NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
क्यों मोदी ने ख़ुद नहीं की लॉकडाउन-3 की घोषणा?
क्या इससे विश्वास और निश्चित्ता की कमी झलकती है? क्या यह क़दम दिखाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद को रोजाना के फ़ैसलों से अलग कर रहे हैं।
नीलांजन मुखोपाध्याय
06 May 2020
neelanjan

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे राजनेता हैं, जो हर सरकारी फ़ैसले या कार्यक्रम का श्रेय लेते हैं। यहां तक कि मोदी अपनी ज़्यादातर सार्वजनिक रैलियों में केंद्र सरकार को 'मोदी सरकार' कहकर संबोधित करते हैं। इसलिए लॉकडाउन के तीसरे संस्करण की घोषणा करने के लिए प्रधानमंत्री का सामने ना आना हैरानी भरा है, इसको समझने की भी ज़रूरत है।  

19 मार्च में जनता कर्फ्यू की घोषणा करने से लेकर अब तक प्रधानमंत्री मोदी 9 बार देश के सामने अपनी बात रख चुके हैं। हर बार उनकी बात का केंद्र कोरोना महामारी रही, जिसमें मोदी महामारी से निपटने के लिए उठाए जा रहे सरकारी कदमों या फिर जनता के लिए अगले 'टॉस्क' की योजना बताते नज़र आए। लेकिन इस बार लॉ़कडॉउन की घोषणा करने प्रधानमंत्री खुद सामने नहीं आए।

इसके बजाए केंद्रीय गृहसचिव के हस्ताक्षर वाला आदेश आया, जिसके बाद प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो ने अगले 15 दिन के लिए लॉकडाउन को बढ़ाने की घोषणा जारी कर दी। यहां तक कि लॉकडाउन की नई गाइडलाइन को भी आधिकारिक घोषणा में शामिल कर सार्वजनिक किया गया। इसमें देश के इलाकों की ''कलर कोडिंग'' की बात भी थी।

तो जब 'निर्णायक' प्रधानमंत्री 24 मार्च को बिना किसी संशय के लॉकडाउन की घोषणा करते हैं, तो अब उन्हें क्या हो गया है? जैसी मोदी की आदत रही है, आखिर उन्होंने इस घोषणा को भी एक कार्यक्रम क्यों नहीं बनाया? आखिर मोदी ने इस लॉकडाउन का श्रेय क्यों नहीं लिया, जबकि अब सभी तीन जोन में कुछ छूटें दी जा रही हैं?

आखिर मोदी द्वारा निजी तौर पर टीवी के माध्यम से लॉकडाउन का ऐलान न करना और एक रोज़ाना जारी होने वाले नोट से इसकी घोषणा क्या संकेत करती है? क्या यह विश्वास की कमी को दिखाती है, जिसके चलते मोदी खुद को रोज़ाना के फ़ैसलों से दूर करने की कोशिश कर रहे हैं? इन सवालों का तय जवाब देना मुश्किल है, फिर भी इन सवालों को उठाना और इन पर विचार करना जरूरी है।

यह तर्क दिया जा सकता है कि लॉकडाउन की घोषणा की तुलना में इससे निकलना ज़्यादा मुश्किल है, इसलिए लॉ़कडॉउन की शर्तों को ढील देने की घोषणा की ज़िम्मेदारी सरकारी अधिकारियों पर छोड़ दी गई है। यहां तक कि लॉकडाउन बढ़ाने की तारीखें भी राज्यों ने तय की हैं, हांलाकि इसके फ्रेमवर्क पर गृह सचिव के हस्ताक्षर हैं। साफ है कि मोदी लॉकडाउन से निकलने की पूरी ज़िम्मेदारी लेना नहीं चाहते।

लेकिन फिर भी यहां एक विवादास्पद मुद्दा रहा जाता है। क्या इस सरकार के फ़ैसलों के लिए मोदी को ज़िम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए, जबकि पिछली सभी बड़ी घोषणाओं खुद प्रधानमंत्री ने की हैं। मोदी और इस घोषणा में जो दूरी आई हैं, उससे मोदी की चिंता और परेशानी के बारे में तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है।

ऐसा सोचने की कई वजह हैं। इसलिए कोशिश की जा रही है कि पूरी जवाबदेही प्रधानमंत्री के सिर पर न आ जाए। लॉकडाउन को बिना तैयारियों के लागू किया गया था, जहां लोगों तक जरूरी चीजों की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं की गई थी। ना ही प्रवासी मज़दूरों की बड़ी आवाजाही का अंदाजा लगाया गया था। ठीक इसी तरह अब तक लॉकडाउन से निकलने की किसी योजना पर बहुत ज़्यादा नहीं सोचा गया है।

