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भारत
राजनीति
वोटर आईडी और आधार लिंकिंग : वोट कब्ज़ाने का नया हथियार!
मोटे तौर पर कहें तो चुनाव संशोधन कानून 2021 पर भारत की विपक्षी पार्टियों का यही विरोध है कि जब वोटर आईडी को आधार कार्ड से लिंक कर दिया जाएगा तो ढेर सारी सूचनाओं की मालिक सरकार हो जाएगी। सरकार उन सूचनाओं का जैसे मर्जी वैसे इस्तेमाल कर पाएगी।
अजय कुमार
22 Dec 2021
aadhar

अगर भारत के 90 करोड़ वोटरों में से 50 करोड़ वोटर भी गरिमा पूर्ण जीवन जीते और गरिमा पूर्ण जीवन का अर्थ समझते तो आधार की गरिमा निराधार होकर रह जाती। भारत की सरकार भारतीय लोगों के पिछड़ेपन का फायदा उठा कर आधार के जरिए वह नीतियां बनाने में सफल हो पाती है, जिनकी मौजूदगी निजता के अधिकार के उल्लंघन के तमाम रास्ते उपलब्ध कराती है। आधार कार्ड और वोटर कार्ड को आपस में लिंक करने वाला चुनावी संशोधन कानून बिना किसी विचार विमर्श के संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है।

यह कानून सही है या गलत? इसे किनारे रख कर केवल भारतीय संसद के कर्तव्य के लिहाज से सोचा जाए तो यह बात है कि संसद से जुड़ा हर कानून सांसदों के आपसी विचार विमर्श के बाद ही पारित होना चाहिए। लेकिन हमारे मुल्क की सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कानून बनाने की प्रक्रिया पालन की जा रही है या नहीं।

सरकारों की यही अनैतिकता निजता के अधिकार के उल्लंघन की सबसे बड़ी संभावना बनती है। यही सबसे बड़ा डर है कि जो सरकार खुल्लम खुल्ला अनैतिक कार्यवाही करती है क्या वह अपने फायदे के लिए लोगों की उन सूचनाओं का इस्तेमाल नहीं करेगी जो वोटर आईडी और आधार कार्ड के लिंक के जरिए उसे आसानी से मिल जाएगा? क्या आधार कार्ड और वोटर कार्ड को लिंक करके मिली जानकारी का इस्तेमाल चुनावी हार जीत के के लिए नहीं किया जाएगा?

मोटे तौर पर कहें तो चुनाव संशोधन कानून 2021 पर भारत की विपक्षी पार्टियों का यही विरोध है कि जब वोटर आईडी को आधार कार्ड से लिंक कर दिया जाएगा तो ढेर सारी सूचनाओं की मालिक सरकार हो जाएगी। सरकार उन सूचनाओं का जैसे मर्जी वैसे इस्तेमाल कर पाएगी। यह चुनावी प्रतिस्पर्धा के खिलाफ है। लोकतंत्र की सेहत के खिलाफ है। और सबसे बड़ी बात व्यक्ति की गरिमा के खिलाफ है कि उसकी सूचनाओं का बिना उसकी जानकारी के उसके खिलाफ इस्तेमाल किया जाए।

इस कानून पर सरकार का कहना है कि वोटर कार्ड और आधार को एक दूसरे के साथ जोड़ने के बाद फर्जी वोटरों को वोटर लिस्ट से बाहर करना आसान हो जाएगा। बहुत लंबे समय से फर्जी वोटरों की समस्या चुनावी प्रक्रिया में बाधा की तरह से मौजूद है। यह एक महत्वपूर्ण सुधार है। आधार को वोटर कार्ड से जोड़ना स्वैच्छिक होगा अनिवार्य नहीं होगा।

कानूनी मामलों के जानकारों का कहना है कि इस कानून की भाषा ऐसी है कि उससे किसी भी तरह से यह नहीं लगता कि वोटर आईडी कार्ड के साथ आधार कार्ड लिंकिंग कराना स्वैच्छिक होगा। बल्कि भाषा को ढंग से समझा जाए वह वोटर की पहचान के लिए वोटर आईडी कार्ड और आधार के बीच की लिंकिंग की अनिवार्य संबंध बनाने की ओर इशारा करती है।

