NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
क्या खाद्य उत्पादों के दाम में बढ़ोतरी का फायदा किसानों को मिलता है?
बीते कुछ महीनों में खाद्य पदार्थों यानी खाने-पीने से जुड़ी चीजों के दाम बढ़े हैं, खास तौर पर पश्चिम और दक्षिण भारत में जहां व्यापक रूप से सूखे की मार पड़ी है।

अमित सिंह
13 May 2019
Food inflation
(फोटो साभार: रॉयटर्स)

राष्ट्रवाद, रफ़ाल और सर्जिकल स्ट्राइक के साये में हो रहे लोकसभा चुनाव में महंगाई का मुद्दा गायब है। लेकिन द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक नई सरकार के सामने खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने से रोकने की चुनौती होगी।

पश्चिम और दक्षिण भारत के बड़े हिस्से में सूखे की वजह से बीते कुछ महीनों में कई प्रमुख खाद्य उत्पादों के दाम बढ़े हैं।

रिपोर्ट की मानें तो शुक्रवार को कर्नाटक के दावनगेरे में मक्के का औसत दाम 2,010 रुपये प्रति क्विंटल रहा जबकि पिछले साल यह 1,120 रुपये प्रति क्विंटल रहा था। 

वहीं, महाराष्ट्र के जलगांव और राजस्थान के चौमू में ज्वार और बाजरे की कीमत क्रमशः 2,750 रुपये और 1,900 रुपये प्रति क्विंटल रही। पिछले साल इन दोनों राज्यों में इनके दाम 1,600 और 1,100 रुपये (क्रमशः) प्रति क्विंटल रहे थे।

कपास की पैदावार में भी कमी आई है। इस कारण पिछले साल गुजरात के राजकोट में 5,250 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर मिल रहा कपास, इस साल 5,800 रुपये प्रति क्विंटल पर मिल रहा है।

हालांकि अखबार के मुताबिक दाम बढ़ने से उपभोक्ताओं की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, लेकिन किसानों के लिए यह अच्छी खबर होगी। वहीं, केंद्र में आने वाली अगली सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती साबित होगी।

लेकिन क्या वाकई में खाद्य उत्पादों (खाने-पीने के सामान) के दाम में इजाफे का फायदा किसानों को मिलता है? क्या खाद्य महंगाई बढ़ने से उन्हें अपनी उपज का समुचित दाम मिलने लगता है? क्या भारत में सरकार ने वाकई बाजार से किसानों को जोड़ दिया है?  

उपभोक्ता भी है किसान

अखबार में भले ही किसान और उपभोक्ता को अलग-अलग करके आंकलन किया गया है लेकिन ज्यादातर जानकारों का मानना है कि किसान उपभोक्ता भी है और खाद्य महंगाई बढ़ने से उसको फायदा होगा, ये बात बेबुनियाद है। 

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, 'बहुत सारे अध्ययनों से ये बात सामने आ चुकी है कि खाद्य उत्पादों में महंगाई का फायदा किसानों को नहीं मिलता है। तो इस बात का कोई औचित्य नहीं है कि अगर महंगाई बढ़ गई तो किसान मालामाल हो जाएंगें। ये बात कहते हुए हम यह भूल जाते हैं कि किसान उत्पादक होने के साथ-साथ उपभोक्ता भी है। अगर हम पूरी श्रृंखला को देखेंगे तो यह समझ में आएगा।'

वो आगे कहते हैं, 'किसान अपनी उपज थोक मूल्य पर बेचता है लेकिन जब वह खुद के लिए और अपनी फसल के लिए खरीदारी करने जाता है तो खुदरा मूल्य पर उसे अधिकतम दाम देकर खरीदारी करनी पड़ती है। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी का एक कथन है कि बाजार की पूरी श्रृंखला में किसान ऐसा है जो अपनी उपज थोक मूल्य पर बेचता है और खरीदारी अधिकतम खुदरा दर पर करता है और दोनों का भाड़ा भी वहन करता है। इसका मतलब अगर महंगाई बढ़ी और एक किसान ने टमाटर दो रुपये किलो ज्यादा दाम पर बेच भी दिया तो भी उसे बाकी चीजों की खरीदारी के लिए महंगाई का सामना करना पड़ता है और उसका फायदा शून्य हो जाता है।'

बिचौलियों की होती है चांदी

अगर खाद्य महंगाई का फायदा किसान को नहीं हो रहा है और उपभोक्ता भी परेशान है तो इसका फायदा किसे मिलता है? किसानों की समस्याओं पर लगातार लड़ाई लड़ने वाले लोग इसका उत्तर देते हैं वो बताते हैं कि किसान के हिस्से का पैसा और आम आदमी की जेब पर पड़ने वाले बोझ को बिचौलिए हड़पते हैं।

