NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसानों की बदहाली के लिए केंद्र और राज्य सरकारें बराबर की ज़िम्मेदार
कृषि उपज की बिक्री के लिए एक सुविधाजनक मंच बनाने की ज़रूरत है ताकि अंतिम उपभोक्ताओं तक किसानों की पहुंच बढ़ाई जा सके।
राकेश सिंह
19 Feb 2020
KISAN

आज़ादी मिलने के बाद एक समय 50 करोड़ लोगों के लिए खाद्यान्न की कमी के घनघोर संकट से जूझ रहा देश आज ऐसी स्थिति में है कि वह एक अरब 33 करोड़ लोगों का पेट भरने में सक्षम होने के साथ ही कुछ निर्यात भी कर रहा है। देश के किसानों ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से खाद्यान्न उत्पादन को 1960-61 के 83 मिलियन टन से बढ़ाकर 2017-18 में लगभग 275.68 मिलियन टन कर दिया है। लेकिन देश को ऐसे संकट से निकालकर वर्तमान स्थिति में ले आने वाले किसान बदहाल ही रह गए हैं।

देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में किसानों की सफलता के बावजूद वे अपनी उपज के लिए सही कीमत पाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। किसानों के लिए सरकारी एजेंसियां जैसे- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य सरकार की एजेंसियां धान और गेहूं की बिक्री के लिए उपलब्ध मुख्य प्लेटफार्मों में से एक हैं। हालांकि सरकार 2002-03 से 2017-18 के बीच 1340.02 मीलियन टन गेहूं उत्पादन के मुकाबले केवल 358.82 मिलियन टन (26.77%) और 1557.75 मिलियन टन चावल के उत्पादन के मुकाबले 487.60 मिलियन टन चावल (31.30%) की खरीद करने में सक्षम रही है।

अधिकांश राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार के निर्देश पर 1954 से 1956 के बीच कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानून लागू किए थे। इस कानून की ज़रूरत इसलिये पड़ी क्योंकि व्यापारी माल की कीमत का कभी खुलासा नहीं करते थे। इसके लिये एक कूट भाषा का इस्तेमाल करते थे। इन कानूनों में सामानों की खुली बोली लगाने और मूल्य का तत्काल भुगतान किसानों को करने का नियम था। एपीएमसी कानून का उद्देश्य आपूर्ति और मांग के बीच उचित समन्वय बनाना था। जिससे कृषि उपजों का सही मूल्य निर्धारण हो। लेन-देन में पारदर्शिता से भ्रष्टाचार और व्यापारियों और बिचौलियों के एकाधिकार पर प्रतिबंध लगे। इनका उद्देश्य जमाखोरी और मुनाफाखोरी पर लगाम लगाना था। लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हो सका है।

पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री डॉ. सोमपाल शास्त्री ने एक बातचीत में इस पूरे तंत्र के ऐतिहासिक विकास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मंडियों का तंत्र मुगल काल के पहले से चला आ रहा था। ब्रिटिश सरकार ने इस तंत्र को अपने फायदे के लिए कठोर नियमों के दायरे के भीतर ले लिया। शहरों में लोगों को सस्ती कीमत पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए अनाज की अनिवार्य वसूली का नियम लागू किया गया। हर साल ब्रिटिश सरकार फसलों का एक अधिकतम मूल्य घोषित कर देती थी। उसी कीमत के नीचे किसानों को फसल बेचने के लिए बाध्य किया जाता था। जमींदार, पटवारी और व्यापारियों का गिरोह किसानों के घरों से उसी कीमत पर अनाज की जबरिया वसूली करता था। इस काम में कभी-कभी पुलिस की भी मदद ली जाती थी। अनाज छुपाने वाले लोगों के लिए दंड का भी प्रावधान था। यह पूरी व्यवस्था कमोबेश 1965 तक चलती रही।

1965 में भारतीय खाद्य निगम की स्थापना हुई और तत्कालीन कृषि और खाद्य मंत्री पंजाब राव देशमुख ने गेहूं और चावल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की। ऐसा करने के लिए दो उद्देश्य घोषित किए गए थे। पहला, किसानों को उचित लागत मूल्य दिलाना और दूसरा उपभोक्ताओं को साल भर उचित मूल्य पर खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित कराना। 1986 में तत्कलीन वित्त मंत्री वी.पी. सिंह ने संसद में दीर्घकालीन परिदृश्य के लिए एक कृषि मूल्य नीति पेश की। इसमें पहली बार 22 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का प्रावधान किया गया। इसके पहले केवल 4 फसलों गेहूं, चावल, गन्ना और कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए गए थे।