इस कानून के जरिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 में 3 मूलभूत परिवर्तन होंगे। इन परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए कानून की भाषा कहती है कि इलेक्टरल रजिस्ट्रेशन ऑफीसर वोटर आईडी कार्ड की सत्यता जांच करने के लिए किसी व्यक्ति से उसका आधार कार्ड भी मांग सकता है। ठीक इसी तरह से मतदाता सूची में पहले से मौजूद किसी की नाम की सत्यता जांच करने के लिए उसका आधार नंबर मांग सकता है। सबसे बड़ी बात कि कानून यह कहता है कि अगर व्यक्ति आधार नंबर नहीं दे पा रहा है तो उसे मतदाता सूची में शामिल होने से वंचित नहीं किया जाएगा बशर्ते अपना आधार नंबर न देने के लिए उसके " पास पर्याप्त आधार हो"। अंग्रेजी में कहें तो " due to such sufficient cause"। यही सबसे महत्वपूर्ण है अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह किस कारण को पर्याप्त आधार मानती है या नहीं।

आधार का अब तक का इतिहास तो यह बताता है कि आधार की हर स्वैच्छिक शर्त धीरे-धीरे अनिवार्य शर्त में बदल जाती है। यहां तो कानून की पूरी भाषा कह रही है कि वोटर आईडी कार्ड की पहचान के लिए आधार का इस्तेमाल अनिवार्य तौर पर भी किया जा सकता है। इसलिए सरकार का यह कहना कि वोटर आईडी कार्ड और आधार के बीच की लिंकिंग अनिवार्य नहीं है इसकी पोल तो सरकार का कानून ही खोल देता है।

वोटर पहचान पत्र को आधार कार्ड के जरिए लिंक करने पर फर्जी मतदाताओं को बाहर किया जा सकेगा। यह बात सपाट तौर पर ठीक लगती है। लेकिन जैसे ही थोड़ा ठोक पीटकर देखते हैं तो पहला सवाल तो यही उठता है कि जब आधार कार्ड का एड्रेस फर्जी तरीके से बदल जाता हो तो वोटर पहचान पत्र की सत्यता का पैमाना कैसे बन सकता है? आधार कार्ड में पता बदलवाना बहुत मुश्किल काम नहीं है। बिहार का आदमी दिल्ली के पते पर आधार कार्ड ले सकता है। फिर बिहार आने पर दिल्ली का पता बदल सकता है।

ऐसे में कैसे फर्जी वोटर रुकेंगे? ऐसे में तो यह भी हो सकता है कि फर्जी वोटरों की चुनाव से पहले बाढ़ आ जाए। मान लीजिए कि उत्तर प्रदेश का चुनाव है। उससे पहले ही हजारों लोग बाहर से आकर उत्तर प्रदेश के पते पर आधार कार्ड ले ले तब क्या होगा? तब तो वही समस्या जस की तस रहेगी? फर्जी वोटर रहेंगे।

साल 2020 में यूनिक आइडेंटिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने तकरीबन 40 हजार आधार कार्ड को फर्जी आधार कार्ड कहकर खारिज किया। पहली बार स्वीकार किया कि उनके सिस्टम में भी फर्जीवाड़ा हो सकता है। बहुत सारे कोर्ट मामलों में यूआईडीएआई ने यह स्वीकार किया है कि उनके पास उनका रिकॉर्ड नहीं है जो आधार का इनरोलमेंट करते हैं। आधार कार्ड के इनरोलमेंट ऑपरेटर और एजेंसी का उन्होंने रिकॉर्ड नहीं रखा है। वह कहां से काम करते हैं इसका भी पता नहीं है।

आधार कार्ड को लेकर मौजूद इस तरह की खामियां  तो इस तरफ इशारा करती हैं कि वोटर आईडी कार्ड के पहचान की सत्यता निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड की जरूरत फर्जीवाड़ा को और अधिक बढ़ाएगी।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के सदस्य जगदीप छोकर ने फोन पर बातचीत में न्यूज़क्लिक को बताया कि वोटर आईडी कार्ड की खामी को आधार कार्ड के जरिए दूर किए जाने का सपना ठीक वैसे ही है जैसे एक खामी को दूसरे खामी से दूर किए जाने की बात की जा रही हो। इससे वोटरों की परेशानी से दूर नहीं होगी। वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का प्रमाण पत्र है जबकि आधार कार्ड निवास का प्रमाण पत्र है। अवधारणा के तौर पर देखा जाए तो यह दोनों एक दूसरे से अलग हैं। इन दोनों को एक साथ मिलाना बिल्कुल सही नहीं। जब इन दोनों को एक दूसरे के साथ लिंक करने की कोशिश की जाएगी और सूचनाओं का मिलान किया जाएगा तब ढेर सारी सूचनाएं अपने आप बाहर आने लगेंगी। इससे मतदान की गोपनीयता भंग होगी। दिल्ली में ऑटो के पीछे लिखा होता है कि 5 मिनट में आधार कार्ड बनवाएं। तो कैसे इसे सत्यता का पैमाना बनाया जा सकता है?

