NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कर्नाटक : आख़िरी पल तक संस्पेंस की वजह?
कर्नाटक विधानसभा में संख्या एकदम साफ़ थी। राजनीति से अनजान व्यक्ति भी आसानी से कह सकता था कि गलत और असंवैधानिक तरीके से बनाई गयी सरकार है, बहुमत साबित नहीं कर पाएगी, जाएगी।
बादल सरोज
21 May 2018
Karnataka Elections

कर्नाटक विधानसभा में संख्या एकदम साफ़ थी।  राजनीति से अनजान व्यक्ति भी आसानी से कह सकता था कि गलत और असंवैधानिक तरीके से बनाई गयी सरकार है, बहुमत साबित नहीं कर पाएगी, जाएगी। फिर शनिवार को आख़िरी वक़्त तक इतना सस्पेंस क्यूँ था? 

यह सस्पेंस इसलिये था क्योंकि सभी को पक्की आशंका थी कुछ विधायकों के बिकने की और जबरदस्त विश्वास था उन्हें खरीदने वालों की खरीदी-क्षमता पर, था न ? 

असली समस्या यह है।  समस्या किसी तिरपट नेता की कोई चिरकुट पार्टी भर नहीं हैं, समस्या यह है। समस्या है संसदीय राजनीति का मछलीबाजार और विधायकों का रोहू, कतला, हिल्सा मछलियों की छोटी बड़ी टोकनी बन जाना । यह खतरनाक सिंड्रोम है - इसे धिक्कारा, दुत्कारा और अस्वीकारा नहीं गया तो आज ख़रीददार बेल्लारी के रेड्डी बंधू है, किसी रिसोर्ट का कोई सोम-मंगल-बुध है, कल थैलियां किसी अमरीकन कारपोरेट की होंगी ।  जिन्हें बिकना है वे उनसे पैसा लेकर बिकेंगे और जिन्हें इस खुल्लमखुला धतकरम  को चाणक्य सी चतुराई बताना है वे उनसे पैसा लेकर ऐसा लिखेंगे और दिखाएँगे ।

यह आशंका भर नहीं है, इतिहास में ऐसा हुआ है । ऐसा दुनिया के अनेक देशों में हुआ है । सीआईए के किसी भी पूर्व वरिष्ठ जासूस की एक भी किताब उठाकर देख लें । (ऐसी बीसियों किताबें हैं) । कई देशों की -खुद अपने यूएसए सहित - सत्ता उलटने के सचित्र ब्यौरे मिल जायेंगे । इस लिहाज से वह प्रवृत्ति अतिरिक्त चिंता का कारण है। 

पूँजी छप्परतोड़-खदानफोड़-बैंकनिचोड़ कमाई की लालसा में मतवाली हो जाती है । इसके लिए उसे मुनाफे की एटीएम पर सत्ता के रूप में अपना वफादार चौकीदार चाहिए होता है । वह सारे मुखौटे नकाब उतार कर बाजार में उतरती है । मतदाता, घोषणापत्र, विचारधारा, आर्टी-पार्टी नेपथ्य में चली जाती है।  सूत्रधार खुद मंच पर आ जाता है और खलनायकों के नायकत्व की तैयारी शुरू हो जाती है।  निर्वाचित जनप्रतिनिधियो के मन में राष्ट्र सेवा की भावना हिलोरें मारने लगती है और  "राष्ट्र" को बचाने के लिए दल छोड़ने-सीट छोड़ने-बिकने की कुर्बानी देने को तैयार हो जाते हैं । संविधान, ताक पर रखा धूल खाता रह जाता है  !! बचता है सिर्फ एक ब्रम्ह वाक्य ; आरमः दक्षः - कुर्सी हमारा लक्षः । 

समस्या यह भी हैं : और यह कुछ ज्यादा ही गम्भीर तथा सांघातिक है ; कि इन बाजारियों ने ऐसी "जनता" भी तैयार कर ली है जो इसे उचित और सही मानती है । भ्रष्टाचार को कौशल और ईमान बेचने को समझदारी मानने लगती है । यह खायी, पीयी, अघाई और अक्सर द्विजत्व से भरमाई "जनता" खुद को ओपिनियन-मेकर मानती है।  हाल के वर्षों में इस की आबादी बढ़ी है - इनमे से ज्यादातर किसी न किसी स्तर पर ट्रिकलिंग इफ़ेक्ट से तर हैं।  काली कमाई की गाढ़ी मलाई या उसकी जूठन और पतली लीद में साझेदार हैं ।

कुल मिलाकर यह कि संकटों में घिरे शासकों ने खुद की सलामती के लिए वास्तविक और आभासीय, वस्तुगत और मनोगत दोनों ही तरह की परिस्थितियां बना ली है।  लोकतंत्र का परिधान उनके हाथों से फिसलने लगा है, उनकी नग्नता को उघाड़ कर दिखाने लगा है।  वे इसे त्यागने को आतुर हैं किन्तु उसके पहले वे नग्नता को जीवनमूल्य के रूप में स्थापित कर देना चाहते हैं। 

