NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कश्मीर का दूसरा नाम क़त्लगाह!
भारतीय सेना ने स्वीकार कर लिया है कि शोपियां के अमशीपोरा गाँव की मुठभेड़ पूरी तरह फ़र्ज़ी थी। सवाल है, क्या इन मुठभेड़ हत्याओं के लिए सेना के ऊंचे अधिकारियों को दंडित किया जा सकेगा? क्या सेना इस तरह का अभियान चलाना रोक देगी?
अजय सिंह
30 Sep 2020
कश्मीर
प्रतीकात्मक तस्वीर।

अबरार अहमद (उम्र 25 साल), इमतियाज़ अहमद (उम्र 20 साल), मोहम्मद इबरार (उम्र 16 साल)। इसी तरह के और भी सैकड़ों नाम, जो भारतीय सेना के साथ तथाकथित मुठभेड़ों में मार डाले गये। और फिर सेना ने उन्हें आतंकवादी या विद्रोही घोषित कर दिया, ताकि कश्मीरी नौजवानों की ठंडे दिमाग़ से की गयी बर्बर हत्याओं को जायज़ ठहराया जा सके।

यह कश्मीर की अंतहीन यातना गाथा है, जो 1989 से जारी है। कश्मीर अनवरत क़त्लगाह, अनवरत क़ब्रिस्तान में तब्दील हो चुका है।

ऊपर जिन तीन नौजवानों के नाम दिये गये हैं, वे राजौरी (जम्मू-कश्मीर) के रहने वाले मज़दूर थे। इन्हें भारतीय सेना ने 18 जुलाई 2020 को दक्षिणी कश्मीर के शोपियां ज़िले के अमशीपोरा गाँव में मुठभेड़ दिखा कर मार डाला। उनसे हथियार व गोलाबारूद की बरामदगी भी दिखायी गयी। बाद में उन्हें आतंकवादी/विद्रोही घोषित कर दिया गया, ताकि ‘मुठभेड़’ करनेवाले फ़ौजियों को सरकार की तरफ़ से इनाम मिल सके। (कश्मीर में हर मुठभेड़ हत्या पर सरकारी इनाम तय है।) इन नौजवान मज़दूरों को सेना के मुख़बिर बहला-फुसला कर शोपियां ले गये थे। सब कुछ पहले से तय था।

अब, सितंबर 2020 में, भारतीय सेना ने स्वीकार कर लिया है कि यह मुठभेड़ पूरी तरह फ़र्ज़ी थी। उसने कहा है कि इसके लिए ज़िम्मेदार दोषी फ़ौजियों पर कार्रवाई की जायेगी। सेना की यह स्वीकारोक्ति ऐसे नहीं आयी। वह तब आयी, जब मारे गये मज़दूरों के परिवारों ने लगातार दबाव बनाया और इसके लिए उन्होंने कई सबूत पेश किये।

सवाल है, क्या इन मुठभेड़ हत्याओं के लिए सेना के ऊंचे अधिकारियों को दंडित किया जा सकेगा? क्या सेना यह बात मान लेगी कि कश्मीर में उसके द्वारा चलाया जा रहा घेराबंदी और तलाशी अभियान (कासो) ऐसी मुठभेड़ हत्याओं के लिए रास्ता खोलता है? क्या सेना इस तरह का अभियान चलाना रोक देगी?

दूर-दूर तक इसकी संभावना नज़र नहीं आती। कश्मीर में सेना को हर तरह की पूरी छूट मिली हुई है और वहां वह ख़ुद ही क़ानून है। कभी-कभी, वह भी अपवादस्वरूप, वह पकड़ में आ जाती है, लेकिन वहां भी दंड विधान उसके आगे नतमस्तक हो जाता है।

मार्च 2000 में अनंतनाग में पथरीबल में एक ‘मुठभेड़’ दिखाकर सेना ने पांच नागरिकों की हत्या कर दी थी और उन्हें ‘आतंकवादी’ बता दिया था। वर्ष 2010 में माछिल में सेना ने तीन नागरिकों की हत्या कर दी थी और उन्हें ‘आतंकवादी’ घोषित कर दिया था। यहां भी ‘मुठभेड़’ दिखा दी गयी थी। जनवरी 2018 में शोपियां के एक गांव में सेना ने लोगों पर गोली चला दी, जिसमें तीन नागरिकों की मौत हो गयी।

इन सभी घटनाओं में भारतीय सेना की तरफ़ से या तो कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं हुई या फिर महज़ खानापूरी की गयी। ख़ास बात यह है कि सेना के किसी ज़िम्मेदार, ऊंचे अधिकारी को दंडित नहीं किया गया।

2020 में जनवरी से लेकर सितंबर तक सेना के साथ तथाकथित मुठभेड़ों में 130 से ऊपर कश्मीरी नौजवान मारे जा चुके हैं। अगर इन ‘मुठभेड़ों’ की उच्चस्तरीय, निष्पक्ष जांच हो, तो 90 फ़ीसद से ज़्यादा मामलों में एक ही कहानी सामने आयेगी : घेर लो और मार डालो।

(लेखक वरिष्ठ कवि और राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे पढ़ें : शोपियां मुठभेड़: सैनिकों के ख़िलाफ़ शुरुआती सुबूत मिले, सेना अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू

Jammu and Kashmir
Kashmir
Amshipora Encounter
Indian army

Related Stories

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

कश्मीर में हिंसा का नया दौर, शासकीय नीति की विफलता

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 

यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा

आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद

क्यों अराजकता की ओर बढ़ता नज़र आ रहा है कश्मीर?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव
    29 May 2022
    भीमा नदी के जल से सिंचित/ चाँदनी के फूल… / वे इनकार करना चाहते हैं इस्तेमाल होने से/ पैरों में बिछने से, गले का हार बनने से/ और बिस्तर पर बिछाये जाने से।
  • कुमुदिनी पति
    विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय
    29 May 2022
    वर्तमान समय में महिलाओं की आज़ादी पर सबसे अधिक हमले हो रहे हैं…, इतिहास के साथ छेड़छाड़ हो रही है। कमज़ोर, दलित और अल्पसंख्यक भय के वातावरण में जी रहे हैं। यह वैसा ही अंधकारमय युग है जैसा राममोहन रॉय ने…
  • एम.ओबैद
    बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया
    28 May 2022
    बिहार के समस्तीपुर ज़िले के एक पंचायत में 192 राशन कार्ड रद्द किया गया है। इसमें वह ग़रीब विधवा महिला भी शामिल हैं जो आंखों से देख नहीं सकती हैं।
  • असद रिज़वी
    यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन
    28 May 2022
    राज्य कर्मचारियों ने अपनी नौ सूत्रीय मांगों को लेकर राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के 70 जिलों में विरोध दिवस मनाया। कर्मचारी नेताओं ने देश में बढ़ती सांप्रदायिकता पर भी चिंता जताई और आह्वान किया कि…
  • रौनक छाबड़ा
    सरकार ने किया नई रक्षा कंपनियों द्वारा मुनाफ़ा कमाए जाने का दावा, रक्षा श्रमिक संघों ने कहा- दावा भ्रामक है 
    28 May 2022
    सरकार ने दावा किया है कि नव गठित रक्षा कंपनियों ने मुनाफ़ा अर्जित किया है, इसके बाद मान्यता प्राप्त रक्षा कर्मचारी संघों ने इसे “अनुचित” और “अर्ध-सत्य को प्रचारित” करने वाला बताया है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License