NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्यों न रिपोर्टिंग ही बंद हो जाए, क्यों न आप अख़बार ही कल से बंद कर दें
मुज़फ्फरपुर बालिका गृह कांड से संबंधित अब किसी भी मामले की रिपोर्टिंग नहीं होगी। पटना हाईकोर्ट ने प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर यह बंदिश लगा दी है।
27 Aug 2018
रवीश कुमार

मुज़फ्फरपुर बालिका गृह कांड से संबंधित अब किसी भी मामले की रिपोर्टिंग नहीं होगी। पटना हाईकोर्ट ने प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर यह बंदिश लगा दी है। पहले हो चुकी जांच और आगे होने वाली जांच से संबंधित कोई ख़बर ही नहीं छपेगी। हाईकोर्ट के इस आदेश पर एडिटर्स गिल्ड ने चिन्ता जताई है। गिल्ड ने कहा है कि कोर्ट को कहां मीडिया की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन उस पर अंकुश लगाया जा रहा है। गिल्ड ने सुप्रीम कोर्ट और पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से अपील की है कि अपने फैसले की समीक्षा करें।

मुज़फ्फरपुर बालिका गृह कांड आज आपके सामने नहीं होता अगर मीडिया ने इसे उजागर नहीं किया होता। मुझे प्रिंट की जानकारी नहीं है, टीवी में थोड़ी बहुत ख़बर सबने दिखाई लेकिन कशिश न्यूज़ चैनल ने जिस तरह से लगातार इस मामले को उजागर किया, वो न होता यह कांड सीबीआई के दरवाज़े तक नहीं पहुंचता। शायद अदालत के दरवाज़े तक भी नहीं। कोर्ट को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए था कि मीडिया की वजह से ही यह जघन्य अपराध सामने आया है। एक कैंपस में 30 से अधिक बच्चियों का बलात्कार और उनके साथ यौन अत्याचार सामान्य घटना नहीं है। बल्कि बाद में जब बाकी मीडिया की सक्रियता बढ़ी तब और भी कुछ नए तथ्य सामने आते गए।

इसलिए कम से कम इस मामले में कोर्ट से लेकर बिहार सरकार को मीडिया का शुक्रगुज़ार होना चाहिए। कोर्ट को यह ध्यान रखना चाहिए कि मीडिया की ख़बरों के कारण ही एक कबीना मंत्री को पद से हटना पड़ा और सीबआई ने उनके यहां भी छापेमारी की। मीडिया की रिपोर्टिंग से ही ज़ाहिर हो रहा है कि इस मामले को दबाने में बड़े बड़े लोग लगे हैं।

रिपोर्टिंग से जांच में मदद ही मिलेगी क्योंकि जांच शुरू ही हुई है रिपोर्टिंग के कारण। रिपोर्टिंग पर अंकुश लगने से उस शंका को बल मिलेगा कि बड़े लोगों ने ख़ुद को बचाने का इंतज़ाम कर लिया है। बचाने का एक तरीका केस को टालते जाने का भी है। लगातार रिपोर्टिंग होगी तो नए नए तथ्य सामने आएंगे और जांच एजेंसियों पर दबाव रहेगा कि वह अपनी रिपोर्ट लेकर अदालत के सामने समय समय पर हाज़िर होती रहे।

बालिका गृह कांड की रिपोर्टिंग उन बच्चियों के भरोसे के लिए भी है। उन पर लगातार ख़तरा बना रहेगा। कोई दबाव डाल सकता है। कई बार गवाहों की जान को ख़तरा हो जाता है। क्या इन सब आशंकाओं की पड़ताल मीडिया को नहीं करना चाहिए,और अपनी ख़बरों के ज़रिए अदालत और समाज के सामने नहीं लाना चाहिए? उन बच्चियों का कोई मां-बाप नहीं है। वे सत्ता तंत्र की मदद से ऐश कर रहे दरिंदों के आगे लाचार हैं। इस वक्त मीडिया की रिपोर्टिंग ही उनका संबल हो सकता था। इसलिए ज़रूरी है कि अदालत अपने इस फैसले की समीक्षा करे।

इस आदेश से मीडिया के उस तबके में खुशी ही होगी जिन पर इस कांड की तह तक जाने और ख़बरों को लाने का दबाव पड़ रहा था। जो लंबे समय तक रिपोर्टिंग की औपचारिकता पूरी कर एक कैंपस में 30 से अधिक बच्चियों के साथ बलात्कार की ख़बर को सामान्य ख़बर बनाकर किनारे कर रहा था। अब ऐसे लोगों को अदालत के आदेश से राहत मिल जाएगी। उनके संबंध दांव पर नहीं लगेंगे। इसलिए भी इस फैसले की समीक्षा ज़रूरी है।

एक दर्शक और पाठक के तौर पर आप सोचिए। क्या यह आप पर रोक नहीं है? क्या आप बिल्कुल नहीं जानना चाहेंगे कि एक कैंपस में 30 से अधिक बच्चियों के रेप के मामले में क्या हुआ? सीबीआई की तरफ से जांच कर रहे एस पी का तबादला क्यों हुआ? कहीं इस्तीफा देने वाली मंत्री को बचा तो नहीं लिया गया? कहीं केस कमज़ोर कर उस व्यक्ति को बचा तो नहीं लिया जाएगा? क्या आप वाकई इस भ्रम में हैं कि भारत में यह सब होना बंद हो गया है? अगर ऐसा है तो आप एक काम कीजिए। कल से अख़बार बंद कर दीजिए और न्यूज़ चैनल का कनेक्शन कटवा दीजिए। क्योंकि अब कुछ ग़लत ही नहीं हो रहा है। जांच एंजेंसी पर भरोसा ही करना होगा। रिपोर्टिंग होगी नहीं तो अख़बार ख़रीद कर आप क्या करेंगे। क्यों ख़रीद रहे हैं?

