NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
कश्मीर में किसी सुधार के संकेत के बिना एक और ख़ूनी वर्ष का अंत
वर्ष 2017 जम्मू-कश्मीर के लिए हिंसा और अशांति से भरा साल रहा।
मोहम्मद आमिर
27 Dec 2017
kashmir crises

वर्ष 2017 जम्मू- कश्मीर के लिए हिंसा और अशांति से भरा साल रहा। हालांकि पिछले साल की तरह बड़े पैमाने पर किसी तरह की अशांति , कर्फ्यू और शटडाउन नहीं था, लेकिन वर्ष 2017 में कश्मीरी लोगों के विरोध के चलते लाशों का ढ़ेर देखा गया। उग्रवादी  संबंधी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई और साथ ही उग्रवाद -विरोधी अभियान भी चलते रहे। 212 उग्रवादी मारे  गए जो वर्ष 2010 के बाद से सबसे ज़्यादा था जबकि सुरक्षा बालों के 78 जवानों ने अपनी जान गँवाई। उग्रवादियों  से संबंधित घटनाओं में 57 नागरिक भी मारे गए, कथित तौर पर अधिकंश लोग सुरक्षा बलों द्वारा फायरिंग में मारे गए।

हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद वर्ष 2016 में कश्मीर में काफ़ी अशांति  देखी गई। उसकी हत्या के बाद लागातार प्रदर्शन हुए जो लगभग छह महीनों तक चले । विरोध प्रदर्शन के दौरान लगभग 100 नागरिक मारे गए और बड़ी संक्या  में लोग घायल हुए, उनमें से कुछ बुरी तरह तथाकथित गैर-घातक पेलेट गन से घायल हो गए। पेलेट गन ने दर्जनों युवाओं और बच्चों को एक या दोनों आँखों से अंधा बना दिया। भारी संघर्ष और हिंसा के साल भर बाद घाटी में आतँकियों की सँख्या बढ़ गई, क्योंकि मुख्य रूप से दक्षिण कश्मीर के युवा शामिल हो गए थे।

घाटी से उग्रवादियों को ख़त्म करने के लिए राज्य और आतंकवाद-विरोधी एजेंसियों ने "ऑपरेशन ऑल-आउट" चलाया। जब अभियान चलाया जा रहा था तब कश्मीर में हिंसा की एक नई लहर देखी गई जिसके परिणामस्वरूप नागरिक विरोध, हत्याओं और बड़े पैमाने पर कार्रवाई के कारण स्थिति और ख़राब हुई है I

वर्ष 2017 में कश्मीर में हुई कुछ हिंसा, मुद्दे और प्रमुख घटनाएँ

मुठभेड़ स्थलों के पास नागरिकों का विरोध

सुरक्षा बलों के लिए दक्षिण कश्मीर के किसी घर में दो या तीन  उग्रवादियों से लड़ना और मार गिराना आसान हो गया था क्योंकि वर्ष 2016 के अँत तक उग्रवादी -विरोधी अभियान में तेज़ी आ गई थी। हालांकि सुरक्षा बल मुठभेड़ स्थल के नज़दीक एक नई चुनौती का सामना करना पड़ा था क्योंकि स्थानीय लोग उनके अभियानों में दख़ल देना शुरू कर दिया था। मुठभेड़ स्थल के आस-पास के गाँवों से स्थानीय लोगों द्वारा पत्थर बरसाई जा रही थी। पुलवामा और त्राल की तरह कई घटनाओं में स्थानीय लोगों के विरोध प्रदर्शन के कारण उग्रवादी  कर निकलने में सक्षम थे। विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप राज्य पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों द्वारा कथित गोलीबारी में कई नागरिकों की मौत हो गई। वर्ष 2017 के पहले तीन महीनों में, क़रीब एक दर्जन नागरिकों ने अपनी ज़िंदगी खो दिया। दिसंबर का महीना होने के चलते ये घटनाएं पूरी तरह ख़त्म हो गई थी लेकिन जब दक्षिण कश्मीर के शोपियाँ में एक महिला सहित तीन लोगों की हत्या हुई तो मुठभेड़ स्थल पर नागरिकों का विरोध देखा गया।

छात्रों का विरोध

कश्मीर में सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक और बड़ी चुनौती छात्रों का विरोध था जो कि वर्ष 2016 के विरोध का एक अन्य नतीजा था। छात्रों का विरोध दक्षिणी कश्मीर के पुलवामा स्थित सरकारी डिग्री कॉलेज में सेना की उपस्थिति के विरोध में शुरू हुआ। सुरक्षा बलों ने कथित तौर पर बल प्रयोग किया और छात्रों का विरोध प्रदर्शन जम्मू के चिनाब घाटी सहित पूरे राज्य में जंगल में आग की तरह फैल गया। इन घटनाओं में कई छात्रों के घायल होने की खबरें सामने आईं और प्रदर्शनों पर लगाम लगाने के चलते छात्रों को इकट्ठा होने से रोकने के लिए राज्य सरकार को स्कूलों और कॉलेजों को कई बार बंद करना पड़ा। ये विरोध प्रदर्शन स्वभाविक था और पूरे घाटी में लगभग एक महीने तक विशेष रूप से शिक्षा और प्रमुख शहर के केंद्रों को पंगु बना दिया। इसका असर राज्य भर में देखा गया।

