NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पाकिस्तान
कहानी दो फैसलों की: आसिया बीबी और सबरीमाला
दोनों मामलों में अदालतों ने कानूनी प्रावधानों के अनुसार निर्णय सुनाए हैं और सभी धर्मों की समानता (पाकिस्तान के मामले में) और लैगिंक समानता (भारत के मामलों में) के पक्ष में फैसले दिए हैं।
राम पुनियानी
12 Nov 2018
Asia Bibi

31 अक्टूबर 2018 को पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने आसिया बीबी को ईशनिंदा के आरोप से बरी कर दिया। वे पिछले आठ सालों से मौत की सजा का इंतजार कर रहीं थीं। अदालत ने उन पर लगे आरोपों को सही नहीं पाया। पाकिस्तान में ईशनिंदा के लिए मौत की सजा का प्रावधान है। आसिया, ईसाई खेतिहर मजदूर थीं। वे व उनका परिवार बहुत तनाव में था और उनकी जान बचाने का हर संभव प्रयास कर रहा था। इस फैसले से उन्हें राहत मिली है। आज हमें पंजाब के तत्कालीन गर्वनर सलमान तासीर याद आते हैं, जिन्होंने जेल में बीबी से मुलाकात की थी, ईशनिंदा संबंधी कानूनों का विरोध किया था, आसिया को माफ किए जाने का समर्थन किया था और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के पक्ष में आवाज उठाई थी। तासीर को अपने इन विचारों की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी। उनके हत्यारे, मल्की मुमताज हुसैन कादरी को एक हीरो की तरह पेश किया गया और मौलानाओं ने तासीर के लिए नमाज-ए-जनाजा पढ़ने से इंकार कर दिया।

इस अदालती फैसले के बाद पाकिस्तान में बहुत आक्रोश है। कट्टरपंथियों ने कई स्थानों पर हिंसा की है। इस उन्मादी प्रतिक्रिया से चिंतित पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने न्यायालय के फैसले का सम्मान किए जाने की अपील की है। लेकिन, इसके साथ ही उन्होंने तहरीक-ए-लब्बीक पाकिस्तान नामक एक पार्टी से समझौता भी किया है, जो इस विरोध और हिंसा के लिए जिम्मेदार है और जिसकी आसिया बीबी को पाकिस्तान से बाहर न जाने देने कि मांग उन्होंने मंजूर कर ली है। इमरान ने बीबी को बरी करने वाले न्यायाधीशों को निशाना न बनाए जाने की अपील भी की है। बीबी के वकील सैफ-उल-मुल्क हिंसा के भय से पहले ही पाकिस्तान छोड़ चुके हैं।

28 सितंबर 2018 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि हर आयु समूह की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश न देना, भेदभावपूर्ण है और सभी महिलाओं को इस मंदिर में जाने का अधिकार मिलना चाहिए। शुरू में आरएसएस सहित अधिकतर संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत किया किंतु शीघ्र ही संघ ने अपना रंग बदल लिया। वीएचपी के नेतृत्व में हिन्दू दक्षिणपंथी संगठनों ने ‘सबरीमाला बचाओ‘ का नारा देते हुए रजस्वला आयु समूह की स्त्रियों को मंदिर में प्रवेश करने से रोका। मामले ने तूल पकड़ा और सीपीएम के नेतृत्व वाले सत्ताधारी वाम मोर्चे में शामिल दलों को छोड़कर, कांग्रेस सहित सभी दल धार्मिक भावनाओं के इस तूफान के सामने झुक गए और मंदिर में ऐसी स्त्रियों के प्रवेश के विरोध में चल रहे आंदोलन का समर्थन करने लगे। यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि इन्हीं दलों ने महाराष्ट्र के शनि सिगनापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था। आरएसएस के सहयोगी संगठन हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश से भी बहुत आल्हादित हुए थे।

