NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
खबरदार, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बढ़ रहा है पूँजी का कब्ज़ा
महिला दिवस पूँजीवाद के विरूद्ध प्रतिरोध का मंच रहा है जिसे अब वैशविक पूँजीवादी व्यवस्था कब्ज़ा रही हैI
सुबोध वर्मा
09 Mar 2018
Translated by महेश कुमार
 International Women’s Day

हर साल की तरह इस बार भी समाचार आया कि 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को विशाल निगमों, सरकार के विभिन्न विभाग, एनजीओ और दानी संगठन और बेशक, बॉलीवुड से हॉलीवुड तक की हस्तियों, विभिन्न स्टूडियो द्वारा मनाया गया। मैकडॉनल्ड्स ने विश्व स्तर में महिलाओं के मुद्दों के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने के लिए विश्वभर में दो मेहराबों के ब्रांड चिह्न को ऊपर उठाने का फैसला किया है (जो मेहराब 'डब्ल्यू' जैसा दिखता है) । न्यूयॉर्क में, मॉर्गन स्टेनली, प्रॉक्टर एंड गैंबल जैसी 34 बड़ी कंपनियों ने अपने गगनचुंबी इमारत के कार्यालयों को "कार्यस्थल में समानता का नारा दिया है"। प्रधान मंत्री मोदी राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में झुनझुनू के लिए रवाना हुए ताकि वे बहन-बच्चियों को बचाने और उन्हें शिक्षित करने के लिए एक कार्यक्रम का उद्घाटन कर सकें। म्यांमार में आंग सान सू की ने महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाने का आह्वान किया। गूगल ने एक डूडल डाल दिया है बार्बी, गुड़िया बनाने वाली कंपनी ने 'इतिहास बनाने वाली' गुड़िया की एक नई रेखा जारी की। भारत के अखबारों में गुलाबी रंग के पृष्ठ छापे गये और यहाँ तक कि एक हिंदी दैनिक ने एक सुगंधित संस्करण को इस सम्बन्ध में प्रकाशित किया।

क्या यह सब अच्छा नहीं है, क्या यह महिलाओं की समानता की दिशा में एक और कदम है? क्या यह कोई शक्तिशाली संदेश नहीं है क्या इससे फर्क नहीं पड़ता है?

कई सालों पहले नामी क्लेन, लेखक और कार्यकर्त्ता, ने यह बताया था कि शासकों ने अपना खुद के विशाल साम्राज्य में, इस विरोध और प्रतिरोध के प्रतीक को, या यहाँ तक कि इसे इसकी पहचान के साथ ही अपनाया है, और समायोजित किया है। वह उन कंपनियों के बारे में बात कर रही थी आज जिन्हें देखा जा रहा है और वह बहुत बड़ा है – यह है वैश्विक विचारों का सह-एकीकरण ताकि उसे वे बहुत उलट ढंग से बदल सकें। ऐसा करने से, इन मौकों या प्रतीकों का वास्तविक सार बेअसर हो जाता है, और व्यवस्था के प्रति घृणा उत्पन्न करने वाला यह विरोध अंततः प्रणाली के लिए एक उनकी सहयोगी मचान में बदल जाता है। यह महिला दिवस के साथ हुआ है। यह समझने के लिए, यह कैसे शुरू हुआ आइये इसे देखते हैं।

यह 1910 की बात ही जब कोपनहेगन में, दूसरी समाजवादी अंतर्राष्ट्रीय महिल सम्मेलन को आयोजित किया जा रहा था। इसमें 17 देशों की 100 से अधिक महिलाएं, जिसमें यूनियनों, समाजवादी पार्टियों और यहां तक कि कुछ निर्वाचित प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व शमिल था। जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (जो तब एक क्रांतिकारी पार्टी थी, जो कि आज के नव-उदारवादी सहयोगी के विपरीत है) के एक प्रसिद्ध नेता क्लारा ज़ेटकिन ने प्रस्ताव किया था कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाना चाहिए।

सम्मेलन सिर्फ महिलाओं की बैठक क नहीं था। इसके लिए जो निमंत्रण दिय गया उसमें ने कहा था, कि "हम तत्काल सभी समाजवादी दलों और समाजवादी महिलाओं के संगठनों और साथ ही सभी कामकाजी महिला संगठनों के प्रतिनिधियों को भेजने क आमन्त्रण करते यहीं ताकि वर्ग संघर्ष की नींव पर खड़े सभी संगठन इसमें शमिल हो सके।"