अमित शाह के बेटे जय शाह के मामले में भी अदालत से नोटिस आ गया। रिपोर्टिंग बंद हो गई। अब एक नया तरीका आया है। मानहानि का। भक्ति में डूब चुके लोग इस हद तक आ गए हैं कि कहने लगे हैं कि कोर्ट जाने से क्या डर है। क्या उन्हें पता है कि अंबानी के सामने कोई पत्रकार कितने वकील लेकर जा सकेगा? क्या उन्हें नहीं पता है कि 5000 करोड़ का दावा या 50 करोड़ का दावा ऐसे कितने रिपोर्टरों को डरा देगा? आप अपना पक्ष दीजिए न छपे तो अलग बात है लेकिन जब आपका पक्ष देने पर छप रहा है तो फिर मानहानि को हथियार क्यों बनाया जा रहा है?

हम कहां से कहां पहुंच गए। राजनीतिक भक्ति ने इस हाल में ला दिया है कि हम हर आज़ादी खोने को सही ठहरा रहे हैं। इस तरह के तर्क आपको मानसिक रूप से तैयार कर रहे हैं कि चुपचाप ग़ुलाम बने रहो। गोदी मीडिया ऐसे ही जनता को छोड़ चुका है। उसके लिए दर्शक या पाठक सिर्फ सर्वे के सामान हैं। सर्वे करने और वापस उसी को दिखाने के। अगर मीडिया में पहले से ये बीमारी थी तो क्या यही तरीका है ठीक करने का? या हम ठीक करना ही नहीं चाहते?

कोई जाकर उन बच्चियों से सिर्फ इतना कह दे कि अब इस मामले में कोई रिपोर्टिंग नहीं होगी। न टी वी में ख़बर दिखेगी न अख़बार में छपेगी। ये आदेश हाई कोर्ट ने दिया है तो उन बच्चियों पर क्या गुज़रेंगी। क्या इस आदेश ने बलात्कार की शिकार लड़कियों को निहत्था नहीं किया है? क्या आपने भी इन लड़कियों का साथ छोड़ दिया है? मैं आपसे पूछ रहा हूं। आप जो एक दर्शक हैं, एक पाठक हैं।

रवीश कुमार की फेसबुक वॉल से साभारI

journalism
muzzafarpur rape case
Patna High Court
crime against women

Related Stories

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

पत्रकारिता की पढ़ाई के नाम पर महाविद्यालय की अवैध वसूली

गणेश शंकर विद्यार्थी : वह क़लम अब खो गया है… छिन गया, गिरवी पड़ा है

यूपी चुनावः कॉरपोरेट मीडिया के वर्चस्व को तोड़ रहा है न्यू मीडिया!

RSF ने कश्मीर प्रेस क्लब को बंद करने की जम्मू-कश्मीर प्रशासन की कार्रवाई की निंदा की

पत्रकारों पर बढ़ते हमले क्या आलोचना की आवाज़ दबाने की कोशिश है?

शर्मनाक: दिल्ली में दोहराया गया हाथरस, सन्नाटा क्यों?

सरकारी एजेंसियों का इस्तेमाल ‘दबाव बनाने के हथकंडे’ के रूप में किये जाने से चिंतित: एडिटर्स गिल्ड

यूपी: कानपुर में नाबालिग की मिली अधजली लाश, ‘रामराज्य’ के दावे पर फिर उठे सवाल!

बात बोलेगी: अच्छा है विनोद दुआ को दी राहत, पर एक नज़र इधर भी मीलॉर्ड


बाकी खबरें

  • अजय कुमार
    महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां
    26 May 2022
    विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई ऑक्सफोर्ड इंटरनेशनल रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौर में फूड फ़ार्मा ऑयल और टेक्नोलॉजी कंपनियों ने जमकर कमाई की।
  • परमजीत सिंह जज
    ‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप
    26 May 2022
    पंजाब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पंजाब की गिरती अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करना है, और भ्रष्टाचार की बड़ी मछलियों को पकड़ना अभी बाक़ी है, लेकिन पार्टी के ताज़ा क़दम ने सनसनी मचा दी है।
  • virus
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या मंकी पॉक्स का इलाज संभव है?
    25 May 2022
    अफ्रीका के बाद यूरोपीय देशों में इन दिनों मंकी पॉक्स का फैलना जारी है, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में मामले मिलने के बाद कई देशों की सरकार अलर्ट हो गई है। वहीं भारत की सरकार ने भी सख्ती बरतनी शुरु कर दी है…
  • भाषा
    आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में कश्मीर के अलगाववादी नेता यासीन मलिक को उम्रक़ैद
    25 May 2022
    विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत विभिन्न अपराधों के लिए अलग-अलग अवधि की सजा सुनाईं। सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "हसदेव अरण्य स्थानीय मुद्दा नहीं, बल्कि आदिवासियों के अस्तित्व का सवाल"
    25 May 2022
    हसदेव अरण्य के आदिवासी अपने जंगल, जीवन, आजीविका और पहचान को बचाने के लिए एक दशक से कर रहे हैं सघंर्ष, दिल्ली में हुई प्रेस वार्ता।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License