NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
किसानी की हालत सुधारनें में फेल हैं सरकारी नीतियाँ
पिछले 2 सालों में किसानों की कुल आमदनी में तकरीबन 6 फीसदी सलाना के दर से कमी आयी है वहीं सरकारी नीतियों की वजह से अनाज का उपभोग वाले लोगों ने 25 फीसदी कम खर्च किया है।
अजय कुमार
12 Jul 2018
farmers

 साल 2014 में  जितनी शानदार मोदी जी की भाषण की रणनीतियां थी उतनी ही बेकार अभी तक उनकी ज़मीनी हकीकत रही है। मोदी जी अपनी चुनावी रैलियों में किसानों की दो गुनी आय और स्वामीनाथन आयोग के तहत लागत से 50 फीसदी अधिक दाम  दिलाने की रणगर्जना करते थें । लेकिन हाल-फिलाहल की ज़मीनी हकीकत मोदी जी की चुनावी रणगर्जना को हवा हवाई  साबित कर रही है ।  

आर्गेनाईज़ेशन फॉर इकोनॉमिक एंड डेवेलपमेंण्ट और इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस ने  एग्रीकल्चर पॉलिसी इन इंडिया नाम से रिपोर्ट प्रकाशित की है । इस रिपोर्ट में किसानी से जुड़ी  सरकारी नीतियों की तहकीकात की गयी है। पिछले 2 सालों में सरकार की किसानी नीतियों से  किसानों और आम आदमी पर पड़े प्रभाव का आकलन किया गया है।  

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष भी ठीक वैसे ही हैं जैसी किसानों की तंगहाली है। पिछले 2 सालों में किसानों की कुल आमदनी में तकरीबन 6 फीसदी सलाना के दर से कमी आयी है वहीं सरकारी नीतियों की वजह से अनाज का उपभोग  करने वाले लोगों ने 25 फीसदी कम खर्च किया है। इसका मतलब यह है कि किसानों की आमदनी की हालत सुधारने के बजाए और अधिक बिगड़ी है। किसानी पहले भी उत्पादक केंद्रित न होकर उपभोक्ता केंद्रित थी और अब भी यही हालत चल रही है जो पिछले  2 सालों  में और बदतर हो चुकी है। 

सरल शब्दों में इसे ऐसा समझा जा सकता है कि किसान को अपनी उपज पैदा करने में 100  रूपये खर्च करने पड़ते हैं लेकिन उपज को बेचने के बाद उसे उपज की लागत से कम, मात्र 94 रूपये मिलते हैं। किसान की उपज और किसान की आमदनी से जुड़ी सारी सरकारी योजनाएं कमज़ोर साबित हो रहीं है। प्रधानमंत्री सिंचाई योजना से लेकर बीज और खाद पर मिलने वाली सरकारी सब्सिडी मिलकर भी उपज की लागत को उतना कम नहीं कर पा रहे हैं जितना कि  बाज़ार उपज का मूल्य देना चाहता है। यानि कि किसान उत्पादकों को किसान नीतियों से कोई लाभ नहीं मिल रहा है। वहीं किसानी  उपज से जुड़ी डोमेस्टिक मॉर्केट रेगुलेशन ,एसेंशियल कमोडिटी एक्ट, एग्रीकल्चर रिलेटेड इम्पोर्ट एंड एक्सपोर्ट पॉलिसी आदि सरकारी नीतियों से आम आदमी किसानी उपज पर पहले की अपेक्षा 25 फीसदी कम खर्च करने लगा है। यानि कि किसान भलाई के नाम पर बनाई गयी सरकारी नीतियों से किसान की भलाई होने की बजाए बाज़ार से से चलने वाले उपभोक्ताओं की भलाई हो रही है।

 इस रिपोर्ट में भारतीय किसानों की हालत की तुलना अन्य देशों से भी कि गई है। OECD में 36 देश शामिल हैं । किसानी उपज से आमदनी के रूप में भारत की स्थिति अन्यों देशों के मुकाबले बेहद कमजोर है। सभी देशों की आमदनी की स्थिति नीचे दिए गए ग्राफ से समझी जा सकती है ।

graph

भारत अन्य देशों के मुकाबले अपने किसानों को सबसे कम न्यूनतम समर्थन मूल्य देता है।मार्केट रेगुलेशन के लिए बनाई गई  सरकार की प्रतिबंधित व्यापार  नीतियों की वजह से किसानों को अपनी आमदनी में 14 फिसदी का नुकसान सहन करना पड़ता है। इसलिए पिछले साल भर से किसानों को वाजिब मूल्य दिलाने के लिए ज़मीन पर लड़ी गयी हर लड़ाई की महत्ता भी स्पष्ट होती है और उन लोगों की महत्वहीनता स्पष्ट होती है जो किसानों की लड़ाई को खारिज करने पर तुले होते हैं। 

इस तरह से यह साफ दिखता है कि सरकारी नीतियां किसानों की भलाई नहीं कर पा रही हैं। ज़मीनी हकीकत और सरकारी नीतियों के बीच खासा अंतर मौजूद है। किसानों की आमदनी और आम जन के रोज़ाना के खर्चे के बीच फूड सिक्योरिटी कानून के तहत सबसे कमज़ोर लोगों तक भी अन्न पहुंचाना सरकार की जिम्मेदारी है। यह सब मिलकर भारतीय खेती-किसानी की दुनिया को बहुत जटिल बना देती है।  इसका हल खेती किसानी की परेशानी को गंभीरता से लेने में छिपा हुआ है । किसान से लेकर उपभोक्ता के बीच बनने वाली प्राइस चेन को दुरस्त करने में मौजूद है। किसानों को अपनी उपज का वाजिब मूल्य दिलाने की प्रतिबद्धता में छिपा हुआ है। आज हर जगह की अनाज मंडियों की हालत खराब है। सरकारी तंत्र हर जगह घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने में असफल रहा है।  योगेंद्र यादव के किसान आंदोलन ने देश की हर अनाज मंडी की खस्ताहाली और बदहाली को जगजाहिर करते हुए पाया कि कहीं  भी किसान को अपनी उपज की लागत से 50 फीसदी अधिक मेहनताना नहीं मिला। 

इस लिहाज से नीतिगत तौर पर नीति आयोग की आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस के सहारे किसानी की समस्या का हल निकालने की कोशिश कोरी कल्पना लगती है और नेतृत्व के तौर पर प्रधानमंत्री की किसानों की आय दोगुनी करने जैसी भाषणबाज़ी कोरी बकवास लगती  है।

agrarian crises
farmer income
MSP
OECD report
ICRIER
किसान
State policy of agriculture
किसानों की बदहाली

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

अगर फ़्लाइट, कैब और ट्रेन का किराया डायनामिक हो सकता है, तो फिर खेती की एमएसपी डायनामिक क्यों नहीं हो सकती?

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

क्यों है 28-29 मार्च को पूरे देश में हड़ताल?

28-29 मार्च को आम हड़ताल क्यों करने जा रहा है पूरा भारत ?

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

तमिलनाडु राज्य और कृषि का बजट ‘संतोषजनक नहीं’ है

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License