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भारत
राजनीति
क्या कुपोषण से निपटने का मध्य प्रदेश सरकार ने झूठा वादा किया है?
मध्य प्रदेश की नवनिर्वाचित कांग्रेस सरकार कुपोषित बच्चों का उपचार लाटरी पद्धति से करने की योजना बना रही है। बताया जा रहा है कि ऐसा कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ने और एनआरसी सेंटरों की सीमित संख्या होने की वजह से किया जा रहा है। 
अमित सिंह
30 Jul 2019
कुपोषण
प्रतीकात्मक तस्वीर। (courtesy- the hindu)

पिछले साल नवंबर महीने में मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव प्रचार चल रहा था। उस समय मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस '40 दिन, 40 सवाल’ पूछ कर राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को घेर रही थी। 

इसी अभियान के दूसरे सवाल के तहत मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर शिवराज सरकार को घेरा था।

सोशल साइट ट्विटर पर साझा किए गए इस सवाल में दावा किया गया था, ‘पूरे देश में मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 42.8 प्रतिशत अर्थात 48 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। मध्य प्रदेश के 68.9 प्रतिशत बच्चे खून की कमी के शिकार और 15 से 49 साल की 52.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं। मध्य प्रदेश में एक साल तक के बच्चों की मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 अर्थात 90 हज़ार बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाते और मौत की आगोश में समा जाते हैं। मध्य प्रदेश में 46 प्रतिशत बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण नहीं होता।’ 

-सवाल नंबर दो -
मामा , क्या यही है तुम्हारी घोषणा और सच्चाई का फ़र्क ?
क्यों मप्र को बना दिया बीमारियों का नर्क ?'
कल मोदी सरकार ने बताया था कैसे हुआ मप्र की स्वास्थ्य सुविधाओं का बेड़ा गर्क ;
आज उन्हीं से सुनिये प्रदेश कैसे बन गया बीमारियों का नर्क:-
1/7 pic.twitter.com/FzGTZ4WrJM

— Office Of Kamal Nath (@OfficeOfKNath) October 21, 2018

इस ट्वीट में इन का आंकड़ों का स्रोत (सोर्स :- NFHS – 4, NHP – 2018 केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय) भी बताया गया था। कांग्रेस ने वादा किया था कि वह अगर सत्ता में आई तो इन आंकड़ों को बदल देगी। 

हर दिन 61 बच्चों की कुपोषण से मौत

हालांकि मध्य प्रदेश में कुपोषण के आंकड़े सिर्फ इतने ही नहीं हैं। पिछले साल जून महीने में मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस विधायक रामनिवास रावत ने तत्कालीन महिला बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनीस से पूछा था कि फरवरी 2018 से मई तक 120 दिनों में कुल कितने बच्चे कम वजन के पाए गए और उनमें से कितने की मौत हुई।

चिटनीस की ओर से दिए गए जवाब में कहा गया है कि कम वजन के 1,183,985 बच्चे पाए गए, वहीं अति कम वज़न के 103,083 बच्चे पाए गए। मंत्री ने अपने जवाब में बताया है कि शून्य से एक वर्ष की आयु के 6,024 बच्चे काल के गाल में समा गए, वहीं एक से पांच वर्ष आयु के 1,308 बच्चों की मौत हुई है। इस तरह कुल 7,332 बच्चों की मौत हुई है। यानी हर दिन करीब 61 बच्चों की मौत हुई है। बच्चों की मौत का कारण विभिन्न बीमारियां बताई गई हैं।

इतना ही नहीं दैनिक भास्कर अखबार के मुताबिक प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़े ही बताते हैं कि जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच प्रदेश में 57,000 बच्चों ने कुपोषण से दम तोड़ा था। यानी कि मध्य प्रदेश में हर रोज 92 बच्चों की मौत कुपोषण के चलते होती है।

गौरतलब है कि ये सभी सरकारी आंकड़े हैं। आम तौर पर माना यह जाता है कि सरकारी आंकड़ों में पीड़ितों की संख्या कम दर्शाई जाती हैं। यानी अगर हम वास्तविक आंकड़ों पर जाएंगे तो निसंदेह यह संख्या ज्यादा होगी।

अब क्या कर रही है सरकार 

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बनाई और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने। इस साल 10 जून से सरकार कुपोषण की पहचान करने के लिए राज्य व्यापी दस्तक अभियान शुरू करके आंकड़ें जुटाने शुरू किए। 

आंगनवाड़ी और अन्य सरकारी संस्थाओं से जुड़े मैदानी कार्यकर्ताओं ने घर घर पहुंचकर 29 लाख 61 हजार बच्चों की जांच की है। पता चला कि इनमें से 10 हजार सात सौ 36 बच्चे गंभीर कुपोषण की श्रेणी में पाए गए हैं। यह अभियान 20 जुलाई तक जारी रहा। 

हालांकि इन आंकड़ों के सामने आने के बाद सरकार के हाथ पांव फूल गए। अब सरकार कुपोषित बच्चों का उपचार लाटरी पद्धति से करने की योजना बना रही है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषित बच्चों की संख्या बढऩे और एनआरसी सेंटरों (पोषण पुनर्वास केंद्र) की सीमित संख्या होने की वजह से लाटरी पद्धति को अपनाने पर विभाग विचार कर रहा है। बताया गया है कि दस्तक अभियान के तहत हुए सर्वे के दौरान कुपोषित बच्चों का आंकड़ा बढ़ा है, जिसके अनुपात में एनआरसी सेंटर के बेड कम पड़ गए हैं। ऐसे में जिन बच्चों को गंभीर बीमारी है या फिर वह अतिकुपोषित है, ऐसे बच्चों को पहले प्राथमिकता दी जाएगी।

रिपोर्ट में रीवा संभाग को लेकर कहा गया है कि सरकारी कुप्रबंधन के चलते संभाग के बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं। पिछले एक दशक में करोड़ों रुपये संभाग के लिए सरकार द्वारा प्रतिवर्ष दिए जा रहे हैं, किंतु स्थिति में थोड़ा भी सुधार नहीं हो पा रहा है। पिछले आंकड़ों में नजर डालने से साफ हो जाता है कि पूरक पोषण आहार के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च हो जाने के बाद भी पिछले दस वर्षों के आंकड़े को कम नहीं किया जा सका है।

अमानवीय व्यवस्था   

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश में आजादी के बाद आज तक कुपोषण की गंभीर समस्या विद्यमान है। कुपोषण के चलते ही मध्य प्रदेश के श्योपुर को 'भारत का इथोपिया’ बताया जाता है। इस पूरे इलाके में मई माह से अक्टूबर–नवंबर माह के बीच एनआरसी में आने वाले कुपोषित बच्चों की संख्या में अचानक इजाफा हो जाता है। लेकिन सरकार की तैयारी यह है कि वह लाटरी के जरिये कुपोषित बच्चों का इलाज कर रही है।
 
मध्य प्रदेश के सामाजिक कार्यकर्ता सचिन कुमार जैन इस ख़बर को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी करते हैं, 'भ्रष्टाचार के कारण सरकारी खजाना खाली हो, धार्मिक सम्मेलनों में बेतहाशा सरकारी खर्च हो, चुनावों में बेतहाशा गैरकानूनी खर्च हो, विधायकों की मण्डी लगानी हो और नीलामी होना हो, मतदाताओं को लोभ लालच देना हो, तब रास्ता ऐसे निकलता है, बर्बर राजनीति और व्यवस्था बच्चों की जिंदगी की लाटरी निकलने लगती है। किसी भी सरकार में इस प्रकार की अमानवीयता देखना बेहद दुखदायी है।'

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