ऑल इंडिया किसान सभा के विजू कृष्णन कहते हैं, 'खाद्य महंगाई का फायदा किसानों को नहीं मिलता है। एक उदाहरण से समझिए, 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद अरहर के दाल की कीमत आसमान छू रही थी। उपभोक्ताओं को लगभग 200 रुपये किलो में एक किलो अरहर की दाल मिल रही थी। लेकिन उसी समय देश के ज्यादातर किसानों को अरहर का दाम 30 से 40 रुपये प्रति किलो मिल रहा था जबकि समर्थन मूल्य 50 रुपये 50 पैसे के करीब था। अब बीच का पैसा बिचौलिए और बड़े प्लेयर ले रहे थे।'

वो आगे कहते हैं, 'अभी दलहन में अडानी, टाटा, रिलांयस, बिड़ला, आईटीसी जैसे प्लेयर हैं। दाल के दाम में बढ़ोतरी का फायदा यही बिचौलिए और बड़े लोग उठा रहे हैं। किसान अपनी उपज के लिए निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य ही हासिल कर ले यही बहुत ज्यादा है। जो कहा जाता है कि बाजार से जोड़ने का फायदा किसानों को मिलेगा तो यह गलत है। उन्हें इसका नुकसान ही हुआ है। इसका फायदा सिर्फ कॉरपोरेट को मिलता है। वास्तविकता यह है कि जब कीमतें बढ़ती हैं तो बिचौलिए फायदा लेते हैं लेकिन जब दाम घटता है कि उसका नुकसान किसान को उठाना पड़ता है। वह बर्बाद हो जाता है।'

कुछ ऐसा ही मानना भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेंद्र मलिक का है। वो कहते हैं, 'थ्योरी कुछ भी हो लेकिन हकीकत यही है कि उपभोक्ता ज्यादा दाम देकर खाद्य पदार्थ खरीद रहा है और किसान सस्ते दाम पर उसे बेच रहा है। यानी दोनों में किसी को फायदा नहीं हो रहा है। इसके लिए सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। हमने कई बार यह देखा कि जब किसान की फसल के पैदावार का वक्त होता है उसी समय सरकार बाहर से उसी फसल का आयात कर लेती है। जिसका नुकसान किसान को होता है।'

मलिक कहते हैं, 'अभी मान लीजिए प्याज के दाम बढ़े हुए हैं। जब तक किसान की फसल बाजार पहुंचेगी तब तक सरकार बाहर से प्याज आयात करके बाजार में दाम गिरा देगी। किसान को फायदा नहीं मिलेगा। वो औने पौने दाम में अपनी फसल बेच देगा। जब किसान के घर से उपज बाजार में चली जाएगी तो फिर दाम बढ़ जाएगा। बाजारवादी व्यवस्था का यही दोष है। इसमें दाम बढ़ाने और घटाने का काम तीसरा व्यक्ति कर रहा है। यही तीसरा आदमी यानी बिचौलिया सबसे मजबूत है। मोदी सरकार के आने के बाद ये प्लेयर और मजबूत हुए हैं। अब ये ज्यादा संगठित रूप में सामने आ रहे हैं और किसानों का हक मार रहे हैं।'

किसान और न्यूनतम समर्थन मूल्य 

अब अगर लाभ और हानि के इस पूरे चक्र से किसान बाहर है तो आखिर वो किस हालात में है। आपको बता दें कि भारत के कुल मानव संसाधन का 40 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खेती-किसानी से जुड़ा हुआ है।

पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा दशक में ग्रामीण इलाकों में जो परिवार खेती-किसानी पर आश्रित हैं, उनके कर्ज लेने के मामले बढ़े हैं। साथ ही हाल के सालों में, किसानों की आमदनी कम हुई है क्योंकि वास्तविक मजदूरी में मामूली बढ़ोतरी हुई है जबकि फसलों के दाम या तो कम हुए हैं या स्थिर रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में किसान कर्जमाफी, बेहतर मजदूरी और उपज के सही दाम मिलने की मांग को लेकर लगातार देशभर में सड़कों पर प्रदर्शन करते रहे हैं। इस दौरान किसानों की आत्महत्या की खबरें भी सुर्खियों में रही हैं। यानी किसानों की दशा बदतर होती जा रही है। 

किसान के फायदे के सवाल पर राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के बीएम सिंह कहते हैं, 'किसान का फायदा होने की बात करना बेईमानी है। देश भर के किसान संगठन एकजुट होकर पिछले काफी समय से किसानों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। यानी वास्तविकता यह है कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं हासिल हो रहा है और आप कह रहे हैं कि खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ने से किसान मालामाल हो रहे हैं।'

BJP
Narendra modi
Demonetisations
agrarian crisis
Anti-farmer government
elections 2019
Lok Sabha Elections 2019
farmers struggle
Agrarian Issues
farmers suicide
Kisan Long March

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

हिसारः फसल के नुक़सान के मुआवज़े को लेकर किसानों का धरना

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License