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भारत
राजनीति
क्या राज ठाकरे आगे चलकर शिवसेना को नुकसान पहुंचाएंगे?
इस साल अक्टूबर में महाराष्ट्र विधानसभा के होने वाले चुनाव में एक नया राजनीतिक गठजोड़/संयोजन उभर कर सामने आ सकता है, बशर्ते कांग्रेस-एनसीपी का आधिकारिक तौर पर राज ठाकरे की एमएनएस के साथ गठबंधन हो जाए।
निखिल वागले
01 May 2019
Translated by महेश कुमार
राज ठाकरे
Image Courtesy: The week

राजनेता राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अपनी जनसभाओं के चल रहे दौर को खत्म कर दिया है। महाराष्ट्र में उनकी पार्टी एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही हैं बावज़ूद इसके वे 2019 के लोकसभा चुनावों में राज्य में एक असली सितारे के रुप में उभरे हैं। उन्होंने एक ऐसे उग्र विपक्षी नेता का स्थान पा लिया है जो मोदी-शाह की जोड़ी से सीधी तौर पर टक्कर लेने से कतराता नहीं हैं। लगता है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेताओं ने स्वेच्छा से उनके लिए यह स्थान छोड़ दिया है।

उदारवादी या धर्मनिरपेक्ष लोग ठाकरे की चुनावी सभाओं के शानदार प्रदर्शन का आनंद उठा रहे हैं। एक सभा में उन्होंने शरद पवार को धन्यवाद देते हुए कहा कि वे उनके शुक्रगुजार हैं, उन्होंने मोदी-शाह के खिलाफ इस दौरे का आयोजन करने के लिए उन्हें मनाया। पवार एक चतुर राजनेता हैं, जो दोस्तों और दुश्मनों की ताकत और कमजोरियों को समझते हैं। उन्हें पता था कि ठाकरे का करिश्मा चमत्कार करेगा। उन्होंने उन्हे निराश नहीं किया, वास्तव में हर सार्वजनिक बैठक में, मोदी-शाह पर उनका हमला तेज़ होता गया। शुरू में, पवार राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन में शामिल करना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस यह कहते हुए सहमत नहीं हुई कि वह उत्तर भारतीय मतदाताओं को रास नहीं आएगा। विडंबना यह है कि कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण या पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, ठाकरे की मंत्रमुग्ध करने वाली बैठकों की मांग करने वाले पहले व्यक्तियों में से थे।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने महाराष्ट्र में ठाकरे का मुकाबला करने की कोशिश की लेकिन उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पार्टी के आईटी सेल के जरिये ठाकरे को निशाना बनाने का निर्देश दिया था। हालांकि, राज ठाकरे ने अपनी सभाओं में उनका काफी मज़ाक उड़ाया और भाजपा की प्रचार की मशीन को इस हद तक उजागर कर दिया कि पार्टी राज्य में हंसी का पात्र बन कर रह गई। फडणवीस को फिर पीछे हटना पड़ा। 26 अप्रैल को, नरेंद्र मोदी ने मुंबई में एक विशाल सभा को संबोधित किया था। ठाकरे की आखिरी सभा भी उसी दिन नासिक में हुई थी। बीजेपी नेताओं को उम्मीद थी कि मोदी राज ठाकरे का मुकाबला करेंगे या उनका जवाब देंगे, लेकिन हैरानी की बात है कि मोदी की सभा का भी कोई नतीजा नहीं निकला। बीजेपी की भी ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति के जरिये ठाकरे का अनुसरण करने की योजना थी। उनका मीडिया सेल मोदी की प्रशंसा करते हुए उनके पुराने वीडियो एकत्र करने में व्यस्त था। लेकिन राज ठाकरे ने उनके जहाज़ की हवा ही निकाल दी। उन्होंने सार्वजनिक रूप से 2013 में मोदी की प्रशंसा करने की अपनी गलती को स्वीकार किया। उन्होंने लोगों के सामने सार्वजनिक रूप से घोषणा करते हुए कहा कि "मोदी और उनके अधिकारियों ने गुजरात मॉडल के नाम पर मुझे धोखा दिया।" उनकी आलोचना का सामना करते हुए बीजेपी कुछ भी रोमांचक पेश नहीं कर सकी। याद रहे कि 2014 में, मोदी ने सारी सुर्खियों को बटोर लिया था, लेकिन इस बार, राज ठाकरे ने उन्हें महाराष्ट्र में अपने एक मनोरंजक वन-मैन शो के साथ दौड़ से बाहर कर दिया। ठाकरे की सभाओं के खर्च के बारे में दक्षिणपंथी पार्टी ने राज्य चुनाव आयुक्त से भी शिकायत की है। लेकिन चुनाव आयोग ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

