NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कश्मीर में हिंसा जारी है
कश्मीर में जारी हिंसा को ख़त्म करने के लिए कोई राजनीतिक प्रयास नहीं हो रहा है। सारा ज़ोर इस पर है कि सेना बंदूक का इस्तेमाल ज़्यादा-से-ज़्यादा करे।
अजय सिंह
31 Jan 2019
सांकेतिक तस्वीर

भारत के हिस्से वाले जम्मू-कश्मीर में हिंसा और रक्तपात जारी है। इस हिंसा के शिकार नागरिक, विद्रोही (मिलिटेंट) और सुरक्षा बल तीनों हैं। कश्मीर घाटी में 21 जनवरी से 24 जनवरी 2019 के बीच सुरक्षा बलों से तीन अलग-अलग ‘मुठभेड़’ में कुल नौ विद्रोही मारे जा चुके हैं। मारे गये विद्रोहियों की शवयात्राओं में जो भारी भीड़ उमड़ती है, उस दौरान भी सुरक्षा बलों के साथ झड़प व संघर्ष की घटनाएं होती हैं। मुठभेड़ स्थलों पर स्थानीय नागरिक विद्रोहियों के पक्ष में तो उतरते ही हैं, विद्रोहियों के जनाजे में जिस बड़े पैमाने पर लोग शामिल होते हैं, वह राज्य व केंद्र सरकारों से उनके पूरे अलगाव को दिखाता है।

kashmir4.jpg

यहां यह बता देना ज़रूरी है कि जम्मू-कश्मीर सरकार ने हर विद्रोही की श्रेणी तय कर रखी है (ए, बी, सी आदि)। मारे गये विद्रोही पर, उसकी श्रेणी के हिसाब से, नक़द इनाम, प्रोत्साहन राशि व तरक़्क़ी तय है, जो संबंधित पुलिस/सुरक्षा बल को मिलती है। इसीलिए सुरक्षा बलों का सारा ज़ोर विद्रोही को ज़िंदा पकड़ने पर नहीं, उसे मार डालने पर रहता है। अंतहीन ख़ूनख़राबा जारी रहता है।

कुछ दिन पहले सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ की कवरेज करने गये प्रेस फ़ोटोग्राफ़रों पर पेलेट बंदूकों से गोलियां चला दीं, जिससे कुछ फ़ोटोग्राफ़र घायल हो गये। गनीमत है कि आंखों में गोलियां नहीं लगीं, हालांकि सर को निशाना बना कर ही गोलियां चलायी गयी थीं। फ़ोटोग्राफ़रों का कहना है कि सुरक्षा बल साफ़ देख रहे थे कि हम प्रेस फ़ोटोग्राफ़र हैं, हमारे हाथों में कैमरे हैं, इसके बावजूद उन्होंने हमें निशाना बना कर गोलियां चलायीं।

कश्मीर के प्रति भारत सरकार के दमनकारी व आधिपत्यवादी तौर-तरीक़े के विरोध में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी शाह फ़ैसल ने पिछले दिनों अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। कश्मीर कैडर के अधिकारी शाह फ़ैसल 2008 की सिविल सेवा परीक्षा में पूरे देश में टॉप करने वाले पहले कश्मीरी नौजवान थे। तब उन्हें ‘कश्मीर का नया चेहरा’ के तौर पर ख़ूब प्रचारित किया गया था और उन्हें कश्मीरी युवा के लिए रोल मॉडल बताया गया था। दस साल बीतते-न-बीतते चीज़ें कहां पहुंच गयीं!

भारत के हिस्से वाले जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2018 में भयानक हिंसा हुई। इस हिंसा के बारे में ग़ायब हुए व्यक्तियों के माता-पिता के संगठन (एपीडीपीः एसोसिएशन ऑफ़ पैरेंट्स ऑफ़ डिसअपियर्ड पर्संस) और जम्मू-कश्मीर नागरिक समाज गठबंधन (जेकेसीसीएसः जे-के कोअलिशन ऑफ़ सिविल सोसाइटी) ने जो आंकड़े जारी किये हैं, वे भयावह और डरावने हैं। इससे पता चलता है कि कश्मीर में जारी हिंसा को ख़त्म करने के लिए कोई राजनीतिक प्रयास नहीं हो रहा है। सारा ज़ोर इस पर है कि सेना बंदूक का इस्तेमाल ज़्यादा-से-ज़्यादा करे। इस हिंसा को इस अनुपात में भी देखिये कि 2011 की जनगणना के मुताबिक जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1 करोड़ 25 लाख है।

kashmir2.jpg

इन दोनों संगठनों द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018 जम्मू-कश्मीर के लिए दस साल में सबसे ज़्यादा घातक रहाः कुल 586 लोग मारे गये—267 विद्रोही, 160 नागरिक और 159 सशस्त्र बल। (जब ‘सशस्त्र बल’ की बात की जाती है, तो उसका मतलब होता है, सेना, अर्द्धसैनिक बल और राज्य पुलिस।) 2018 में जो 160 नागरिक मारे गये, उनमें 71 भारत के सशस्त्र बलों के हाथों मारे गये, 29 सीमापार से गोलाबारी में मारे गये, 29 अज्ञात बंदूकधारियों के हाथों मारे गये,18 को विद्रोहियों ने मार दिया, 10 लोग विस्फोटों में मारे गये, एक व्यक्ति ईंट-पत्थर की चोट से मरा, एक को सुरक्षा गार्ड ने मार दिया, और एक की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी। 2008-2018 के दौरान 4059 हत्याएं दर्ज़ की गयीं : 1890 विद्रोही, 1081 नागरिक, 1088 सशस्त्र बल।

2018 में जम्मू-कश्मीर में भारतीय सशस्त्र बलों के 20 कर्मचारियों ने आत्महत्या कर ली—यह एक दशक में सबसे ज़्यादा है। पिछले साल मारे गये 267 विद्रोहियों की संख्या भी एक दशक में सबसे ज़्यादा है। 2018 में 31 बच्चे मारे गये—यह भी एक दशक में सबसे ज़्यादा है। पिछले साल 108 बार इंटरनेट सेवाएं रोकी गयीं।

कश्मीर से अक्सर ख़बर आती है कि सेना व अन्य सुरक्षा बलों ने इन-इन इलाक़ों में घेरो-और-तलाशी-लो-अभियान चलाया, और इस दौरान या मुठभेड़ के दौरान इतने घरों को नुकसान पहुंचा या उन्हें उड़ा दिया गया या ध्वस्त कर दिया गया। एपीडीपी और जेकेसीसीएस के अनुसार, 2018 में 274 बार घेरो-तलाशी अभियान चला। इस साल नागरिकों के मकानों को नुकसान पहुंचने के 120 मामले सामने आये। इनमें से 34 मकानों को पूरी तरह जला दिया गया था और 94 मकानों को आंशिक नुकसान हुआ था।

(लेखक वरिष्ठ कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

Jammu and Kashmir
Kashmir crises
Kashmir Politics
Kashmir conflict
Militancy
Indian army
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License