सबरीमाला मंदिर के संबंध में कई विद्वतापूर्ण लेख लिखे गए हैं। इनसे यह ज्ञात होता है कि सन् 1991 तक सभी महिलाओं को इस मंदिर में प्रवेश दिया जाता था। लेकिन एक अदालती निर्णय की तोड़-मरोड़कर व्याख्या करने से ऐसी स्थिति बन गई कि रजस्वला आयु समूह की महिलाओं का मंदिर में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। यह निर्णय इस धारणा पर आधारित था कि रजस्वला स्त्रियों के लिए मंदिर की यात्रा करने के लिए ज़रूरी 41 दिनों की तपस्या करना कठिन होगा। यह उल्लेखनीय है कि इस फैसले में भी इस बात का जिक्र था कि पहले महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार था। पुराने अध्ययनों से हमें यह जानकारी मिलती है कि मंदिर में आदिवासी एवं बौद्ध दर्शनार्थी भी आया करते थे। आदिवासी, जो मासिक धर्म को वर्जना नहीं मानते, सन् 1960 के दशक तक बड़ी संख्या में मंदिर में आते थे। इसके भी प्रमाण हैं कि सन् 1980 के दशक तक सभी आयु-समूहों की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार था। परंतु सन् 1991 के फैसले के बाद कट्टरपंथियों का बोलबाला बढ़ गया। अब साम्प्रदायिक शक्तियां इस विवाद के सहारे राज्य में अपना राजनैतिक आधार बढ़ाने की फिराक में हैं, जैसा कि उन्होंने कर्नाटक में बाबा बुधनगिरी की दरगाह के मामले में और मध्यप्रदेश में कमाल मौला मस्जिद के मामले में किया।

इस तरह, दो पड़ोसी देशों में अपने-अपने देशों के सर्वोच्च अदालतों के फैसलों की लगभग एक सी प्रतिक्रिया हुई है। दोनों मामलों में अदालतों ने कानूनी प्रावधानों के अनुसार निर्णय सुनाए हैं और सभी धर्मों की समानता (पाकिस्तान के मामले में) और लैगिंक समानता (भारत के मामलों में) के पक्ष में फैसले दिए हैं। भारत में उन्मादी धार्मिक समूहों की प्रतिक्रिया देखने के बाद ज्यादतर राजनैतिक दल पीछे हट गए। पाकिस्तान में इमरान खान ने हालांकि शुरू में बीबी को बरी किए जाने के निर्णय का स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरपंथी समूहों के दबाव के चलते बीबी के पाकिस्तान से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी। एन्ड्रे मेरालाक्स द्वारा यह पूछे जाने पर कि प्रधानमंत्री के रूप में उनके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती क्या है, जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि एक धर्मप्रधान देश में धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना सबसे बड़ी चुनौती है।

भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने की नेहरू की कोशिश की राह में अनेक बाधाएं और उतार-चढ़ाव आए। सन् 1980 के दशक में शाहबानो मामले के बाद से मुस्लिम तुष्टिकरण की दुहाई देकर शुरू किए गए राममंदिर आंदोलन ने भयावह स्वरूप ले लिया। लोगों की धार्मिकता का लाभ साम्प्रदायिक संगठनों ने समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए उठाया, वहीं कमजोर धर्मनिरपेक्ष संगठनों ने चुनावी गणित की खातिर घुटने टेक दिए।

पाकिस्तान में तो हालात और भी बुरे थे। जिन्ना ने 11 अगस्त 1947 के अपने भाषण में पाकिस्तान को एक धर्मनिरपेक्ष समाज बनाने का वायदा किया था, लेकिन यह हो न सका। साम्प्रदायिक सामंती तत्व ताकतवर होते गए और जल्दी ही उन्होंने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को तहस-नहस कर दिया। जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में हुए इलामीकरण के बाद से लेकर आज तक उन्मादी तत्व लगातार सशक्त होते गए हैं। अतः आज यद्यपि इमरान खान कट्टरपंथियों का सैद्धातिक दृष्टि से समर्थन नहीं करते किंतु वे उनसे समझौता करने को बाध्य हैं क्योंकि ऐसा न करने पर बड़े पैमाने पर हिंसा होने का खतरा है।

आज दोनों पड़ोसी देशों में कई मामलों मे एक-से हालात हैं। कुछ दशक पहले तक भारत का चरित्र अपेक्षाकृत लोकतांत्रिक, उदार एवं धर्मनिरपेक्ष था किंतु सन् 1990 के दशक से भारत में पाकिस्तान की तरह रूढ़िवाद हावी हो रहा है और राजनीति में धर्म का दखल बढ़ता जा रहा है।

पाकिस्तान में हिन्दू और ईसाई धार्मिक अल्पसंख्यक पहले से ही हाशिए पर थे और अब शियाओं और अहमदियाओं को निशाना बनाया जा रहा है।