क्लारा ज़ेटकीन ने खुद अपनी पार्टी की महिला पत्रिका में पहले लिखा था कि "पूंजीवादी नारीवाद और आधिकारिक महिलाओं के आंदोलन को दो मौलिक अलग-अलग सामाजिक आंदोलन हैं" उन्होंने कहा कि एक बुर्जुआ नारीवादि जो पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने के बजाय पुरुषों और महिलाओं के बीच संघर्ष के माध्यम से सुधार की मांग करती ही। और दूसरी वः जो सत्तारूढ़ पूंजीपति वर्ग के खिलाफ अपने वर्ग के पुरुषों के साथ लड़कर पूंजीवाद को खत्म करने के लिए काम कर रही थी।

यह सिर्फ कुछ हवादार विचारधारा नहीं थी। पूर्ववर्ती वर्षों में यूरोप और अमेरिका में महिलाओं के संघर्ष का ज्वार देखा गया था। 1908 में, 15,000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क शहर में काम के कम समय की मांग की को लेकर, बेहतर वेतन और मतदान अधिकारों की मांग की थी। 1909 में, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका के कॉल पर, 28 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था।

कोपेनहेगन कॉल के बाद, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 19 मार्च को ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में मनाया गया था। दस लाख से अधिक महिलाओं और पुरुषों ने इन रैलियों में हिस्सा लिया था, जिसमें महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने, वोट देने, प्रशिक्षित करने, सार्वजनिक कार्यालय आयोजित करने और भेदभाव को समाप्त करने की मांग की गई थी। 25 मार्च को, 123 कामकाजी महिलाओं और 23 पुरुषों, उनमें से ज्यादातर इतालवी और यहूदी प्रवासियों को एक न्यूयॉर्क परिधान कारखाने में आग लगने से निधन हो गया। इस घटना ने अचानक महिला श्रमिकों की दुर्दशा पर ध्यान केंद्रित किया और उनके आंदोलन को गति प्रदान की। 1911 में लॉरेन्स, मैसाचुसेट्स में महिलाओं द्वारा “रोटी और गुलाब” अभियान देखा गया और कपड़ा मजदूर की हड़ताल भी देखि गयी, जिसके कई साल बाद एक इसी नाम से जोन बेएज़ के गीत को प्रेरित किया।

रूस सहित कई यूरोपीय देशों में प्रथम विश्व युद्ध की पूर्व संध्या पर महिला दिवस के विरोध प्रदर्शन जारी रहे। 1913 में, दिन को 8 मार्च तक स्थानांतरित कर दिया गया था, जो तब से 8 मार्च महिला दिवस की तारीख बनी हुई है। 1917 में, महिला दिवस को महिला श्रमिकों की भारी हड़ताल द्वारा मनाया गया, जो चार दिनों तक चली और अंततः एक विद्रोह में बदल गयी जिसने ज़ार (जिसे पहली या फरवरी क्रांति कहा गया, और बाद में यह अक्टूबर में समाजवादी क्रांति में समावेश हो गयी); महीने ग्रेगोरीयन कैलेंडर के नाम पर हैं)।

इस संक्षिप्त इतिहास से पता चलता है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरूआत और उसकी शुरुआत से ही महिलाओं और पुरुषों द्वारा पूंजीवाद के खिलाफ विरोध के रूप में शुरू हुआ था। यह एक दिन शोषण के खिलाफ महिलाओं के कामकाज के संघर्ष को चिह्नित करने के लिए जारी रहा और ताकि समाज समाजवादी समाज के लिए आगे बढ़े, जिसमें महिलाओं की मुक्ति शामिल होगी।

यह केवल 1977 में संयुक्त राष्ट्र ने 8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र दिवस महिला अधिकार और अंतर्राष्ट्रीय शांति के रूप में घोषित किया था। और विभिन्न सरकारें इसे अपने तरीके से देख रही थीं, इस पर ध्यान केंद्रित कर रही थीं या 'महिलाओं के मुद्दे' पर। धीरे-धीरे, इस अवसर का सच्चा क्रांतिकारी सार क्षीण हो गया। केवल वामपंथियों ने इसे शोषण और हिंसा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दिन के रूप में मनाया है, हालांकि अपील के विस्तार के प्रयास में यह भी काफी क्षीण हो गया है। ऐसा नहीं है कि महिलाओं का शोषण और उत्पीड़न आज कम हो गया है लेकिन इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन बुर्जुआ के नारीवाद के साथ और यहां तक कि भारत के रूप में - आरएसएस प्रकार के 'नारी शक्ति' (महिला शक्ति) धारणाओं के साथ तब्दील हो गया है।

