऑफ़ इंग्लैंड के गवर्नर मार्क कर्ने ने चेताया है कि "मार्क्स का भूत पूरे यूरोप और विकसित देशों पर मंडरा रहा है। अगर नयी टेक्नोलॉजी से होने वाली रोजगारहीनता को नहीं रोका गया तो मार्क्स को पुनर्स्थापित होने से कोई नहीं रोक पायेगा। "गवर्नर साब की बात को अनसुना नहीं किया जा सकता - वे "भले आदमी" हैं।  पूँजीवाद के पक्के समर्थक और ब्रिटिश शासकवर्ग के ख़ास चहेते।  मगर कुछ सच हैं जो सर पर चढ़कर बोलते हैं ; कार्ल मार्क्स ऐसे ही सच का नाम है। 

यह साल उनकी कालजयी किताब "पूँजी" (दास कैपिटल) की डेढ़ सौवीं सालगिरह भी है। यह दुनिया की सर्वाधिक भाषाओं में अनुदित होने वाली दूसरे नंबर की किताब है।  पहले नंबर पर भी मार्क्स-एंगेल्स की ही किताब, "कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो" है। दुनिया भर में हुए सर्वेक्षण में मार्क्स को सहस्राब्दी (मिलेनियम) का महानतम दार्शनिक करार दिया गया था ।  
जितनी बार जितनी जोर से उसके मरने के एलान हुये, खुशी से झूमते कबरबिज्जू उसे जितना गहरा दफना कर वापस लौटे : मार्क्स उनके किसी स्टॉक एक्सचेंज की बार में बैठकर शैम्पेन का काग खोलकर जश्न मनाने की पहली चीयर्स बोलने से पहले ही उतने ही ज्यादा जोर से फिर शेक्सपीयर के अंदाज़ में कहें तो "आया, निहारा और छा गया" !! 

ऐसा क्यों हैं ? कैसे है ? कब तक रहेगा ?  

पिकासो की लोकप्रिय पेंटिंग गुएर्निका को देखकर नाजियों ने उनसे पूछा कि यह तो आपने बहुत ही भयानक बनाई है। पिकासो बोले, बनाई तो तुम लोगों ने है, मैंने तो सिर्फ उसे पेन्ट किया है। ठीक इसी तरह इस दुनिया को वीभत्स तो पूंजीवाद ने बनाया है, मार्क्स ने तो सिर्फ अपनी कलम से उसे "पूंजी" में दर्ज किया है।  बिना तथ्यों और आंकड़ों का सहारा लिए इतना ही कहना काफी है कि मार्क्स की लम्बी उम्र और उत्तरोत्तर उनके तेजस्वी होने का श्रेय खुद उन्हें लेना चाहिए जिन्होंने बार बार उनके मरने की घोषणा की थी। 

जो सत्य के ईमानदार तथ्यान्वेषी हैं वे ऐसा करते वे इसे स्वीकार भी करते हैं।

अर्थशास्त्र के नोबल पुरुस्कार विजेता जोसफ स्टिग्लिट्ज़ अमरीका के दो-दो राष्ट्रपतियों के आर्थिक सलाहकार रहे और नवउदार आर्थिक दर्शन के ब्रह्मा माने जाते हैं । जबकि तब 90 पार कर चुके एरिक होब्सवाम दुनिया के उस वक़्त जीवित इतिहासकारों में सबसे बड़े नाम और इतने पक्के मार्क्सवादी थे कि नियम से अपनी पार्टी सदस्यता का नवीनीकरण कराया करते थे । 

एक समारोह में जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ अपने हाथ में जाम लिए अचानक से आकर एरिक होब्सवाम के सामने आ खड़े हुये । 

इन दोनों को आमने सामने देखकर उस समारोह में आये सभी का ध्यान इन दोनों पर केंद्रित हो गया ।
स्टिग्लिट्ज़ बोले: यार ये तुम्हारा बड़बब्बा (ग्रैंड ओल्ड मैन) कितना दूरदर्शी था । उसने सवा सौ साल से भी पहले ही बता दिया था कि हम लोग क्या क्या पाप करेंगे !! कैसी कैसी बीमारियां फैलाएंगे ।
होब्सवाम ने पूछा : कौन ? मार्क्स ।
स्टिग्लिट्ज़ : हाँ, अभी फिर से पूंजी (दास कैपिटल) पढ़ी । क्या सचित्र नक्शा खींचा है मार्क्स ने, लगता है जैसे हमारी कारगुजारियां देख कर लिख रहा है ।
होब्सवाम : क्या बात है जोसेफ़, आज मार्क्स की तारीफ़ कर रहे हो !! ज्यादा चढ़ गयी है क्या !!
स्टिग्लिट्ज़ : अरे अभी तो चखी तक नहीं है । देखो वैसे का वैसा ही है जाम । मार्क्स ने सचमुच में अभिभूत कर दिया । यहाँ, तुम सबसे बड़े दिखे तो लगा कि कह दूं ।
इसके बाद दुआ सलाम और खैरियते पूछने की रस्म के निभाकर  जोसेफ स्टिगलिट्ज़ अपनी प्रशंसक और सजातीय बिरादरी की तरफ बढे । थोड़ा ही चले थे कि जाते जाते अचानक फिर लौटे और बोले : सुनो एरिक, अगर बीमारी वही हैं जो कार्ल मार्क्स ने बताई थीं तो दवा भी वही लगेगी जो वो बता कर गया है  । 

मौत के तीन दिन बाद 17 मार्च 1883 को लन्दन के हाईगेट कब्रिस्तान में दफनाने के लिए पहुंचे सिर्फ 11 लोगों को संबोधित करते हुए उनके अनन्य सहयोगी दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स ने कहा था कि ; एक समय आएगा जब दुनिया में ही दो ही तरह के लोग होंगे।  वे जो मार्क्स के साथ हैं या थोड़े से वे जो उनके खिलाफ हैं।  

17 साल के युवा कार्ल हेनरिख मार्क्स ने अपने एक निबंध में लिखा था कि "इतिहास उन्‍हें ही महान मनुष्‍य मानता है जो सामान्‍य लक्ष्‍य के लिए काम करके स्‍वयं उदात्‍त बन जाते हैं।  अनुभव सर्वाधिक सुखी मनुष्‍य के रूप में उसी व्यक्ति की स्‍तुति करता है जिसने लोगों को अधिक से अधिक संख्‍या के लिए सुख की सृष्टि की है। " फर्क सिर्फ इतना है कि मार्क्स ने स्तुति कभी नहीं चाही।  उन्होंने जो विचार दिया वह 'गाइड टू एक्शन' है।  वे कहते थे कि अब तक दार्शनिकों ने सिर्फ दुनिया की व्याख्या की है, जरूरत उसे बदलने की है।  जब तक बदलने का काम पूरा होना शेष है, मार्क्स भूतकाल नहीं बनेंगे - वर्तमान का विश्लेषण और भविष्य का नक्शा बने रहेंगे।  अलबत्ता उनका भूत जरूर  पूँजीवादी दुनिया के सर पर मंडराता रहेगा। 

कार्ल मार्क्स
कार्ल मार्क्स 200वीं वर्षगाँठ

Related Stories

200वीं वर्षगाँठ : मार्क्स और पूंजीवाद


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License