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लौट के बुद्धू हिन्दू-मुस्लिम पर आए!
वैसे ‘साहेब’ ये बताना भूल गए कि अगर आप मोदी समर्थक नहीं हैं तो आप हिन्दू होने के बाद भी ज़रूर आतंकवादी हो सकते हैं, देशद्रोही हो सकते हैं, अर्बन नक्सली हो सकते हैं...।
मुकुल सरल
02 Apr 2019
modi
Image Courtesy : नवोदय

“हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता”, हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा है, लेकिन आप इस भ्रम में मत रहना। क्योंकि वे ये बताना भूल गए कि अगर आप मोदी समर्थक नहीं हैं तो आप ज़रूर आतंकवादी हो सकते हैं, देशद्रोही हो सकते हैं, अर्बन नक्सल हो सकते हैं...आपको कभी भी गिरफ़्तार किया जा सकता है। आप की सरेआम हत्या की जा सकती है। जैसे इंस्पेक्टर सुबोध की कर दी गई। गौ-आतंकियों ने उन्हें सरेआम मार दिया। जैसे छात्र नेता कन्हैया को देशद्रोही बता दिया गया, जैसे कवि वरवर राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा जैसे बुद्धिजीवी और मानवाधिकार कार्यकर्ता अर्बन नक्सल कह दिए गए। यानी आप जान लीजिए कि “हिन्दू होना काफी नहीं है, मोदी होना ज़रूरी है”, वरना आप क्या आपका पूरा परिवार, पूरा खानदान आतंकवादी हो सकता है। इसलिए मोदी जी के इस जुमले के चक्कर में मत फंसिए। अगर आप देश प्रेम की बात करेंगे। अगर आप हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की बात करेंगे। अगर आप दलित-आदिवासी अधिकारों की बात करेंगे, अगर आप महिला स्वतंत्रता की बात करेंगे तो आप मोदी और उनके समर्थकों की नज़रों में निश्चित तौर पर आतंकवादी, मुस्लिम परस्त और गद्दार हो सकते हैं। इतना ही नहीं आप रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य की बात करके ही देख लीजिए। पूछ लीजिए कि 45 साल में इतनी बेरोज़गारी कभी नहीं थी, आपके शासन में ऐसे कैसे हो गया तो वो आपको निश्चित तौर पर गद्दार, देशद्रोही घोषित कर सकते हैं। आप मोदी जी (ख़ैर वे तो किसी सवाल का जवाब नहीं देते, सिर्फ अपना भाषण देते हैं।), या बीजेपी के किसी भी नेता या समर्थक से पूछ कर देख लीजिए कि नोटबंदी पर जो आरटीआई के माध्यम से जानकारी बाहर आई है कि नोटबंदी से न काला धन रुका, न नकली नोट बंद हुए और न आतंकवाद का ख़ात्मा हो सका, इसकी क्या वजह रही तो वे निश्चित तौर पर आपको आतंकवादी और पाकिस्तान का एजेंट घोषित कर सकते हैं। आप अच्छे दिन पर ही सवाल पूछकर देखिए तुरंत आपसे कहा जा सकता है कि आप सेना का मनोबल गिरा रहे हैं। देश को कमज़ोर कर रहे हैं। यानी आप आतंकवादी या उनके सहयोगी हैं।

ये तो मोदी जी के बयान का एक पहलू है। इसका दूसरा अहम पहलू ये है कि मोदी जी चुनाव हार रहे हैं। जब पांच साल से चल रहे लाखों करोड़ के प्रचार अभियान के बाद भी, तमाम मीडिया के साथ होने के बाद भी उनके चुनाव की हवा नहीं बन पाई तो वे फिर अतंत अपने पुराने प्रिय मुद्दे “हिन्दू-मुस्लिम” पर लौट आए। इस मुद्दे पर लौटना ही ये बताता है कि मोदी जी के हर वादे, हर नारे की हवा निकल गई है और इन चुनावों में उनकी हालत पतली है।   

आपने सुना है न मोदी जी का भाषण। नहीं सुना तो सुनिए और फिर पूछिए कि क्या एक देश का प्रधानमंत्री इस भाषा-शैली में बात करता है। प्रधानमंत्री किसी एक वर्ग या धर्म-जाति का नहीं होता, पूरे देश का होता है, लेकिन मोदी जी इस गरिमा को कायम नहीं रख पा रहे हैं। वे प्रचार के लिए लगातार निम्न स्तर पर उतर रहे हैं।