दूसरी बार सरकार आशंकित प्रवासी मज़दूरों के अपने गांव या कस्बों में पहुंचने की बेसब्री को समझने में नाकाम रही है। एक तरफ यात्राओं में लगने वाली टिकट का विवाद राजनीतिक हो गया, दूसरी तरफ यह भी साफ है कि सरकार सभी मज़दूरों तक पहुंचने में नाकामयाब रही है। इसलिए अब भी कई मज़दूर घर पहुंचने के लिए पैदल चल रहे हैं। जैसा गुजरात के सूरत में हुआ, दूसरे मज़दूरों का पुलिस समेत अन्य राज्य एजेंसियों के साथ टकराव जारी है।

यह कहा जा रहा है कि लॉकडाउन महामारी के फैलाव को रोकने में नाकामयाब रहा है। अगर ऐसा है तो लॉकडाउन का प्राथमिक उद्देश्य कामयाब नहीं हो पाया और मोदी इसके बारे में जानते हैं। जब महामारी तेजी से फैल रही है, तब एक बहुस्तरीय निकासी का कोई ख़ास तुक समझ में नहीं आता।

''जान है, तो जहान है'' जैसी बातों से केंद्र शुरू से ही लॉ़कडॉउन को न्यायसंगत ठहराता आया है। लेकिन वक़्त के साथ यह साफ हो गया कि संक्रमण के डर के साथ जीने को मजबूर लोग  अपनी आजिविका को लेकर भी चिंतित हैं। आने वाले वक़्त में उन्हें काम की कमी नज़र आ रही थी, उनका बचा-खुचा पैसा भी खत्म हो रहा था, इससे लोग अशांत भी हो रहे थे। कुछ क्षेत्रों और शहरों से इस तरह की खबरें भी आईं।

इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि कब लोगों का गुस्सा कुछ इलाकों से बड़े स्तर पर फैल जाए। इससे मोदी के लिए राजनीतिक परेशानियां बढ़ सकती हैं, उनके लिए बड़े स्तर की भलमनसाहत का खात्मा हो सकता है। ऐसा लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद हुआ भी। मोदी ने तब अपने-आप को किसी मसीहे की तरह पेश किया, लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर सकते। नए मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लोगों में यह भावना घर कर रही है कि अब तो न जान का कुछ भरोसा है, न जहान का कुछ तय है।

हमें मोदी का राज्यों के साथ ज़िम्मेदारी बांटने का संकेत पहले संस्करण के लॉकडाउन के खात्मे  के पहले मिला, जब उन्होंने इसका वक़्त बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्रियों से उनका नज़रिया पूछा। उस वक़्त डर सबसे ऊंचाई पर था, कोई भी लॉकडाउन खोलने की बात कहना नहीं चाहता था। कुछ मुख्यमंत्रियों ने तो मोदी के साथ हुई वीडियो मीटिंग से पहले ही लॉकडाउन की घोषणा कर दी। मुख्यमंत्रियों का समर्थन मिलने के बाद मोदी ने लोगों के सामने अपने संबोधन में लॉकडाउन बढ़ाने का ऐलान किया।

जब तीन मई आने वाली थी, तब तक सभी को महसूस हो चुका था कि अर्थव्यवस्था को शुरू करना होगा, फिर भी कुछ ही लोग लॉकडाउन से निकलने के लिए तैयार थे। साफ था कि कोई भी अपनी बात खुलकर नहीं कहना चाहता था।

तब मोदी ने बीच का रास्ता अपनाया। उन्होंने ठीक-ठाक छूट के साथ लॉकडाउन को अगले 15 दिनों के लिए और बढ़ा दिया। हांलाकि वे इसकी ज़िम्मेदारी लेने से दूर ही रहे। अब प्रधानमंत्री को बीच में फंसने का ख़तरा है।

लोगों और अर्थव्यवस्था की बड़ी दिक्क़त, मोदी की राजनीतिक पूंजी घटने के दौर में सामने आएंगी। यही असली चिंता की बात है। इसलिए वो राज्यों के सथ ज़िम्मेदारी साझा करने के लिए परेशान हैं, ताकि अगर लोगों की भावनाएं उनकी सरकार के ख़िलाफ़ हो जाएं, तो राज्यों के हिस्से में भी दोषारोपण किया जा सके।

लेखक दिल्ली आधारित स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

 

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए आप नीचे लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

What Stopped a ‘Decisive’, TV Savvy Modi From Announcing #Lockdown3

Lockdown
COVID-19
modi failure
Migrant Labour
train fares

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
    27 May 2022
    सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब अजमेर शरीफ निशाने पर! खुदाई कब तक मोदी जी?
    27 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना के दावे की जिसमे उन्होंने कहा है कि अजमेर शरीफ भगवान शिव को समर्पित मंदिर…
  • पीपल्स डिस्पैच
    जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?
    27 May 2022
    ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में प्राप्त हुई, फिर गवाईं गईं चीज़ें बताती हैं कि पूंजीवाद और अमेरिकी समाज के ताने-बाने में कितनी गहराई से नस्लभेद घुसा हुआ है।
  • सौम्यदीप चटर्जी
    भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन
    27 May 2022
    चूंकि भारत ‘अमृत महोत्सव' के साथ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, ऐसे में एक निष्क्रिय संसद की स्पष्ट विडंबना को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा
    27 May 2022
    ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License