NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
किधर जा रहा है कश्मीर?
तीन दशकों की सैन्य कार्रवाई ने आखिर "लोगों की इच्छा और दृष्टिकोण को क्यों नहीं बदला", इस पर खुद से पूछने के बजाय सत्ताधारी अभी भी कठोर मार्ग अपना रहे हैं।
गौतम नवलखा
23 Apr 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Greater Kashmir

हम कश्मीर में सैन्य कार्रवाई के साक्षी हैं। "लोगों की इच्छा और दृष्टिकोण को बदलने" के भारतीय सेना के उद्देश्य क्रम में इसने भारत में विचार तथा नीति निर्माताओं की अंतरात्मा को नहीं झकझोरा है। भारत सरकार द्वारा कश्मीर पर सात दशक पुराने संघर्ष पर नियमों के पालन न करने के कठोर मार्ग का अनुसरण करने के साथ ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय जनता पार्टी 1990 के दशक की सैन्य कार्रवाई को मात देना चाहती है। भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा चलाए जा रहे 'ऑपरेशन ऑल आउट' को दमनकारी पुलिसिंग विधियों के साथ शामिल किया गया है जिसमें घेराबंदी और तलाशी अभियान, मनमाने तरीके से हिरासत में लेने, हिरासत में यातना देना, झूठे आरोपों को दायर करने और जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ पर प्रतिबंध लगाना शामिल है। जिस क़ानून के तहत प्रतिबंध लगाया गया था उसका पालन करने की ज़हमत उठाए बिना ही प्रतिबंध लगाया गया। उदाहरण के लिए इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए हाल के वर्षों में दर्ज किए गए एफआईआर या मामले या "आधार” मुहैया कराना ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत अनिवार्य है। जमात-ए-इस्लामी बनाम भारत सरकार, 1994 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा जमात पर लगाए गए प्रतिबंध को खारिज कर दिया था। कश्मीर मामले में भी दोनों संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की आधिकारिक गजट अधिसूचना में कोई आधार नहीं दिया गया था। वास्तव में अधिकारी कानून का पालन करने में लापरवाही नहीं कर सकते। यहां फरमान द्वारा शासन क्रियाशील नियम है। यह सब उस समय हो रहा है जब देश के इतिहास में सबसे निर्णायक चुनावों में से एक 17वीं लोकसभा का चुनाव हो रहा है।

इस सशक्त दृष्टिकोण का परिणाम क्या है? हजारों रातोंरात अपराधी बन गए हैं क्योंकि वे किसी ऐसे व्यक्ति से संबंधित हैं जो किसी प्रतिबंधित संगठनों या सदस्य से किसी तरह से जुड़ा हुआ है जो भिन्न प्रकार से तीस वर्षों से वैध तरीके से काम कर रहा था। किसी को संदिग्ध और भारत के विरोधी के रूप में बताना अब आसान है। भारतीय राज्य द्वारा अपने ही नागरिकों को भयभीत करने के अलावा ये कुछ और नहीं है। यहां तक कि प्रतिबंधित संगठनों के साथ उनके संबंधों के चलते कश्मीरी अधिकारी भी जांच घेरे में हैं। और जो सत्ताधारी हैं वे कश्मीरियों द्वारा अनुभव किए गए गंभीर खतरे और/या कश्मीरियों के लिए अपने तिरस्कार को व्यक्त करते हैं।

विधि-विरुद्ध सरकार

जब सरकार उस विधि का पालन नहीं करती है जो वह लोगों पर लागू करती है और संवैधानिक स्वतंत्रता वास्तव में मुअत्तल रहती है तो यह कश्मीर को अस्पष्ट और अराजक क्षेत्र बना देता है। देश के गैर-संघर्ष क्षेत्रों के रूप में न तो विधि का शासन लागू है और न ही पिछले तीन दशकों से अशांत क्षेत्र के रूप में युद्ध का नियम संचालित है। यह ऐसा है जो चिंता की वजह होनी चाहिए क्योंकि एक ऐसा क्षेत्र जिसे "भारत का अभिन्न अंग" कहा जाता है ऐसे में इस पर इस तरह शासन किया जा रहा है जैसे साथी नागरिक के बजाय ये भूमि "प्रॉक्सी योद्धाओं" की है जो राजनीतिक समाधान के लिए विमुख और हताश हैं।

आतंकवाद से लड़ने के लिए दोहरे अंकों में पहुंच चुके न तो घुसपैठ और न ही आतंकवादियों (कुछ सौ देशी तथा विदेशी) की संख्या, सेना, केंद्रीय अर्धसैनिक बलों, पूर्व विद्रोहियों से समर्थित जम्मू-कश्मीर सशस्त्र पुलिस के अब एसपीओ इस भारी तैनाती को सही ठहरा सकते हैं। वह भी 60 किमी लंबे और 40 किमी चौड़े भूमि क्षेत्र में। पिछले छह महीनों में सीआरपीएफ की 100 कंपनियों की बढ़ी तैनाती और अधिक बंकरों के साथ लोगों के आवागमन पर लगाए गए प्रतिबंध, सैनिकों को तैनात करने के लिए शिविर कश्मीर को सबसे ज़्यादा सैन्यीकृत क्षेत्र बनाता है जो सुरक्षा शिविरों से भरा है।

