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भारत
राजनीति
'खाते में 15 लाख' की तरह अब सवर्णों के लिए आरक्षण का जुमला!
आम समझ ये है कि नौकरियों और उच्च शिक्षा में सवर्ण वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का फैसला हर खाते में 15 लाख के जुमले की तरह साबित होगा।
मुकुल सरल
07 Jan 2019
फाइल फोटो
Image Courtesy: Financil Express

(त्वरित टिप्पणी)

लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मोदी सरकार ने एक और जुमला फेंका है! नौकरियों और उच्च शिक्षा में सवर्ण वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का जुमला। लेकिन आम समझ ये है कि ये भी बिल्कुल हर खाते में 15 लाख के जुमले की तरह साबित होगा।

मोदी कैबिनेट ने सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव पास किया है। इसके लिए 8 लाख वार्षिक पारिवारिक आय सीमा और 5 एकड़ से कम भूमि और अगर आवासीय मकान है तो वो 1000 वर्ग फीट से कम होने की शर्त रखी गई है।

इसी के साथ तथाकथित मुख्यधारा के मीडिया ने इसे मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक कहकर प्रचारित करना शुरू कर दिया है। लेकिन सवर्ण यानी सामान्य वर्ग को फिलहाल ये आरक्षण मिलना संभव नहीं है।

आरक्षण का फैसला सिर्फ कैबिनेट निर्णय से नहीं हो सकता। कैबिनेट मीटिंग में प्रस्ताव पास होने के बाद इसे संविधान में संशोधन के लिए सदन के सामने रखा जाएगा। सरकार ने घोषणा की है कि वह संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन के लिए संसद में प्रस्ताव लाएगी। लेकिन जिस तरह के समीकरण हैं उसमें इसे पास करना संभव नहीं है। लोकसभा में इसे एकबारगी पास किया जा सकता है लेकिन राज्यसभा में ये मुमकिन नहीं हो पाएगा। और न इसे सुप्रीम कोर्ट मानेगा। सिर्फ एक चुनावी संदेश की दृष्टि से इसका थोड़ा महत्व है। इस मंशा को इसलिए भी समझा जा सकता है कि इसे शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन मंगलवार, 8 जनवरी को संसद में पेश करने की तैयारी है।

क्या कहता है संविधान

सरकारी सेवाओं और संस्थानों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों तथा अनुसूचित जातियों और जनजातियों से सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है। संविधान निर्माताओं का मानना था कि जाति व्यवस्था के कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से पिछड़ी रही और उन्हें भारतीय समाज में सम्मान तथा समान अवसर नहीं दिया गया। इसी वजह से सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं तथा सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 15% और 7.5% के आरक्षण की व्यवस्था की गई। बाद में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए भी आरक्षण शुरू किया गया। ओबीसी को कुल 27% आरक्षण दिया गया है। इस प्रकार इन वर्गों के लिए कुल मिलाकर 49.5 फीसदी आरक्षण वर्तमान में लागू है।

नहीं हो सकता 50% से अधिक आरक्षण

संविधान की इस सब व्यवस्था के बाद भी आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर कई मौकों पर आदेश देते हुए स्पष्ट किया है कि इससे समान अवसर की संविधान की गारंटी का उल्लंघन होगा। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा तय की है। हालांकि, राज्य कानूनों ने इस 50% की सीमा को पार कर लिया है, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

आरक्षण को लेकर कुछ बातें और स्पष्ट करनी ज़रूरी हैं।

संविधान के तहत आर्थिक तौर पर आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। हमारा संविधान धर्म और संप्रदाय के आधार पर भी आरक्षण देने से रोकता है। संविधान के मुताबिक एससी-एसटी और ओबीसी को आरक्षण ज़रूर मिला है लेकिन ये जाति आधारित नहीं है, और न ये गरीबी उन्मूलन का कोई प्रोग्राम है, बल्कि ये सामाजिक न्याय की एक व्यवस्था है। यानी आरक्षण ऐतिहासिक तौर पर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के आधार पर दिया गया है।  

नौकरियां हैं कितनी?

रोज़गार के मोर्चे पर मोदी सरकार लगातार आलोचना झेल रही है। 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था।

अगर मोदी सरकार सवर्ण वर्ग को नौकरियों में किसी तरह आरक्षण दे भी पाए तो भी सबसे बड़ा सवाल है कि सरकारी नौकरियां हैं कितनी। सरकार ने नये पदों का सृजन नहीं किया है, साथ ही पुराने पद भी कम कर दिए हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार जनवरी, 2018 से बेरोज़गारी में बढ़ोतरी लगातार पांच प्रतिशत से बढ़कर 28 दिसंबर को 7.3 प्रतिशत हो गई है।

कुल मिलाकर ये एक चुनावी जुमले से ज़्यादा कुछ साबित नहीं होने जा रहा।

असल वजह

दरअसल इस समय मोदी सरकार रफ़ाल मुद्दे पर बुरी तरह घिरी हुई है। नोटबंदी के बाद आरबीआई विवाद ने उसकी साख को नुकसान पहुंचाया है। तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार ने उसे और बैकफुट पर ला दिया है। राम मंदिर का हल उसके पास फिलहाल कुछ है नहीं। उसी के समर्थक उसपर धोखा देने का आरोप लगाने लगे हैं।

इसके अलावा एससी/एसटी एक्ट को लेकर पहले सुप्रीम कोर्ट में लचर पैरवी और फिर दलित वर्ग की नाराज़गी से घबराकर उसके लिए अध्यादेश लाने से सवर्ण वर्ग की नाराज़गी झेल रही मोदी सरकार इस असंतोष को किसी तरह कम करना चाहती है।

इसके अलावा भी अभी किसानों ने सरकार को ललकारते हुए 2018 में बड़ा आंदोलन किया और अब 8-9 जनवरी को मज़दूरों की देशव्यापी हड़ताल हो रही है। इस हड़ताल को ऐतिहासिक माना जा रहा है क्योंकि इसमें अन्य कर्मचारी वर्ग भी शामिल हो रहा है। साथ ही किसानों ने भी मज़दूरों को समर्थन दिया है।

ऐसे में मोदी सरकार अब सवर्णों को आरक्षण का लालीपॉप देना चाहती है... आमतौर में सर्वण वर्ग में दलित और ओबीसी के आरक्षण को लेकर काफी अंसतोषण और भ्रम भी रहता है। बीजेपी सरकार शायद इसी का फायदा उठाना चाहती है। लेकिन अब देर हो चुकी है और ऐसे हथकंडों से कोई बात बनेगी, लगता नहीं है।

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