NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्यों फेसबुक कंपनी को अलग-अलग हिस्सों में बांटने की मांग उठ रही है?
कई देशों में फेसबुक पर यह आरोप लग रहा है कि उसने वहां की सरकारों को जानबूझकर गलत सूचनाएं दीं।
सिरिल सैम, परंजॉय गुहा ठाकुरता
09 Mar 2019
सांकेतिक तस्वीर

वैश्विक स्तर पर पिछले दो साल फेसबुक के लिए मुश्किल रहे हैं। पूरी दुनिया में फेसबुक की निगरानी बढ़ी है। कई देशों में फेसबुक को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। 

तकनीक उद्योग के जरिए जो गड़बड़ियां की जा रही हैं, फेसबुक को उसका सबसे बड़ा उदाहरण माना जा रहा है। फेसबुक और इसके दूसरे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर यह आरोप लग रहा है कि इनके जरिये लोगों की राय बदलने की कोशिश की जा रही है और चुनावों के नतीजे बदलने का प्रयास भी हो रहा है। साथ ही इन पर यह आरोप भी लग रहा है कि ये हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं और खबरों को सेंसर करने का काम भी कर रहे हैं। इसके अलावा फेसबुक और इसके सहयोगी प्लेटफॉर्म पर यह आरोप भी है कि ये सब मिलकर सत्ताधारियों को और ताकत हासिल करने में मदद कर रहे हैं।

इसे भी पढ़ें : मुफ्त इंटरनेट के जरिये कब्ज़ा जमाने की फेसबुक की नाकाम कोशिश?

फेसबुक के अधिकारियों पर यह आरोप लग रहा है कि इन लोगों ने अपनी कारोबारी गतिविधियों और उपभोक्ताओं से संबंधित नीतियों को लेकर संप्रभु सरकार को गलत सूचनाएं दीं। इन वजहों से फेसबुक के प्रमुख मार्क जुकरबर्ग और उनकी सहयोगी शेरिल सैंडबर्ग के इस्तीफे की मांग भी उठी है।

वैश्विक स्तर पर यह मांग भी उठ रही है कि बड़ी डिजिटल कंपनियों को अलग-अलग टुकड़ों में तोड़ दिया जाए। कुछ उसी तरह जिस तरह बेल समूह और एटी ऐंड टी के साथ 1980 के दशक में किया गया था। 1879 में अमेरिकन टेलीफोन ऐंड टेलीग्राफ कंपनी की स्थापना टेलीफोन का अविष्कार करने वाले ग्राहम बेल ने की थी। 1980 के दशक की शुरुआत में इस कंपनी को कई हिस्से में तोड़कर इन्हें आपस में प्रतिस्पर्धी बना दिया गया था।

सितंबर, 2018 में संयुक्त राष्ट्र संगठन ने म्यांमार में रोहिंग्या लोगों की हत्या के मामलों में फेसबुक की भूमिका को लेकर स्वतंत्र जांच का आदेश दिया। कंपनी ने यह माना कि उसे इस मामले में काफी पहले कार्रवाई करनी चाहिए थी।

इसे भी पढ़ें : #सोशल_मीडिया : लोकसभा चुनावों पर फेसबुक का असर?

दूसरे देशों के उलट भारत में फेसबुक की आलोचनाएं कम हुई हैं। इस संदर्भ में फेसबुक को भारत के सत्ताधारी दल से नजदीकी का फायदा मिला है। 

भारत में फेसबुक के एक आला अधिकारी पहले नरेंद्र मोदी की टीम में काम कर चुके हैं। ये व्यक्ति मोदी के चुनाव प्रचार टीम से 2013 में जुड़े हुए थे। इस वजह से इन पर हितों के टकराव का आरोप भी लगता है। हालांकि, फेसबुक के प्रवक्ता इसे खारिज करते हैं। 

भारत में राजनीतिक दलों के साथ फेसबुक के संबंधों के बारे में सार्वजनिक तौर पर काफी कम जानकारियां उपलब्ध हैं। जबकि अमेरिका में नवंबर, 2016 में हुए चुनावों में डोनल्ड ट्रंप की जीत और इन चुनावों में कथित तौर पर रूस के हस्तक्षेप के संदर्भ में फेसबुक की भूमिका पर काफी बात होती है। 

2012 में उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर काफी कुछ कहा-सुना गया है। उन्हें प्यार से दुनिया का पहला ‘फेसबुक राष्ट्रपति’ कहा जाता था।

हमारे सोशल मीडिया सीरीज़ के अन्य आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :-

क्या सोशल मीडिया पर सबसे अधिक झूठ भारत से फैलाया जा रहा है?

#सोशल_मीडिया : सत्ताधारियों से पूरी दुनिया में है फेसबुक की नजदीकी

जब मोदी का समर्थन करने वाले सुषमा स्वराज को देने लगे गालियां!

फेसबुक पर फर्जी खबरें देने वालों को फॉलो करते हैं प्रधानमंत्री मोदी!

फर्जी सूचनाओं को रोकने के लिए फेसबुक कुछ नहीं करना चाहता!

#सोशल_मीडिया : क्या सुरक्षा उपायों को लेकर व्हाट्सऐप ने अपना पल्ला झाड़ लिया है?

#सोशल_मीडिया : क्या व्हाट्सऐप राजनीतिक लाभ के लिए अफवाह फैलाने का माध्यम बन रहा है?

#सोशल_मीडिया : क्या फेसबुक सत्ताधारियों के साथ है?

#सोशल_मीडिया : क्या नरेंद्र मोदी की आलोचना से फेसबुक को डर लगता है?

#सोशल_मीडिया : कई देशों की सरकारें फेसबुक से क्यों खफा हैं?

सोशल मीडिया की अफवाह से बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा

#socialmedia
#Facebook
Real Face of Facebook in India
Mark Zuckerberg
politics
Narendra modi
India

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"


बाकी खबरें

  • वसीम अकरम त्यागी
    विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी
    26 May 2022
    अब्दुल सुब्हान वही शख्स हैं जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के बेशक़ीमती आठ साल आतंकवाद के आरोप में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बिताए हैं। 10 मई 2022 को वे आतंकवाद के आरोपों से बरी होकर अपने गांव पहुंचे हैं।
  • एम. के. भद्रकुमार
    हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईपीईएफ़ पर दूसरे देशों को साथ लाना कठिन कार्य होगा
    26 May 2022
    "इंडो-पैसिफ़िक इकनॉमिक फ़्रेमवर्क" बाइडेन प्रशासन द्वारा व्याकुल होकर उठाया गया कदम दिखाई देता है, जिसकी मंशा एशिया में चीन को संतुलित करने वाले विश्वसनीय साझेदार के तौर पर अमेरिका की आर्थिक स्थिति को…
  • अनिल जैन
    मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?
    26 May 2022
    इन आठ सालों के दौरान मोदी सरकार के एक हाथ में विकास का झंडा, दूसरे हाथ में नफ़रत का एजेंडा और होठों पर हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद का मंत्र रहा है।
  • सोनिया यादव
    क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?
    26 May 2022
    एक बार फिर यूपी पुलिस की दबिश सवालों के घेरे में है। बागपत में जिले के छपरौली क्षेत्र में पुलिस की दबिश के दौरान आरोपी की मां और दो बहनों द्वारा कथित तौर पर जहर खाने से मौत मामला सामने आया है।
  • सी. सरतचंद
    विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
    26 May 2022
    युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License