पिछले दो हफ्तों में, मीडिया ने भाजपा की संभावनाओं पर राज ठाकरे के अभियान के प्रभाव का विश्लेषण करने की कोशिश की है। लेकिन इस अभियान की सबसे बड़ी और असली पीड़ित शिवसेना है। अपने मेगा शो के जरिये, ठाकरे ने शिवसेना को बैकफुट पर डाल दिया है। हालांकि उनके निशाने पर हमेशा मोदी-शाह रहते हैं, लेकिन जब वह उद्धव ठाकरे को एक बेशर्म, चाटुकार प्राणी के रूप में खारिज करते हैं, तो उन्हें जनता से खूब तालियाँ मिलती हैं। शिवसेना (एसएस) ने पिछले पांच वर्षों में भाजपा की सबसे कठोर शब्दों में आलोचना की थी और अंतिम समय में वे उनके साथ गठबंधन में चले गए। यह बात शिवसेना समर्थकों को रास नहीं आई। राज ने उस भावना का चालाकी से दोहन किया है। सभी महानगरीय निर्वाचन क्षेत्रों में उनका एक बड़ा मतदाताओ का आधार है, जो सीधे उद्धव को टक्कर देगा। राज ठाकरे के अभियान ने शिव सैनिकों को भ्रम में डाल दिया है। शिव सेना के मुख्य मतदाता काफी विभाजित हैं। इसके अलावा, इस साल शिवसेना का चुनाव अभियान भी कमजोर रहा है। उद्धव की जनसभाएं भी काफी फीकी रही हैं। शिवसेना के कई उम्मीदवारों ने उद्धव की तुलना में पोस्टर पर मोदी की छवि लगाना ज्यादा पसंद किया है।

राज ठाकरे ने युवा मतदाता की कल्पना पर भी कब्जा जमा लिया है, जिस तबके को भाजपा-शिवसेना ने निशाना बनाने की योजना बनाई थी। वे उनके आक्रामक भाषणों और करिश्में से काफी आकर्षित हैं। चुनावी समर में उनकी अप्रत्याशित उपस्थिति ने भाजपा-शिवसेना को तली पर लगा दिया है। अगर वे जमीन पर अपना वोट कांग्रेस-एनसीपी को हस्तांतरित करने में सक्षम होते हैं, तो शिवसेना के उम्मीदवार बीजेपी से ज्यादा मुश्किल में पड़ जाएंगे।

इस बीच, भाजपा नेताओं ने राज ठाकरे के इरादों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया है। उन्होंने उन पर आरोप लगाया कि राज ठाकरे कांग्रेस के लिए सुपारी  लेने का काम (गुप्त काम) कर रहे हैं। जिसका उन्होंने जवाब देते हुए कहा, "क्या मैंने 2013 में मोदी का समर्थन करके भी ऐसा किया था?" अब, भाजपा-शिवसेना गठबंधन उनकी अगली योजना को लेकर चिंतित है। इस साल अक्टूबर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में एक नया राजनीतिक गठबंधन उभर सकता है, अगर कांग्रेस-एनसीपी आधिकारिक तौर पर राज ठाकरे के एमएनएस के साथ गठबंधन कर लेते हैं तो। यह भाजपा-शिवसेना गठबंधन, खासकर शिवसेना उम्मीदवारों के लिए एक वास्तविक खतरा साबित होगा। अपने नए उत्साह के साथ राज ठाकरे, उद्धव के साथ अपने पुराने हिसाब-किताब को निपटाने के लिए उनके आत्मविश्वास पर चोट कर सकते हैं। राज ठाकरे ने अब तक अपने कार्ड का खुलासा नहीं किया है और दोनों गठबंधनों को अनुमान लगाने के लिए छोड़ दिया है। बीजेपी उन्हें अपनी तरफ पाकर खुश होती, लेकिन शिवसेना ने इसे असंभव बना दिया है।

इस लोकसभा चुनाव में, वे पूरी तरह से मोदी-शाह पर नज़र गड़ाए हुए हैं। जबकि विधानसभा चुनाव अभियान पूरी तरह से अलग होगा। ठाकरे ने वर्तमान लोकसभा अभियान में शायद ही हिंदुत्व या उत्तर भारतीय प्रवास के अपने पसंदीदा विषय को छुआ हो। लेकिन उन्होंने इन विवादास्पद विषयों पर अपना मूल रुख नहीं बदला है। हाँ, हमला नरम हो सकता है, लेकिन इन विषयों को वे स्थायी रूप से छोड़ नहीं सकते क्योंकि इससे उनके मूल निर्वाचन क्षेत्र को नुकसान होगा। इस चुनाव में, कांग्रेस ने इसी आधार पर उनके साथ सहयोगी बनने से इनकार कर दिया था। यदि वे उनके साथ एक समझौता करना चाहते हैं, तो उन्हें इसके लिए अधिक लचीला होना होगा। राज ठाकरे के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को उनकी ज्यादा जरूरत है बजाय गठबंधन की उन्हें। पवार इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं।

वर्ष 2009 के विधानसभा चुनाव में ठाकरे की एमएनएस को 4.8 प्रतिशत वोट मिले थे, और मोदी लहर के कारण 2014 में उनकी पार्टी ने केवल 13 सीटें जीतीं थी। इस साल विधानसभा चुनावों में अगर एमएनएस को अपना 2009 का वोट शेयर वापस मिल जाता है, तो यह कांग्रेस-एनसीपी की झोली में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्त वोट होगा और जो राज्य में संख्या के खेल को बदल सकता है। यह दोनों गठबंधनों में 8 प्रतिशत अंतर को कम कर सकता है।

राज ठाकरे के लिए यह एक सुनहरा अवसर है। वह अपनी पार्टी को पुनर्जीवित कर सकते हैं, लेकिन उन्हे थोड़ा ज्यादा समावेशी बनने की जरूरत है, जो उनके सामने एक वैचारिक चुनौती है।

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