महाराष्ट्र के वर्धा में पहली अप्रैल को की गई चुनावी रैली में एनसीपी और कांग्रेस पर प्रहार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- “इस देश के करोड़ों लोगों पर हिन्दू आतंकवाद का दाग़ लगाने का प्रयास कांग्रेस ने किया। मुझे बताइए जब आपने हिन्दू आतंकवाद शब्द सुना तो गहरी चोट पहुंची थी कि नहीं पहुंची थी।” उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में इसे दोहराया और पूछा “हज़ारों साल का इतिहास हिन्दू कभी आतंकवाद करे, ऐसी एक भी घटना है क्या? अरे अंग्रेज जैसे इतिहासकारों ने भी हिन्दू हिंसक हो सकता है इस बात का जिक्र तक नहीं किया है।” हालांकि वे ये बताना भूल गए कि उस समय तो अंग्रजों ने मुस्लिम आतंकवाद जैसे शब्द का भी जिक्र नहीं किया था। उनके लिए तो हमारे क्रांतिकारी ही आतंकवादी थे। मोदी जी ने हिन्दू और आतंकवाद के विषय को इतना लंबा खींचा कि उनकी रैली का काफी समय इसी में बीत गया।

2017 में यूपी विधानसभा चुनाव में भी जब बीजेपी हार रही थी तो बीजेपी ने बिजली तक को हिन्दू-मुस्लिम में बांट दिया था। गांवों को श्मशान कब्रिस्तान में बांट दिया था। यही इस बार किया जा रहा है। पहले यूपीए सरकार हटाने और अब मोदी सरकार बचाने के लिए फिर हिन्दू-मुस्लिम टॉपिक शुरू कर दिया गया है। हालांकि बीजेपी ने इस मुद्दे को कभी मरने नहीं दिया। कभी घर वापसी और लव जेहाद के नाम पर और अब गौ-रक्षा के नाम पर ऐसी मुहिम लगातार चलती रही कि समाज में धर्म के नाम पर बंटवारा कायम रहे।  

ये सच है कि धर्म का आतंकवाद से कोई संबंध नहीं है, लेकिन ये भी सच है कि धर्म के नाम पर ही आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता रहा है। आप कहते हो कि हिन्दू धर्म का आतंकवाद और हिंसा से कोई लेना देना नहीं, ठीक है, लेकिन इसी देश में केवल मुस्लिम नाम या पहनावे की वजह से न जाने कितने नौजवानों को आतंकवादी करार देकर उनकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी गई। 20-20 साल जेलों में सड़ा दिया गया और अंत में कोर्ट ने कहा कि वे निर्दोष थे। दिल्ली का मोहम्मद आमिर इसका एक बड़ा उदाहरण है, जिन्हें अपने माथे से आतंकी का दाग़ धोने में 14 साल लगे। दिल्ली पुलिस 1997 में आमिर को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ़्तार किया था लेकिन 2012 में कोर्ट ने उन्हें बेकसूर बताते हुए बरी कर दिया। यही नहीं बीजेपी ने सिर्फ मुस्लिम पहचान की वजह से एएमयू और आज़मगढ़ को आतंकवाद का गढ़ तक बता दिया। और आज भी इस्लामोफोबिया जगाकर चुनावी हित साधना चाहती है।

और फिर आतंकवाद क्या? आतंकवाद की परिभाषा क्या है? ये महात्मा गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे कौन था? उसे क्या कहा जाए? क्या उसे आतंकवादी नहीं कहना चाहिए! राष्ट्रपिता का हत्यारा कैसे हिन्दुत्वादी दलों और संगठनों का प्रिय हो सकता है। और अभी जो गांधी जी की पुण्यतिथि पर उनके पुतले को गोलियों से छलनी किया गया और फिर उसका वीडियो जारी किया गया, इस गतिविधि को आप किस श्रेणी में रखेंगे?

हिन्दू आतंकवादी नहीं होते। लेकिन हिन्दुओं में बहुत आतंकवादी हुए हैं। गोडसे के अलावा ओडिशा में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंसऔर उनके परिवार को ज़िंदा जलाने वाला दारा सिंह कौन था?, तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और साहित्याकर एमएम कलबुर्गी के हत्या आरोपी सनातन धर्म के कार्यकर्ता कौन सी श्रेणी में रखे जाएंगे। और पत्रकार गौरी लंकेश के हत्यारे क्या मुसलमान थे। उनके तार भी उसी सनातन संस्था से जुड़ रहे हैं। राजस्थान में गरीब मज़दूर अफराजुल का कत्ल कर उसका वीडियो बनाने वाला शंभू रैगर कौन है। उसके लिए चंदा इकट्ठा करने वाले, उसके लिए कोर्ट पर धावा बोलने वाले, उसकी झांकी धार्मिक जुलूस में निकालने वाले आख़िर कौन थे। कुछ तो कहिए मोदी जी!