इस कटु वास्तविकता को और अधिक कटु बनाने के लिए अधिकारियों ने हाल ही में सप्ताह में दो दिन बुधवार और रविवार को सैन्य वाहनों के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग पर नागरिक वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध लगा दिया। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासक के सामूहिक दंड लगाने की आदत की याद दिलाता है कि जब कभी स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर हो जाती या उन्हें नियंत्रण खोने की आशंका होती तो वे ऐसा करते। यही "राष्ट्रवादी" बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा कश्मीरियों पर थोपा जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि नागरिक वाहनों पर प्रतिबंध लगाना एक ऐसी स्थिति है जिसे 1990 के दशक में सबसे ज़्यादा विद्रोह के समय भी कभी लागू नहीं किया गया था। सेना ने हालिया प्रतिबंध का यह कहते हुए विरोध किया कि उनसे सलाह नहीं ली गई थी और वे शुक्रवार को छोड़कर सप्ताह के प्रत्येक दिन अपने वाहनों को ले जाएंगे। वास्तव में सोमवार 16 अप्रैल को सेना के जवानों ने सभी नागरिक वाहनों को रोक दिया और अपने चार सहयोगियों के साथ चुनाव ड्यूटी पर कार से जाते हुए एक सीडीएम को काजीगुंड के पास दलवाच स्क्वायर के नज़दीक डूरू (ज़िला अनंतनाग) में पीटा गया। इसलिए भारत सरकार द्वारा दो दिनों के प्रतिबंध और सैन्य कर्मियों द्वारा वाहनों को रोकने पर स्थानीय स्तर पर प्रतिबंध के बीच कश्मीरी दोनों तरफ से पिस रहे हैं। यह स्कूल जाने, अस्पताल पहुंचने, काम पर जाने, बाजार जाने या व्यवसाय के लिए जाने सहित हर नियमित गतिविधि को प्रभावित करता है। ऐसा कहा जाता है कि यह रोक 31 मई तक चलेगी लेकिन तब तक पहले से ही सैन्य रुकावट से पीड़ित लोगों को कई गुना पीड़ा का अनुभव होगा।

यह याद करने योग्य है कि आधे से अधिक कश्मीरी लोग पीटीएसडी (सैन्य बल जो भी कुछ करते हैं वे उसका क़ानूनी लाभ उठाते हैं और वे नागरिक न्याय से वंचित होते हैं जो सशस्त्र सेना के हिंसा के शिकार हैं) से पीड़ित हैं और यहां तक कि राज्य सेवाओं में कश्मीरियों को शक की नज़र से देखा जाता है और धीरे-धीरे उन्हें किनारे कर दिया जाता है। यह स्पष्ट है कि “आजादी” की मांग को छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए आम आदमी पर बलपूर्वक शासन करने के लिए एक सुविचारित नीति है। कश्मीरियों पर कार्रवाई का यह असर उनके गुस्से और आक्रोश को क्या करेगा जब हर दरवाजा बंद कर दिया गया है और सामान्य निवारण की सभी संभावनाओं को असंभव कर दिया गया है तो कल्पना करना भी मुश्किल नहीं है।

दीर्घकालिक तैनाती का ख़तरा

जम्मू-कश्मीर को "अशांत क्षेत्र" बनने के तीस साल बाद और एएफएसपीए (अफस्पा) के माध्यम से क़ानूनी बचाव का विस्तार करने के बाद सशस्त्र बल अभी भी "प्रोक्सी युद्ध" लड़ने का दावा करते हैं जो शीर्ष अदालत की चिंता को याद दिलाता है: क्या यह सच्चाई है कि कोई इलाका दशकों से "अशांत" बना हुआ है और सामान्य स्थिति अभी भी बहाल होने से दूर है यानी सेना अपना काम करने में विफल रही है या सरकार सशस्त्र बलों द्वारा तैयार किए गए अवसरों का इस्तेमाल करने में विफल रही है? जैसा कि पहले बताया गया है जब हम वास्तविक संख्याओं को देखते हैं तो हमें सैन्य कार्रवाई की नीति की पूरी निरर्थकता का पता चलता है। अंतिम संस्कार और मुठभेड़ स्थल के पास नागरिक प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाते हुए या तलाशी अभियान तथा घेरे के नाम पर घर में नागरिकों को निशाना बनाते हुए सशस्त्र बल कुछ समय के लिए सफल हो सकते हैं, लेकिन यह मानना कि कश्मीरियों को अब चुप किया जा सकता है ऐसे समय में जब यही तीन दशकों के अशांत क्षेत्र और एएफएसपीए (अफस्पा)  के लिए विफल रहा है उसे अविश्वसनीय तरीके से विश्वास करना है।

इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि सब-कनवेंशनल ऑपरेशनों के सेना के स्वयं के सिद्धांत ने जो संकेत दिया वह ये कि ऐसा कुछ जिसके बारे में उसे जानकारी होनी चाहिए। यह तर्क देता है कि ऐसे ऑपरेशनों में दुश्मनों से लड़ने और अपने ही लोगों से लड़ने के साथ ही आगे और पीछे; रणनीतिक और सामरिक; लड़ाकू और गैर-लड़ाकू” के बीच का अंतर अस्पष्ट है। दूसरे शब्दों में सेना जिसका पहला कर्तव्य बाहरी ख़तरे से देश की रक्षा करना है जिसमें उसे अपने पीछे के भाग यानी भीतरी क्षेत्र को सुरक्षित करने की आवश्यकता होती है वह पिछले तीन दशकों से लोगों से लड़ते हुए भीतरी क्षेत्र में ऑपरेशन में लगा हुआ है। भारत के प्रथम बल सेना का काम अपनी सीमाओं की रक्षा करना है। सेना की इस अतिसंवेदनशीलता को "राष्ट्रीय सुरक्षा" को मजबूत करने के रूप में प्रस्तुत किया जाता है!

भारतीय सेना यह दावा करती रही है कि वह नागरिकों की रक्षा के लिए सचेत अभियान चलाती है। फिर भी न केवल भारतीय सेना प्रमुख और अन्य प्रतिनिधि अंतर्राष्ट्रीय मानवीय क़ानून के तहत युद्ध अपराध माने जाने वाले "मानव ढाल" वाली घटना के लिए मेजर गोगोई के समर्थन में सामने आए बल्कि उन्होंने इसे "नया" तरीका भी बताया। ऐसा लगता है कि सेना प्रमुख ने नतीजों की परवाह किए बिना अपने सैनिकों को एक संदेश भेजा है कि वे जो चाहते हैं करें, वहीं कश्मीरियों को ये संदेश भेजा है कि जब तक वे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे तब तक हर तरीक़े का इस्तेमाल किया जाएगा। इस स्थिति में पुलिस और प्रशासन के लिए जेआई और जेकेएलएफ के सदस्यों/समर्थकों की ग़ैरक़ानूनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के नाम पर कार्रवाई करना यह संदेश देता है कि अहिंसक राजनीति का कोई भविष्य नहीं है। अगर इसमें कश्मीरियों के खिलाफ बीजेपी की नफरत भरी बयानबाजी का जहर मिलाया जाए तो यह संदेश जाता है कि आधिकारिक भारत को इस बात की परवाह नहीं है कि कश्मीरियों के लिए क्या कुछ किया जाता है क्योंकि या तो वे पाकिस्तान के समर्थक या ''आजादी'' की मांग कर उन्होंने अपने जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार को गंवा दिया है।

चिंताजनक विकास

यह वही है जिसे भारतीयों को चिंता होनी चाहिए। क्योंकि भारत सरकार की सैन्य कार्रवाई की नीति कश्मीरियों को उग्रवाद से दूर नहीं कर रही है बल्कि इसकी तरफ और भी अधिक उग्र रूप से भेज रही है। अधिकारियों ने खुद पिछले कुछ हफ्तों में दो असफल आत्मघाती विस्फोटों का दावा किया है। एक जगह पर हमलावर अंतिम समय में घबरा गया और इस तरह एक बड़ी घटना होने से बच गई। इसलिए सभी दरवाजे बंद होने और सशस्त्र बलों द्वारा ऑपरेशन ऑल आउट’ चलाने के साथ सामान्य कश्मीरियों से नफरत बढ़ गई और उनके प्रति शत्रुता खुले तौर पर व्यक्त की गई। यह सब उत्तेजक स्थिति को तैयार करता है।

पिछले पांच वर्षों में कश्मीर में बीजेपी के नेतृत्व वाली भारत सरकार की विलक्षण उपलब्धि इसका भ्रामक प्रचार रही है जिसमें सारी पाकिस्तान की गलती है जबकि धरातल पर सच्चाई इससे अलग दिखती है। यह बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार की पूरी तरह से विफलता है जो स्पष्ट है। तीन दशक गुजर जाने के बावजूद अधिकारी अभी भी खुद से पूछने के बजाय सख़्त दृष्टिकोण अपनाते हैं। वे खुद से नहीं पूछते कि तीन दशकों के सैन्य कार्रवाई ने "लोगों की इच्छा और रवैये को क्यों नहीं बदला" जो सेना का उद्देश्य था। तो ऐसा क्या है जो बीजेपी सरकार को लगता है कि वे सफल होंगे जबकि बुद्धिमान सेना के दिग्गजों ने भारतीय जनता को बार-बार चेतावनी दी है कि कश्मीर विवाद का कोई सैन्य समाधान नहीं है और सभी पक्षकारों के बीच बातचीत करने की आवश्यकता है? और जब नुकसान पहुंचाया जा रहा है तो केवल उन लोगों के संकल्प को दृढ़ किया जाएगा जो हताश हैं और जानते हैं कि सभी विकल्प बंद हैं तो यह निराशाजनक स्थिति "राष्ट्र हित" में कैसे हो सकती है?

Kashmir
Kashmir crises
Kashmir Politics
Jamaat-e-Islami
JKLF
BJP
General elections2019

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License