यह अचानक अनायास नहीं हुआ है।  संविधान निर्माताओं को इसकी पक्की आशंका थी। नव-लिखित संविधान पर हस्ताक्षर करने के लिए 25 नवम्बर 1949 को इकट्ठा हुए संविधान सभा के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए डॉ. अम्बेडकर ने साफ़ कहा था कि "संविधान कितना भी अच्छा बना लें, इसे लागू करने वाले अच्छे नहीं होंगे तो यह भी बुरा साबित हो जाएगा। " उन्होने संवैधानिक लोकतंत्र को बचाने और तानाशाही से बचने के लिए तीन चेतावनी दी थीं ; एक ; आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए संवैधानिक तरीको पर ही चलना।  दो; अपनी शक्तियां  किसी व्यक्ति - भले वह कितना ही महान क्यों न हो - के चरणों में रख देना या उसे इतनी ताकत दे देना कि वह संविधान को ही पलट दे।  राजनीति में भक्ति या व्यक्तिपूजा  संविधान के पतन और नतीजे में तानाशाही का सुनिश्चित रास्ता है। 

डॉ. अम्बेडकर की तीसरी चेतावनी और भी सारगर्भित थी।  उन्होंने कहा कि "हमने राजनीतिक लोकतंत्र तो कायम कर लिया - मगर हमारा समाज लोकतांत्रिक नहीं है। भारतीय सामाजिक ढाँचे में दो बातें अनुपस्थित हैं, एक स्वतन्त्रता (लिबर्टी) , दूसरी  भ्रातृत्व (फ्रेटर्निटी) " उन्होंने चेताया था कि "यदि यथाशीघ्र सामाजिक लोकतंत्र कायम नहीं हुआ तो राजनीतिक लोकतंत्र भी सलामत नहीं रहेगा।"

डॉ. अम्बेडकर सही थे। सामाजिक लोकतंत्र तो दूर रहा इस समाज के परिवार में भी लोकतंत्र नहीं है। ऐसी दशा में यदि कुछ लोगों के मन में कर्नाटक जैसे नाटक विद्रूप नहीं लगते - जुगुप्सा नहीं जगाते तो अजीब बात नहीं है।  यह उनके भीतर का भाव है जो सामाजिक के साथ साथ राजनीतिक मसलों पर भी उनके रवैय्ये को तय करता है। 

खैरियत की बात है कि , कमसेकम फिलहाल, सब कुछ खत्म नहीं हुआ है । बहुतायत भारतीय और वाम-वामोन्मुखी ताकतें-व्यक्ति-संस्थाएं अभी इस खायी - पीयी -अघायी व्याधि से बची हैं । इसलिए अभी भी पलटी जा सकती है शकुनि की बिसात । पलटी जायेगी ही, क्योंकि अँधेरे कभी सही विकल्प नहीं होते। 

karnataka
Karnataka Assembly
Karnataka Assembly Elections 2018
BJP
Congress

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • अनिल सिन्हा
    उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!
    12 Mar 2022
    हालात के समग्र विश्लेषण की जगह सरलीकरण का सहारा लेकर हम उत्तर प्रदेश में 2024 के पूर्वाभ्यास को नहीं समझ सकते हैं।
  • uttarakhand
    एम.ओबैद
    उत्तराखंडः 5 सीटें ऐसी जिन पर 1 हज़ार से कम वोटों से हुई हार-जीत
    12 Mar 2022
    प्रदेश की पांच ऐसी सीटें हैं जहां एक हज़ार से कम वोटों के अंतर से प्रत्याशियों की जीत-हार का फ़ैसला हुआ। आइए जानते हैं कि कौन सी हैं ये सीटें—
  • ITI
    सौरव कुमार
    बेंगलुरु: बर्ख़ास्तगी के विरोध में ITI कर्मचारियों का धरना जारी, 100 दिन पार 
    12 Mar 2022
    एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल के मुतबिक, पहली कोविड-19 लहर के बाद ही आईटीआई ने ठेके पर कार्यरत श्रमिकों को ‘कुशल’ से ‘अकुशल’ की श्रेणी में पदावनत कर दिया था।
  • Caste in UP elections
    अजय कुमार
    CSDS पोस्ट पोल सर्वे: भाजपा का जातिगत गठबंधन समाजवादी पार्टी से ज़्यादा कामयाब
    12 Mar 2022
    सीएसडीएस के उत्तर प्रदेश के सर्वे के मुताबिक भाजपा और भाजपा के सहयोगी दलों ने यादव और मुस्लिमों को छोड़कर प्रदेश की तकरीबन हर जाति से अच्छा खासा वोट हासिल किया है।
  • app based wokers
    संदीप चक्रवर्ती
    पश्चिम बंगाल: डिलीवरी बॉयज का शोषण करती ऐप कंपनियां, सरकारी हस्तक्षेप की ज़रूरत 
    12 Mar 2022
    "हम चाहते हैं कि हमारे वास्तविक नियोक्ता, फ्लिपकार्ट या ई-कार्ट हमें नियुक्ति पत्र दें और हर महीने के लिए हमारा एक निश्चित भुगतान तय किया जाए। सरकार ने जैसा ओला और उबर के मामले में हस्तक्षेप किया,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License