डॉ. सोमपाल शास्त्री का कहना है कि 1990 के दशक में अंत तक दिल्ली में स्थित आज़ादपुर मंडी में भी व्यापारी सामानों की खुली बोली नहीं लगाते थे। इसका सबसे बड़ा कारण है कि व्यापारियों को लाइसेंस लेने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इसके बाद वे बेलगाम होकर किसानों को लूटते हैं।

देश भर में एपीएमसी बाजार कई कारणों से किसानों के हित में काम नहीं कर रहे हैं। एपीएमसी बाजारों में व्यापारियों की सीमित संख्या के कारण प्रतिस्पर्धा कम है, व्यापारियों का कार्टेलाइज़ेशन, बाजार शुल्क के नाम पर अनुचित कटौती, कमीशन शुल्क की वसूली आदि कारणों से एपीएमसी अधिनियमों के प्रावधानों को उनके सही अर्थों में लागू नहीं किया गया है। बाजार शुल्क और कमीशन शुल्क कानूनी रूप से व्यापारियों पर लगाया जाता है, जबकि इसे किसानों की रकम में से घटाकर किसानों से वसूल किया जाता है।

कुछ राज्यों में एपीएमसी अधिनियम में प्रावधान किसानों के लिए इतने प्रतिबंधात्मक हैं कि कृषि उपज की बिक्री एपीएमसी बाजारों की सीमा के बाहर होने पर भी बाजार शुल्क लगाया जाता है। कुछ राज्य तो प्रसंस्करण इकाइयों पर माल उतारने पर और बाजार के बाहर लेनदेन को ही अवैध मानते हैं। कई एपीएमसी बाजारों में व्यापार के लिए कई लाइसेंसों की आवश्यकता होती है और राज्य के भीतर भी एक ही माल पर कई बार बाजार शुल्क लगाया जाता है।

केंद्र सरकार ने एपीएमसी कानूनों में सुधार के लिए राज्य सरकारों के लिए राज्य कृषि उपज विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 2003 और 2007 में मॉडल नियमों को तैयार किया था। कृषि विभाग तब से अधिक से अधिक राज्यों के साथ इसे लागू कराने का कोशिश में लगा है। इन बदलावों के बावजूद एपीएमसी अधिनियम में और सुधार करने की जरूरत महसूस की गई। मंडियों को किसानों के ज्यादा अनुकूल बनाने के लिए केंद्र सरकार ने मॉडल कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2017 (APLM) जारी किया था।

मॉडल एपीएलएम अधिनियम, 2017 का लक्ष्य अपनी उपज, पशुधन और उसके उत्पाद को खरीदारों को बेचने और अपनी पसंद के बिक्री चैनल के माध्यम से बेहतर बोली की पेशकश करने के लिए किसानों और पशुपालकों को पूरी स्वतंत्रता देना है। इसके अलावा सरकार का मानना था कि इससे मंडियों के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित होगा। राज्यों ने इस इस दिशा में कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई और केवल अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने मॉडल एपीएलएम अधिनियम, 2017 को अपनाया है। जबकि पंजाब ने आंशिक रूप से अपनाया है। अन्य राज्य अभी इसे अपनाने के लिए टाल- मटोल कर रहे हैं।

इसके अलावा मंत्रालय ने एक मॉडल 'कृषि उत्पादन और पशुधन अनुबंध खेती और सेवा (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2018' भी तैयार किया है। इसका लक्ष्य कृषि-प्रसंस्करण इकाइयों से फल और सब्जी उत्पादकों को बेहतर मूल्य दिलाना और फसल कटाई के बाद के नुकसानों को कम करना है। एपीएलएम अधिनियम को राज्य / केंद्रशासित प्रदेशों में मॉडल एकल बाजार बनाने के इरादे बनाया गया था। सरकार राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) योजना को लागू कर रही है। जिसमें किसानों को उपज की बिक्री के लिए ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म दिया जा रहा है। अब तक पूरे देश में 18 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में केवल 595 मंडियां इससे जुड़ी हैं।

देश के 23 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों में 6630 एपीएमसी बाज़ार हैं। जबकि बिहार, केरल, मणिपुर, मिजोरम और सिक्किम राज्यों में कोई एपीएमसी मार्केट नहीं है। इसके अलावा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दमन और दीव में कोई एपीएमसी बाजार नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में विनियमित बाजारों के घनत्व में पंजाब में 116 वर्ग किमी. से मेघालय में 11215 वर्ग किमी. तक की भिन्नता है। देश में विनियमित कृषि बाजार का अखिल भारतीय औसत क्षेत्र 496 वर्ग किमी. है। राष्ट्रीय किसान आयोग (2006) की सिफारिश के अनुसार एक विनियमित बाजार 5 किलोमीटर के दायरे में किसानों के लिए उपलब्ध होना चाहिए। राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए गए मानदंडों को पूरा करने के लिए देश में 41,000 बाजारों की आवश्यकता होगी।

