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कोयला क्षेत्र में एफ़डीआई : देखिए इसके लिए कौन-कौन आता है!
विश्व की सबसे निर्मम कुछ कंपनियां भारत के अमूल्य खनिज संसाधनों को हासिल करने के लिए यहां प्रवेश कर सकती हैं।
सुबोध वर्मा
09 Sep 2019
FDI coal

मोदी सरकार ने घोषणा की है कि देश के कोयला खनन क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) की अनुमति दी जाएगी। इससे इस बात की संभावना काफ़ी हद तक बढ़ गई है कि दुनिया के बड़े खनन समूह काफ़ी दिलचस्पी के साथ यहां के इस क्षेत्र में दाख़िल होंगे। भारत में अनुमानित 319 बिलियन टन संचयी कोयला भंडार हैं जो मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्य प्रदेश में हैं। वहीं तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी कोयला के भंडार हैं साथ ही पूर्वोत्तर सहित कई अन्य राज्यों में छोटे-छोटे भंडार हैं।

वर्तमान में लगभग 92% खनन सार्वजनिक क्षेत्र की बड़ी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआइएल) और छोटे सार्वजनिक उपक्रम सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (एससीसीएल) द्वारा किया जाता है। कोयला मंत्रालय के तात्कालिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष2018-19 में भारत ने लगभग 730.54 मिलियन टन (एमटी) का उत्पादन किया था जिसमें से 606.89 मीट्रिक टन सीआइएल जबकि लगभग 64.4 एमटी एसीसीसएल द्वारा खनन किया गया था।

इसके बावजूद भारत के कोयले भंडार का शोषण करने के लिए सरकार को विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करने की कोई आवश्यकता नहीं लगती है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका उत्पादन बढ़ रहा है। उन्होंने पिछले साल लगभग 44,000 करोड़ के विभिन्न करों और रॉयल्टी के अलावा पिछले दशक में सरकार को लाभांश और भंडार के लिए लगभग 1.17 लाख करोड़ का भुगतान किया है। वे रोज़गार के बेहतर स्त्रोत भी हैं। लगभग पांच लाख कर्मचारी तो अकेले सीआइएल में ही हैं। हालांकि इनमें से लगभग 2.7 लाख नियमित कर्मचारी हैं (बाक़ी विभिन्न प्रकार के अनुबंध या आकस्मिक श्रमिक हैं)। सच्चाई यह है कि सीआइएल को दुनिया की शीर्ष 10 कोयला खनन कंपनियों में गिना जाता है।

इसलिए यह अजीब लगता है कि विदेशी पूंजी अर्थात विदेशी कंपनियों को भारतीय कोयला खदानों में निवेश करने के लिए बुलाया जा रहा है। ऐसा क्यों है, इसके बारे में न्यूज़क्लिक में पहले लिखा गया है, लेकिन यहां आइए एक नज़र डालते हैं कि इस गुट में कौन-कौन शामिल होने वाले हैं।

बड़ी खनन कंपनियां

वैश्विक ऑडिटिंग कंपनी प्राइस वाटर हाउस कॉपर[PricewaterhouseCoopers (PwC)] की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार विश्व की शीर्ष 40 खनन कंपनियों का राजस्व वर्ष 2018 में  683 बिलियन डॉलर था और वर्ष 2019 में 686 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की संभावना थी। कर छोड़कर इन कंपनियों का संयुक्त लाभ वर्ष 2018 में 93 बिलियन डॉलर था और चालू वर्ष में बढ़कर 109 बिलियन डॉलर होने की संभावना थी। यानी कि लगभग 17% की उछाल होने वाली है! वर्ष 2018 में इनका शुद्ध लाभ (करों और अन्य सभी कटौती के बाद) 66 बिलियन  डॉलर था वर्ष 2019 में 76 बिलियन डॉलर तक बढ़ने की संभावना है। इसमें अभूतपूर्व तरीक़े से लगभग 15% की वृद्धि होने की संभावना है।

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ये खनन समूह बड़ी ट्रांसनेशनल कंपनियों (टीएनसी) के बड़े समूह का हिस्सा हैं जो आज दुनिया की अर्थव्यवस्था पर हावी हैं।वर्ष 2015 के टफ्ट्स विश्वविद्यालय/यूएनसीटीएडी के अध्ययन के अनुसार शीर्ष 2,000 टीएनसी के पास जो संपत्तियां थीं वो दुनिया की जीडीपी की 229% थी जबकि उनकी शुद्ध बिक्री विश्व जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का लगभग आधा (48.8%) थी। ये खनन कंपनियां इन 2,000 शीर्ष टीएनसी में से लगभग 5.5% थीं। अध्ययन से पता चला कि टीएनसी का मुनाफ़ा 1996 में 9.3% से बढ़कर 2015 में 13.3% हो गया।

विशेष रूप से कोयला खनन के बारे में क्या है? स्टेटिस्टा से लिए गए नीचे दी गई तालिका के अनुसार दुनिया में शीर्ष 10 कोयला खनन दिग्गजों में से पांच चीन की कंपनी हैं और एक भारतीय कंपनी कोल इंडिया है। भारतीय कोयले के दोहन के लिए चीन की कंपनी को आमंत्रित करने की मोदी सरकार संभावना नहीं है। तो, संभावित उम्मीदवार शीर्ष तीन या पांचवे नंबर की है।

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ध्यान दें कि कोल इंडिया पहले से ही शीर्ष 10 में है, फिर भी राजस्व भारत से बाहर स्थानांतरित किया जा रहा है यानी ब्रिटिश या ऑस्ट्रेलियाई कंपनियों में से किसी को यह हासिल होगा।

खनन टीएनसी कैसे लाभ हासिल करती हैं और यह कहां जाता है?

