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भारत
राजनीति
कश्मीरियों का दर्दः ‘हमें पाषाण युग में धकेल दिया गया है’
घाटी में संचार पाबंदियों के बीच कुछ लोग शादी की दावत न देने को मजबूर हैं वहीं राज्य भर में लोग अपने पुराने लैंडलाइन का कनेक्शन फिर से चालू करवाने या नया कनेक्शन लेने के लिए टेलीफोन एक्सचेंज के चक्कर काट रहे हैं।
सुहैल भट्ट
27 Aug 2019
jammu and kashmir
Image Courtesy: Indian Express

फिरदौस को उसकी होने वाली पत्नी से मिले एक ख़त ने उसके परेशान चेहरे पर मुस्कान ला दिया। उसने कभी नहीं सोचा था कि उसकी बातचीत ख़त लिखने तक महदूद हो जाएगी। 5 अगस्त से पहले तक वे फोन पर हमेशा बातचीत करते थे और कभी-कभी एक दिन में कई बार बात कर लेते थे। जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद से कश्मीर में संचार पाबंदिया लागू है जो पहले कभी नहीं हुआ था।

5 अगस्त की सुबह घाटी के लोगों ने ऐसी जगह पर अपनी आंखें खोली जो "अब उनका नहीं था"। टेलीफोन लाइनें बंद हो गई थीं, मोबाइल और ब्रॉडबैंड सेवाएं समाप्त कर दी गई। राज्य में सरकार "कुछ बड़ा" करने की योजना बना रही थी जबकि लोगों को ख़बर नहीं थी। दोपहर तक उनका डरावना सपना सच हो गया क्योंकि सरकार ने विशेष राज्य का दर्जा हटा लिया और राज्य का विभाजन कर दिया।

हर दिन हज़ारों लोग अपने परिवार के लोगों को फोन करने के लिए संबंधित उपायुक्त कार्यालय और पुलिस स्टेशन जाते हैं। उनके परिवार के लोग या तो काम या पढ़ाई के लिए अपने घरों से दूर रहते हैं। संचार पाबंदियों में ढील देने के लिए प्रशासन ने कई जगहों पर कई अस्थायी टेलीफोन बूथ खोले हैं। हालांकि, लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ये प्रयास कम पड़ते हैं।

दक्षिण कश्मीर के पंपोर निवासी उमर फैमबू ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि उन्होंने मलेशिया में काम कर रहे अपने पिता से एक बार भी बात नहीं की है। उन्होंने कहा, '' मैं कई बार संबंधित पुलिस स्टेशन गया लेकिन हमें अंतरराष्ट्रीय कॉल करने के लिए मना कर दिया गया। देश के भीतर ही कॉल करने की अनुमति दी गई थी।” उन्होंने संचार को बंद करने के सरकार के फैसले को ग़ैरक़ानूनी और क्रूर क़रार दिया।

संचार पाबंदी ने न केवल राज्य में लोगों के जीवन को प्रभावित किया है बल्कि घाटी में काम करने वाले बाहरी लोग भी उतना ही परेशान हैं।

बिहार के रहने वाले सचिन श्रीनगर के एक रेस्तरां में शेफ है। सचिन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कई बार पुलिस स्टेशन जाने के बावजूद वह अपने माता-पिता से बात नहीं कर पा रहे है। सचिन कहते है, "मैं कई बार नेहरू पार्क पुलिस स्टेशन गया लेकिन एक बार भी फोन नहीं कर पाया क्योंकि हर दिन बहुत सारे लोग पुलिस स्टेशन आते हैं।" आगे कहा कि पुलिस अधिकारियों ने उसे थाने से कई बार जाने को कहा।

उन्होंने कहा कि घाटी में ऐसी परेशानी पहले कभी नहीं हुई है। आगे कहा कि “मैंने यहां बुरा समय भी देखा है। मैं 2014 में यहां था जब घाटी में बाढ़ आई थी और 2016 के अशांत समय में भी मैं यहीं था लेकिन कभी भी ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया था। मैं जाने से पहले अपने बकाया वेतन का इंतज़ार कर रहा हूं। मैं अपनी वापसी को लेकर आश्वस्त नहीं हूं।"

पत्रकार बिरादरी कनेक्टिविटी के अभाव में काम कर रही है। प्रेस एन्क्लेव में एक घंटे से भी कम समय में लैंडलाइन चालू किया गया लेकिन फिर ख़राब हो गया। श्रीनगर के एक पत्रकार इरफान अहमद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 'ऐसी पाबंदियां पहले कभी नहीं लगाई गई थी जिसको लेकर अधिकार समूहों को ध्यान देना चाहिए। विडंबना यह है कि मुझे एक दोस्त से मिलना था और ऐसा करने के लिए कि मुझे एक विशेष स्थान पर मिलने के लिए उसके कार्यालय में एक नोट छोड़ना पड़ा।“

सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल ने मोबाइल और इंटरनेट सेवाओं की बहाली पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार ने 93,000 में से 73,000 से अधिक लैंडलाइन कनेक्शन को चालू कर दिया है और शेष कनेक्शन को धीरे-धीरे चालू कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि प्रेस एन्क्लेव और अन्य क्षेत्रों में लैंडलाइन तकनीकी कारणों से चालू नहीं हो सका। उन्होंने 20 अगस्त को श्रीनगर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संवाददाताओं से कहा, "तकनीकी गड़बड़ी को दुरुस्त करने में कुछ दिन लगेंगे।"

संचार का एकमात्र साधन होने के चलते लोग कश्मीर में नए लैंडलाइन कनेक्शन के लिए या पुराने लैंडलाइन को फिर से चालू कराने के लिए टेलीफोन एक्सचेंज के चक्कर काट रहे हैं। कश्मीर निवासी मेहराज अहमद कहते हैं, “इस हाई-टेक युग में हम पुरानी तकनीक का इस्तेमाल करने को मजबूर हैं। मुझे ऐसा करना पड़ रहा है क्योंकि हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है। मेरा बेटा बैंगलोर में पढ़ाई करता है और मेरी पत्नी सुकून से तब तक नहीं रह सकती जब तक कि वह उससे सप्ताह में एक बार बात नहीं करती।” उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने इस प्रदेश को पाषाण युग में फिर से धकेल दिया है।

ख़त पढ़ने के बाद फ़िरदौस की मुस्कान फीकी पड़ गई क्योंकि उन्होंने आने वाले दिनों में बढ़ने वाली परेशानी को भाप लिया है। उनकी शादी 1 सितंबर को होनी है लेकिन वह चिंतित हैं कि इसका आयोजन किया जा सकता है या नहीं। उन्होंने कहा, "मैंने सभी निमंत्रण रद्द कर दिए हैं और कोई आयोजन नहीं होगा।"

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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Jammu and Kashmir
Abrogation of Article 370
Communication Lockdown in Kashmir
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