NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्यों भूल जाएँ बाबरी मस्जिद ध्वंस से गुजरात नरसंहार का मंज़र
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यू पर स्मृति लेख, आखिर क्यों स्तुति लेख-गुणगान गाथा में तब्दील हो रहे हैंI
भाषा सिंह
17 Aug 2018
Atal Bihari Vajpayee

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के बाद शोकसंवेदनाओं का आना, दुख व्यक्त करना, व्यथित होना, obituary लिखना...तो बहुत स्वाभाविक परिघटना है। वह देश के प्रधानमंत्री थे, लंबा संसदीय जीवन जिया, भाजपा को सत्ता में पहुँचाने में उनका करिशमायी योगदान था—सब कुछ स्वीकार, लेकिन क्या उनके राजनीतिक योगदान की आलोचनात्मक विवेचना करना, तथाकथित भारतीय परंपरा  के खिलाफ है। इस आलोचनातमक दृष्टि का अभूतपूर्व अकाल हिंदी–भाषाभाषी पट्टी में दिखायी दे रहा है। प्रगतिशील-मार्क्सवादी लेखक-चिंतक-विचारक उन्हें आजादी के बाद के महानतम नेता बनाने पर तुले हे हैं। आखिर क्यों? अखबारों-इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तो यहाँ बात करना बेमानी है, उस पर चढ़ा भगवा रंग दिनों-दिन पक्का होता जा रहा है। कुछ आलोचनात्मक लेख-टिप्पणियाँ, वेबसाइट्स पर बातें हो रही हैं, लेकिन वे अपवाद स्वरूप ही हैं।

क्या आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते समय बाबरी मस्जिद विध्वंस (1991-92) से गुजरात नरसंहार (2002)  को भूला जा सकता है। आज़ाद भारत के सबसे खौफनाक क्षण, जहाँ मुसलमानों के खिलाफ राज्य के संरक्षण में बर्बरतम हिंसा हुई। 1984 में सिखों के नरसंहार को मात देने की होड़ में पूरा तंत्र-पूरी बेशर्मी के साथ बाबरी मस्जिद के ध्वंस करने वालों के साथ खड़ा दिखाई दिया। क्या पाँच दिसंबर को बाबरी मस्जिद ध्वंस से बस एक दिन पहले दिये गए अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण को बिसराया जा सकता है—जिसमें वह खुलेआम कारसेवा के जरिये बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने—नुकीले पत्थरों को हटाने, यज्ञ करने जैसी तमाम बातें बोलते हैं और कारसेवकों का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उस भाषण में भी उनके भाषण की कला की खूबी लोगों को दिखायी देनी चाहिए थी!

क्या 2002 में गुजरात में चल रहे नरसंहार पर तत्कालीन प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी की खामोशी को भुलाया जा सकता है? तत्कालीन सांसद एहसान जाफरी को हत्यारी भीड़ ज़िन्दा जला रही थी, देश के प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी 7 रेसकोर्स से यह मंजर देख रहे थे। स्वर्गीय एहसान जाफ़री की पत्नी ज़किया जाफ़री आज भी उस वाकये को पूरे ग़म के साथ बताती है कि कैसे दिल्ली (केंद्र) को इतने फोन करने के बावजूद किसी ने कुछ नहीं किया। नरसंहार होने के बाद में राजधर्म पालन की बात अटल बिहारी वाजपेयी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कही (जिसे इस समय तमाम लोग खूब याद करते हुए उनकी महानता के गुण गा रहे हैं) लेकिन उसके जवाब में तत्कालीन नरेंद्र मोदी जो कहते हैं, वह लोग नहीं याद कर रहे, नरेंद्र मोदी ने माइक पर ही कहा था, `वही तो कर रहे हैं’, और इस तरह से पूरे दृश्य का पटाक्षेप होता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भारतीय राजनीतक पटल पर स्वीकार्योक्ति दिलाना जरूर दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े योगदान के रूप में याद किया जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह राजनीति के मंझे हुये खिलाड़ी थे। भाजपा गठबंधन के साथ सत्ता कैसे हासिल कर सकती है, इसमें जो योगदान अटल बिहारी वाजपेयी ने दिया, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के इतिहास में उन्हें सबसे बड़े नेता के रूप में प्रतिस्थापित होते हैं। इस लक्ष्य को हासिल करने में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी तमाम खूबियों का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने ऐसे तमाम लोगों को साथ लिया-जो किसी कट्टर राष्ट्रीय स्वयंसेवक के साथ नहीं आते। वैसे, जो लोग संघ की कार्यप्रणाली से वाकिफ हैं, वे जानते हैं कि सामाजिक व्यवहार-भेंट-मुलाकात में संघ के कार्य़कर्ता सबसे मृदु-सबसे हार्दिक-सबसे मिलनसार होते हैं। इसी के जरिये वह अपनी गहरी पैठ बनाते हैं।  पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी संघ इसी परंपरा के ध्वजवाहक रहे। संघ की विचारधारा-हिंदू राष्ट्र के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के लिये पूरी तरह से समर्पित। उनके हस्तक्षेप की परिणिति ही 2014 में भाजपा को इतने वोट-इतनी सीटों का मिलना है। एक अहम बात जो हमें ध्यान रखनी चाहिए, जिसपर कई वाम चिंतक जबर्दस्ती का भ्रमित होते दीख रहे हैं, वह है कश्मीर को लेकर उनकी पहल। अगर कश्मीर में भाजपा का दखल इस हद तक बढ़ा कि वह महबूबा मुफ्ती के साथ सरकार बनाने तक पहुंची तो इसमें अटल बिहारी के समय उठाये गये कदमों की जबर्दस्त भूमिका है, इसे नजरंदाज करना बहुत सोची-समझी मासूसियत है। जो लोग अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी की राजनीति में अंतर देख रहे हैं, वे क्या यह भूल गये की दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान नें नवाज शरीफ से मुलाकात करके, उन्हें जन्मदिन पर बधाई देकर सबको चमत्कृत कर दिया था।