इस प्रकार कानून तो आसिया बीबी और सबरीमाला मामलों में धर्मनिरपेक्ष नजरिए के साथ है, लेकिन समाज का एक हिस्सा इसका प्रतिरोध कर रहा है। आज यदि नेहरू होते तो कहते कि हालांकि कानून तो धर्मनिरपेक्ष हैं किंतु समाज का एक तबका इसके खिलाफ है और शुतुरमुर्ग की तरह प्रतिगामी मूल्यों की रेत में अपना सिर गड़ाए हुए है।

Courtesy: द सिटिज़न,
Original published date:
12 Nov 2018
Asia Bibi
Sabarlimala temple
Sabarlimala judgement
Pakistan
Religious fundamentalism

Related Stories

जम्मू-कश्मीर के भीतर आरक्षित सीटों का एक संक्षिप्त इतिहास

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

कार्टून क्लिक: इमरान को हिन्दुस्तान पसंद है...

कश्मीरी माहौल की वे प्रवृत्तियां जिनकी वजह से साल 1990 में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ

फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये

हिजाब विवाद: हिंदू लड़की को स्कूल में नथुनी पहनने के अधिकार वाले अफ्रीकी अदालत के फैसले को अदालत में संदर्भित किया गया

सीमांत गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष: सभी रूढ़िवादिता को तोड़ती उनकी दिलेरी की याद में 

भारत को अफ़ग़ानिस्तान पर प्रभाव डालने के लिए स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने की ज़रूरत है

कैसे कश्मीर, पाकिस्तान और धर्मनिर्पेक्षता आपस में जुड़े हुए हैं

भारत और अफ़ग़ानिस्तान:  सामान्य ज्ञान के रूप में अंतरराष्ट्रीय राजनीति


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    आंगनवाड़ी की महिलाएं बार-बार सड़कों पर उतरने को क्यों हैं मजबूर?
    23 Feb 2022
    प्रदर्शनकारी कार्यकर्ताओं का कहना है कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा घोषणाओं और आश्वासनों के बावजूद उन्हें अभी तक उनका सही बकाया नहीं मिला है। एक ओर दिल्ली सरकार ने उनका मानदेय घटा दिया है तो…
  • nawab malik
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हम लड़ेंगे और जीतेंगे, हम झुकेंगे नहीं: नवाब मलिक ने ईडी द्वारा गिरफ़्तारी पर कहा
    23 Feb 2022
    लगभग आठ घंटे की पूछताछ के बाद दक्षिण मुंबई स्थित ईडी कार्यालय से बाहर निकले मलिक ने मीडिया से कहा, '' हम लड़ेंगे और जीतेंगे। हम झुकेंगे नहीं।'' इसके बाद ईडी अधिकारी मलिक को एक वाहन में बैठाकर मेडिकल…
  • SKM
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बंगाल: बीरभूम के किसानों की ज़मीन हड़पने के ख़िलाफ़ साथ आया SKM, कहा- आजीविका छोड़ने के लिए मजबूर न किया जाए
    23 Feb 2022
    एसकेएम ने पश्चिम बंगाल से आ रही रिपोर्टों को गम्भीरता से नोट किया है कि बीरभूम जिले के देवचा-पंचमी-हरिनसिंह-दीवानगंज क्षेत्र के किसानों को राज्य सरकार द्वारा घोषित "मुआवजे पैकेज" को ही स्वीकार करने…
  • राजस्थान विधानसभा
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    राजस्थान में अगले साल सरकारी विभागों में एक लाख पदों पर भर्तियां और पुरानी पेंशन लागू करने की घोषणा
    23 Feb 2022
    मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को वित्तवर्ष 2022-23 का बजट पेश करते हुए 1 जनवरी 2004 और उसके बाद नियुक्त हुए समस्त कर्मचारियों के लिए आगामी वर्ष से पूर्व पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की है। इसी…
  • चित्र साभार: द ट्रिब्यून इंडिया
    भाषा
    रामदेव विरोधी लिंक हटाने के आदेश के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया की याचिका पर सुनवाई से न्यायाधीश ने खुद को अलग किया
    23 Feb 2022
    फेसबुक, ट्विटर और गूगल ने एकल न्यायाधीश वाली पीठ के 23 अक्टूबर 2019 के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें और गूगल की अनुषंगी कंपनी यूट्यूब को रामदेव के खिलाफ मानहानिकारक आरोपों वाले वीडियो के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License