NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
कश्मीर पर फैसला क्या विलय पत्र का उल्लंघन नहीं है?
जम्मू कश्मीर और भारत से जुड़ाव के बीच विलय पत्र किसी शर्तिया दस्तावेज की तरह काम करता है। अगर इस दस्तावेज को महत्वहीन कर दिया गया तो जम्मू कश्मीर और भारत के बीच जुड़ाव का पुल टूट जाएगा।
अजय कुमार
06 Aug 2019
kashmir
image courtesy- indian express

बहुमत के दंभ भाजपा से जैसी उम्मीद थी, उसने वैसा ही किया। न विधान को माना न संविधान को, न लोकतंत्र की मर्यादायों को और न ही न्यायिक प्रक्रियाओं को। संविधान से आर्टिकल 370 को हटाने वाला बिल राज्यसभा  से पारित कर लिया, जिस आर्टिकल की बदलौत कश्मीर भारत से जुड़ता था।  

सवाल यही है कि आर्टिकल 370 में ऐसी क्या ख़ास बात थी, जिसकी वजह से यह यह कहा जाता रहा है कि आर्टिकल 370 ही भारत और कश्मीर के बीच पुल की तरह काम करता है। आर्टिकल 370 की भाषा कहती है कि संसद की शक्ति संघ सूची और समवर्ती सूची के उन विषयों तक सीमित होगी, जिनके सम्बन्ध में विलय पत्र में भारत को शक्ति दी गयी है। कोई भी विलय पत्र में अंकित विषयों का हिस्सा है या नहीं, इसका फैसला जम्मू और कश्मीर की सरकार के परामर्श से भारत का राष्ट्रपति करेगा। इसके अलावा विलय पत्र में निर्दिष्ट विषयों के अलावा संसद की शक्ति उन विषयों तक सिमित होगी। जो राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर राज्य की सरकार की सहमति से अपने आदेश द्वारा घोषित करेगा।  

यहां यह बात स्पष्ट है कि बार-बार विलय पत्र का उल्लेख किया जा रहा है। अंग्रेजी में कहें तो इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन। केंद्र की सरकार इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन में लिखे विषयों पर ही जम्मू कश्मीर के लिए कानून बना सकती है। विलय पत्र में लिखे विषयों के अलावा जम्मू कश्मीर में कानून बनाने के लिए वहां की विधनसभा के परामर्श की जरूरत होगी। यानी जम्मू कश्मीर और भारत से जुड़ाव के बीच विलय पत्र किसी शर्तिया दस्तावेज की तरह काम करता है। अगर इस दस्तावेज को महत्वहीन कर दिया गया तो जम्मू कश्मीर और भारत के बीच जुड़ाव का पुल टूट जाएगा। 

तो अब यह समझने वाली बात है कि आखिरकार यह इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन है क्या ?

आजादी के समय भारत में मुख्यतः दो तरह के राज्य थे। पहला जो ब्रिटिश प्रशासन और नियंत्रण के अधीन और दूसरा देशी रियासते या रजवाड़े। जिनपर ब्रिटिश हुकूमत रेजिडेंट के सहारे राज करती थी। ये रजवाड़े बिना इन रेजीडेंटों के पूछे कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं ले सकते थे। जब भारत आजाद हुआ तो ब्रिटिश प्रशासन के अधीन राज्य भारत और पाकिस्तान का स्वतः हिस्सा बन गए। लेकिन देशी रियासतों को तीन रास्ते में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया - या तो भारत का हिस्सा बन जाए या पाकिस्तान का या स्वतंत्र रह जाएं। भारत स्वतंत्रता अधिनियम 1947 ( इंडियन इंडिपेंडेंट एक्ट, 1947 ) में इसका उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम का सेक्शन 6 (A ) कहता है कि दो देश एक दूसरे से इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन के सहारे जुड़ेंगे और इस पत्र में उन शर्तों का भी उल्लेख करेंगे, जिन शर्तों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़ रहे हैं। इस तरह से इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन वह दस्तावेज है, जिसमें उन शर्तों, शक्तियों के बंटवारे का उल्लेख होगा, जिसके तहत देशी रियासतें भारतीय सरकार से जुड़ी थी।