फर्जी या डुप्लीकेट वोटर का मतलब हमेशा बोगस वोटर नहीं होता है। भारत में तकरीबन 30 करोड़ प्रवासी मजदूर काम करते हैं। मतलब ऐसे लोग जिनकी जन्म स्थली अगर भारत का कोई एक राज्य है तो कर्म स्थली कोई दूसरा राज्य हैं। यह सब अपनी मर्जी से अपना घर छोड़कर बाहर कमाने नहीं जाते हैं। बल्कि मजबूरी इन्हें बाहर कमाने भेजती है।

 पूर्व चुनाव आयुक्त डॉ एस वाई कुरैशी बड़े साफ शब्दों में कहते हैं कि डुप्लीकेट वोटर का मतलब पूरी तरह से फर्जी और बोगस वोटर नहीं समझना चाहिए। इसमें बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर शामिल हैं।

भूतपूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन ने  न्यूज़क्लिक से बातचीत करते हुए बताया सबसे बड़ा सवाल तो इस कानून की टाइमिंग को लेकर है कि ऐन उत्तर प्रदेश चुनाव के वक्त ही यह बिल संसद में क्यों पेश किया गया? ऐसा क्या हो गया था कि बिना किसी बातचीत के इसे पास भी कर दिया गया? इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है? इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं।

लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि सरकार को बताना चाहिए कि डुप्लीकेट वोटर का मतलब क्या है? सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि डुप्लीकेट वोटर कहकर वह क्या कहना चाह रही है? कन्नन कहते हैं कि जरा इस तरह से सोचिए कि बिहार का कोई व्यक्ति दिल्ली में आकर टैक्सी चला रहा है। दिल्ली उसके लिए बिल्कुल नया है। वह बिल्कुल अलग माहौल में आकर के अपनी जिंदगी जीने का जुगाड़ कर रहा है। यहां पर उसे सरकार जैसी संस्था की मदद की बहुत अधिक जरूरत है। तकनीकी तौर पर कहा जाए तो जब उसके पास दिल्ली का वोटर आईडी होगा तो वह डुप्लीकेट वोटर आईडी होगा लेकिन सैद्धांतिक तौर पर देखा जाए तो उसे वोटर आईडी की जरूरत है। यह वोटर आईडी उसे दिल्ली जैसे शहर में सरकारी मदद का भागीदार बनाता है।

तो क्या नरेंद्र मोदी की सरकार यह कह रही है कि भारत के लाखों प्रवासी मजदूर अब से एक ही जगह पर वोट देंगे? क्या भारत के प्रवासी मजदूर इस बात को जान रहे हैं कि यह कानून केवल प्रवासी मजदूरों को वोटर लिस्ट से बाहर रखने के लिए लाया गया है? इसलिए जरूरी है कि सरकार यह बताएं की वोट की डुप्लीकेशन से उसका क्या मतलब है?

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में वोटर कार्ड और आधार कार्ड को लिंक करके चुनावी सुधार की प्रक्रिया पहले भी अपनाई जा चुकी है। लेकिन उसका नतीजा वैसा नहीं हुआ जैसा सरकार कह रही है। पता चला कि आंध्र प्रदेश के तकरीबन 50 लाख परिवारों की राज्य सरकार की एक वेबसाइट सर्विलांस कर रही है। उनके जाति धर्म और परिवार के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रही है। लोगों ने सवाल उठाना शुरू किया कि बिना उनकी जानकारी के आधार नंबर कैसे लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी। उसके बाद भी तेलंगाना के तकरीबन 20 लाख लोग वोट नहीं दे पाए। उन्हें वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया गया। अभी तक इस मामले की छानबीन चल रही है। यही सवाल फिर से खड़ा हो रहा है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि बहुत बड़ी मात्रा में लोगों को चुनावी नफा नुकसान देखते हुए वोट देने से रोका जाएगा।

