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राजनीति
खोरी विध्वंस : पुलिस ने दुबारा लाठीचार्ज किया 
निवासियों ने आरोप लगाया कि अब भी उन्हें पीटा जा रहा है, जबकि ध्वस्तीकरण अभियान लगभग पूरा हो गया है। इलाके में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति एवं लोगों की आवाजाही को अभी भी प्रतिबंधित रखा गया है। 
सुमेधा पाल
27 Jul 2021
खोरी विध्वंस : पुलिस ने दुबारा लाठीचार्ज किया 

क्षेत्र में हरित पर्यावरण की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर खोरी गांव में ध्वस्तीकरण अभियान जारी है, यहां के निवासी अपने वैकल्पिक रिहाइश के लिए लगातार जद्दोजहद कर रहे हैं। यहां भोजन एवं पानी जैसी आवश्यक आपूर्ति भी प्रतिबंधित कर दी गई है, इससे गांव में भय का महौल बना हुआ है। यहां के निवासियों ने आरोप लगाया कि इन बुनियादी सुविधाओं को जुटाने पर पुलिस की लाठियां खानी पड़ती है। 

इसके पहले सुबह में,  लोगों ने प्रशासन का इस ओर ध्यान दिलाने के लिए गांव के बाहर जमा होने का निर्णय किया था।  निवासियों का दावा है कि वे लोग सड़क के दोनों ओर खड़े थे, जब उन पर दुबारा लाठीचार्ज किया गया, इसमें कई लोग घायल हो गए। पुलिस ने इनमें से 6 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है। 

खोरी गांव के निवासी और उस वक्त घटनास्थल पर मौजूद जीतू भाई ने न्यूज़क्लिक को बताया: “1000 से ज्यादा की तादाद में लोग गांव के बाहर इकट्ठा हुए थे, प्रशासन से बातचीत करने के लिए। वे लोग सबसे पहले अपने रहने का प्रबंध चाहते हैं।  हम लोग रोड के किनारे खड़े थे,  और किसी की आवाजाही या यातायात में बाधा नहीं पहुंचा रहे थे। हम वहां से कहीं गए भी नहीं। बस वहां हमने प्रशासन से मांग की कि हम लोग उनसे बातचीत करना चाहते हैं। लेकिन पुलिस ने हम में से 6 से अधिक लोगों को हिरासत में ले लिया, जिनमें अन्यों के साथ रुबीना, राशीद और आलम शामिल हैं।”

लाठीचार्ज में जख्मी एक निवासी 

यह क्रैकडाउन, इस जगह को खाली कराए जाने के सुप्रीम कोर्ट द्वारा 7 जून को दिए गए आदेश के बाद से जारी है। हाल में 23 जून को हुई सुनवाई में फरीदाबाद नगर पालिका निगम ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि उसने कुल 150 एकड़ वन भूमि में से 74 एकड़ जमीन को खाली करा लिया है। कई वादियों ने शिकायत की थी कि बेघर हुए लोगों के आश्रय, उनके भोजन और पानी की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है। 

ध्वस्तीकरण अभियान जारी रहने के बावजूद,  निवासियों ने कहा कि पुलिस की क्रूरता जारी है।  उसी गांव की एक निवासी रेखा ने बताया,“ हमने अपना सब कुछ गंवा दिया है; हमें अभी भी पीटा जा रहा है।  उन्होंने हमारा घर ले लिया है,  और अब हमारी आवाजाही पर भी रोक लगा रहे हैं,  हमारा भोजन छीन कर फेंक दे रहे हैं और हमें इसका प्रबंध भी नहीं करने दे रहे हैं।  इससे तंग आकर कई लोगों ने खुदकुशी करने की कोशिश की।  इसमें सबसे अधिक तबाही गर्भवती महिलाओं  हो रही है, जो खुले में लेटने पर मजबूर हैं।” 

गांव में 5000 से अधिक महिलाएं गर्भवती हैं या जिनके बच्चे दुधमुंहे हैं। 20,000 से अधिक छोटे-छोटे बच्चे हैं।

कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि राहतकर्मियों को भी  पुलिस गांव में भोजन और पानी का वितरण करने से रोक रही है और उन्हें गिरफ्तार कर लेने की धमकियां दे रही है। निवासियों को पास की दवा की दुकान पर भी जाने पर रोका जा रहा है, इस वास्तविकता के बावजूद की वे इस मानसून सीजन में  अपने सिर से छत के टूट जाने से मलबों के बीच खुले में रहने पर विवश है और इस वजह से कई लोग बीमार हो गए हैं। गर्भवती महिलाओं को सकून से  बैठने की जगह तक नसीब नहीं है।  पुलिस इस हद तक चली गई है कि उसने उन कंटेनर को भी पलट दिया है, जिसमें इन लोगों के लिए भोजन बनाया जाता था और उनका वितरण किया जाता था। 

हरियाणा सरकार पिछले एक महीने से यह सुनिश्चित करने में लगी है कि गांव के सभी निवासी यहां से चले जाएं और उनका विरोध प्रदर्शन शांत हो जाए। सरकार के इस रवैये के खिलाफ कुछ लोगों के नारे लगाने पर पुलिस ने उनमें से कई निवासियों को हिरासत में ले लिया। 30 जून को एक महापंचायत बुलाई गई थी ताकि सभी अपनी बात रख सकें लेकिन पुलिस ने इसे भी नहीं होने दिया और इसमें शिरकत करने आए लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया। 

इस जगह को वन संरक्षण के आधार पर खाली कराया गया है।  वायर वेब पोर्टल में हालिया लिखे एक लेख में अधिवक्ता ऋत्विक दत्ता ने लिखा है: “ केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना ‘गैर वन भूमि’ को गैर वन उद्देश्यों के लिए उपयोग में नहीं लाया जा सकता है, देश का कानून वन-भूमि को “गैर-वन’’ के मकसद से इस्तेमाल किए जाने से नहीं रोकता है-इन सभी के लिए केंद्र सरकार से “पूर्व अनुमति” अपेक्षित है। यह विषय केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के संतुष्ट होने पर निर्भर है कि कोई वैकल्पिक गैर वन भूमि उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस कानून में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की इजाजत से किए गए फेरबदल पर गौर करने से मालूम होता है कि इस वन के बड़े हिस्से को वास्तव में उन गतिविधियों में बदल दिया गया है, जिनके लिए इस वन-भूमि का इस्तेमाल होने देने से आसानी से बचा जा सकता था।"

उदाहरण पेश करते हुए दत्ता ने कहा कि हरियाणा सरकार ने स्वयं ही 2020 में वन की 395.4 हेक्टेयर भूमि को गैर वन कार्य के लिए स्थांतरित कर दिया है, जो कि आकार में खोरी गांव से लगभग 10 गुनी है। 

हालांकि पुनर्वास नीति की घोषणा की गई है, जिसकी शर्तें कहती हैं कि जिनकी वार्षिक आमदनी तीन लाख रुपये है, उन्हें ही घर आवंटन करने पर विचार किया जाएगा। योजना यह भी कहती है कि परिवार के मुखिया नाम  हरियाणा के बड़खल विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में 1 जनवरी 2021 के पहले दर्ज होना चाहिए; परिवार के मुखिया के पास हरियाणा सरकार द्वारा जनवरी एक 2021 तक जारी किया गया परिचय पत्र होना चाहिए;  और अगर परिवार के किसी भी सदस्य को दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम का बिल जारी किया गया है, तो उसकी भी रसीद होनी चाहिए। 

हालांकि इन उजाड़े गए लोगों के लिए वैकल्पिक आवास की व्यवस्था सरकार ने अभी तक नहीं की है। यहां के लोगों ने खुद से ही अगले 6 महीने तक के लिए 2000 रुपये महीने भाड़े पर अपने रहने का इंतजाम कहीं और किया है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Khori Demolition: Residents Allegedly Lathi-Charged Again as Demolition Nears Completion

Khori
Khori Village Haryana
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evictions
Forest Conservation
Save Aravallis

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