 तकनीकी रूप से कहें तो, इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेसेशन दो संप्रभु देशों के बीच एक करार की तरह था, जिसमें उन शर्तों का उल्लेख था, जिसके तहत दो देश एक-दूसरे से जुड़ने का फैसला लिया था। अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत दो देशों के करारों को प्रशासित करने वाला सिद्धांत Pucta Sunt Servanda है। इसका मतलब है कि दो देश एक-दूसरे से जुड़ने वाले करार के तहत निर्धारित वायदों को निभायेंगे। यदि करार तोड़ा जाता है, तो सामान्य नियम यही होगा कि करार में मौजूद पार्टियां मूल स्थिति में चली जाएँगी या यह कहा जाए ऐसी स्थिति में चली जायेंगी जो करार से पहले थी। 

अनुच्छेद 370 को हटाने के किसी भी तरह के बात में, अंतर्राष्ट्रीय कानून के इस पहलू को ध्यान में रखा जाना चाहिए क्योंकि अगर इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन के किसी भी शर्त को हटाने को कश्मीर को आजादी के पहले वाली स्थिति में भेज देना, जो भारत के हित में नहीं होगा।  

कश्मीर के इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन के क्लॉज 5 में उस समय के राजा हरि सिंह ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि "एक्ट या इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के किसी भी संशोधन द्वारा मेरे इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है, जब तक कि इस इंस्ट्रूमेंट में मेरे द्वारा किसी बदलाव को स्वीकार नहीं किया जाए या इस इंस्ट्रूमेंट में बदलाव के लिए कोई दूसरा इंस्ट्रूमेंट नहीं स्वीकार किया जाता है।" इसके क्लॉज 7 में कहा गया है कि इस इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन के तहत मुझे भी बाध्य नहीं सकता कि भविष्य में भारत के संविधान में होने वाले बदलाव को भी मानने के लिए मैं प्रतिबद्ध रहूं।” 

इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन को अंततः भारत के संविधान का हिस्सा बनाया जाना था, ताकि भारत सरकार और कश्मीर की शक्तियां स्पष्ट रूप से सामने आ जाएं। इस तरह अनुच्छेद 370 कुछ नहीं बल्कि संवैधानिक मान्यता में उल्लेखित वह शर्तें ही हैं जिसे कश्मीर के शासक ने 1948 में भारत सरकार के साथ हस्ताक्षर की थी। यह दो पक्षों के बीच हुए करार के अधिकारों और दायित्वों को दर्शाता है। 

 इसलिए अनुच्छेद 370 की भाषा में बार-बार विलय पत्र या इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन शामिल हुआ है। भारत की संसद द्वारा बिल लाकर अनुच्छेद 370 को हटाए जाने की कार्यवाही संवैधानिक है या नहीं इसका फैसला संविधान पीठ लेते हुए वर्षों लगा दे। लेकिन वस्तुस्थिति यह कहती है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर भी क़ानूनी तौर पर कह सकता है कि उस करार को तोड़ दिया गया है, जिस करार के जरिये वह भारत में शामिल था। अब वह करार टूटने की वजह से पहले वाली स्थिति में पहुंच गया है। अन्तरराष्ट्रीय कानून के तहत अब वह भी अपना पक्ष रखने के लिए आजाद है। कह सकते हैं कि आज वस्तुस्थिति यही है कि भारत ने कश्मीर पर नियंत्रण के चक्कर में उसे बहुत अलग भी कर दिया है। 

Jammu and Kashmir
Article 370
instrument of accession
international law on instrument of accession
instrument of accession as contract
Narendra Modi Government
Amit Shah

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 

यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा

आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद

क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License