उग्रवाद में वृद्धि

वर्ष 2016 के विरोध का एक अन्य परिणाम उग्रवाद संबंधी घटनाओं में बढ़ोतरी थी चूंकि 100 से अधिक स्थानीय कश्मीरी युवा उग्रवादी संगठनों में विशेष रूप से हिजब उल मुजाहिदीन में शामिल होने लगे। उग्रवादियों ने जम्मू-कश्मीर के पुलिस कर्मियों के परिवारों पर हमला करना शुरू किया जिसके परिणामस्वरूप विभाग ने सर्कुलर में पुलिसकर्मियों को निर्देश दिया गया कि वे अपने-अपने घर विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर में जाने से बचें। उग्रवादीयों ने पुलिस कर्मियों के घरों को तोड़-फोड़ करना शुरू कर दिया और उनके परिवारों को धमकी दी की उनके (उग्रवादी) परिवारों के ख़िलाफ़ कथित पुलिस की बर्बरता का विरोध करे। लगभग तीन दशक से कश्मीर में सशस्त्र उग्रवाद शुरू होने के बाद इस तरह के घटनाक्रमों को पहली बार व्यापक रूप से देखा गया। इसके बावजूद, उग्रवादीयों  के ख़िलाफ़ कोई बड़ा सार्वजनिक विरोध नहीं हुआ और कई लोगों ने इसे "उग्रवादियों की वापसी" के रूप में तर्क दिया।

उग्रवाद -विरोधी अभियान सुरक्षा बलों की हत्या की वृद्धि के साथ पूरे जोरों पर रहा। सेना ने हिजब उल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा जैसे सँगठनों के टॉप मॉस्ट वाँटेड  कमाँडरों जुनैद मटू, बशीर लश्करी, यासीन यातू और अब्दुल कय्यूम नज़र जैसे उग्रवादियों को मार गिराया। इनमें से कुछ एक दशक से अधिक समय से सक्रिय आतँकी था। सभी उग्रवादियों की अँत्येष्टि में भाग लेने वाले शोक मनाने वालों की सँख्या में वृद्धि हुई।

पीडीपी की 'वापसी'

कश्मीर में इन घटनाओं के सामने आने के बाद, सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) वर्ष 2016 के विरोध प्रदर्शनों के बाद राजनीतिक हाशिए पर धकेल दी गई। कश्मीर में सरकार बनाने के लिए दक्षिणपंथी  बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को लेकर पहली बार पीडीपी को सार्वजनिक आलोचना का सामना करना पड़ा जबकि चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के ख़िलाफ़ अपना विरोध जताया था।। दूसरे, पीडीपी के नेताओं ने विशेष रूप से मुख्यमंत्री मेहबूब मुफ्ती ने लोगों को यह स्पष्ट किया था कि न तो वे इस स्थिति को अलग करने में दिलचस्पी रखती थीं और न ही उनका इस पर कोई नियंत्रण है। ऐसा लगता था अनुच्छेद 35 ए केप्रस्तावित विवाद तक मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों ने ज़मीन खो दी थी। ये पार्टी मुख्य विपक्षी नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) सहित अन्य सभी मुख्य धारा की पार्टियों के साथ प्रस्तावित कदम का विरोध करने के लिए हाथ मिला लिया।

इसके बाद बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार ने ख़ुफिया ब्यूरो (आईबी) के एक पूर्व अधिकारी दिनेश शर्मा को राज्य में सभी हितधारकों से बातचीत करने के लिए वार्ताकार के रूप में नियुक्त किया। यह तब हुआ जब "ऑपरेशन ऑल आउट" पूरे जोरों पर था, लेकिन चिंताजनक स्थिति से बाहर निकालने में असफल रहा।फिर भी, वार्ताकार की नियुक्ति बीजेपी सरकार के पहले के कड़े रुख से परिवर्तित हो गई है। कुछ लोगों का तर्क है कि यह बीजेपी की पहले के रुख का पूरी तरह"यू-टर्न" है।

लेकिन क्या यह सत्तारूढ़ पार्टी पीडीपी और मुख्य विपक्षी पार्टियों को राहत देने में कामयाब रही जो काफी हद तक विवादास्पद है। यह नहीं भुलाया जाना चाहिए कि यह घाटी में अलगाववादी नेतृत्व के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के नेतृत्व में छापे की पृष्ठभूमि में हुआ। परिणाम स्वरूप अलगाववादी संवाद प्रक्रिया से दूर रहे।

जम्मू में दक्षिण-पँथ की वृद्धि

वर्ष 2017 जम्मू प्राँत के लिए महत्वपूर्ण था जहाँ देश के अधिकाँश हिस्सों की तरह साँप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में वृद्धि देखी गई। केंद्र तथा राज्य में बीजेपी और उसके समर्थन में सरकार बनने के बाद जम्मू में हिंदुत्व दक्षिण पँथ सशक्त हुआ। जम्मू के क्षेत्रों में रहने वाले रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाएँ हुईं।

इस वर्ष के दौरान राज्य के लद्दाख प्राँत में डोकलम विवाद के बीच चीनी पीएलए द्वारा अतिक्रमण की कुछ घटनाएँ भी देखी गई।

वर्ष 2017 अशाँति की चर्चा के साथ समाप्त हो रहा है और नया साल राज्य और सुरक्षा एजेंसियों के लिए कई चुनौतियां लेकर आएगा जो पूरे राज्य में शत्रुतापूर्ण आबादी से जूझ रहे हैं। निश्चित रूप से वर्ष के पहले कुछ महीनों में होने वाली गतिविधि पूरे वर्ष की दिशा का निर्धारण करेगा।

Kashmir crises
Indian government
students protest
BJP
INA
PDP
millitants

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License