महिला दिवस को मानाने वाली कंपनियां अपनी महिला कर्मचारियों के लिए कम भुगतान करती हैं, बहुत कम महिला मालिक हैं, और बेवजह महिला श्रमिकों का शोषण करते हैं। सरकारें जो कि महिलाओं के अधिकारों (जैसे हमारी अपनी मोदी सरकार) पर मोम के लेप कगा रही हैं, वे अपने देश में अस्थिर महिला रोजगार और निम्न मजदूरी को त्यागने कोई विचार नहीं रखते हैं। गैर सरकारी संगठन और दानकारी संगठन महिलाओं की पीड़ा के वास्तविक कारणों की अनदेखी करते हैं और रिक्त सामान्यताओं पर ध्यान देते हैं। इन अशुद्ध महिला अधिकारधारकों से सावधान रहना होगा।

International Women’s Day
Naomi Klein
United nations

Related Stories

भाजपा ने अपने साम्प्रदायिक एजेंडे के लिए भी किया महिलाओं का इस्तेमाल

मानवाधिकार संगठनों ने कश्मीरी एक्टिविस्ट ख़ुर्रम परवेज़ की तत्काल रिहाई की मांग की

विश्व आदिवासी दिवस पर उठी मांग, ‘पेसा कानून’ की नियमावली जल्द बनाये झारखंड सरकार

दुनिया में हर जगह महिलाएँ हाशिए पर हैं!

खोरी गांव: मकानों को टूटने से बचाने के लिए यूनाइटेड नेशन को भेजा ज्ञापन

संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन: भारत पर इसका असर और नागरिक समाज के बहिष्कार का कारण

दुनिया की हर तीसरी महिला है हिंसा का शिकार : डबल्यूएचओ रिपोर्ट

किसान आंदोलन: उत्साह से मना अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

लखनऊ में महिला दिवस पर कोई रैली या सार्वजनिक सभा करने की इजाज़त नहीं!

उत्तराखंड में जरूरत पड़ने पर बचाव एवं राहत कार्यों में मदद देंगे : संरा महासचिव


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?
    31 May 2022
    बीते विधानसभा चुनाव में इन दोनों जगहों से सपा को जीत मिली थी, लेकिन लोकसभा उपचुनाव में ये आसान नहीं होगा, क्योंकि यहां सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है तो वहीं मुख्य…
  • Himachal
    टिकेंदर सिंह पंवार
    हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 
    31 May 2022
    केंद्र को यह समझना चाहिए कि हाती कोई सजातीय समूह नहीं है। इसमें कई जातिगत उपसमूह भी शामिल हैं। जनजातीय दर्जा, काग़जों पर इनके अंतर को खत्म करता नज़र आएगा, लेकिन वास्तविकता में यह जातिगत पदानुक्रम को…
  • रबीन्द्र नाथ सिन्हा
    त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान
    31 May 2022
    हाई-प्रोफाइल बिप्लब कुमार देब को पद से अपदस्थ कर, भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व ने नए सीएम के तौर पर पूर्व-कांग्रेसी, प्रोफेसर और दंत चिकित्सक माणिक साहा को चुना है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कर्नाटक पाठ्यपुस्तक संशोधन और कुवेम्पु के अपमान के विरोध में लेखकों का इस्तीफ़ा
    31 May 2022
    “राज्य की शिक्षा, संस्कृति तथा राजनीतिक परिदृ्श्य का दमन और हालिया असंवैधानिक हमलों ने हम लोगों को चिंता में डाल दिया है।"
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?
    31 May 2022
    न्यूज़चक्र के इस एपिसोड में आज वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं उमर खालिद के केस की। शुक्रवार को कोर्ट ने कहा कि उमर खालिद का भाषण अनुचित था, लेकिन यह यह आतंकवादी कृत्य नहीं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License