एपीएमसी बाजारों में बुनियादी ढांचे और अन्य नागरिक सुविधाओं की स्थिति पूरे देश में खराब है और केवल 65% बाजारों में ही शौचालय की सुविधा है। केवल 38% बाजारों में किसानों के लिए रेस्ट हाउस है। केवल 15% एपीएमसी मार्केट में कोल्ड स्टोरेज की सुविधा है, जबकि वजन सुविधा केवल 49% बाजारों में उपलब्ध है। इन एपीएमसी बाजारों में बैंकिंग, इंटरनेट कनेक्टिविटी की सुविधा भी ख़राब हैं। देश में कृषि बाज़ारों की संख्या बढ़ाने और एपीएमसी बाजारों में नागरिक बुनियादी ढांचे, बैंकिंग सुविधा, डिजिटल कनेक्टिविटी और अन्य सुविधाओं के सुधार के लिए राज्य सरकारों का काम करना ज़रूरी है।

राज्यों को किसानों के हितों के लिये उदासीन बताने के केंद्र सरकार की दलील से सोमपाल शास्त्री सहमत नहीं हैं। सोमपाल शास्त्री का कहना है कि अगर कृषि राज्यों का विषय है तो फिर केंद्र में कृषि मंत्रालय क्यों बनाया गया है। ऐसे में तो कृषि मंत्रालय को बंद ही कर देना चाहिए। इस पर खर्च की बर्बादी क्यों की जा रही है। केंद्र सरकार जीएसटी और दूसरे कानूनों को किसी भी तरह से राज्य सरकारों से लागू करा लेती है। लेकिन जब किसानों या उनसे जुड़े किसी भी लाभ की बात आती है तो केंद्र सरकार अपना जिम्मा राज्य सरकारों के ऊपर डाल देती है।

देश में बहुसंख्यक किसान छोटे और सीमांत किसान हैं। कृषि उपज के लिए सरकारी खरीद सुविधाओं की कमी है। कम कृषि अधिशेष, बाजारों की दूरी, भुगतान में देरी, नौकरशाही की अड़चनें जैसे विभिन्न कारणों और वैकल्पिक बिक्री मंच की कमी से एक ऐसी स्थिति पैदा हो चुकी है, जहां किसानों के पास बहुत कम और कभी-कभी बिना लाभ के भी बिचौलियों को अपनी उपज बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है। कृषि उपज के लिए पारदर्शी और आसानी से सुलभ बिक्री सुविधायें सुनिश्चित करने में केंद्र और राज्य सरकारों की विफलता देश के अधिकांश किसानों की खराब आर्थिक स्थिति का सबसे बड़ा कारण है।

कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक सुविधाजनक मंच बनाने की ज़रूरत है ताकि अंतिम उपभोक्ताओं तक किसानों की पहुंच बढ़ाई जा सके। इससे कृषि उपज के लिए सही मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी और किसानों की आय बढ़ेगी। ऐसे वैकल्पिक बिक्री प्लेटफार्मों के निर्माण की आवश्यकता है, जो देश के अधिकांश किसानों के लिए आसानी से सुलभ हो सके। बड़ी संख्या में नए विनियमित थोक बाजारों का विकास न तो संभव और न ही आर्थिक रूप से व्यावहारिक हो सकता है। इसलिए मौजूदा ग्रामीण हाट-बाजारों को पूरी से विकसित करने की जरूरत है। ये न केवल खेत के पास अतिरिक्त बाजार सुविधाएं बनाएंगे, बल्कि किसानों के नुकसान को रोकेंगे और खरीदारों को भी फायदा होगा।

kisan
union budget
agricultural crises
agrarian crises
India

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

MSP पर लड़ने के सिवा किसानों के पास रास्ता ही क्या है?

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

छत्तीसगढ़: भूपेश सरकार से नाराज़ विस्थापित किसानों का सत्याग्रह, कांग्रेस-भाजपा दोनों से नहीं मिला न्याय

विशेषज्ञों के हिसाब से मनरेगा के लिए बजट का आवंटन पर्याप्त नहीं

केंद्रीय बजट-2022: मजदूर संगठनों ने कहा- ये कॉर्पोरेटों के लिए तोहफ़ा है

बजट के नाम पर पेश किए गए सरकारी भंवर जाल में किसानों और बेरोज़गारों के लिए कुछ भी नहीं!

यूपीः बीजेपी नेताओं का विरोध जारी, गांव से बैरंग लौटा रहे हैं किसान

ग्राउंड  रिपोर्टः रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के गृह क्षेत्र के किसान यूरिया के लिए आधी रात से ही लगा रहे लाइन, योगी सरकार की इमेज तार-तार


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License