आसिफा के बलात्कारियों को मैं क्यों न आतंकवादी कहूं क्योंकि उसके बलात्कार और हत्या के पीछे भी सांप्रदायिक वजह थे। फिर दादरी के अखलाक, पहलू ख़ान, जुनैद, रकबर ख़ान और हापुड़ के कासिम के हत्यारों को क्यों न आतंकवादी कहा जाए।

और मोदी जी गुजरात दंगे, मुजफ़्फ़रनगर दंगे इनके बारे में आपका क्या ख़्याल है?  और बाबरी मस्जिद गिराने वालों, मक्का मस्जिद में धमाका करने वालों को क्या कहा जाए कि “हिन्दू कभी हिंसक नहीं होता?

और आप और आपके वित्त मंत्री जेटली जिस समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट में असीमानंद समेत अन्य आरोपियों के बरी होने के फैसले को आधार बनाकर ये कह रहे हो कि कांग्रेस ने हिन्दुओं को कलंकित करने का काम किया। उसके जज का फैसला भी ठीक से पढ़ लिया होता। इस फैसले को देने वाले एनआइए अदालत के जज जगदीप सिंह के फैसले के अनुसार एनआइए ने जानबूझ कर इस केस को खराब किया और इसलिए मजबूरी में उन्हें आरोपियों को बरी करना पड़ा।

मामला कितना संजीदा है इसे आप ज़रा आंकड़ों के जरिये भी समझिए। हालांकि गृह मंत्रालय का कहना है कि “देश में लिंचिंग की घटनाओं के मामले में एनसीआरबी के पास कोई आंकड़ा नहीं है।” लेकिन मार्च 2018 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृहमंत्रालय ने राज्यों द्वारा इकट्ठे किए गए भीड़ हत्या के कुछ आंकड़ों को तैयार किया था। इसके अनुसार ही मोदी सरकार के 2014 के बाद से सत्ता में आने के बाद से नौ राज्यों में 40 मॉब लिंचिंग की घटनाओं में 45 लोगों की मौत हुई है। 

सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसायटी एंड सेकुलरिज़्म (CSSS) ने मीडिया रिपोर्टों का अध्ययन कर ये बताया है कि जनवरी 2014  से 31जुलाई, 2018 तक 109 मॉब लिंचिंग की घटनाएँ सामने आई। इनमें से 82 घटनाएँ बीजेपी शासित राज्यों में हुईं।

इंडिया स्पेंडस के अनुसार इस तरह के 97% मामले 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद रिपोर्ट हुए हैं। लिंचिंग की घटनाओं की मुख्य वजह सांप्रदायिक रही है।

तो कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि लौट के ‘बुद्धू’ हिन्दू-मुस्लिम पर आए। लेकिन यहां यह समझना भी ज़रूरी है कि ये पिच बीजेपी की फेवरेट पिच या होम ग्राउंड है। उसकी हमेशा कोशिश रहती है कि सारी बहस लौट-फिरकर हिन्दू-मुसलमान पर ही केंद्रित हो जाए। क्योंकि इस पर पक्ष या विपक्ष में जितनी बात होगी उतना ही फायदा बीजेपी को होगा। इसलिए अंत समय में जब पहले दौर के मतदान में 10 दिन से भी कम समय बचा है वह इस मुद्दे को जानबूझकर भाषण के जरिये बहस में लाए हैं, ताकि धर्म के नाम पर भावनात्मक शोषण कर वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सकेगा। यही वजह है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने चुनाव अभियान के लिए दादरी के उसी बिसाहड़ा गांव को चुनते हैं जहां अखलाक की हत्या की गई और उनके हत्यारोपियों को सबसे आगे बैठाते हैं।

पता नहीं चुनाव आयोग इस सब पर कोई संज्ञान लेगा या नहीं। वैसे उम्मीद कम ही है। इसलिए विपक्ष को बीजेपी के इस ट्रैप में न फंसकर चुनाव को विकास, रोज़गार, किसान-मज़दूर जैसे मुद्दों पर ही केंद्रित करना होगा, इसी में उनकी और देश की भलाई है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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