पुत्तास्वामी मामले में आधार पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार कार्ड का इस्तेमाल केवल वंचित वर्गों तक जनकल्याणकारी योजनाओं को पहुंचाने में ही किया जाएगा। वंचित वर्ग को सब्सिडी देने राशन पहुंचाने जैसे कामों में किया जाएगा। दूसरी जगहों पर इसका इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। लेकिन आधार को स्वैच्छिक कहकर हर जगह इस्तेमाल किया जाने लगा है। बैंकिंग सेक्टर, टेलीकॉम सेक्टर से लेकर तमाम जगहों पर आधार का इस्तेमाल होता है। अब वोटर आईडी कार्ड के साथ भी इसका इस्तेमाल होने लगेगा।

जानकार कहते हैं कि फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची से बाहर निकालने के लिए आधार जैसे खतरनाक औजार का इस्तेमाल करना तभी उचित है जब वह कारगर हो। इससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि सरकार पहले यह बताएं कि फर्जी मतदाताओं को बाहर निकालने से जुड़े दूसरे औजार कारगर क्यों नहीं हो पाए? दूसरे औजार को लेकर सरकार ने क्या काम किया? उसके नतीजे क्या निकले?

जगदीप छोकर कहते हैं कि हर चुनाव से पहले मतदाता सूची को ईमानदारी से अपडेट करना ही मतदाता सूची में मौजूद फर्जी मतदाताओं को बाहर निकालने का एक तरीका है। इसके लिए चुनाव आयोग को मेहनत करनी पड़ेगी। दरवाजे दरवाजे जाकर के लोगों से पूछना पड़ेगा। ठीक-ठाक सवाल जवाब करने के बाद ही मतदाता सूची अपडेट हो पाएगी। आधार कार्ड के साथ लिंक करके इस फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची से नहीं बाहर किया जा सकता।

इन तर्क वितर्क के अलावा आधार और वोटर आईडी लिंक करने का सबसे बड़ा खतरा निजता के उल्लंघन का ही है। जब यह दोनों एक साथ लिंक हो जाएंगे तो सरकार के पास किसी व्यक्ति से जुड़ी अथाह सूचना होगी। उन सूचनाओं का इस्तेमाल करके सरकार या कोई भी पार्टी अपने लिए चुनावी नफा नुकसान का प्रबंधन कर सकती है। पॉलिटिकल एडवर्टाइजमेंट का तरीका बदल सकता है। पॉलिटिकल कैंपेनिंग बदल सकती है। भाजपा जैसी मजबूत सरकार हुई तो वह अपने विरोधी मतदाताओं को वोटर लिस्ट से बाहर निकालने में भी संकोच नहीं करेगी। सरकार के हाथ में आया यह बहुत बड़ा औजार है। बिना मजबूत डाटा प्रोटक्शन लॉ के सरकार के पास आधार कार्ड और वोटर आईडी के जरिए सरकार के पास पहुंचने वाली सूचनाएं व्यक्ति की लोकतांत्रिक भूमिका को पूरी तरह से कुंद कर सकती हैं। पहले भी ऐसी खबर आ चुकी है कि आधार नंबर का इस्तेमाल करके लोगों को किसी खास व्हाट्सएप ग्रुप से जोड़ा गया। उस व्हाट्सएप ग्रुप के सहारे पॉलीटिकल कैंपेनिंग की गई। ऐसे में आप खुद आधार कार्ड के सहारे उजागर होने वाली जानकारियों के बारे में सोच सकते हैं? यह जानकारियां चुनावी प्रक्रिया को जिस तरह से प्रभावित करेंगी उसका नतीजा उससे भी ज्यादा खतरनाक होगा जो फर्जी मतदाताओं की मौजूदगी से चुनाव पर पड़ता है। इसलिए विपक्ष का आरोप है कि आधार कार्ड और वोटर आईडी की लिंकिंग से जुड़ा कानून चुनावी सुधार नहीं है बल्कि भारत के लोकतंत्र को खत्म करने का तरीका है।

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