आवरण चढ़ाने के लिए हम सब भारतीय संस्कृति की दुहाई दे रहे हैं। सवाल सीधा सा है क्या obituary  का मतलब स्तुति गान है, critical evaluation  नहीं। यह जो दौर शुरू हुआ, लेख-टिप्पणियों में महानता को नमन करने की जो अश्रुधार बह रही है, वह आने वाले खौफनाक दौर की आहट दे रही है।

ऐसे में सहसा वरिष्ठ कवि अजय सिंह की वर्ष 2002 में लिखी कविता खिलखिल को देखते हुए गुजरात (कविता संग्रह--राष्ट्रपति भवन में सूअर) की कुछ पंक्तियां याद आती हैं---

...टेलीफ़ोन पर दिल्ली से पूछता है

कोई वाजपेयी  कोई आडवाणी

मोदी,

तुम्हें 72 घंटे दिये गये

उन्हें 72 दिनों में बदल दिया गया

अब तक कितने मारे

अरे, बहुत कम   और मारो मारो मारो

जब तक 58 के बदले 5800 न मारे जायें

अपना राजधर्म निभाते रहना प्यारे......

...

आज गुजरात कल समूचा भारत

7 रेसकोर्स रोड से देखता हूँ

अहा यह अति मोहक दृश्य

यही है हमारी नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि

मैं गीत नहीं गाता हूँ

बस कर्म किया करता हूँ

म्लेच्छों की गर्दन काट-काट

भारत को महान बनाता हूँ...

Atal Bihari Vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी
Babari masjid
2002 Gujrat riots
बाबरी मस्जिद

Related Stories

गुजरात दंगे और मोदी के कट्टर आलोचक होने के कारण देवगौड़ा की पत्नी को आयकर का नोटिस?

क्या यही समय है असली कश्मीर फाइल को सबके सामने लाने का?

प्रधानमंत्रियों के चुनावी भाषण: नेहरू से लेकर मोदी तक, किस स्तर पर आई भारतीय राजनीति 

अटल प्रोग्रेस वे से कई किसान होंगे विस्थापित, चम्बल घाटी का भी बदल जाएगा भूगोल : किसान सभा

किसान आंदोलन पर वरुण गांधी ने दी केंद्र सरकार को हिदायत, शेयर किया अटल बिहारी वाजपेयी का वीडियो

आगरा शिखर सम्मलेन: भारत-पाकिस्तान के रिश्तों का अहम पड़ाव

संपूर्ण क्रांति की विरासत और जेपी-संघ का द्वंद्व

किसान आंदोलनः ब्राह्मण बनिया राष्ट्रवाद बनाम असली भारत

क्या है ब्रह्मडीह कोयला घोटाला, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप राय को मिली 3 साल की सज़ा

रघुवंश बाबू का जाना राजनीति से एक प्रतीक के जाने की तरह है


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License