ये दिग्गज कंपनियां भारत में ख़ैरात का काम करने के लिए नहीं आ रही हैं। वे अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना चाहती हैं। यहां प्रस्तुत विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि ये कंपनियों का उद्देश्य बड़ा मुनाफ़ा हासिल करना है।

* जानबूझकर उन देशों में कार्य करना जहां कम वेतन वाले श्रमिकों का शोषण करना संभव है।

* उन स्थानों पर निवेश करना जहां कमज़ोर कर-क़ानून का लाभ उठाना संभव है।

* स्थानीय सरकारों के साथ व्यापार के अनुकूल उत्पादन के अनुसार समझौते सुनिश्चित करना।

नैट सिंघम कॉमन ड्रीम्स (इसी से उपरोक्त तथ्य लिए गए हैं) में लिखते हुए ज़ाम्बिया स्थित ट्राइकॉन्टिनेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल रिसर्च(टीआइएसआर) द्वारा किए गए अनुभव पर आधारित अध्ययनों का हवाला देते हैं। वे लिखते हैं कि कोनकोला कॉपर माइन्स(केसीएम) निगम जो वेदांत की सहायक कंपनी है वह स्थानीय खनन श्रमिकों को औसतन172 डॉालर मासिक वेतन देती है जबकि जाम्बिया में वैधानिक मासिक न्यूनतम वेतन 176.4 डॉलर है। टीआईएसआर ने अपने अनुभव आधारित सर्वेक्षणों के पूरक के लिए वेतन समझौतों की समीक्षा की और पाया कि वेदांत के मालिक अनिल अग्रवाल ने तांबे के खानों में अस्थायी संविदा कर्मियों की कमाई का 584 गुना ज़्यादा हासिल किया।

ऊपर दी गई पीडब्ल्यूसी रिपोर्ट बताती है कि शीर्ष 40 खनन कंपनियों ने अपने खनन व्यवसाय से हासिल किए कुल रक़म का औसतन महज़ 22% अपने कर्मचारियों पर ख़र्च किया जबकि 25% शेयरधारकों के पास गया। इससे पता चलता है कि इन टीएनसी के खनन कार्यों में श्रमिकों का काफी शोषण होता है। यह बड़ा कारक है जो बड़े कोयला कंपनियों को भारत में आकर्षित करेगा क्योंकि यहां मज़दूरी काफ़ी कम है ख़ासकर अनुबंध श्रमिकों के मामले में।

कर का पक्ष भी बेहद महत्वपूर्ण है। पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट बताती है कि शीर्ष 40 खनन कंपनियों ने वर्ष 2018 में सभी प्रकार के करों को मिलाकर 27 बिलियन डॉलर का भुगतान किया जबकि उनका राजस्व 683 बिलियन डॉलर था। यह 3.95% का प्रभावी कर दर है! इस प्रकार की कर दरों के मामले में यह आश्चर्य की बात नहीं है कि खनन कंपनियां दोनों हाथों से मुनाफ़े बटोर रही हैं।

यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत में कर की दर इतनी कम नहीं होगी जो बेहद ग़रीब और कमज़ोर अफ़्रीकी देशों में प्रचलित है। यह संभव है, लेकिन यहां हमें ध्यान देने की ज़रुरत है कि ये टीएनसी कंपनी जिस देश में काम करते हैं वे वहां के शासकों पर काफ़ी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं। एक बार जब वे किसी देश के खनन कार्यों में अपने दांत गड़ा देते हैं - जैसा कि मोदी उन्हें भारत में कार्य करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं- तो उनकी गहरी जेब,ब्रिटेन, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में सरकारों के साथ उनके राजनीतिक टकराव, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय वित्त एजेंसियां और बैंकों जैसे वित्तीय संस्थानों के साथ जैसे उनके संबंध हैं वो भारत के साथ भी जल्द ही स्पष्ट हो जाएंगे। वे यह सुनिश्चित करेंगे कि हर तरीके से उनके लाभ किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किए जाते हैं ख़ासकर कराधान के मामले में।

इसलिए, जैसा कि न्यू इंडिया देश के प्राकृतिक संसाधन क्षेत्र में पूरी तरह से काम शुरू करने के लिए इन निर्मम दिग्गजों का स्वागत करने के लिए तैयार है ऐसे में उन लाखों श्रमिकों के लिए समस्या बढ़ने जा रही है जो छंटनी, सेवा की शर्तों में बदलाव और मिलने वाले लाभ में कमी का सामने करेंगे। इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक ये कि इन कंपनियों द्वारा देश को चूस लिया जाएगा। इन्ही मुद्दों को ध्यान में रखते हुए सरकार के इस विनाशकारी फ़ैसले के ख़िलाफ़ 24 सितंबर को हड़ताल पर जा रहे पांच लाख कोयला कर्मचारी सलामी देने के लायक तो ज़रूर हैं क्योंकि वे सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं लड़ रहे हैं बल्कि वे देश की संप्रभुता के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।

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